गुरु का राशि परिवर्तन (कर्क)

कर्क राशि भचक्र की चौथी राशि है और इसका स्वामी चन्द्रमा है। गुरु चन्द्र की युति को बहुत खतरनाक इसलिये और माना जाता है कि अगर ज्ञान भावनात्मक हो जायेगा,या जीव के अन्दर भावना अधिक होगी अथवा रिस्ते के अन्दर भावनात्मक प्रभाव का बढना हो जायेगा तो जिस ज्ञान से तरक्की के रास्ते होते है वे किसी न किसी प्रकार की भावना से बंद हो जायेंगे,जैसे प्राणी शास्त्र में आपरेशन करने के लिये डाक्टरों को प्रेक्टिकल में जीवों के आपरेशन सीखने के लिये हत्या भी करनी पडती है और वह अपने मन मे यह धारणा बना लें कि जीव का आपरेशन करते वक्त वह मर जायेगा या उसके दर्द होगा तो वे डाक्टरी नही सीख सकते है। उसी तरह से रिस्ते के अन्दर अगर भावनात्मक रिस्ता लेकर चला जाता है और किसी घर के सदस्य के गुजरने के बाद भावनात्मक रूप से उसे ही याद कर के जीवन को जिया जायेगा तो जीवन एक भार स्वरूप हो जायेगा। भावना की जगह केवल मानसिक रूप से होने पर जीव समय पर उस भावना को दिमाग से निकाल देता है लेकिन गुरु चन्द्र की युति में जातक भावना में पलता बढता है और कभी कभी यह स्थिति बहुत ही खराब हो जाती है। गुरु कर्क राशि के छठे भाव का और नवे भाव का मालिक है। छठा भाव रोजाना के कामो का कर्जा दुश्मनी बीमारी का मालिक है। इस भाव से व्यक्ति का जीवन सेवा भाव से जुड जाता है। जव व्यक्ति सेवा वाले कार्य करता है तो उसे किसी न किसी प्रकार से दूसरे के कहने या आज्ञा में चलना पडता है,उसे चाहे कितना ही धन सेवा के बदले दिया जाये लेकिन वह कार्य में स्वतंत्र नही कहा जायेगा,उसे अपने मन से कार्य करने की छूट नही होगी,इस प्रकार से बन्धन में रहकर कार्य करने पडेंगे। धनु राशि जो न्याय मर्यादा माता पिता और परिवार और समाज के प्रति आस्था की मालिक है उसके छठे भाव में आने से तथा इस राशि का धनु राशि से अष्टम में आने से जातक के जो भी कार्य होंगे वे अपमान और जोखिम से पूर्ण होंगे तथा जो भी जातक की भावनायें होंगी वे कार्य के सम्पादन या कार्य के प्रति समर्पित रहने के कारण अपने मूल रूप में नही रह पायेंगी। जैसे किसी पडौसी से भावनात्मक लगाव है,और उस पडौसी की लडकी की शादी है,किसी के पास कार्य करने के बाद शादी के दिन छुट्टी नही मिल पाती है तो भावनात्मक हनन माना जायेगा। इस प्रकार से न्याय समाज परिवार धर्म भाग्य सभी बातें जातक को भावनात्मक रूप से आहत करने के लिये मानी जायेंगी। लेकिन धनु राशि को गुरु की सकरात्मक राशि कहा गया है और मीन राशि को नकारात्मक कहा जाता है। गुरु का फ़ल इस राशि से जो जातक के लिये मिलेगा वह सकरात्मक ही मिलेगा,यानी अगर वह कार्य करता है तो उसे फ़ल तो कार्य के रूप में मिलेंगे,लेकिन वह समाज न्याय और मर्यादा में नही चल पायेगा,उससे यही समाज न्याय और मर्यादा धर्म आदि आहत भी करेंगे। मीन राशि जातक के लिये केवल इन्ही कारकों के लिये खर्च करने और अपने भाग्य के प्रति चिन्ता आदि करने पर जातक को आहत ही करेगी,चाहे वह यात्रा वाले कार्यों से हो या खर्च करने वाले कारकों से हो,उसके जीवन साथी और साथ कार्य करने वाले केवल अपने को हर हाल में संतुष्ट ही मानेंगे उन्हे चाहत नही होगी कि वे अपने को बडा रूप लेकर प्रस्तुत करें,जब तक सामने कोई जिम्मेदारी नही होगी तब तक कार्य करने के प्रति भी आस्था नही रहेगी,आवश्यकता पर ही किसी वस्तु और कार्य का सम्पादन किया जाता है लेकिन जब अपनी आवश्यकताओं को ही सीमित कर लिया जायेगा तो कार्य और जिम्मेदारी का कोई औचित्य ही नही समझ में आयेगा।

गुरु की राशि परिवर्तन में कर्क राशि के नवें भाव में गुरु का पदार्पण हुआ है। इस भाव से गुरु जातक के लाभ भाव को देखेगा,जातक के शरीर आयु और नाम को देखेगा,जातक के प्रदर्शन के तरीके को देखेगा,जातक के द्वारा अपने पडौसी के प्रति किये जाने वाले व्यवहारों को देखेगा अपने भाई बहिने जो उससे छोटे बडे है सभी के प्रति अपनी आस्था और जिम्मेदारियों को देखेगा,सबसे बडी बात जो सामने आती है उसके अन्दर जातक अपनी प्राथमिक शिक्षा के अन्दर रह गयी भूलों के प्रति देखेगा,संतान के मामले में जातक के लिये अगर सूर्य बुध और मंगल आदि से जातक के पंचम भाव में जो कि मंगल की नकारात्मक राशि वृश्चिक के रूप में उपस्थित है,का बल बढाने के लिये अपनी योग्यता का परिचय देगा। गुरु का सबसे बडा इसी राशि में मिलने का माना जाता है जब कोई कारण मौत या अपमान वाला परिवार के लिये बनेगा तो वह अपनी नकारात्मक बुद्धि से और समाज न्याय आदि की मीमांसा से उसे बचाने का कार्य करेगा। उसका अपमान अगर परिवार या सन्तान से होता है तो ऊपरी सहायता उसे सहायता देगी,कोई भी कार्य उसके द्वारा जो किया जायेगा उसके अन्दर जल्दी से धन कमाने के लिये भी अपनी योग्यता का परिचय देने के मामले में माना जाता है। खेल कूद और इसी प्रकार की गतिविधियों में भी गुरु अपनी सहायता करेगा,जो लोग प्राथमिक रूप से तकनीकी शिक्षा के प्रति जाना चाहते है उनके प्रति यह गुरु उन्हे उच्चता की तरफ़ जाने का संकेत देगा,इसके अलावा इस राशि के लिये विदेश जाने और विदेश से अपने प्रति धन और अन्य कारण बनाने में भी सहायता मिलेगी। कर्क राशि का स्वभाव अपने को सेवा वाले कार्यों को करने के रूप में पहिचान देता है। लोग उसे हर कार्य के लिये सहायक के रूप में जानते है,और इस स्थान पर गुरु की सप्तम द्रिष्टि होने से जातक के लिये जो भी सहायता वाले कार्य किये जाते है उनके अन्दर जातक की मान्यता उच्चता की तरफ़ बढती चली जाती है।

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