शाकिनी दोष

शाकिनी दोष के लिये हमेशा कुंडली में अष्टम भाव या वृश्चिक राशि के ग्रहों को देखा जाता है अगर इस भाव या इस राशि में कोइ गृह है और उस गृह को राहू की नजर लगी हुयी है तो शाकिनी दोष पिशाच दोष प्रेत बाधा या ऊपरी हवा का दोष कहा जाता है.एक जातक जिसकी कुंडली में वृश्चिक राशि है और चन्द्रमा के साथ शनि विराजमान है,राहू पंचम में अपने स्थान को बनाकर बैठा है मीन राशिका राहू है और केतु ग्यारहवे भाव में है.अलावा ग्रहों में मंगल धनु राशि का दूसरे भाव में है,गुरु वक्री होकर चौथे भाव में है,सूर्य और बुध दसवे भाव में है,शुक्र तुला राशि का होकर बारहवे भाव में है.वर्त्तमान में केतु की दशा चल रही है और केतु में राहू का अंतर चल रहा है,राहू का गोचर शनि और चन्द्रमा के साथ चल रहा है.

शाकिनी दोष के लिए  यह भी माना जाता है की जातक की पिछली जिन्दगी में कोइ ऐसा काम हो गया था जिसके द्वारा वह इस जीवन में अपने शरीर के दोष के कारण तरक्की नहीं कर पाता है जब तक माता पिता की सहायता रहती है जातक चलता रहता है और जैसे ही माता पिता की सहायता समाप्त होती है जातक का कूच करने का समय आजाता है. इस दोष को देने के लिए जीवन के प्रति पारिवारिक सदस्य अक्सर जिम्मेदार होते है,वह सदस्य भले ही परिवार में अच्छी मान्यता रखते होते है लेकिन उनकी सोच जातक के प्रति गलत ही हो जाती है,इस कारण से कुद्रष्टि का मामला भी माना जाता है.जातक को इस दोष के कारण भोजन पानी शरीर को पनपाने के उपाय सभी व्यर्थ हो जाते है.जो भी दवाईया दी जाती है या जो भी चैक अप आदि करवाए जाते है सभी किसी न किसी प्रकार से दोष पूर्ण हो जाते है और जो भी बीमारी या कारण है वह किसी भी प्रकार से समाझ में नहीं आता है.अक्सर राहू मीन राशि का होकर जब कर्क और वृश्चिक राशि पर अपना असर डालता है और इन भावो में विराजमान ग्रह वह भले ही शनि सूर्य मंगल आदि क्यों न हो वह अपनी दृष्टि से इन्हें बरबाद कर देता है और इनके गलत प्रभाव जीवन में मिलाने लगते है.मीन राशि का राहू आसमानी हवा यानी ऊपरी हवा का कारण माना जाता है,शनि वृश्चिक राशि में शमशानी जमीन के लिए और चन्द्रमा जब शनि के साथ हो तो शमशानी रूप में समझी जाने वाली आत्मा के रूप में माना जाता है.इस आत्मा के प्रभाव से जातक का शरीर कोप होने के समय ठंडा हो जाता है और कभी कभी ऐसा लगता है जातक का कूच करने का समय आ गया है या कोइ भी कार्य करने के लिए जातक अपनी रूचि को पैदा करता है वैसे ही यह राहू शनि चन्द्र का प्रभाव जातक को अचानक सर्दी वाली बीमारी या नाक का बहना अथवा मॉल त्याग के समय अधिक ताकत लगाने के कारण गुर्दों की खराबी जैसी बीमारिया पैदा कर देता है,किया गया भोजन पेट में जमा रह जाता है और उस जमे भोजन की बजह से शरीर में कई तरह के इन्फेक्सन पैदा होने लगते है,यह इन्फेक्सन खून के साथ मिलकर शरीर के तंत्रिका तंत्र पर अपना प्रभाव देते है.इन प्रभावों के कारण शरीर में कभी कभी बहुत अधिक गर्मी मिलती है कभी कभी शरीर बिलकुल ठंडा हो जाता है.अक्सर शरीर के जननांगो में कोइ चमड़ी वाला रोग या खाज खुजली वाली बीमारी भी होनी पायी जाती है.

सूर्य का चन्द्रमा से दसवे भाव में होना और शनि के साथ रहने से जातक के पिता के लिए माना जाता है की उसका निवास किसी शमशानी स्थान में है जहां या तो पहले कोइ कब्र आदि बनी होती है या मुर्दे जलाने का स्थान होता है.इसके अलावा भी देखा जाता है की पिता के द्वारा रहने वाले स्थान के आसपास किसी ऐसे अस्पताल का होना या जहां कसाई वृत्ति से जुड़े कार्यों का होना,जैसे चमड़े का कारोबार होना या पशुओं को काटने के बाद उनका मांस आदि बेचा जाना भी माना जाता है.अधिकतर मामले में पिता का मानसिक क्षेत्र या तो इसी प्रकार के कार्यों से लाभ लेने का होता हो या जातक के पिता के द्वारा बाहरी लोगो को इसी प्रकार के सामानों का बेचना या कारोबार करना हो,जिससे अधिक से अधिक धन का कमाया जाना भी माना जाता है,

गुलिका का फ़लकथन

गुलिका का भावात्मक अर्थ पाने के लिये भचक्र की राशियों का प्रभाव भी देखना जरूरी होता है,भचक्र की राशि अगर गुलिका के विपरीत गुणों वाली है तो गुलिका नुक्सान की जगह पर फ़ायदा देने वाली मानी जायेगी। गुलिका की शिफ़्त बिलकुल शनि जैसी होती है,और गुलिका की चाल भी शनि जैसी मानी जाती है। गुलिका कन्या मिथुन में बलकारी हो जाती है,मीन वृश्चिक में बढोत्तरी देने वाली हो जाती है,तुला में हर काम देर से करवाती है,कर्क में परिवार का सुख देना बन्द कर देती है,मकर में कठोर परिश्रम करवाती है,कुम्भ में मित्रों से दूर रखती है,मेष में कपट और चालाकी में जाने का मानस देती है,मंगल के साथ कसाई बन जाती है,गुरु के साथ सन्यासी जैसा जीवन देती है,बुध के साथ लिखने पढने का काम देती है,शुक्र के साथ सभी कुछ देती है लेकिन मानसिक शांति का टोटा देती है। चन्द्रमा के साथ हमेशा टेंसन देने वाली होती है। वर्षफ़ल से गुलिका जब मृत्यु भाव में आजाती है तो अजीब वस्तुओं से धन प्रदान करवाती है,नवें भाव में गुलिका वर्षफ़ल से जाती है तो घूमने फ़िरने में ही पूरा साल बिताने को मजबूर करती है,केतु के साथ भटकाव और राहु के साथ मृत्यु वाले उपक्रम करने को बल देती है। राहु शुक्र के साथ वैश्या-वृत्ति की तरफ़ मानस बनाती है,शुक्र केतु के साथ वैश्याओं का दलाल तक बना देती है,शनि केतु के साथ दलाली वाले काम करने का बल देती है,शनि केतु और शुक्र के साथ मिलकर कपडे सिलने से लेकर एक्सपोर्ट इम्पोर्ट करने का काम देती है,गुरु शनि के साथ मिलकर पैकिंग का काम देती है,टूर और ट्रेवलिंग का काम करने के लिये चतुर्थेश से सम्बन्ध बनाने के बाद देती है,पुरुष की कुंडली में तीसरे भाव में बुध के साथ आने पर झूठा और मक्कार बना देती है,स्त्री की कुंडली में वर्षफ़ल से आने पर तिरस्कार देती है। सभी भावों को देखकर ही गुलिका का कथन करना चाहिये,कभी एक भाव और ग्रह को देखकर गुलिका का फ़लकथन नही करना चाहिये।

चन्द्र बुध शनि

जीवन को शुरु करने का समय प्रकृति कहां से तय करती है इसके बारे में कई विचार सामने आते है,अगर जीवन पैदा होने के बाद शुरु हुआ तो पैदा होने के पहले जो शरीर का निर्माण हुआ वह बिना जीवन के शुरुआत हुये सम्भव ही नही था,लेकिन शरीर के निर्माण के पहले कारक अगर नही होते तो शरीर का निर्माण होता काहे से,शरीर निर्माण के कारक कहां से आये इस बात का पता जब तक नहीं चलता है तब तक जीव का निर्धारण कहां से किया जा सकता है। इन सब बातों के लिये सबसे पहले अपने को कुंडली के चौथे भाव से चलना पडेगा,चौथे भाव को कल्पना का भाव भी कहा जाता है,चौथा भाव माता का होता है,और चौथा भाव पानी का भी होता है,चौथा भाव वाहन का भी होता है,चौथे भाव से ही अगर हम इस बात का पता करने निकलें कि वास्तविक जीवन कहां से शुरु होता है तो अति उत्तम होगा। पिता का चौथा भाव लगन को मानते है तो माता का चौथा भाव सप्तम में होगा,मन के अन्दर की भावना को देखना है तो भी सप्तम के भाव को समझना जरूरी है,मन के अन्दर क्या चल रहा है,तो दूसरे भाव को देखना पडेगा,मन की चाही गयी वस्तु मिलेगी या नही इस बात को देखने के लिये मन के भाव के दूसरे और मन के भाव से ग्यारहवें भाव को देखना जरूरी है। मन की चाही गयी वस्तु मिल तो गयी है लेकिन मिलने के बाद उसका क्या होगा उसके लिये मन से अष्टम में जाना पडेगा। मन पानी की तरह होता है जरा सी बात की झलक मिली और मन के विचार आने जाने लगते हैं। जैसा खावे अन्न वैसा बने मन्न,यह बात भोजन के लिये मानी जाती है,भोजन के अनुसार ही मन का बनना भी सही है,तीन गुणों के अनुसार अगर हम भोजन का रूप देखते है तो सत,रज और तम ही मिलते है,सात्विक खाने को दाल रोटी से माना जा सकता है,लेकिन दाल भी देखनी पडेगी कि वह कहीं सडी तो नही है,रोटी किस पानी से बनायी गयी है,रोटी को जब बनाया गया तो कितनी सफ़ाई रसोई में थी,इस बात का ख्याल भी रखना पडेगा,रोटी खाने के बाद मन अगर बेकार के विचार जैसे खाना हजम करने के लिये कहीं रात भर करवटें तो नही बदलनी पडी थी,य़ा खाना खाने के बाद थोडी देर में ही फ़िर से भूख तो नही लग गयी थी,राजसी खाने के बाद जीभ खाने के अन्दर मिलने वाले स्वाद खाने को परोसे जाने वाला ढंग,खाना खाने का स्थान,खाना को खाने की मात्रा वह एक बार में ही खाया गया या दुबारा भी खाने के लिये बांधा गया है,खाने को हजम करने की शक्ति,खाने को पचाने का काम और खाने को हजम करने के बाद दूर करने का काम,यह सब लगन से लेकर आठवें भाव तक की क्रिया है,अब जो खाने का असर होना है वह नवें भाव से शुरु होगा,सात्विक है तो सात्विकता में विचार चलेंगे,राजसी खाया है तो राजसी विचार चलेंगे,और तामसी खाया है तो गाली गलौज और मारकाट वाले विचार चलेंगे। सात्विक खाना मन को शुद्ध रखने का काम करता है और राजसी खाना अहम की भावना देता है,तामसी खाना अशुद्ध विचारों का जन्मदाता होता है। मैने यहां खाने की बात को गौढ रूप में इसलिये लिया है क्योंकि यजुर्वेद में कहा गया है कि भोजन में प्रयोग किये जाने वाले अन्न या अन्य कारणों से जो "रितिक" चलता है वह ही जीवन को देता है,लेकिन समस्या यहां भी आती है कि जो लोग अन्न खाते ही नही है केवल मांसाहारी ही है,तो उनके शरीर में रितिक नही चलेगा,ऐसा नही है,जो लोग मांसाहारी है,उन्होने जिस मांस का भक्षण किया है उस मांस वाले जीव ने भी कोई अन्न का सेवन किया होगा,वह रितिक ही जीवन का दाता होता है,एक बार भोजन करने के बाद चालीस दिन तक उस किये गये भोजन की क्रिया चलती है,भोजन से रितिक पहले शरीर में पानी के अन्दर मिलता है फ़िर मांस के अन्दर मिलता है,फ़िर खून के अन्दर मिलता है,खून से चालीसवें दिन वह वीर्य या रज के रूप में तैयार होता है और अपने स्थान में जमा होजाता है।

