गाय और शुक्र

गाय भारत में पूजी जाती है,और हिन्दू धर्म के लिये गाय की मान्यता वेदों पुराणों संहिताओं में बहुत ही विस्तृत रूप में देखने को मिलती है, शुक्र के लिये गाय की मान्यता ज्योतिष से भी मिलती है,व्यक्ति के अन्त समय में गोदान की महत्ता भी गरुण पुराण के अनुसार मिलती है और मृत्यु के बाद बैतरणी नदी से पार जाने के लिये भी गाय का मूल्यांकन किया गया है। ग्रहों के अनुसार जीवन में शुरु से आखिरी तक गाय का मूल्यांकन शुक्र के लिये किया गया है,मेष राशि से मीन राशि तक तथा सभी सत्ताइस नक्षत्रों में और सभी नक्षत्रों के पायों के अनुसार गायों के रूपों का वर्णन किया जाता है। वृहद जानकरी के लिये गाय का संक्षिप्त रूप और गाय से प्राप्त होने वाले फ़लों को तथा गाय के विभिन्न अंगों के अन्दर ग्रहों के निवास और भावानुसार मूल्य बहुत ही उत्तम माना गया है। गाय के दर्शन से लेकर गाय के दूध दही घी मूत्र और गोबर तक को पंचगव्य की मान्यता के अनुसार सभी तरह के धार्मिक कार्यों में प्रयोग करने का विवरण मिलता है।

गाय के लिए अक्सर लोग आपनी  मान्यता को शुद्ध रूप से नहीं देख पाते है,जब भी उन्हें गाय का रूप समझाने की बात मिलाती है तो केवल वे दूध तक ही सीमित रह जाते है.ग+आय=गाय को भी समझ लिया जाए तो पता चलता है की जब सब कुछ चला जाए तो भी गाय के प्रति श्रद्धा करने से वापस आजाता है,अर्थ के रूप में भारत में दो ही रूप मिलते थे एक तो नीम का पेड़ और दूसरी गाय,इन दोनों के कारण शरीर और धन दोनों की बढ़ोत्तरी हुआ करती थी,गाय के द्वारा धर्म अर्थ काम और मोक्ष चारो पुरुषार्थो की पूर्ती हुआ करती थी.

गोधन गजधन बाजिधन और रतन धन खान,यह कहावत और किसी की नहीं है सूफी संत रहीमदास की है उनके अनुसार यह चारो पशु रत्न धन के रूप में देखे जाते थे,आज के समय में इन धनो को रत्न धन के आगे भुला दिया गया है,और बाकी के लोहे में अपने दिमाग को लगाकर आगे बढ़ने की कोशिश  की जा  रही  है जिसे देखो अपनी तकनीक को लोहे के अन्दर लगाकर अपने जीवन  को आगे बढाने  की अपनी योग्यता  को बढ़ा रहा है लेकिन मनुष्य शरीर में बढ़ोत्तरी ताकत  और हिम्मत देने वाले तत्वों को दूर रखना दवाइयों  और आवार्चीन औषिधि को प्रयोग में लेकर आगे बढ़ने की हिम्मत देना आदि भी माना जाने लगा है. 

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