भारत की कुंडली के लिये मंगल का बल

मंगल पराक्रम के लिये माना जाता है,शक्ति का दाता है,यह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है,मेष में सकारात्मक और वृश्चिक के लिये नकारात्मक माना जाता है। सकारात्मकता के भेद को समझने के लिये केवल इतना ही माना जा सकता है कि जो कारक तत्व सकारात्मक है उनके अनुसार अपने पराक्रम को और शक्ति को खर्च करने वाला माना जाता है,केवल शरीर और वस्तु से ही अपनी औकात दिखाने का कार्य करता है जबकि नकारात्मक का प्रभाव उन्ही कारकों से माना जाता है जो मरी हुयी चीजो और जीवों के अन्दर जान फ़ूंकने का काम कर सकता हो। मंगल का स्थान भारत की कुंडली में दूसरे भाव में है,और यह दूसरा भाव दिशाओं से भारत की उत्तरी-पश्चिमी दिशा को इंगित करता है। जिसके अन्दर काश्मीर आदि स्थान माने जाते है। मंगल का रूप हिंसक तभी माना जाता है जब यह अपने बद रूप में हो,यह बुध के भावों में बुध के साथ शनि के भावों में और शनि के साथ तथा राहु केतु की युति में और एक दूसरे के लिये सहयोगी युति के लिये अपना बद रूप लेकर उपस्थित होता है,बद मंगल के लिये लालकिताब का नियम बताता है कि यह भूत प्रेत और पिशाचात्मक शक्तियों से ग्रसित होता है। भारत की कुंडली वृष लगन की है और मंगल का स्थान मिथुन राशि का है,यह बुध की राशि है और मंगल के लिये बद का रूप प्रस्तुत करती है। लेकिन इस मंगल का प्रभाव तकनीक के लिये भी माना जा सकता है,मिथुन राशि से बोलने चालने पहिनने और अपने को प्रदर्शित करने के लिये भी माना जाता है,जब मंगल की युति इस राशि से मिल जाती है तो यह बोलने चालने अपने को प्रदर्शित करने के लिये हिंसक रूप में सामने आता है बोलने के अन्दर खरा स्वभाव और उत्तेजना को देने वाला माना जाता है,यह अपने रूप के अनुसार बद होने के कारण खूनी खेल और खून से सने हुये रूप में प्रदर्शित करने की मान्यता रखता है। चेहरे को कुरूप बनाने के लिये लाल कपडा पहिनने के लिये और हरी भरी धरती पर खूनी रंग फ़ैलाने के लिये भी अपनी मान्यता रखता है। मिथुन राशि का स्वामी बुध है,बुध की कारक बकरी को भी हिंसक रूप से देखता है,जो बकरी जैसे रूप को हिंसक देखता हो उसे भेडिया की उपाधि भी देना सही माना जा सकता है,यह अपनी द्रिष्टि के अनुसार पहले चौथे सातवें और आठवें भाव पर प्रभाव डालता है,लेकिन अन्दरूनी रूप में पंचम नवम भाव से भी अपना सम्बन्ध रखता है,इस मंगल के बारे में एक उक्ति बहुत ही मशहूर है कि यह कभी बीच का नही होता है,-"या तो सरासर सांग होजा या तो सरासर मोम हो जा",सांग एक पत्थर होता है जो केवल टूटने में ही विश्वास रखता है,मोम तो सभी को पता होता है कि जब पिघलता है तो पानी की तरफ़ बहने लगता है,लेकिन मिथुन राशि में होने के कारण इसे दोहरे रूप में देखा जा सकता है,लेकिन दोहरे स्वभाव के प्रति आशा नही की जा सकती है,मिथुन राशि बुध की राशि है और कमन्यूकेशन के प्रति अपना स्वभाव रखती है,मंगल के साथ हो जाने से यह कमन्यूकेशन