वृष लगन और धन का संकट

कालचक्र के अनुसार वृष लगन धन की राशि है,इस राशि का स्वामी शुक्र है और सकारात्मक राशि का रूप भी इसे मिला है। नाडी ज्योतिष के अनुसार इस राशि के जातकों का झुकाव कन्या और मकर राशि वालों की तरफ़ अधिक होता है। इस राशि वाले जातकों को आजीवन कर्क वृश्चिक और मीन राशि वाले जातकों,स्थानों,कारकों से जूझना पडता है। इस राशि का भौतिक प्रदर्शन कमन्यूकेशन से मुख्य माना जाता है,यह अपने अपने समय में दो तरह की बातें कर सकते है,जब दिक्कत में होंगे तो झुककर बोलेंगे और जब दिक्कतों से दूर होंगे तो अकड कर बोलेंगे। इस राशि वाले जातकों का मुख्य स्वभाव साथ में चलने का होता है,अकेले में चलना इनका मजबूरी में जीवन को खींचना होता है। अक्सर इस राशि वाले वेजेटेरियन भोजन को ही अपना मुख्य भोजन मानते है,इन्हे नानवेजेटेरियन से नफ़रत अधिक होती है,लेकिन किसी जातक के अष्टम में या दूसरे भाव में अगर शनि मंगल की युति मिल जाती है तो यह नानवेजेटेरियन को भी अपनाने लगते है लेकिन नानवेज भोजन या तामसी कारणों के कारण इन्हे मुंह की बीमारी भी होती है।
इस लगन के जातकों के लिये धन के लिये मिथुन राशि वाले काम फ़लदायी होते है,मिथुन राशि वाले कामों के करने से इनके पास नगद धन की आवक होती रहती है,लेकिन यह मिथुन राशि वाले कामों को करने के बाद नगद धन को बचा नही पाते है,वह जैसे आता है वैसे ही खर्च भी हो जाता है। सबसे बडी पहिचान इस लगन वालों की यह होती है कि यह जब भी किसी प्रकार की खरीददारी करते है तो इनके धन को कोई अधिक ले नही सकता है,अगर किसी तरह से कोई इनसे धन को अधिक ले लेता है तो वह किसी न किसी कारण से इनके लिये गये धन से अधिक वापस भी दे देता है। मिथुन राशि के कामो में कमन्यूकेशन के काम मीडिया और पब्लिकेशन वाले काम जासूसी वाले काम और कहने सुनने वाले काम माने जाते है,प्रदर्शन के मामले में भी इस राशि के कामों को जाना जाता है,जैसे कपडे पहिनना फ़ेसन के मामले में जानकारी रखना,शरीर के चलाने के लिये योग और ऐसे ही कामो को जानना भी माना जाता है।

"घर चौथे जब केतु आता,परिवार दूर हो जाता है,भटके अपने लें मौज दूसरे क्या से क्या कर जाता है"

जब भी इस राशि के चौथे भाव मे केतु का आगमन होता है तो अपने लोग तो दूर चले जाते है दूसरे लोग आकर अपनी पैठ इनके साथ या घर मे बना लेते है,वे लोग इनके द्वारा की जाने वाली मेहनत से प्राप्त धन पर मौज करने लगते है और अपना परिवार इधर उधर भटकने लगता है। अक्सर इस युति मे धन की अधिक बरबादी धार्मिक यात्राओं मे और दूर के रिस्तेदारो की सहायता मे ही खर्च होने लगता है।

"केतु लगन चन्द्र से मिलता समय कटे तीमारी में,बचा रहे वह जाता जाये अजब गजब बीमारी में"

वही केतु जब राशि से या लगन से अपना गोचर करने लगता है तो अधिक से अधिक समय आने जाने वाले लोगों के या दूसरे के परिवारो के प्रति की जाने वाली सेवा में कटने लगता है और जो धन बचा हुआ होता है वह घर की अजब गजब यानी जो समझ मे नही आये उन बीमारियों मे लग कर खत्म होता जाता है।

"सप्तम राहु शमशान सिद्धि का राज खुलासा करता है,दक्षिण दिशा की यात्रा मे वह भूखा प्यासा मरता है"

जब केतु का स्थान गोचर से लगन मे होता है तो राहु अपने आप ही सप्तम मे जाकर बैठ जाता है,इस समय मे जातक को अपने अनुसार किसी न किसी प्रकार की भूत प्रेत सिद्ध आदि के लिये अपनी जिज्ञासा प्रकट करने का समय होता है वह अपने अनुसार किसी साधन से भूत प्रेत और इसी प्रकार के तांत्रिक आदि मामले मे अपनी बुद्धि को लगाता रहता है,वह किसी प्रकार से इन्ही कारणो की बजह से जब दक्षिण की लम्बी यात्रा करता है तो वहां उसे धन की कमी या किसी प्रकार की छल या फ़रेब वाली स्थिति के कारण भटकना भी पडता है और भूखा प्यासा मरने की नौबत भी आजाती है।

"बुध बुद्धि और बुध जुबान से क्या से क्या कह जाता है,धन की कमी जब आजाती है तो वाणी को थुथलाता है"

बुध इस राशि के लिये धन देने का कारक है और बुध इस राशि वाले के लिये परिवार का भाव भरता है इस राशि वालो को अक्सर अपने पुरुष जातको से कोई सम्बन्ध नही रह पाता है यहां तक कि वह अपने जीवन साथी से अगर वह पुरुष है तो सम्बन्ध केवल जुबानी रूप से रखता है उसे केवल बहिन बुआ बेटी से ही सम्बन्ध  बनाकर चलने मे सुख प्राप्त होता है,जब धन की कमी आने का समय होता है तो वह इस राशि वाला जातक अपनी जुबान से कुछ कहता है और कुछ बात निकलती है जो भी शब्द बोला जाता है वह स्पष्ट नही होकर जीभ की बजह से थुथलाहट से पूर्ण होता है।


कब आता है कुंडली पढने का योग

आपको मेरे इस सौवें ब्लाग मे स्वागत है.आशा है आप को इससे पहले के ब्ला अच्छे लगे होंगे। आज आपको कुंडली पढने के समय के बारे मे बताना चाहूँगा.जिस प्रकार से मन के अन्दर अलग अलग भावनायें आती है वैसे ही एक भावना अपने बारे मे जानने की होती है,कि हम क्या थे अब क्या है और आगे क्या होंगे,समय की गणना करने के लिये अगर देखा जाये तो एक मिनट पहले अभी और आगे की गणना भी लाभदायी होती है,एक पीछे अभी और आगे की गणना भी काम आती है और पिछले जन्म इस जन्म और आगे के जन्म की गणना भी की जाती है।ज्योतिष की आंख सूर्य को माना जाता है और जब जन्म के सूर्य पर केतु का गोचर युति से द्रिष्टि से भाव से होता है तो अपने बारे मे जानने की बात की जाती है.इस प्रकार मे जब केतु जन्म के सूर्य से युति लेता है तो सीखने के उद्देश्य से भी बात की जाती है और जब सूर्य खुद केतु के साथ युति लेता है तो खुद की परेशानी के लिये ज्योतिष का प्रयोग किया जाता है। जन्म के केतु के साथ सूर्य जब आकर खुद युति लेता है तो जातक के पास चलकर ज्योतिष को जानने वाला पहुंचता है इस बात का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है।

प्रस्तुत कुंडली मिथुन लगन की है मैने पहले ही "करन" नामक टापिक मे इस राशि का विवरण दिया है। इसे पढने के बाद आपको मिथुन राशि वाले जातक की पूरी कहानी सामने आजायेगी। इस कुंडली मे गोचर से केतु का स्थान बारहवे स्थान मे है और जन्म के सूर्य से द्रिष्टि सम्बन्ध से युति लेकर जातक अपने बारे मे जानना चाहता है। कि उसकी कुंडली का फ़लादेश कैसे दिया जायेगा। इस कुंडली मे कालसर्प दोष भी है। इस दोष के प्रभाव से भी जातक के प्रति केतु से केतु का भी मिलन है और गोचर से सूर्य बुध केतु का आमने सामने का त्रिकोण है।

लगनेश बुध का चौथे भाव मे होना और लगनेश का शनि और सूर्य के बीच मे होना पापकर्तरी योग की सीमा को भी बता रहा है। साथ ही बुध का प्रभाव सूर्य के साथ बोलने की कला और भाग्येश का तीसरे भाव मे बैठना अपने अनुसार ज्योतिष आदि के विषय के बारे मे लिखना पढना और बताना भी माना जा सकता है। राहु का प्रभाव जब सूर्य पर कन्या राशि मे आता है तो लोगो की मुशीबतों के बारे मे जानकारी करना और उन मुशीबतो को दूर करने का कारण प्रकट करना भी माना जा सकता है। पिता का कारक सूर्य बुध के साथ राहु की शरण मे है,राहु का प्रभाव कन्या राशि मे उच्च का माना जाता है,इसलिये जातक के दादा का जीवन यापन उनकी स्थान बदल कर ननिहाल या काम करने के स्थान पर आकर रहने वाली मानी जाती है यही बात पिता के लिये भी मानी जाती है। माता का कारक चन्द्रमा लगन मे ही है और गुरु मंगल के साथ है,इसलिये माता का प्रभाव अधिक भी माना जा सकता है माता का भाग्य जो गुरु के साथ जुडा है के लिये भी उत्तम माना जा सकता है यानी जातक की माता के रहते जातक को कोई दुख नही है। गुरु जब मंगल के साथ जुडता है तो जातक जो गुरु के रूप मे जीव का कारक है अपने अन्दर विद्या के क्षेत्र मे एक अजीब सी स्थिति को बना लेता है वह सभी कारणो को सीखना चाहता है उन्हे प्रकट करना चाहता है साथ ही किसी एक क्षेत्र मे जाकर अपनी योग्यता को बहुत ही अधिक रूप से प्रकट करना चाहता है। लेकिन गुरु मंगल के साथ रहकर एक गलत प्रभाव भी देता है कि जितनी जानकारी होती है उससे अधिक बुद्धि वाले काम को पकडने के बाद अटकना भी माना जाता है।

कहा भी जाता है-"गुरु शरण मे आवे मंगल,विश्वामित्र बन जाता है,बल से वह ज्ञान युक्त हो राजगुरु कहलाता है",लेकिन चन्द्रमा के साथ होने से यही राजगुरु भावना से पूर्ण भी बन जाता है और एक प्रकार से बनिया स्वभाव का भी हो जाता है,जो जनता को बातों को बेच कर अपने जीवन यापन का साधन खोजने लगे। जब यह मंगल अपनी युति को राहु से प्रकट करता है तो यह हाथी को सम्भालने जैसा काम भी हो जाता है और जातक किसी बडे व्यापार को जो खाने पीने के सामान से युक्त होता है को बडे रूप से सम्भालने का काम भी करता है। "हाथी हौदा राहु बनता सूर्य साथ दे चौथे में",यानी राहु और सूर्य मिलकर अगर चौथे भाव मे हो और गुरु मंगल गद्दी पर विराजमान हो तो हाथी का हौदा यानी बैठने वाली सीट के रूप मे माना जाता है। जो माता के भाई बन्धुओं की कृपा से आगे बढने का रास्ता बताने के लिये भी माना जा सकता है।

वरुण एक नाम

पानी के देवता को वरुण के नाम से पुकारा जाता है और पानी का कारक चन्द्रमा भी होता है। जब भी इस नाम को लिया जाता है तो एक व्यक्ति मछली पर सवार होकर पानी के अन्दर यात्रा कर्ता हुआ दिखाई देता है।मछली जो बिना पानी के नही रह सकती है और एक प्रकार की अपनी ही जलवायु मे रहना पसन्द करती है। इस नाम का पहला अक्षर व से शुरु होता है यह अक्षर वैसे तो वृष राशि का है,साथ ही यह योग रूप मे भी अजान चक्र को बताने वाला है.वकार के रूप मे अगर समझा जाये तो यह अक्षर उस सांड की तरह से है जो अपने लिये मस्ती के अलावा और कुछ नही करना चाहता है साथ ही इस प्रकार के व्यक्ति को किसी की रोक टोक पसन्द नही है। वह अपने मन की मर्जी से चलने वाला होता है और कामुकता के मामले मे भी अनौखी काम शक्ति को अपने अन्दर रखता है। व अक्षर पर कोई भी मात्रा नही है इसलिये यह अपनी स्थिति को सामान्य रखने की योग्यता का कारक भी माना जाता है। अधिक उठापटक इसके साथ तभी दिखाई देती है जब इसके अन्दर कोई विशेष शक्ति को प्रवेश दिलाया जाये। इस नाम का दूसरा अक्षर र जो तुला राशि से सम्बन्ध रखता है के लिये जाना जाता है और इस अक्षर से इस नाम वाले व्यक्ति के लिये अपने खुद के विवेक से काम करने और किसी भी मामले मे शुरु से ही बेलेन्स करने की अदभुत क्षमता को देखा जाता है। इस अक्षर मे उ की मात्रा होने के बाद बोलनेमे खरा स्वभाव भी माना जाता है और किसी भी रिस्ते आदि मे यह अपने को पहले तो झुक कर अपनी स्थिति को दर्शाने की कोशिश करता है,उसके बाद किसी भी कारण का भेद लेने के बाद उसके लिये किसी ऐसी बात को पैदा कर देता है कि सामने वाला अपने ही कार्यों की पुष्टि करने मे मात खाने को मजबूर हो जाता है। अक्सर इस नाम के आगे के अक्षर ण अक्षर का आना भी एक प्रकार की विशेष सीमा मे बन्धा माना जाता है इसके पूर्व के जीवन के बारे मे इस अक्षर की विशेषता यह मानी जाती है कि व्यक्ति को बचपन से ही अपनी जिम्मेदारियों का बोध हो गया था और इसके सामने केवल पारिवारिक रिस्तो की पूर्ति करने मे ही अपने आधे से अधिक जीवन को लगाया जाना माना जाता है,किसी भी रूप मे इस प्रकार के व्यक्ति के साथ दोस्ती करना बुरा नही माना जाता है कारण जो भी बुराइया अद्रश्य होती है इस नाम का व्यक्ति अपनी कला से उन बुराइयों को खोज कर अपनी स्पष्ट भाषा मे उस बुराई को बता देता है,सुनने मे बुरी बात जरूर लग सकती है लेकिन जो कहा जाता है वह पत्थर की लकीर के जैसा होता है।  इस प्रकार के व्यक्ति धन के लिये ही पैदा हुये होते है अपने अच्छे समय मे यह धन को बहुतायत से प्राप्त कर भी लेते है लेकिन अजीब कामो के अन्दर उन्हे अक्सर धोखा ही दिया जाता है अगर यह अपने को तंत्र आदि से पूर्ण कर लेते है तो इन्हे सफ़लता मिलती जाती है अन्यथा यह अकेले ही अपने जीवन को घसीटने के लिये भी मजबूर होते देखे गये है। वृष राशि के सामने वृश्चिक राशि आने से अक्सर इस नाम के लोगो को तांत्रिक और अनदेखे कारणो से अधिक जूझना पडता है गहराई मे जाने से और गूढ बातो को जाने बिना इनके लिये कुछ भी नही कहा जा सकता है। इनके लिये जो भी सलाह देने वाला होता है वह पहली बार मे या तो खुद ही समाप्त हो जाता है अथवा यह अपने पहले के सलाह देने वाले व्यक्ति से दूरिया बना लेते है,इनकी पहली सन्तान भी अक्सर या तो बेकार निकल जाती है या फ़िर होने से पहले ही समाप्त हो जाती है। इन्हे अपनी माता से हमेशा बल मिलता है लेकिन निन्न्यानबे  प्रतिशत मामले मे इस प्रकार के जातक अपनी माता का साथ अधिक नही निभा पाते है। इनके मित्र वाले क्षेत्रो मे वही मित्र अधिक मिलते है जो या तो किसी न किसी प्रकार से बडे सन्स्थानो मे अपने कामो को करते है या विदेश से अपने सम्बन्ध बनाकर चलते है। विदेशी मामले मे इनके मित्र इनकी सलाह से उचित मार्ग प्राप्त कर लेते है.जायदाद आदि के मामले मे भी इनकी राय सही देखी जा सकती है। इनका वैवाहिक जीवन अक्सर इनकी वाकपटुता से और इनके जीवन साथी के अन्दर बिच्छू के गुण आजाने से दिक्कत वाला ही होता है और इनके लिये खराब समय तभी शुरु हो जाता है जब इस नाम राशि वाले अपने को पानी वाले स्थानो की यात्रा को बन्द कर देते है।

करन एक नाम

महाभारत मे एक नाम बहुत ही इज्जत के साथ लिया जाता है। जब भी किसी दानवीर का नाम सामने आता है तो करन का नाम जरूर लिया जाता है करन के बारे मे आप महाभारत मे वृतांत पढ सकते है। इस्नाम का पहला अक्शर क से शुरु होता है यह मिथुन राशि का ठंडा और गर्म दोनो प्रकार का प्रभाव अपने अन्दर रखता है। बोलने चालने की भाषा मे मिथुन राशि का प्रभाव बहुत ही अच्छा माना जाता है प्रदर्शन के मामले मे भी मिथुन राशि का प्रभाव ही जातक की कुंडली मे देखा जाता है लगन से जहां भी मिथुन राशि स्थापित होती है वही भाव बोल चाल की भाषा के लिये समझ लिया जाता है। मिथुन राशि दो प्रकार की प्रकृति हमेशा अपने साथ लेकर चलती है यह हर अच्छे और बुरे प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिये अपने जीवन मे योग्यता को हासिल कर लेती है। जैसे करन का जन्म तो कुन्ती से हुआ था,कुन्ती पुत्र अर्जुन आदि भी थे लेकिन करन की पैदाइस कुन्ती के विवाह से पहले हो गयी थी,करन को नदी मे बहा दिये जाने से उसे सूत यानी मल्लाह ने पाला था इसलिये करन की माता जब राजघराने से थी तो पिता को सूत का नाम दिया जाता है। एक तरफ़ तो राजघराना और दूसरी तरफ़ एक मलिच्छ और नीची जाति का प्रभाव सामने आया। उसके अन्दर दो प्रकार की बाते हमेशा पायी जाती थी जो धर्म युद्ध लडा जा रहा था उसके अन्दर अधर्म का कारक दुर्योधन था और धर्म के लिये यधुष्ठर आदि को बताया जाता था लेकिन करण अधर्म के साथ रहकर धर्म के विरुद्ध युद्ध मे शामिल भी था और बिना दान किये उसे अपनी दिनचर्या भी अधूरी लगती थी,एक तरफ़ तो धर्म के विरुद्ध जाना और दूसरी तरफ़ दान आदि के द्वारा धर्म पर चलना,यह दो बाते भी देखी जाती थी। इस नाम के जातक हमेशा ही दो प्रभाव एक साथ लेकर चलते है। भौतिकता मे जाकर अगर कोई अपने नाम को चलाना चाहता है तो उसे आध्यात्मिकता मे किसी न किसी कारण से जाना पडता है वह राजसी सुख को भोगता है तो उसे जेल जैसे कष्ट भी झेलने पडते है,अगर व्यक्ति की शादी कुलीन खानदान से हुयी है तो उसके अन्दर एक अजीब सी आत्मीय शक्ति अलावा सम्बन्धो के लिये भी सोचने वाले होते है,उसे एक सज्जन के रूप मे जाना जाता है तो उसे एक चुगलखोर और दूसरो की बातो को इधर से उधर करने के मामले मे भी जाना जाता है। इसी प्रकार से हमेशा दो बाते इस प्रकार के जातक के साथ चलती है,बाप अगर धार्मिक होगा तो माता भौतिक होती है,माता अगर स्वस्थ रहती है तो बाप बीमार रहता है। एक पत्नी के या एक पति के बाद भी दूसरा रिस्ता या तो पहले जीवन साथी की मौत के बाद होता है या किसी प्रकार से अविवाहित व्यक्ति के साथ आजीवन रहता है। इस प्रकार का जातक अगर प्रेम से हास परिहास को करने वाला होता है तो वह गाली देने वाला भी होता है। इस राशि के जातक अक्सर दो स्वभाव के होने के साथ दोहरे काम एक साथ करने वाले भी होते है,जब भी उन्हें एक काम से फ़ायदा नहीं होता है तो वह दूसरे काम को भी करने वाले होते है,अक्सर इन्हें एक ही काम में फायदा और नुकसान दोनोही सामान रूप से होते देखे गए है.
करन नाम के अन्दर तीन भाव प्रदर्शित है,पहला मिथुन राशि का दूसरा तुला राशि का और तीसरा वृश्चिक राशि का,इस स्वाभाव के कारण ही इस नाम के जातक अक्सर बात चीत को बैलेंस करके बोलने वाले होते है अपनी ड्रेस और फैसन अदि के मामले में भी बेलेंस रखते है अपने हाव  भाव प्रदर्शन को भी दोहरे प्रभाव से बेलेंस करने के बाद दिखाने वाले होते है.इनकी चाल अक्सर दो प्रकार की देखी जाती है कभी तो यह बहुत ही शर्मा कर चलने वाले होते और कभी उत्तेजना से भाग कर या गुस्से भी जाते हुए देखे जाते है.इनके शरीर में अंगो के भी दो तरह के प्रभाव होते है यह अपने अंगो के संचालन में कभी दाहिने हाथ का अधिक प्रयोग करने लगते है और कभी बाएं का भी प्रयोग करने लगते है,गाने बजाने की ताल स्वर और लय अच्छे और खराब दोनों प्रकार के होते है.यह अपने सम्मुख हमेशा भावुकता से पूर्ण लोगो को ही पाते है और भावना में इनके चहरे का हाव भाव भी बदलता हुआ देखा जा सकता है.अक्सर यह अपने इस प्रभाव के कारण कितने ही बुजदिल व्यक्ति से अपने काम को निकालने में सफल हो जाते है.इनकी भावना में बहकर कई बार लोग इनकी आतंरिक जिज्ञासा को नहीं समझ पाते है और जब यह अपने मतलब में सफल हो जाते है तब जाकर सामने वाले को पता लगता है की इस राशि वाले की मंशा कुछ और ही थी.
नाम के तीसरे अक्षर को सामान्य रूप से शमशानी असर वाला देखा जाता है इनके साथ मित्रता करने के बाद यह किसी जोर जबरदस्ती से अपनी मित्रता को नहीं तोड़ते है बल्कि या तो यह चुप हो जाते है या किसी और रास्ते से किसी अन्य के द्वारा अपने लिए बोलचाल का रास्ता बंद करवा देते है.इस प्रकार से इनके ऊपर चलाकर कोइ बुराई भी नहीं आती है और न ही इन्हें कोइ दोषी मानता है.अक्सर यह गलती करने के बाद जिसके साथ गलती की गयी होती है उसे ही दोषी ठहराते और उस गलती के अन्दर अपनी तरफ इतनी साबूती बाते इकट्ठी कर देते है की सामने वाला इन्ही को सच्चा समझाने लगता है और जिसके साथ गलती हुयी होती है वही दोषी बना दिया जाता है,यह बात अक्सर कोर्ट केश और इसी प्रकार की बातो में देखा जाता है जहां कोइ गलती को सहता भी है और सजा भी प्राप्त करता है इस प्रकार से अक्सर इसी प्रकार के लोगो की गिरफ्त में वह आया हुआ होता है.

विनाश का रास्ता !