के अन्दर तकनीक के लिये भी अपनी मान्यता को रखता है,बनाये जाने वाले कपडे और साजो सामान की तकनीक भी यह मंगल मिथुन राशि को देता है। बुध की राशि होने के कारण बोलने चालने की भाषा को यह अपने पराक्रम के रूप में प्रदर्शित करता है और इस स्वभाव से ग्रसित लोगों के लिये गाली देकर बात करना या मार डालने और मिटा देने वाली बात को सामने रख कर चलना,छोटी छोटी बातों में उत्तेजित होने लग जाना और अपने को कमजोर होते हुये भी सूरमा की उपाधि देना भी माना जा सकता है। भारत की कुंडली में दूसरे भाव में होने के कारण यह धन के भाव में अपनी मान्यता को देता है,तकनीक के मामले में जिन लोगों ने कमन्यूकेशन को धन के रूप में देखा है वे ही आज समृद्ध और फ़लीभूत है साथ ही जिन लोगों को कपडे और अन्य किसी प्रकार के साजोसामान बनाने की कला आती है,जो लोग इस मंगल की तकनीक को अपने कार्यों मे प्रयोग में लेते है जैसे कपडे का तकनीकी रूप में काटना बोलने चालने वाली भाषा को तकनीकी रूप में प्रदर्शित करना इसी मंगल की देन है। भारत की कुंडली में यह मंगल अपने को प्रदर्शित करने वाले रूपों में भी देखा जाता है,भारत की छवि इसी मंगल के कारण बुध का साथ देते हुये,बुध की कांग्रेस पार्टी को अपने अपने रूप में दिखाने की तकनीक यही मंगल देता है। मंगल का योगात्मक प्रभाव भारत की शिक्षा पर भी है सरकार पर भी यह,लेकिन राज्य के मालिक बुध होने के कारण भी शिक्षा का रूप बुध की भाषा अंग्रेजी और बुध की पार्टी कांग्रेस के लिये यह अपने बल को प्रदर्शित करता है,बुध की पार्टी को अन्य रूप में भी देखा जाता है,भारत सरकार की कन्या राशि होने के कारण बुध इसका स्वामी हो जाता है,और शुरु से ही यह सरकार के प्रति अंग्रेजी के प्रति अंग्रेजी शासन के प्रति,स्वतंत्र होने के बाद अंग्रेजी भाषा के प्रति बुध के ही कारक कमन्यूकेशन के प्रति और जब इस बुध के द्वारा राज्य भाव पर असर कम हुआ तो सीधा बुध का रूप हाथ का पंजा चुनाव चिन्ह के रूप में लेने पर (अंक पांच बुध का अंक है,और हाथ के पंजे में पांच ही उंगलिया है) पुराने जमाने से प्रयोग में लाये जाने वाले हाथ के पंजे को जो मांगलिक अवसरों पर घरों में अपनी छाप को बनाता था बहुत ही तांत्रिक रूप में उस समय के शासकों ने चतुराई से ग्रहण कर लिया,चन्द्रास्वामी जैसे तांत्रिकों ने बिना सोचे समझे यह अटल चिन्ह बता तो दिया लेकिन यह नही सोचा कि इस छाप के पीछे भी मंगल विराजमान है और इसका राज भारत की लगन के बारहवें भाव में इसकी ही राशि का प्रभाव है,वह मेष राशि अपने प्रभाव से तथा भारत की सप्तम की राशि वृश्चिक होने के कारण जो भारत के मुंबई और उसके आसपास के भूभाग पर विराजमान है,मंगल को वैसे भी दक्षिण दिशा का कारक माना गया है,अपने प्रभाव से इस छाप को ग्रहण करने के बाद कभी भी बलि का बकरा बना सकती है,कारण मिथुन राशि का दोहरा स्वभाव है,वह अपने रूप में कडक के सामने नरमी और नरमी के सामने कडक वाले स्वभाव को अपनाती है।