मौत का भय सभी को अखरता है और कोई हमेशा के लिये रहता भी नही है,अपने अपने काम को करने के बाद सभी इस दुनिया से कूच कर जाते है। कोई किसी को खिलाने के लिये आता है कोई खाने के लिये आता है कोई किसी को जिन्दा करने के लिये और कोई किसी को मारने के लिये,कोई किसी को दुख देने के लिये और कोई किसी को सुख देने के लिये इस दुनिया में आते है अपना काम किया और चलते बने। लेकिन जो रास्ता प्रकृति देती है उसक कारण तो एक ही माना जाता है सभी का पालन करना,फ़ल से अगर पेट भरता है तो फ़ल को ही खाना चाहिये उसके बीज को नष्ट करने से क्या हासिल होना है,जिस पेड ने बडी मेहनत से अपने एक स्थान पर खडे होकर सर्दी गर्मी बरसात आन्धी तूफ़ान के थपेडे सहने के बाद फ़ल को पैदा किया पाला सहेजा पकाया और स्वाद के अनुसार उसमे रस भरे,उस फ़ल के बीज को समाप्त करने का अधिकार तो हमारे पास नही है। लेकिन हम अपने को बुद्धिमान समझ कर भी अन्धे बने है और निराट अज्ञानी की श्रेणी मे गिने जाते है,उसका एक ही कारण है कि फ़ल को खाया सो खाया और बीज को भी बरबाद कर दिया।
यह मनुष्य शरीर भी एक फ़ल के पेड की तरह से ही है,लेकिन फ़ल के पेड को एक स्थान पर खडे होकर अपनी सेवा करनी पडती है मनुष्य शरीर को चल फ़िर कर सेवा करने का मौका दिया गया है। फ़ल का पेड खडे होकर अपने फ़ल के अन्दर भोजन के लिये तत्व प्रदान करता है तो मनुष्य शरीर चल फ़िर कर अपनी बुद्धि का प्रयोग करने के बाद अन्य प्रकार की सहायता करने के तैयार किया जाता है। ईश्वर ने अच्छा बल दिया,अच्छी बुद्धि दी और जाकर पुलिस मे भर्ती हो गये। भर्ती करवाने के लिये ईश्वर ने ही बल और बुद्धि दी थी तभी जाकर भर्ती हो गये,अगर शुरु से ही प्रकृति अन्धा बहरा लंगडा लूला पैदा कर देती तो देखें कैसे भर्ती हो जाते,पुलिस में अन्धो की बहरो की लंगडो लूलों की कोई जगह नही होती है। अगर होती भी है तो पानी पिलाने की सफ़ाई करने की ही होती है दूसरो की रक्षा करने की नही होती है। रक्षा का भार दिया गया और अपनी रक्षा करने की शक्ति की आड मे अगर कोई उल्टा काम करने लगो,जो बलवान है उनकी सहायता की और जो कमजोर है उन्हे और भी बलवानो की खुराक बना दिय तो वह रक्षा वाला काम उसी प्रकार से हो गया जैसे फ़ल को खाया और बीज को भी समाप्त कर दिया। जब फ़ल के बीज को बरबाद कर दिया तो आगे जो संतान होगी वह तुम्हारे वंश के बीज को बरबाद करने वाली होगी,हर चीज तादात से अधिक बुरी होती है। अधिक भूख लगने पर पत्ते खाये जाते है,जब भूख कम होती है तो अनाज को खाया जाता है,और कम भूख होती है तो अनाज को पकाकर खाया जाता है,और जब बहुत ही कम भूख होती है तो अनाज को अलग अलग तरीके से पकाकर खाया जाता है,तो अधिक भूख लगने पर ही भोजन को किया जाये तो फ़ल और बीज खाने की जरूरत भी नही होगी और बेकार में बीज भी बरबाद नही होंगे।
प्रकृति अपने अपने क्षेत्र का कार्य जल थल और नभ मे करवाती है। एक पक्षी अगर घर के ऊपर से उड कर निकल जाता है तो घर के अन्दर की नकारात्मक इनर्जी की कमी हो जाती है। वह आसमानी रूप से आने वाले विक्षेप को रोकने मे सहायक होती है,जैसे कोई खराब ग्रह की रश्मि घर पर आ रही है और उस समय एक पक्षी घर के ऊपर से उड कर निकल जाता है तो उस रश्मि के आने मे बाधा पैदा हो जाती है,और उसी प्रकार से अगर पक्षी अधिक से अधिक घर के ऊपर से निलते जाये तो कितनी बाधा समाप्त हो सकती है। जैसे नर और मादा अपना प्रभाव देते है,उसी प्रकार से सुबह के समय पक्षी सकारात्मक ऊर्जा को घर मे देकर जाता है,देखा होगा एक पक्षी सुबह के समय हमेशा घर के ऊपर से पूर्व से पच्छिम की तरफ़ उड कर जाता है और शाम को वह पश्चिम से पूर्व की तरफ़ के लिये उड कर आता है,यह क्रम हमने नही बनाया और न ही आपने बनाया है यह क्रम प्रकति ने आपके लिये और हमारे लिये बनाया है,हमने पक्षियों को अपना भोजन बना लिया और जब घर मे गलत शक्तियों का निवास हो गया तो अब हम रो रहे है।
आपको डाक्टर बनाया और आपके अन्दर ही प्रकृति ने विद्या का क्षेत्र भरा बाकी के अन्दर नही भरा है उसने तुम्हे इस लायक समझा है कि तुम अपनी विद्या से लोगो की पीडा को समाप्त करने के लिये अपने शरीर और अपनी बुद्धि के साथ अपनी विद्या का प्रयोग करोगे,लेकिन तुम भी अपनी विद्या का दुरुपयोग करने लगे,जब कोई बात किसी को ठीक करने की आयी तो तुमने अपने कारोबार को मानव के शरीर की फ़ैक्टरी से शुरु कर दिया,उसे साधारण दवाई से ठीक किया जा सकता था उसके लिये तुमने अपनी अधिक आय की आवक के लिये तमाम तरह के टेस्ट लिख दिये,उसे एक रुपये की गोली से ठीक किया जा सकता था उसे तुमने सौ रुपये की दवाई इसलिये लिख दी कि दवाई बिक्रेता से तुम्हे अधिक आय होगी,जब अधिक आय ही करनी थी तो डाक्टर का पेशा क्यों अपनाया?  हमने अपने खानपान के अन्दर जानवरी मांस को मिला लिया है हमारे दांत आंत भेजा कुछ भी नही इस तरह के भोजन को हजम कर सकते है,लेकिन एक तामसी मजबूरी जो हर इन्सान के साथ पैदा होती है,एक जीवन को अधिक चलाने के लिये और एक अधिक होने से समाप्त करने के लिये हमे कोई मारने भी नही आये तो भी मरना तो है ही,कोई नही रोक पायेगा,मरना तो है, यह अटल सत्य है। अधिक जोड कर मरोगे तो भी औलाद बरबाद कर देगी,जैसे किसी का फ़ालतू पैसा घर मे आजाता है तो फ़ालतू के खर्चे पैदा हो जाते है उसी प्रकार से फ़ालतू की कमाई देखकर औलाद भी मेहनत नही करने वाली है,पहले तो बरबाद करने के लिये कई रास्ते खोजने पडते थे लेकिन आज की तारीख मे तो इतने रास्ते अपने आप ही सामने आ जाते है कि संसार की दौलत भी मिल जाये तो वह भी एक मिनट मे बरबाद हो जायेगी।
आपको इस बात का भी गम है कि आपके पास अपना आलीशान मकान नही है,आलीशान मकान का मालिक होना तुम्हारे वश की बात नही है,यह तो अकबर की किस्मत मे था कई किले बनाये,सोने चांदी और हीरे जवाहारात को जडने के बाद सिंहासन बनाये,लेकिन आज सभी पर जब बन्दर और कबूतर अपनी अपनी शैली मे खेल खेलते है तो बडी ग्लानि होती है कि पता नही कितने लोगों को इन कामो के लिये मरना पडा होगा कितने घर उजड गये होंगे,कितने लोग अपने जीवन को इन कामो को करने के लिये बरबाद करके गये होंगे कितने जानवरों को अपनी जान पत्थर और सामान ढोने पर देनी पडी होगी लेकिन सबका कोई मूल्य नही है,कोई एक पत्थर का भी प्रयोग नही कर सकता है,अगर देखने भी जाओ तो टिकट और देनी पडती है,तो क्या फ़ायदा हुआ इस प्रकार के खेल खेलने से,यह खेल केवल अहम का था,अहम ही विनाश का रास्ता देता है,अहम ही यह कहता है कि हम ही रहेंगे और किसी को नही रहने देंगे,लेकिन जब हम ही चले जाते है तो दूसरे को कैसे रहने से रोक सकते है,इस अहम को समाप्त करो और अपने को आदमी बनाने मे ही फ़ायदा है,प्रकृति के विरुद्ध आदमी को जानवर और जानवर को आदमी नही बनने तो ठीक है।

ज्योतिषीय अभ्यास करने के तरीके

बिना अभ्यास किये कोई भी विद्या सफ़ल नही हो सकती है। अगर कार्य को पढा गया है तो कार्य को करने के बाद उसका वास्तविक रूप सामने आजाता है। ज्योतिष भी एक कार्य वाली विद्या है। इसे पढकर इसके लिये अभ्यास को कार्य रूप मे करना बहुत जरूरी है। आइये आपको सबसे पहले भदावरी ज्योतिष के माध्यम से आपको खोई हुई वस्तुओं के प्रति अभ्यास से खोजने का तरीका बताते है।

"घर दू जा है रुपया पैसा,खाया जाता इस घर से,इस घर का मालिक जहां बैठे खोजो जाकर उस घर में",

यानी जो भी भौतिक वस्तुये है और उन्हे उठाकर रखा जा सकता है,उनके अन्दर जान नही होती है लेकिन वे वस्तुये कीमत देकर चुकाई गयी होती है,सोना चांदी रुपया पैसा और महंगी वस्तुये भी इसी घर से देखी जाती है.इस घर का मालिक जिस राशि भाव मे विराजमान है उसी राशि और भाव के स्थान पर वह वस्तु विराजमान होगी।

उदाहरण के रूप में समय की लगन तुला है,और दूसरे भाव की वस्तु वृश्चिक राशि से सम्बन्धित होगी,वह चाहे दवाई के रूप मे हो चाहे वह एन्टिक वस्तु हो,वह पाताली शक्ति से पूर्ण कोई तांत्रिक वस्तु भी हो सकती है,उसे मृत्यु के बाद किसी की दी हुयी वस्तु के रूप मे भी जाना जा सकता है। उस वस्तु को खोजने के लिये जिस राशि में मंगल बैठा है जिस भाव मे मंगल विराजमान है उसी भाव मे उसे खोजना पडेगा और उसी राशि के अन्दर आने वाले कारक के साथ देखना पडेगा। मान लीजिये मंगल ग्यारहवे भाव मे सिंह राशि मे विराजमान है,तो वह भाव तो बडे भाई का होगा,दिशा से उत्तर-पूर्व का होगा,मित्र का भाव भी यही है,लेकिन मित्र के लिये मंगल का कारण केवल बीस अंश से पच्चीस अंश के बीच का ही होगा। मित्र या बडा भाई बहिन जो किसी प्रकार से सरकारी या राजनीति के क्षेत्र में होगा अथवा अपने पुत्र या पुत्री के साथ होगा उसके पास उस वस्तु का होना माना जायेगा। घर के अन्दर इस स्थान का मालिक पश्चिमोत्तर का कोना माना जायेगा,वह स्थान भी माना जायेगा जहां शाम के सूर्य की रोशनी आ सकती है,अनाज या जंगली उत्पादन वाले कारको को रखने का स्थान भी हो सकता है आदि कारको से खोजा जा सकता है।

"घर पहले का मालिक होगा जीव जगत से जुडा हुआ,अष्टम के संग युति मिलेगी मुर्दा वह कहलायेगा"

किसी का प्रश्न आया कि अमुक व्यक्ति बहुत समय से घर से गायब है या उसका पता नही चलता है,प्रश्न कुंडली के अनुसार विचार किया तो पहले भाव का मालिक अष्टम भाव के मालिक के साथ दसवे भाव मे है,इस बात का साधारण सा जबाब होगा कि वह व्यक्ति दक्षिण दिशा मे गया और वहां काम काज के दौरान मृत्यु को प्राप्त हो गया। खोजने के लिये दसवे के स्वामी की मदद लेनी पडेगी,जैसे दसवे का मालिक शनि है और शनि का स्थान दूसरे भाव मे है,दूसरे का मालिक शुक्र राहु के साथ पंचम मे विराजमान है,इसमे शुक्र राहु यानी समाचार पत्र या किसी प्रकार की द्रश्य मीडिया जुडकर पता करना पडेगा। 

"घर तीसरा कहा सूनी का घर के बाहर जाने का,बोली चाली और सभ्यता भैया बहिन बताने का"

तीसरे भाव से सम्बंधित कारण आपसी कहा सूनी के लिए भी माने जाते है क्या पहिना जाता है क्या बोला जाता है किस भाषा पर अच्छी जानकारी है और किस भाषा में नहीं बोला जा सकता है,इस भाव से सम्बन्धित चीजे हमेशा कमन्यूकेशन से संबधित होती है जो भी कारण मोबाइल फोन कम्पयूटर डाटा कार्ड आदि से जुड़े होते है वह इसी घर से देखे जाते है.इस घर का मालिक जिस भाव और राशि में होता है उसी भाव और राशि से जोड़ कर देखा जाता है,जैसे मोबाइल खो गया है और इस भाव का मालिक अगर अष्टम में विराजमान है तो यात्रा में वह खोया है और किसी ऐसे स्थान पर गिरा है जहां से पाना मुश्किल है लेकिन वही अगर वृष राशि है तो किसी चोर के द्वारा उसे बेच कर धन कमाने की जरूरत से चुराया गया है अगर चौथे भाव के साथ इस राशि का स्वामी है तो वह घर के अन्दर ही है या किसी प्रकार से वाहन में रह गया माना जा सकता है.

इन कारको से खोया हुआ सामान आदि प्राप्त करने में ज्योतिष की सहायता ली जा सकती है.

नाम राशि और राजनीति

कहाजाता है कि माता पिता जन्म को देते है लेकिन नाम प्रकृति रखती है। जो जिस देश काल परिस्थिति मे होता है नाम राशि उसी के अनुरूप अपना फ़ल प्रदान करती जाती है। नाम का पहला अक्षर मध्य का अक्षर और अन्त का अक्षर अपने अपने अनुसार जीवन मे फ़ल प्रदान करते है इस बात को मै पहले भी बताकर आया हूँ। इसी के अन्दर कुछ अच्छे राजनीतिक लोगों के प्रति जो नाम राशि कहती है,उसे बताने की कोशिश कर रहा हूँ,यह लेख केवल ज्ञान वृद्धि के लिये है इसे अन्यथा नही ले और न ही किसी प्रकार की लाभ हानि की सीमा मे इसे ग्रहण करे। नाम भी दो प्रकार के होते है एक चलता हुआ नाम एक सीमित क्षेत्र मे प्रयोग मे लिया जाने वाला नाम। सीमित क्षेत्र मे जो नाम लिया जाता है वह केवल परिवार या किन्ही मुख्य सदस्यों के द्वारा प्रयोग मे लाया जाता है और चलने वाला नाम जीवन के क्षेत्रों मे अपने प्रभाव को बताने के लिये माना जाता है। सीमित क्षेत्र मे चलने वाले नाम को चौथे भाव की सीमा तक माना जाता है और चलने वाले नाम को पंचम से लेकर बारहवे भाव की सीमा तक लेकर चलने वाला माना जाता है।एक बात को और भी बताया जाना उचित है कि आधा अक्षर आधी ही मान्यता को देता है और सहायक सम्पूर्ण नाम मे रहता है,जैसे अं की बिन्दी अ: का प्रयोग आदि।

एक चर्चित नाम जो श्री अन्ना हजारे के लिये लिया जा रहा है और जिसे देखो वही अन्ना अन्ना के भाव मे है। अक्षर अ मेष राशि का है और न वृश्चिक राशि का है। उनके घरेलू नाम को या तो बहुत कम लोग जानते है। अ से शरीर के विषय मे और न मृत्यु भाव से जोडा जाता है। जो नींद में होता है उसे भी वृश्चिक राशि मे लेकर आते है जो मृत्यु शैया पर होता है उसके लिये भी इसी भाव मे लाया जाता है। लेकिन न अक्षर का आधा भाग ही पूरे न के साथ जुडकर न के अन्दर आ की मात्रा से उसे शक्ति से पूर्ण कर दिया है। भोजन को प्राप्त करने का मुख होता है और भोजन को नही करने का भाव अष्टम को माना जाता है। भूखा व्यक्ति अष्टम से देखा जायेगा और भोजन किया हुआ व्यक्ति दूसरे भाव से देखा जायेगा। उपवास को और अधिक जानने के लिये आप राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी को भी देख सकते है। और उनका चलता हुआ नाम गान्धी ही सबसे अधिक प्रचिलित है। इस आधे न ने ही उन्हे हर काम को करने के लिये उपवास का सहारा देकर सफ़ल किया था। लेकिन अक्षर ध के अन्दर जुडा होने से और ध पर बडी ई की मात्रा होने से उसे नवे भाव का आदर भी दिया और अन्तर्षाट्रीय ख्याति भी दी। इसी प्रकार से श्री अन्ना हजारे को भी ख्याति केवल उपवास से ही मिली है लेकिन आधे न के चक्कर में एक बार बीच मे टूटी हुयी मानी जाती है तथा बाद के ना के कारण एक बार और उनका अनशन होगा और वह अनशन जीवन की अन्तिम घडी तक माना जा सकता है।

दो नाम और भी आपके सामने एक जैसे है एक तो श्रीमती मायावती का है और दूसरा श्री मुलायम सिंह यादव का है। श्रीमती मायावती के नाम में पहले म फ़िर आ की मात्रा से शक्ति फ़िर य और उसपर भी आ की शक्ति बाद मे व जो साधारण रूप मे है अन्त का अक्षर त जो बडी ही की मात्रा से पूर्ण है। इस नाम में पहले सिंह राशि है जो राज्य की कारक है,बडी शक्ति के रूप में आ की मात्रा उन्हे आगे बढाने के लिये मानी जाती है अक्षर न वृश्चिक राशि का है जो शमशानी जिन्दगी जीने वाली और समाज मे तिरस्कृत जातियों के लिये मानी जा सकती है। अक्षर य पर भी बडे आ की मात्रा आने से इस राशि से सम्बन्धित लोगों का सहायक होना भी माना जा सकता है। इसके बाद अक्षर व के आने से वृष राशि का प्रवेश हो गया है वृष और वृश्चिक आमने सामने की राशिया है और यही राशि जिन तिरस्कृत लोगों के कारण आपका उठाव राजनीति मे हुआ बदनाम करने और दूर जाने के कारण राजनीति छवि से दूरी मानी जा सकती है,आखिरी अक्षर त के द्वारा बडी ई की मात्रा से दुबारा से बेलेन्स करने के कारण फ़िर से लाभ और मित्र बनाने की क्रिया शुरु करना माना जा सकता है। लेकिन अक्षर म के चौथे मे राहु के चलने के कारण खुद के मन मे ही आशंका होना जरूरी है और घर के लोग ही बदनाम करने के लिये भी अपनी चाल को चल सकते है,राहु का वृश्चिक राशि मे होने से खुद के लोग जिन्होने आगे बढाने की क्रिया को सम्पादित किया था वे ही कनफ़्यूजन मे है इस कनफ़्यूजन का लाभ लेने के लिये वही लोग जो पहले राज्य भाव में रहकर फ़ायदा देने के लिये माने जाते थे उन्ही के द्वारा खुद के कार्यों को दो फ़ाडो में बांटने की क्रिया जो केतु के द्वारा सम्पादित की गयी है से दिक्कत मे आना माना जा सकता है। उसी प्रकार से श्रीमुलायम सिंह के नाम में पहला अक्षर म  है जो राज्य से सम्बन्धित है इस अक्षर मे अक्षर उ के प्रवेश करने के कारण जो भी शक्ति राज्य को मिलती है वह सामान्यता और झुक कर प्राप्त की गयी इज्जत से मानी जाती है,दूसरा अक्षर ल जो मेष राशि से सम्बन्धित है के आने से और इस राशि का नवे भाव मे होने से खुद के समाज परिवार जाति पूर्वजो से जुडे हुये लोग विदेश कानून आदि से मिलने वाले लोग और सहायताये आगे बढाने के लिये मानी जाती है,अक्षर य वृश्चिक राशि से जुडा है और अक्षर म और ल से चौथा और आठवां है तथा अन्दरूनी जानकारी सामाजिक संस्थाओं से जो शमशानी कारणो को सामने रखने वाली है के द्वारा खुद के ही लोग दूसरे प्रकार के संगठनो से जुडने के कारण घर से ही कनफ़्यूजन का होना देते है,साथ ही आखिरी अक्षर केवल म के होने से राज्य के द्वारा ही नाम का चलना माना जाता है। दोनो नामो के पहले अक्षर म होने से और म अक्षर के चौथे भाव मे राहु होने से दोनो केलिये ही राजनीति की अगली सीढी बहुत कठिन मानी जाती है,राहु जो खुद के घर मे विराजमान है,वह राहु चाहे हाथी के रूप में (लालकिताब के अनुसार राहु को हाथी बताया गया है) अपमान जोखिम और पाताली कारण पैदा करने के साथ जिस जनता के द्वारा राज्य को प्रदान किया जाता है वही जनता आशंकित है और पहले जैसी श्रद्धा और भावना से दूर मानी जा सकती है,यह भावना भी वृश्चिक के राहु के द्वारा भय से युक्त है,कनफ़्यूजन मे है,एक अनौखी सी छवि जनता के अन्दर है,वह छवि भी राहु की गति को उल्टा देखने के कारण जनता तुला राशि को अपने लिये फ़ायदा देने वाली मान रही है।

इसी श्रेणी में श्रीराजनाथ सिंह का नाम भी लिखना जरूरी है कारण भाजपा के लिये वे उत्तर प्रदेश से एक जिम्मेदार व्यक्ति है। पहला अक्षर र तुला राशि का है और उस पर आ की शक्ति भी अपना प्रभाव दे रही है। अक्षर ज सरकारी काम काज और राज्य के लिये मकर राशि का प्रभाव भी दे रही है। अक्षर न पर भी आ की मात्रा का प्रभाव है,जो वृश्चिक राशि के अन्दर अपनी शक्ति को बहुत ही अधिक प्रभावित कर रही है,अक्षर थ मीन राशि का प्रभाव देने वाला है।वर्तमान मे राहु का प्रभाव अक्षर र के सामने है,केतु असमान्य स्थिति में है,यानी अष्टम में है और खुद के ही साधन खुद को ही काटने वाले माने जा सकते है। कल तक जो न्याय और विदेश आदि के लिये अपना साधन और कानूनी मदद करने वाले थे वही दो लोग केतु की शक्ल मे अपनी योजना से गुप्त रूप से अपनी रिपोर्ट अन्य को प्रदान कर रहे है,सम्मुख खडे लोग जो धन आदि के लिये अपनी हां मिलाने के लिये कल तक तैयार थे वे भी अपनी नीति को असमंजस में डाल रहे है।

अब उत्तर प्रदेश के लिये अक्षरों का विनिमय समझने की कोशिश करे। पहला अक्षर उ जो वृष राशि का है,धन कुटुम्ब और भौतिकता को दिखाने वाला है,जो इन मामलो मे बढ गया है उसी की पैठ इस प्रान्त मे अधिक मानी जाती है,बात मे अक्षर त का आधा होना,और फ़िर त का पूरा होना राज्य से सम्बन्धित मामले मे हमेशा दोहरी गति इस प्रदेश को बेलेन्स करने मे मिली है। अक्षर र भी बेलेन्स करने के लिये अपनी गति को देता है,इसके बाद अक्षर प और र का मिक्स प्रभाव पहले प पुकारा जाना और बाद मे र का पुकारा जाना प्र अक्षर को पैदा करता है,यह प्रभाव कर्जा दुश्मनी बीमारी और इन्हे बेलेन्स करने के कारकों मे अपनी सीमा को प्रदर्शित करता है। इस कारण से पाराशर नियम में भी बताया गया है कि हर भाव का बारहवा भाव उसका विनाशक होता है,कन्या राशि तुला की बारहवी राशि है,इस राशि के कारण ही जब भी राज्य की कोई सीमा निर्धारित की जाती है तभी राज्य का रुख हमेशा बडी आपत्ति को देने के लिये देखी जाती है। शनि जो इस राज्य के लिये भाग्य और राज को प्रदान करने वाले है आज इसी राज्य के अक्षर प्र पर अपना गोचर कर रहे है,यानी कन्या से तुला और वापस फ़रवरी के प्रथम सप्ताह से तुला से कन्या पर,इस प्रकार से वर्तमान के चलने वाले राज्य के राज पर चुनावी कारण भी तैयार है,चुनाव की पहले तारीख तय की गयी थी लेकिन गुरु के मार्गी होते ही तारीखो मे भी बदलाव कर दिया गया है,शनि आठ फ़रवरी से वक्री हो रहे है और इस वक्री गति मे की गयी घोषणा चुनावी तारीखो मे हेर फ़ेर भी दे सकती है और वर्तमान के शासक को साम दाम दण्ड भेद की नीति से राज्य के राज मे जाने का अवसर भी आ सकता है,परन्तु चौबीस जून के बाद अचानक स्थिति का पलटना भी जरूरी है,इस बात से यही समझा जा सकता है,कि राज दो पार्टियों के बीच मे जायेगा और जनवरी दो हजार तेरह के आसपास से ही एक पार्टी अचानक अपनी गति को प्रदान करने के लिये तैयार भी हो जायेगी तब जाकर इस राज्य का राज संभल सकता है। उस समय से मुस्लिम सम्प्रदाय भी अपनी बेलेन्स करने की नीति को तैयार कर सकता है। उससे पहले मुस्लिम सम्प्रदाय भी अपनी मानसिक कनफ़्यूजन वाली गति को नही बना पायेगा।
(आपको यह लेख कैसा लगा अपने विचार जरूर लिखने की कोशिश करे,धन्यवाद)

कालसर्प योग कितना झूठ कितना सच ?