इस मंगल का गोचर से भारत की कुंडली में विभिन्न भावों में होने पर कई असमान्य स्थितियां अपने आप प्रकट होने लगती है,भारत में उत्तर-पश्चिम की हिंसक नीति आगे बढने से हमेशा रोके रही है,जब भी कोई नया कार्य या नया विकास आमने सामने होता है यह मंगल अपने स्वभाव से फ़ौरन हिंसकता को बीच में ले आता है यहां तक कि जब भी सरकारी बैठकें होती है लोकसभा या विधान सभा में कोई फ़ैसला होना होता है तो यह अपने गोचर के प्रभाव से उस बैठक में लात जूते चलवाने और खून खराबा करने पर अमादा हो जाता है,जो भी सीधे सादे रूप में अपने व्यक्तित्व को प्रदर्शित करना चाहता है उसके ऊपर यह हावी हो जाता है,और जो कडक रहकर सामने अपनी औकात को दिखाता है उसके सामने यह अपने को चुप रखता है,लेकिन कडक के लिये भी अन्दरूनी रूप से अपनी कार्यवाही को जारी रखता है। इस मंगल का स्थान धन में होने के कारण यह कमन्यूकेशन के रूप में जनता के धन को बडे आराम से प्राप्त कर रहा है,जो भी काम पब्लिसिन्ग का होता है मीडिया जो मिथुन राशि की महत्वपूर्ण कडी है अन्दरूनी रूप से अपने प्रभाव को बद रूप में प्रकाशित करती है और जो भी मुद्दे वाले काम होते है उनसे जनता का दिमाग हटाकर मारकाट और हिंसक वारदातों को प्रस्तुत करने के बाद अपने को जाहिर करने के लिये भी मानी जाती है,जो मीडिया वाले इस मंगल का रूप समझ गये है वे खतरनाक कार्य और खून खराबा हत्या बलात्कार आगजनी की खबरों को महत्वपूर्ण स्थान देते है,और अपने नाम को आगे से आगे रखने के लिये इसी प्रकार की तकनीक को सामने लाने की कोशिश करते है।

यह मंगल पिछले समय से अपने अपने भावों के अनुसार अपना प्रभाव देता चला आ रहा है,धन के भाव में आने के कारण इसका प्रभाव शेयर बाजार और विदेशी मुद्रा के प्रति भी अपना रवैया खतरनाक ही रखता है,दक्षिण की कोई भी वारदात शेयर बाजार को धराशायी कर देती है और उत्तर की कोई बारदात इस के भाव ऊंचे कर देती है,जब भी यह मेष राशि में आता है या अपनी युति बनाता है तो युद्ध जैसी हालत को पैदा कर देता है,और जब भी भारत की लगन में आता है तो पबलिक को कन्ट्रोल करने के लिये नये नये कानून बनाकर परेशान करने के उपक्रम चालू कर देता है। मंगल अन्दरूनी गर्मी का कारक है जिससे भी कोई बात हो जाती है तो अपने स्वभाव के अनुसार अन्दर ही अन्दर सुलगता रहता है और अचानक अपनी विस्फ़ोटकता को जाहिर करता है,जहां भी धर्म स्थान है उन पर यह सबसे पहले अपने आघात को केवल इसलिये दिखाता है कि उसके सप्तम में गुरु की राशि धनु है,धनु राशि का स्वामी गुरु भी इस मंगल से अपनी अन्दरूनी युति को बनाकर रखता है,भारत की कुंडली में गुरु का स्थान छठे भाव में है और वह भाव व्यापार की राशि तुला में है,तुला राशि का गुरु केवल व्यापारियों और जमा करने वाली संस्थाओं जैसे बैंक आदि के बारे में अपनी अन्दरूनी सहायता इस मंगल को प्रदान करता रहता है और इस मंगल को बल मिलता रहता है। मंगल की खोजी नजर और कन्ट्रोल करने वाली चौथी नजर भारत के शिक्षा भाव पर है,खेल भाव पर है जल्दी से धन कमाने वाले भावों पर जिनसे लाटरी सट्टा और जुये जैसे कार्य शेयर बाजार और पूंजी को पूंजी से कमाने वाले भाव माने जाते है,जनता के रहने वाले स्थानों की तकनीक और जनता की बुद्धि का मालिक भी बुध है,बुध का भरोसा नही होता है कि कब कौन सा कानून शुरु हो जाये और जो आज बनाया है उसे कल तोडना पड जाये और जनता की पूंजी को कन्ट्रोल तो करता है लेकिन जनता की पूंजी का मालिक भी उत्तर दिशा में विराजमान हो गया है,इसलिये जो भी पूंजी भारत के विकास के लिये आती है वह मंगल की शह पर भारत के उत्तर में ही रह जाती है दक्षिण की तरफ़ जा ही नही पाती है,जब तक वह दक्षिण पहुंचती है तब तक गुरु अपनी युति से उसे केवल जांच और किये जाने वाले कार्यों के लिये अपनी बुद्धि को प्रकट करने लगता है,गुरु जो न्याय का कारक है खुद ही कर्जा दुश्मनी बीमारी और व्यापारिक कारणों में फ़ंसा पडा है,गुरु के पास जो बैंक के स्थान में है व्यापार के मामले में करोडों के केश आज भी भारतीय अदालतों में पेंडिंग है जो केवल बैंक के लेन देन और चैक सम्बन्धी मामले पाये जाते है उसका भी मुख्य कारण इस मंगल की गुप्त नीति है जो जनता को उधार लेने के लिए बाध्य भी करती है और चुकाने के लिये मना भी करती है,या तो जनता को उधार मिल नही पाता है उधार मिल भी जाता है तो जनता उसे चुका नही पाती है,यही हाल गुरु के द्वारा रिस्ते नातों के लिये माने जाते है,भारत की स्वतंत्रता के बाद जितने भी रिस्ते होते आये है या हो रहे है किसी न किसी प्रकार से अपने अपने अनुसार इस मंगल के कारण उत्तेजना और घरेलू कार्यों की बजह से टूट भी रहे है,गुरु शुक्र के घर में होकर बुध के परमानेंट भाव में पडा है,जज वकील और समाज भारतीय रिस्तों को अन्ग्रेजी कानून के मार्फ़त से ठीक करने में लगा है,शुक्र को कानूनी बल मिलने से स्त्रियां गुरु से नवें भाव में मंगल होने से कानूनी रूप से पुलिसिया बल को प्राप्त करने लगीं है,यह पुलिसिआ बल सीधे से ही मंगल के आगे सूर्य चन्द्र शुक्र बुध राहु को अपने चपेटे में ले लेता है और जो भी शादी के बाद की बातें होती है उनके अन्दर इस मंगल के द्वारा सूर्य से पिता चन्द्र से माता शुक्र से सम्पत्ति और पत्नी बुध से परिवार के द्वारा बोले जाने कहे जाने वाले राहु से पूर्वजों की हस्ती तक नीलामी की कगार पर ले जाकर खडी कर जाती है,लोग इस मंगल के डर से लडकों के विवाह करना भूलते जा रहे है,और जो करते भी है वे विवाह करने के बाद सीधे से अपने लडके को अपने से दूर बिठा देते है कि कहीं बहू के माता पिता सीधे से जाकर अन्दर नही करवा दें। मंगल के मिथुन राशि में होने के कारण जो भी अपने दिखाना चाहता है वह अपने पराक्रम से कतई कम नही दिखाना चाहता है,जिसे भी देखो वही अपनी बाहें फ़ुलाये घूमता है,अच्छी बात कहने के बाद भी उसे बुरी लगती है,अक्सर पहले लडाई होती है और उस लडाई में पूर्वजों से लेकर वर्तमान तक का इतिहास बयान कर दिया जाता है,बुध के साथ राहु के आने से जो भी कहा जाता है वह झूठ की नींव पर कहा जाता है। मंगल हस्ताक्षर के भाव में भी है जो देखो वही प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर करवाने के लिये भागा भागा फ़िरता है। मिथुन राशि का दूसरे भाव का मंगल अपनी सप्तम द्रिष्टि को भारत की कुंडली में अष्टम भाव पर डालता है,यह भाव दूसरे के धन को लेकर अपने द्वारा कमाने का भाव कहा जाता है,इस भाव से मौत के बाद की सम्पत्तियों को भी जाना जाता है,यह भाव अपमान मौत और जान जोखिम के भाव के रूप में भी जाना जाता है,इस भाव के अनुसार जो भी कार्य होते है वे जासूसी के द्वारा करने का भाव भी कहा जाता है,इस मंगल को रुचि भी इन्ही कामों से है जब भी कोई बात होती है तो सीधे से जमीन के नीचे पहुंचाने का कार्य करता है,इस मंगल को जनवरी दो हजार में राहु के द्वारा उसी नजर से देखा गया था जिस नजर से यह मंगल आठवें भाव से देखता है,इस मंगल के अन्दर पश्चिम दिशा में राहु ने वह करेंट भरा था कि पूरा गुजरात दहल गया था।