वृश्चिक राशि का तीसरे भाव मे राहु हो तो वह कबाड से जुगाड निकालकर अपने आप की बात को सच करने की कोशिश करेगा,उसका टारगेट भी इतना प्रबल होगा कि वह अपने विचार को विश्व के प्रति भी कहने से नही चूकेगा। कन्या राशि और कन्या लगन तथा कारकांश से निल लोगों की कन्या राशि निकलती है या घडी लगन नवांश की लगन चन्द्रमा आदि जो भी कन्या राशि के जातक है वे वर्तमान मे राहु की सहायता से कहीं से भी कबाड से जुगाड निकालने मे समर्थ है। कारण पिछली मई से कन्या राशि के तीसरे भाव मे राहु का आगमन हुआ है। इस राहु के कारण अक्सर उनकी द्रिष्टि जगत मान्य मान्यताओ से भी पीछे हट कर जा सकती है इस बात का आभास जब हुआ जब एक सज्जन ने और कुछ नही अपनी कालसर्प की मान्यता के पीछे ही अपनी कहानी रच डाली और इस योग को लोगों के द्वारा पागल बनाकर या अपनी कथनी को कहने के लिये पता नही कहां से बहुत पुरानी एक जन्म कुंडली की फ़ोटो जो वास्तव मे लाल किताब पद्धति से बनाई गयी थी लाकर लोगों के सामने रख दिया कि इस पत्री मे जो लिखा है वह पढने योग्य तो है नही कैसे भी अपनी राम कहानी को बनाकर कालसर्प योग को ही झूठा बताकर अपने अहम को जिन्दा रखने का काम किया जाये।
जो लोग शिवजी से अपनी आध्यात्मिक शक्ति से जुडे है उन्हे यह पता है कि उनके शिवलिंग के साथ या उनकी छवि के साथ सर्प को दर्शाया गया है। शिव लिंग को तो सर्प के फ़न से ढका बताया गया है और जललहरी से उस सर्प के प्रवेश को दिखाकर बाकी का पूंछ वाला हिस्सा जललहरी के पास दर्शाया गया है। शिव जो संहार के कारक है और शिवलिंग की जललहरी को सम्भालने का कार्य माता पार्वती के रूप मे दिखाया गया है। यह दोनो ही रूप में शिव और शक्ति को दर्शाया गया है। राहु जो सांप के फ़न से और पूंछ केतु के रूप मे मानी जाती है। केतु रक्षा करने वाला होता है और राहु समाप्त करने वाला होता है। दोनो ही छाया ग्रह है,भगवान शिव के अलावा भी भगवान विष्णु की तस्वीर को देखा जाये तो क्षीर सागर में शेषनाग के ऊपर भगवान विष्णु की शैया है और राहु के रूप मे शेषनाग के फ़न की छाया उनके ऊपर है। राहु को आकाश और केतु को पाताल का कारक भी कहा गया है,आदि काल से राहु के लिये आसमानी सहायता और केतु से जमीनी सहायता का रूप मान्यता मे है जब आसमानी बारिस नही होती है तो जमीनी पानी से जीने के लिये पौधो और फ़सलो की रक्षा करना भी पाया जाता है। देवताओं और असुरों की सहायता से सागर के मंथन की कथा भी सभी ने सुनी होगी उस मंथन से निकलने वाला हलाहल भी था और अमृत भी था। हलाहल को भगवान शिव ने पान किया था अमृत को पान करने के लिये देवताओं को छद्म वेष मे भगवान विष्णु ने अपने अनुभव को आधार बनाया था,लेकिन उस जगत व्यापी अन्तर्यामी भगवान विष्णु ने सूर्य और चन्द्र के अन्दर यह भावना पैदा कर दी थी कि एक असुर भी अमृत पान को कर गया है। सुदर्शन चक्र से उस असुर के दो हिस्से कर दिये गये,सिर का हिस्सा राहु नाम से और धड वाला हिस्सा केतु के नाम से जाना गया। ईश्वर की प्रत्येक लीला मे राहु केतु का खात्मा करने की कथा का वृतान्त है। वह राम रावण युद्ध में रावण जिसके बीस सिर और दस भुजा का वर्णन दिया है। भगवान श्रीकृष्ण की कथा मे कालियादह में कालिया नाग के फ़न को नाथ कर अपने पौरुष का वर्णन और अपने को श्यामल रंग में रंगने की कथा है। चण्ड मुण्ड विनाश मे भी काली जो केतु के रूप मे मानी जाती है का वृतान्त दुर्गासप्तशती जो मार्कण्डेय पुराण यानी देवी भागवत में भी कही गयी है। आदि बातो से पता चलता है कि व्यक्ति का आजीवन इन्ही ग्रहों की चाल से जुडा होना माना जाता है।
जो लोग पौराणिक बातो को या चलने वाली मर्यादा को खतम करने की कोशिश तीसरे राहु से करते है उनके लिये यह भी माना जाता है कि वही तीसरा राहु जब उल्टी गति से दूसरे भाव मे आता है तो कुटुम्ब नाश के साथ धन नाश और बुद्धि नाश के लिये भी अपना प्रभाव देता है। अक्सर इस राशि वालो को जब राहु तीसरे से दूसरे भाव मे प्रवेश करता है तो जहर खाकर या किसी पारिवारिक क्लेश के कारण अपनी आत्महत्या तक करते हुये देखा गया है। 
  • कालसर्प दोष की मान्यता दक्षिण के मन्दिरों देखी जाती है,नासिक में भी कालसर्प दोष का निवारण किया जाता है.
  • रामेश्वरम मे नागनादिर मन्दिर और रामकुण्ड के पास मे बनी शेषनाग की वाटिका कालसर्प योग की निवृत्ति से ही जोडे गये है,जहां राहु को समुद्र और केतु को शिव लिंग के रूप मे मान्यता दी गयी है.
  • सुचिन्द्रम मे हनुमानजी के घुटने मे मक्खन लगा कर कालसर्प दोष की पूजा की जाती है.
  • इसी मन्दिर में नवग्रह की आराधना करने के लिये जो कालसर्प योग की सीमा मे आते है एक वस्त्र जो नीचे का होना जरूरी है और केवल पुरुष वर्ग के द्वारा ही पूजा की जाती है,ऊपर का वस्त्र धारण करने के बाद या तो पूजा लगती नही है या वह वस्त्र ही किसी न किसी कारण से कुछ समय मे बरबाद हो जाता है.
  • बंगाल मे भी दक्षिणेश्वर के पास मे बारह महादेव को शिव के रूप मे और माता काली को केतु के रूप मे प्रस्तुत किया गया है.
  • कालीघाट मे भी साततल्ला शमशान को राहु और कालीमाता को केतु के रूप मे प्रस्तुत किया गया है।
  • आसाम के कामाख्या मन्दिर मे भी शिवलिंग का अन्तर्भाग स्थापित करने के बाद उसके अन्दर माता कामाख्या को विराजमान किया गया है.जो भक्त गये होंगे उन्हे जो एक अहसास हुआ होगा वह राह और जो उन्हे द्रश्य हुआ होगा वह केतु के रूप मे माना जा सकता है.
  • अमरनाथ जाने पर भी बनने वाला शिवलिंग केतु और पहाडों की दुर्गम यात्रा को राहु के रूप मे माना जाता है.
  • हिमाचल की जितनी भी देवियां है वह केतु के रूप मे दुर्गा के रूप मे पूजी जाती है और उनके द्वारा दी जाने वाली शक्ति को राहु को रूप मे माना जाता है.
(कृपया अपने अधूरे ज्ञान से चलने वाली मान्यताओं के प्रति लोगों की धारणा को समाप्त नही करे,पहले ही धारणाओ और मर्यादाओं को समाप्त करने में अंग्रेजी शासन और पूर्व के शासको ने अपनी कमी नही छोडी है आज के मानव की जो हालत है वह किसी भी प्रकार से शांति दायक नही है जिसे देखो वह अपनी ही धुन मे बहा जा रहा है और धीरे धीरे अपनी सोच और अहम के कारण एक मानव के शरीर को धारण करने के बाद जानवरी प्रवृत्ति को अपनाने से बाज नही आ रहा है.)

छिद्रान्वेषण

 "काटि छांटि पाहन को जीवन की छाहन को,
चुनि के रंग रोगन को घर को सजायो है।
कीडी के स्वभाव को जानत है सकल जग,
छेद को खोजन में अमूल को गंवायो है॥"


अर्थात- बहुत ही मेहनत करने के बाद पत्थर आदि को काट छांट कर बहुत ही सुन्दर तरीके से घर को बनाया जाता है,उसे सजा कर संवार कर रखा जाता है,लेकिन चीटी का स्वभाव सभी को पता है वह अपनी आदत के अनुसार उस घर के अन्दर हमेशा भाग भाग कर छेद को खोजा करती है। उसे लगने वाली मेहनत और भावना का पता नही होता है वह केवल छेद की भावना को लेकर ही अपने पूरे जीवन को व्यतीत कर देती है। यह भावना अक्सर उन्ही लोगों के अन्दर भी पायी जाती है जिन्हे ज्ञान की परिभाषा तक का पता नही होता है केवल वे अपने अधूरे ज्ञान की भाषा मे अपनी पूर्णता को बखान करने के लिये और अपनी प्रसंसा को पाने के लिये अपनी जुगत को लगाने की कोशिश करते रहते है। इसे ही विद्वानो ने भ्रम की परिभाषा मे रूपित किया है। जब व्यक्ति के अन्दर राहु अपने भ्रम को भर देता है तो वह अपने ही अन्दर के नशे के अनुसार अपनी ही क्रिया मे व्यस्त रहता है। उसे किसी से कोई मतलब नही होता है,कोई किस भावना से क्या बता रहा है उसे तो केवल वही नशे वाली कारक वस्तु का ही ध्यान रहता है,अलावा कारक उसकी बुद्धि से परे होते है। राहु के अनुसार उसकी उल्टी गति होती है वह अपने उल्टे काम के लिये ही सफ़ाई कर्मचारी की श्रेणी मे गिना गया है। लोग अपने अपने स्वभाव से अपने मूल्यवान कारको को ग्रहण करने के बाद अलावा को बेकार समझ कर फ़ेंक देते है वही राहु उस बेकार के कारक को अपनी समझ की झाडू से साफ़ करने का काम भी करता है। लालकिताब ने लगन को गद्दी की सीमा मे परिभाषित किया है सप्तम को मंत्रणा की श्रेणी मे माना है अष्टम को लगन की आंख के रूप मे बताया है और लगन के चलने के लिये ग्यारहवे भाव को भी गिना है। जब लगन मे केतु हो तो वह अपनी मंत्रणा को सप्तम के राहु से ही युति को बनायेगा इस प्रकार से केतु के सामने राहु होने से वह राहु की भ्रम वाली स्थिति मे अपने को ले कर अपनी अष्टम की गति को नही समझ पायेगा यानी उसे आगे जाने के लिये कुछ भी दिखाई नही देगा राहु का प्रभाव उसे अष्टम की आंखे नही देगा तो वह ग्यारहवे घर के पैर चलने के लिये भी प्रयोग मे नही ला पायेगा। जब व्यक्ति के सामने आगे जाने का रास्ता नही होगा यानी वह अपनी धुन के आगे कुछ भी समझ नही पायेगा तो केवल दूसरो के प्रति भावना से नुक्ताचीनी ही कर सकता है,नुक्ताचीनी भी इस बात की जिसका कोई भाव ही नही हो,और बिना भाव की बातो को करने से बेकार की बुराइया देने और अपने को किसी भी प्रकार से साम दाम दण्ड भेद की नीति को प्रयोग करने के बाद स्थान बनाने की कोशिश करेगा उसके स्वभाव को ही छिद्रान्वेषण की परिभाषा मे लाया गया है।