इस मंगल के उपाय भी अनौखे है,अगर उपाय किये जाते है तो आफ़त है और नही किये जाते है तो आफ़त है,कारण जो भी आग के पास जायेगा उसे तो जलना ही पडेगा,और जो आग जिसके पास आयेगी तो भी जलायेगी। इसलिये आग को काबू करने के लिये गुरु चन्द्र का उपाय अपनाना चाहिये,जो पैदा हो गया है उसे मरना भी इसलिये इस मंगल की उम्र का दूसरा भाग चल रहा है और यह भाग अपने साथ प्लूटो को शामिल करने के बाद जैसे ही प्लूटो सन दो हजार इक्कीस में अपना स्थान बदलेगा इस मंगल का प्रभाव भी नेस्तनाबूद हो जायेगा.

चित्त भ्रम योग

सभी सुख है लेकिन दिमाग में शांति नही है,भोजन भरपेट किया है,सोने के लिये बढिया सर्दी गर्मी से बचने का साधन है,सन्तान ठीक है,घर में कोई आफ़त भी नही है लेकिन दिमाग अशान्त है,रोजी रोजगार भी सही है,धन की भी कोई कमी नही है,हितू नातेदार रिस्तेदार सभी माफ़िक है,कोई बुराई नही कर रहा है लेकिन दिमाग फ़िर भी अशांत है। दिमागी अशान्ति इस कदर हावी है कि रात को खूब सोने की चेष्टा की जाती है,लेकिन सुबह के समय जब सभी के जगने का समय होता है तभी नींद का आना होता है,सभी लोग जाग कर अपने अपने कार्यों में लगे है लेकिन उस समय नींद का आना होता है,किसी न किसी बहाने से कोई आकर जगा भी देता है या शोर सुनकर आंख खुल जाती है तो दिन भर के लिये झल्लाहट पैदा हो जाती हर किसी से बात करते समय कार्य करते समय झल्लाहट ही सवार रहती है,किसी भी काम को हाथ में लिया और किसी ने कुछ कह दिया बस एक दम ताव आया और हाथ के काम को छोड कर जो मन में आया बक दिया या एकान्त में जाकर बैठ गये,रोना आगया बिना कारण के बिना बात के घर के अन्दर क्लेश पैदा हो गया। यह सब होने का कारण एक ही जिसे चित्त-भ्रम योग की संज्ञा दी जाती है।

चित्त भ्रम जरूरी नही है कि किसी समझदार व्यक्ति में या वयस्क व्यक्ति में ही पैदा हो,यह बच्चे के अन्दर भी पैदा हो जाता है,टीचर ने कार्य करने के लिये दिया जल्दबाजी में रफ़ कापी की बजाय किसी फ़ेयर कापी में काम को नोट कर लिया,काम भी ऐसी जगह पर नोट किया जहां बाद में भी कुछ टापिक लिखा जाना है,लेकिन चित्त भ्रम के कारण ऐसा हो गया,घर आकर उसे देख कर दिमाग और भी खराब हो गया,और जो काम दिया गया उसे पूरा नही किया गया परिणाम में सुबह स्कूल जाकर टीचर से कोई झूठा बहाना बनाया और टीचर ने एक नोट कापी के अन्दर डाल दिया,घर आकर डर की बजह से खुद ही पेरेन्ट के साइन कर लिये और टीचर को दिखा दिया,कुछ समय के लिये तो इस चित्त भ्रम वाली स्थिति पर पर्दा डाल दिया लेकिन समय के साथ वह झूठ जब खुला तो और भी बुरा हाल हो गया,चित्त इतना भ्रम में गया कि स्कूल जाने से ही मन दूर हो गया और जो पढा लिखा जा रहा था उसे भूल कर दोस्तों के साथ दिन बिताये जाने लगे,आगे का परिणाम सभी जानते है,यह भी एक चित्त भ्रम का योग चल रहा था,जब तक योग खत्म हुआ तब तक प्रोग्रेस का समय निकल गया।

शिक्षा को पूरा कर लिया नौकरी की तलाश शुरु हो गयी,कोई कम्पनी आयी और उसके अन्दर इन्टरव्यू दे दिया,साथ में विना विचार किये उस कम्पनी के साथ एग्रीमेन्ट भी तीन साल के लिये कर दिया,जब अपनी योग्यता की जांच काम करने के दौरान की तो पता लगा कि जिस कम्पनी में अपनी योग्यता के कारण जोब किया जा रहा है उससे कहीं अधिक दूसरी कम्पनी में पगार भी मिलती और समय भी काम केलिये कम था,लेकिन अब पछताने से क्या होता है,जो होना था वह जरा से चित्त भ्रम की बजह से हो गया,काम भी करना पडेगा और पगार भी उतनी नही कि जीवन आसानी से जिया जा सके,गुस्सा भी उस पल पर आयेगी जब नौकरी के लिये हाँ भी की और एग्रीमेन्ट भी कर लिया,यह क्षणिक चित्त-भ्रम का योग था जिसने आगे के तीन साल तक एक ही पगार में रगडने के लिये मजबूर कर दिया।

सडक पर गाडी ले कर जा रहे है,गाडी भी स्पीड में जा रही है,सामने से एक व्यक्ति सडक को क्रास कर रहा है,चित्त में यही रहा कि जब तक वह आदमी सडक को पार करेगा,तब तक वहाँ गाडी नही पहुंचेगी,लेकिन जैसे ही कुछ फ़ासले पर गाडी पहुंची वह आदमी वापस जिधर से आया था उधर के लिये ही चल दिया,वह आदमी भी मारा गया और खुद भी मय गाडी के लोट पोट हो गये,अस्पताल में गये टूटे अंगो का इलाज चला जीवन भर के लिये अपंग हो गये,मरने वाले के लिये हर्जाना खुद ने या बीमा कम्पनी ने भरा,वह भी मात्र चित्त-भ्रम के कारण,जरा सी देर के लिये चित्त में भ्रम नही आता तो शायद यह पोजीसन जो आज है वह नही होती।

शादी के लिये माता पिता ने वर की तलाश कर दी,शादी का समय निश्चित हो गया,लेकिन जाने कहां से पिछले प्रेमी का टेलीफ़ोन नम्बर मिल गया,लगाया और बातें होने लगीं,उस प्रेमी को भी नम्बर की तलाश थी,बदे दिनों के बाद बात हुयी पता लगा कि शादी होने जा रही है,कब कोई प्रेमी चाहेगा कि उसकी मासूका की शादीकिसी और के साथ हो जाये,दोनो के अन्दर बातें हुई जीने मरने की कसमें खायी गयीं,निश्चित समय पर एक स्थान पर मिलने का वादा हुआ घर से निकलने के लिये कोई झूठ गढा गया,जो भी पास में था सो और कुछ चोरी से लिया गया,सम्बन्धित स्थान पर पहुंचे और प्रेमी के साथ फ़रार,शादी करने के लिये माता पिता पर बज्रपात समाज मेम बुराई,जान पहिचान वालों को मसाला मिला और कुछ दिन बाद जैसे ही प्रेमी को पुराना लगने लगा,उसने भी किनारा काट लिया,हो गयी जिन्दगी बरबाद,जो शील सम्भाल कर रखा था वह भी नही रहा और जो स्वप्न देखे थे सभी मटियामेट वह भी जरा से चित्त-भ्रम के कारण।

यह चित्त को भ्रम देने के लिये राहु को माना जाता है,गुरु या चन्द्रमा पर जब भी राहु अपना असर देता है चित्त के अन्दर भ्रम पैदा हो जाता है,जो गूढ दिमाग का होता है उसके अन्दर कचरा भर जाता है,उस कचरे के कारण जो भी अच्छा कार्य होता है उसके प्रति गहन शंकायें दिमाग के अन्दर घर बना लेती है,व्यक्ति के अन्दर एक नशा हो जाता है वह नशा किसी प्रकार से नही उतरता है,उस नशे को उतारने के लिये लैला मजनू के किस्से बने शीरी फ़हरात के फ़साने बने,लेकिन जब नशा उतरा तो बहुत देर हो चुकी थी,कितनी ही आत्महत्यायें की जाती है,कितने ही मुकद्दमे अदालतों मे चल रहे है,कितने ही लोग अपना घर द्वार छोड कर मारे मारे फ़िर रहे है,वह भी केवल जरा से चित्त-भ्रम के कारण,इस चित्त भ्रम के कारण अपनों की बातें बुरी लगने लगती है,जो उसी प्रकार के चित्त-भ्रम वाली बाते करते है उन्ही की बातें भी अच्छी लगती है,जो कल्पनाओं के आकाश में साथ उडने की कला को जानते है उनसे ही प्रेम करना अच्छा लगता है,लेकिन जैसे ही हकीकत की दुनियां में प्रवेश किया जाता है नशे का पता नही होता है फ़िर सोचना केवल सोचना ही रह जाता है,यही हाल मर्डर करने के समय होता है यही हाल किसी से गाली गलौज करने के समय होता है,यही हाल एक साथ मिलकर आगजनी और पथराव करने के समय होता है,इसे ही चित्त-भ्रम की संज्ञा से सम्बोधित किया जाता है।