ऊखट योग

पाराशरीय पद्धति ज्योतिषीय योगों का समीकरण ग्रहों के अनुसार बताया गया है भावानुसार भी और ग्रहों के साथ नक्षत्र और पदानुसार भी योग बताये गये है.जैन ज्योतिष के अनुसार एक योग को ऊखट योग के नाम से बताया गया है। इस योग का मुख्य ग्रह अष्टम से सम्बन्धित होता है लेकिन नवम के ग्रह से उसे सम्बन्धित होना जरूरी है।
"झंझावत को सहत है,कांटे बहु फ़हराय,उखटे पेड बबूल को जो ऊंचे चढि जाय॥"

इस काहवत के अन्दर ऊखट का प्रयोग बहुत ही सुन्दर तरीके से किया गया है। बबूल का पेड किसी भी स्थान पर पैदा हो जाता है अपनी जडो को वह बहुत नीचे तक जमीन मे पहले पनपा लेता है उसके बाद अपने कांटों को जीवो को कष्ट देने के लिये फ़हराने लगता है.लेकिन एक समय ऐसा आता है कि जैसे ही वह ऊंचा होना शुरु हो जाता है उसकी जडों में दीमक आदि लगने लगती है और नीचे ही नीचे दीमक आदि जमीनी जन्तुओं के द्वारा उसकी जडों को बरबाद कर दिया जाता है और वह अक्समात ही बरसात के मौसम में भी सूख कर बरबाद हो जाता है।

"कठखटा मे पिसत है,चरमरात घिस जाँय,जो कांटे ही बुवत है भट्टी मे सुलगांय॥"

बबूल के पेड का जो कांटे ही प्रदान करता है को सूखने के बाद बैलगाडी और खाट आदि बनाने के लिये ही काम मे लाया जाता है उसकी कोई बिसात नही होती है। जब बबूल की लकडी किसी काम की नही रहती है तो उसे भट्टी मे सुलगाकर भोजन पकाया जाता है। इस कहावत का अर्थ है कि जो लोग अपने कार्यों से व्यवहार से लोगो के लिये कांटों को यानी दुख देने के कारण ही पैदा करते रहते है उनकी यही हालत उनके मरने के बाद भी होती है।

ऊखट योग में जातक की कुंडली मे सूर्य अष्टम मे होता है और नवे भाव का मालिक कोई भी ग्रह सूर्य के सामने यानी दूसरे भाव मे होता है,सूर्य जो अष्टम मे जाकर जमीनी कीट पैदा करने वाला होता है और वह सीधे से जमीनी पानी को सोखने के लिये अपनी अन्दरूनी गर्मी को पैदा करता है के नवे भाव के ग्रह के सामने आने से जातक के पूर्वजो ने पिता ने कोई ऐसे कर्म किये होते है जो नीची राजनीति का कारण बनते है वह राजनीति चाहे परिवार मे की गयी हो या समाज मे की गयी हो उस नीची राजनीति के चलते पहले तो वह अपनी शक्ति को धन से अपनी आसपास की स्थिति को अपनी कांटों जैसी सुरक्षा से कर लेता है लेकिन जैसे ही वह ऊंचे आसन की तरफ़ बढता है अचानक उसको मजबूत करने वाले तत्व अन्दरूनी रूप से बरबाद कर दिये जाते है और वह जब बढने का समय आता है अचानक ही किसी प्रकार की अपनी ही बनायी गयी सुरक्षा की दीवार में फ़ंस जाता है और उसे निकलने का रास्ता भी नही मिलता है जो जड उसे पानी जमीनी पोषक तत्वो को दिया करती थी वह उसके अहम की दीमक के द्वारा समाप्त कर दी जाती है और वह अपने कारणो से ही ह्रद्याघात पुत्र दुख या आगे की सन्तान से दूर रहकर अथवा किसी प्रकार के सामाजिक पक्षाघात से बरबाद हो जाता है।
उदाहरण के लिये मेष लगन की कुंडली में गुरु नवे भाव का मालिक है और सूर्य पंचम का मालिक है सूर्य अष्टम यानी पूर्वजों की पैदा होने की जगह पर जाकर स्थापित हो जाता है,गुरु दूसरे भाव यानी वृष राशि का हो जाता है,जातक के पिता ने धन की चाहत से अपने समाज परिवार मर्यादा भाई बन्धुओ को दुख दिया होता है और उसे केवल धन की चाहत मे ही अच्छे बुरे का ख्याल नही रहता है वह अपने कृत्यों से सभी को अहम के कारण दुख देने का कारक बन जाता है। सूर्य जो सन्तान और पुत्र का कारक भी है जाकर अष्टम यानी विदेश भाव मे बैठ जाता है और अपनी स्थिति को अपने समाज परिवार आदि से दूर जाकर स्थापित कर लेता है,उसके सामने भी परिवार मर्यादा आदि का कोई भी महत्व नही रहता है,वह अपने परिवार आदि को भूल कर बाहरी शक्तियों के घेरे मे जाकर अपने को शराब कबाब धन और परदेश की सभ्यता को ग्रहण कर लेता है,उसके आगे की सन्तति भी नही हो पाती है,गुरु अपने को स्त्री राशि मे ले जाने से तथा सूर्य अपने को मृत्यु की राशि मे ले जाने से मौत के बाद के धन को प्राप्त करना जहां से भी हो मुफ़्त का माल ग्रहण करना,अपने खुद के परिवार को छोड कर दूसरो की बातों पर चलना,शादी के बाद पिता का अपने परिवार से ही दूर रहना और केवल स्वार्थ के लिये प्रेम करना आदि बाते जातक को बरबाद कर देती है उसका बाद का जीवन भी या तो अस्पताल मे बीतता है या उसके धन को विदेशी लोग ही खाते है अथवा वह अपने को जवानी के बाद की स्थिति मे असमर्थ पाता है।

बिना कुंडली मिलाये कैसे की जाये शादी !

जन्म देने के कारण माता पिता होते है विवाह और संस्कार का प्रभाव तथा प्रदान करने के लिये परिवार समाज और खुद की योग्यता होती है तथा मरण का प्रभाव हमारे द्वारा हमारे किये जाने वाले कर्म और अच्छाई बुराइयां ही मानी जाती है। कुंडली के अनुसार तो विवाह के लिये लगन से चन्द्र राशि से सूर्य राशि से और नवांश की राशि से सप्तम को देखकर शादी का कारण सोच लिया जाता है चन्द्रमा की राशि से अक्सर गुण मिलान कर लिये जाते है लेकिन जब जन्म तारीख का ही पता नही हो या जन्म समय में कोई मतभेद हो तो बहुत बडी दिक्कत आना स्वाभाविक ही है,कहने को तो लोग चन्द्र राशि से ही अपने अनुसार कुंडली को मिलवा लेतेहै लेकिन जन्म समय मे एक मिनट का अन्तर होने से भी बडे बडे अनर्थ होते देखे गये है,कभी नाडी आगे पीछे हो जाती है कभी भकूट दोष पैदा हो जाता है और कभी गण दोष केवल एक मिनट के अन्तर से होता देखा गया है,बडी बडी आकांक्षायें उस एक मिनट की बलि चढ जाती है,और कुन्डली नही मिली का दोष देकर दो आत्माओं के मिलन को दूर कर दिया जाता है। अक्सर देखा जाता है कि मनुष्य के पैदा होने के बाद उसके नाम को प्रकृति रखती है। किसी भी प्रकार से चलाऊ नाम को रोका जाये लेकिन वह नही बदलता है। तथा किसी भी भ्रम से जो नाम राशि का भी होता है वह नही चल पाता है नाम दूसरा ही जो प्रकृति रखती है वही चलता है।
जिसने नाम का प्रभाव समझ लिया है उसके लिये ज्योतिषीय मान्यता अपने आप सामने आजाती है.अक्सर यह भी देखा जाता है कि राशि का पता नही हो और जन्म तारीख का भी पता नही हो लेकिन जैसे ही अनुभवी ज्योतिषी के पास जायेंगे वह अपनी गणना से केवल नाम के प्रभाव से जीवन के अनुभव और घटनाओं को बताना शुरु कर दे्गा.जन्म का मालिक सूर्य और चन्द्र है तो जिन्दा रखने का मालिक गुरु है,हिम्मत और पराक्रम को देने वाला मंग्ल है अपने को संसार मे दिखाने के लिये बुध की योग्यता है शुक्र आगे की सन्तति को बढाने और घटाने वाला है शनि शरीर के साथ साथ जीवन को जीने के लिये अपनी गति को प्रदान करने वाला है लेकिन राहु और केतु भी अपनी शक्ति से किसी भी भाव के व्यक्ति को वस्तु को सम्बन्ध को प्रभावित करने के लिये योग्यता को देने से नही चूकते है। ज्योतिष मे कहा भी जाता है कि भाग्य खराब हो जाये कोई बात नही है काबलियत खराब नह होनी चाहिये। भाग्य के खराब होने पर काबलियत काम करना शुरु कर देती है और काबलियत का मालिक केवल नाम ही होता है। नाम काबलियत के अनुसार जीवन को चलाना शुरु कर देता है,साथ ही यह भी बात देखी जाती है कि शादी और जन्म के बाद के जीवन के लिये काबलियत ही सबसे बडे रूप मे सामने आती है।
उदाहरण के लिये एक नाम को देखते है कि यह अपना किस प्रकार का प्रभाव जीवन मे देगा। नाम है ललिता यह नाम वैसे तो मेष रशि का है और जन्म से लेकर मृत्यु तक के कारण को केवल तीन अक्षर का नाम ही अपनी गति को प्रदान करने मे कितनी सार्थकता देता है इसे आप खुद समझ कर देख सकते है। नाम की ज्योतिष मे प्राचीन काल के विद्वानो का भी मत लेना अनिवार्य हो जाता है बिना मत को प्राप्त किये कोई भी सलाह उत्तम इसलिये नही मानी जा सकती क्योंकि मानव मस्तिष्क केवल समयानुसार ऊर्जा को प्रवाहित करता है उस ऊर्जा मे कहीं भी राहु केतु अपनी युति को देकर इधर उधर कर सकते है या शनि देव अपनी गति से उसे कर्म के रास्ते पर ले जा सकते है आदि कारण भी समझना जरूरी है।
अक्षर ’ल’ का उच्चारण करने पर जीभ और तालू का प्रयोग करना पडता है। गले से आने वाली आवाज को जीभ से साधा जाता है और उसे तालू की सहायता से कुछ समय के लिये रोका जाता है उसके बाद उन्मुक्त रूप से आवाज को होंठों से बाहर छोड दिया जाता है। जीभ चन्द्रमा की कारक है,तालू ब्रह्मांड का कारक है,और उन्मुक्त हवा जो साध कर बाहर भेजी जाती है वह गुरु की कारक है। जीवन की शुरुआती समय मे इस अक्षर की शुरुआत होने वाले नामो के लोग अक्सर बहुत ही बंदिस मे रखे जाते है उनकी हर कार्य शैली को समेट कर रखा गया होता है और उनके लिये शरीर शिक्षा उनके प्राथमिक जीवन की सभी आधारभूत सुविधाओं को उतना ही दिया जाता है जितना कि उन्हे जरूरत होती है। अक्सर इस नाम के जातक अपने माता पिता परिवार और समाज के अन्दर कंजस्टेड रहते है। उन्हे किसी भी प्रकार की छूट नही दी जाती है। वह अपने को बांध कर चलते है,यानी उन्हे यह आदेश होते है यह मत करना वह मत करना यहां मत जाना वहां मत जाना इसे मत खाना उसे मत खाना वह आदमी अच्छा नही है वह आदमी खराब नही है,यह स्थान बैठने का नही है वह स्थान बैठने के लिये है यानी हर प्रकार से उसे बांध कर रखा जाता है। जैसे ही वह अपने जीवन की प्राथमिक गति को पार करता है जीवन दूसरे अक्षर से जुड जाता है इस नाम मे दूसरा अक्षर ’लि’ आता है,प्रथम अक्षर मे शरीर के बालपन को बांधा गया था शिक्षा को सीमित रखा गया था लेकिन दूसरी गति यानी जवानी की गति मे आते ही उस शरीर मन और काबलियत को शक्ति प्रदान कर दी गयी यानी वह शरीर किसी ऐसे काम के अन्दर लग गया जो लोगों के लिये कार्य करता हो अपने परिवार के लिये वह धन कार्य और मानसिक रूप से सहायता करने के लिये अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने का कारक बन कर रह गया हो। जीवन के दूसरे क्षेत्र मे इस अक्षर के आने से इ की शक्ति ल को मिलने के कारण जो भी शरीर का बल बुद्धि और समाज की बैल्यू थी वह सब सिमट कर योग्यता पर टिक गयी। योग्यता भी इस प्रकार की काम को करो और अपने पिछले क्षेत्र मे आकर फ़िर से सिमट जाओ,अगर वह स्त्री की रूप मे है तो भी और पुरुष के रूप मे है तो भी,उसे काम करने के बाद भी दायरे मे रहना जरूरी है,उसकी सहायता के लिये केवल उसे अपने जीवन के दूसरे भाग मे भी अपने ही लोगो की छत्रछाया मे रहना जरूरी हो जाता है अगर व्यक्ति किसी प्रकार से कोई मानसिक कारण से अपने खुद के काम या अपने खुद के ज्ञान से कुछ हासिल करना भी चाहता है तो उसके खुद के ही लोग जिनकी छत्रछाया मे वह रहता आया है वे लोग उसे किसी न किसी कारण से बदनाम भी कर सकते है उसके लिये गाथाये बनाकर भी गा सकते है। अन्त का अक्षर ’ता’ आने पर वह पीछे के दोनो अक्षरो से मुक्त होकर अपने को जीवन की गति मे ले जाना चाहता है और उस समय भी उसके साथ कई कारण इस प्रकार के भी जुड जाते है जो उसे अपने कारणो में गति नही देने देते है। अक्सर इस नाम के लोग अपने जीवन साथी के मामले मे बहुत ही अधूरे माने जाते है,उनकी गति से उनके लायक वर या वधू का मिलना दिक्कत देने वाला ही माना जाता है अगर शादी विवाह कर भी दिया जाये तो औलाद के मामले मे नकारात्मक कारण ही मिलते है जैसे पुरुष औलाद का नही होना या पुरुष औलाद का होना भी तो वह अपने कार्यों से व्यवहार से नकारात्मक हो जाना आदि बाते मानी जा सकती है। इस नाम वालो के लिये जीवन में तीसरे पन मे अक्सर अपनी पिछली हसरतो को पूरा करने का समय शुरु होता है पहला और दूसरा पन तो दूसरो की खुशामद मे या परिवार की जिम्मेदारी मे ही निकल जाता है अपनी हसरतों के लिये जब समय शुरु होता है तो वह अक्सर बयालीस साल के बाद ही शुरु हो पाता है,कारण उम्र के लिहाज से जीवन के दो भाग पूरे होते है और पहला भाग कम होने से उम्र २५+२५+१२.५=६२.५ साल ही मिलती है.बयालीस साल से शादी शुदा जिन्दगी का प्रभाव शुरु होता है और पैन्तालीस साल मे नर सन्तान का होना माना जाता है अगर पहले से भी मादा सन्तान है तो भी नर सन्तान का कारण बयालीस से ही शुरु होता है।
एक दूसरा नाम भी आपके सामने बता रहा हूँ जैसे ’सीमा’,यह नाम कहने के लिये तो कुम्भ राशि का है और कालपुरुष की कुंडली के अनुसार ग्यारहवे भाव की कारक है। इस राशि वाले लोग या तो मनोरंजन के कामो मे निपुण होते जाते है या शिक्षा के मामले मे निपुण होते है,कमन्यूकेसन के कामो मे अपने मित्रो की सहायता करने के लिये या अपनी बडी बहिन या भाई की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिये भी माने जाते है। अक्सर जीवन उम्र की सात साल के बाद ही इनकी बुद्धि जाग्रत हो जाती है और सोचने विचारने के कारण इनका स्वास्थ्य या तो बहुत ही गिरता जाता है या चिन्ता के कारण मोटापा शुरु हो जाता है.अक्षर की पूर्णता से भी इनकी आयु की गणना को जोडने पर ३०+३०=६० की श्रेणी से जोडा जाता है यह लोग या तो जानकर शादी विवाह मे देरी करते है या शादी विवाह के बाद भी अकेले रहने की कोशिश करते है। नाम राशि से सप्तम की राशि सिंह होने से यह सरकारी या शिक्षा के क्षेत्र मे प्रवेश कर जाते है,अपने को मनोरंजन के क्षेत्र मे ले जाते है और खुद ही अपनी ही जिन्दगी मे मस्त बने रहते है,बाहर वालो को भले ही इनकी शादी विवाह की चिन्ता हो लेकिन यह खुद जानबूझ कर अपनी चिन्ता को नही करते है। जीवन की आधी उम्र मे इनके लिये काफ़ी इकट्ठा करने की चिन्ता होती है और आधी उम्र मे उसे बरबाद होने से रोकने के लिये चिन्ता का होना शुरु हो जाता है।