इस चित्त भ्रम के आते ही अगर इस चित्त का सही उपाय कर लिया जाये,जो नही समझ में आ रहा है उसके लिये पूंछ लिया जाये,कहावत है लोहा लोहे को ही काटता है,लेकिन गर्म लोहा ठंडे लोहे से काटा जाता है,अगर दिमाग में ठंडक मिलने वाले उपाय किये जायें,जब दिमाग भारी होने लगे तो किसी न किसी प्रकार से अच्छे साहित्य से अपने को जोड लिया जाये जो भी जानकार है उनके साथ बैठ कर कुछ समय तक अपने विचारों के आदान प्रदान को किया जाये,जो भी मानसिक शंका है उसके लिये बुजुर्गों से राय ली जाये तथा मिली राय पर अपने पूर्ण विश्वास और श्रद्धा से अमल किया जाये,राहु की शांति के उपाय के लिये लम्बी यात्रायें की जायें अपने अपने धर्म के अनुसार धार्मिक स्थानों की यात्रायें की जायें,कहावत है कैसा भी चित्त का भ्रम पहाडी यात्रा के बाद समाप्त हो जाता है,कैसा भी चित्त का भ्रम धर्म कार्य करने से खत्म हो जाता है,बीस प्रतिशत सहायता रत्न आदि भी करते है,चित्त भ्रम में होने से सुलेमानी पत्थर को पहिना जाये,बालों पर किया जाने वाला खिजाब कुछ समय के लिये बन्द कर दिया जाये,कपूर को नारियल के तेल मे मिलाकर रोजाना सिर में लगाया जाये,टीवी एम्यूजमेन्ट में सबके साथ बैठ कर ही भाग लिया जाये,जब दिमागी भ्रम चल रहे हों तो किसी प्रकार का जीवन से सम्बन्धित निर्णय नही लिया जाये,ध्यान करने और मेडीटेसन की तरफ़ जाया जाये,किसी योग्य गुरु के सानिध्य में योग का उपाय किया जाये तो बडे से बडे कारण को पैदा होने से रोका जा सकता है।

राहु मंगल का योग

मंगल शक्ति का दाता है,और राहु असीमितिता का कारक है,मंगल की गिनती की जा सकती है लेकिन राहु की गिनती नही की जा सकती है।राहु अनन्त आकाश की ऊंचाई में ले जाने वाला है और मंगल केवल तकनीक के लिये माना जाता है,हिम्मत को देता है,कन्ट्रोल पावर के लिये जाना जाता है।

अगर मंगल को राहु के साथ इन्सानी शरीर में माना जाये तो खून के अन्दर इन्फ़ेक्सन की बीमारी से जोडा जा सकता है,ब्लड प्रेसर से जोडा जा सकता है,परिवार में लेकर चला जाये तो पिता के परिवार से माना जा सकता है,और पैतृक परिवार में पूर्वजों के जमाने की किसी चली आ रही दुश्मनी से माना जा सकता है। समाज में लेकर चला जाये तो गुस्से में गाली गलौज के माना जा सकता है,लोगों के अन्दर भरे हुये फ़ितूर के लिये माना जा सकता है। अगर बुध साथ है तो अनन्त आकाश के अन्दर चढती हुयी तकनीक के लिये माना जा सकता है। गणना के लिये उत्तम माना जा सकता है। गुरु के द्वारा कार्य रूप में देखा जाने वाला मंगल राहु के साथ होने पर सैटेलाइट के क्षेत्र में कोई नया विकास भी सामने करता है,मंगल के द्वारा राहु के साथ होने पर और बुध के साथ देने पर कानून के क्षेत्र में भ्रष्टाचार फ़ैलाने वाले साफ़ हो जाते है,उनके ऊपर भी कानून का शिकंजा कसा जाने लगता है,बडी कार्यवाहियों के द्वारा उनकी सम्पत्ति और मान सम्मान का सफ़ाया किया जाना सामने आने लगता है,जो लोग डाक्टरी दवाइयों के क्षेत्र में है उनके लिये कोई नई दवाई ईजाद की जानी मानी जाती है,जो ब्लडप्रेसर के मामले में अपनी ही जान पहिचान रखती हो। धर्म स्थानों पर बुध के साथ आजाने से मंगल के द्वारा कोई रचनात्मक कार्यवाही की जाती है,इसके अन्दर आग लगना विस्फ़ोट होना और तमाशाइयों की जान की आफ़त आना भी माना जाता है। वैसे राहु के साथ मंगल का होना अनुसूचित जातियों के साथ होने वाले व्यवहार से मारकाट और बडी हडताल के रूप में भी माना जाता है। सिख सम्प्रदाय के साथ कोई कानूनी विकार पैदा होने के बाद अक्समात ही कोई बडी घटना जन्म ले लेती है। दक्षिण दिशा में कोई बडी विमान दुर्घटना मिलती है,जो आग लगने और बाहरी निवासियों को भी आहत करती है,आदि बाते मंगल के साथ राहु के जाने से मिलती है।

दीपावली पूजन

दीपावली पर प्रत्येक व्यवसायीगण व्यापारी नौकरी पेशा वर्ग,मजदूर घर गृहस्थ बाल वृद्ध नर नारी के ह्रदय में नवीन चेतना अभ्युदय कराने वाला तथा साहसिक क्षमता का विस्तार करने वाला माना जाता है। दीपावली का मुख्य समय प्रदोष काल होता है। बहुत से व्यवसायीगण एवं श्रद्धालुजन जो रात्रि में पूजन नही कर पाते है,वे अपनी सुविधानुसार दिन में अच्छा मुहूर्त और लग्न देखकर पूजनादि कृत्य करने में अपनी अडिग आस्था रखते हैं। वैसे व्यापारियों में दीपावली पर्व पर केवल अमावस्या तिथि तक पूजन आदि करने में आस्था मानी जाती है। चतुर्दशी या प्रतिपदा में पूजन करना इनके अन्दर विश्वसनीय नही माना जाता है। व्यवसाइयों के लिये श्रीगणेश पूजा और लक्ष्मी पूजा अनिवार्य मानी जाती है। जो लोग लोक मान्यता या अन्य प्रकार से विश्वास नही करते है उनके लिये अर्थ वाली परेशानियां अक्सर बनी ही रहती है। अत: शास्त्रानुसार सूर्यास्त से पहले स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेने चाहिये,शुद्ध मुहूर्त में गणेशजी और लक्ष्मी सहित कुबेर जी और इन्द्रादि देवताओं की पूजा करनी चाहिये। दीपावली में प्रदोषकाल में पूजन का बहुत ही बडा महत्व है। इसलिये पूजन आदि सम्भव नही हो सके तो प्रदोषकाल में पूजन का संकल्प आदि जरूर कर लेना चाहिये। इसके बाद अपनी आस्था और सुविधानुसार पूजन करना उत्तम रहता है। शुभ लग्न या निशीथकाल या किसी शुभ चौघडिया में पूजन करना भी महत्व रखता है।

इस वर्ष कार्तिक कृष्णपक्ष १४ परत: अमावस्या शुक्रवार ता ५ नवम्बर २०१० को दीपावली महान पर्व पड रहा है,इस दिन चतुर्दशी तिथि जयपुर के समयानुसार दिन के १ बजकर १ मिनट तक ही है,इसके बाद अमावस्या शुरु हो जाती है,इस दिन चित्रा नक्षत्र दिन के १२ बजकर एक मिनट तक है उसके बाद स्वाती नक्षत्र तथा प्रीति नामक योग दिन के दो बजकर पैतालीस मिनट तक है। इसके बाद तुला का चन्द्रमा और आयुष्मान योग शुरु होगा। महत्वपूर्ण प्रदोषकाल दिन के पांच बजकर ग्यारह मिनट पर शुरु होगा इस समय मेषलग्न और ताराबल सम्पद का होगा। चन्द्र बल दो मे होगा और करण चतुष्पाद होगा,चर राशियों में वृष राशि का योगदान होगा। यह रात के आठ बजकर दस मिनट तक रहेगा। महानिशीथकाल भी रात को ग्यारह बजकर पन्द्रह मिनट से बारह बजकर छ: मिनट तक रहेगा। राहु के अष्टम में होने के कारण खाता आदि लिखने के समय राहु के दान आदि करने से राहु की शान्ति मिलती है। रात को आठबजकर दस मिनट से दस बजकर नौ मिनट तक मिथुन लगन का समावेश होता है और जिसमें भी लाभ नामकी चौघडियां मिलती है,उसका भी उपयोग पूजा पाठ में लिया जा सकता है।