प्रेतात्मा मिलन का योग

जातक का नाम नरेन्द्र है और उसका जन्म बारह नवम्बर सन उन्नीस सौ छियासी मे दिन के आठ बजकर दस मिनट पर जयपुर राजस्थान में हुआ है.लगन वृश्चिक की है स्वामी मंगल तीसरे भाव मे उच्च का होकर विराजमान है,मंगल को अपनी तीसरी द्रिष्टि से वृश्चिक का शनि देख रहा है ग्यारहवे भाव से केतु की भी द्रिष्टि मंगल पर है.कुंडली मे शनि चन्द्र राहु की आपसी युति होने से प्रेतात्मा योग विद्यमान है.गुरु और चन्द्र राहु मंगल के बीच मे होने से पापकर्तरी योग भी है,राहु केतु के अन्दर सभी ग्रह होने से कालसर्प योग भी है.शुक्र के वक्री होने से उच्च का शुक्र नीचता को देने लगा है,सूर्य के साथ बुध के वक्री होने से बुधादित्य योग मे भी ग्रहण लगा हुआ है। कुंडली मे भाग्य के मालिक चन्द्रमा राहु के साथ है और चन्द्रमा की राशि मीन से भी भाग्य के स्थान मे शनि वृश्चिक राशि का बैठा है.गुरु से भी भाग्य स्थान में सूर्य वक्री शुक्र और वक्री बुध विराजमान है.नवांश की कुंडली से भी वृश्चिक लगन है और केतु मंगल ग्यारहवे भाव मे कन्या राशि के है.सूर्य नीच का होकर सप्तम मे विराजमान है,बुध वक्री होकर मृत्यु स्थान मे विराजमान हो गया है।
जातक की फ़ोटो शनि के वृश्चिक राशि मे होने से और राहु चन्द्र की युति से ग्रस्त तथा केतु की छाया से पूर्ण होने पर इस प्रकार की है,इस फ़ोटो मे जातक का रंग सांवला हो गया है जातक के अन्दर कोई डर केवल इसलिये नही है क्योंकि मंगल उच्च का होकर तीसरे भाव मे है और चन्द्रमा राहु से ग्यारहवा होकर दूसरे भाव को देख रहा है। जातक के चेहरे की लम्बाई को देखने के बाद यही पता लगता है कि केतु की छाया इस जातक पर है और इस छाया से जातक के अन्दर असमान्य रूप से विद्या को प्राप्त करने के लिये निडर होने के लिये और किसी भी विशेष परिस्थिति मे हिम्मत का होना माना जा सकता है। जातक का जन्म भी ब्राह्मण परिवार मे होने के कारण और मर्यादा से पूर्ण जीवन को जीने के कारण किसी भी प्रकार की तामसी वस्तु का सेवन करना या किसी प्रकार की गलत संगत करने का कारण भी नही है। कलयुग मे एक बात को बहुत ही गौढ रूप से माना जाता है कि जब व्यक्ति भलाई के रास्ते पर अपने परिवार की मर्यादा को निभाने की कोशिश मे चलता है तो बुराइयों की छाया भले व्यक्ति को केवल इसलिये ग्रहण देती है क्योंकि बुराइयां यह नही चाहती है कि उनके सामने किसी प्रकार की भलाई का बखान किया जाये। इतनी उम्र मे भी जातक का कोई लगाव किसी प्रकार से गलत रूप से किसी भी लडकी की तरफ़ नही है अपने काम से काम रखता है और अपने परिवार की भलाई के लिये ही हमेशा प्रयास रत रहता है। जब भी किसी कठिनाई का सामना होता है तो अपने परिवार मे अपने ताऊ के लडके के साथ कठिनाई का शेयर करता है उसका भी कारण है कि माता पिता को कोई कष्ट नही हो और माता पिता को उसके प्रति कोई तकलीफ़ भी नही हो।
अपने ताऊ के लडके श्री रमाकान्त से भी खूब पटती हैउसका भी एक कारण यह है कि दोनो ही एक प्रकार के शिक्षा के क्षेत्र मे भी है रुचिया भी एक सी है,दोनो ने ही फ़ार्मा लाइन मे अपने अपने दिमाग का सही प्रयोग किया है। शिक्षा के अन्दर राहु चन्द्र के होने से तथा शनि का अस्पताली राशि मे होने के कारण जातक को कैमिकल लाइन मे जमीनी खनिजो के साथ मिलने वाले अस्पताली उपायो के प्रति अच्छी जानकारी होने से भी इस राहु चन्द्र शनि की युति को सही माना जाता है।पंचम भाव को प्यार प्रेम या रोमांस का भाव भी कहा जाता है.चन्द्रमा के साथ राहु के होने से तथा राशि मीन होने से यह प्रभाव आसमानी शक्तियों की तरफ़ अग्रेसित हो जाता है। जातक से आसमानी शक्तियां प्रेम करने लगती है। लेकिन प्रेम को प्रकट करने का समय भी होता है,लोग स्वप्नो में भी इसी प्रकार के कारण देखते है और जब उन्हे हकीकत का पता होता है तो कई प्रकार के विचार दिमाग मे लाकर अपने को यह सोचकर समझाने की कोशिश करते है कि वह केवल सपना ही था,कोई हकीकत नही थी।
लेकिन जब शनि के साथ राहु का साथ हो जाता है और और चन्द्रमा उसके अन्दर अपनी गति को प्रदान करता है तो वही आसमानी शक्ति साक्षात रूप मे सामने आजाती है,इस बात को यह मानकर भी समझा जा सकता है कि शनि केवल भौतिक कारणो को ही द्रश्य मे देता है। राहु अक्समात कारण पैदा करने के लिये भी माना जाता है और चन्द्रमा अपनी उपस्थिति को पहिनावे या मानसिक रूप से गहरे कारणो को सोचने के लिये भी मजबूर करता है। कल शाम को जब इस लडके से मुलाकत इसके ताऊ के लडके रमाकान्त के साथ की तो इसकी कुंडली को देखते ही मैने इससे पूंछा कोई आत्मा पीछे पडी है कभी दिखी तो नही। रमाकान्त ने फ़ौरन जबाब दिया अंकल जी पिछली ग्यारह तारीख को मेरे इस भाई के साथ अचानक एक हादसा हुआ,यह अपने काम से वापस घर जा रहा था घर के पहले ही एक इमली का पेड पडता है और एक चौराहा भी है,इमली के पेड से चौराहा लगभग सौ मीटर की दूरी पर है,सडक अक्सर शाम के समय ठंड के दिनो मे सुनसान ही रहती है,इसे अचानक उस इमली के पेड से एक औरत उतरकर इसकी तरफ़ भागती हुयी आयी और उसे देखकर मेरे भाई ने अपनी मोटर साइकिल को तेज कर लिया लेकिन चौराहे के पहले ही उस औरत ने आकर मेरे भाई को दोनो हाथ फ़ैलाकर रोक लिया। बाकी का वृतांत आप इस वीडियों मे सुन सकते है।
मैने कई बार इसी प्रकार के वृतांत देखे भी है और इस ज्योतिषीय जिन्दगी मे सुने भी है लोग अपनी अपनी व्यथा को जब बताते है तो सत्यता को मानना भी पडता है। हमारे जानकार एक सज्जन है जो इसी जयपुर में रहते है,एक बार वे अपने पुत्र के बारे मे पूंछने के लिये आये थे कुंडली को देखकर मैने उनसे भी कहा था कि तुम्हे अमुक तारीख को यात्रा मे भूत दर्शन होंगे। वे इस बात को लगभग भूल गये थे,पंजाब से दिल्ली के लिये किसी ट्रेन मे वे अपने छोटे पुत्र के साथ आ रहे थे,भोजन को करने के बाद बाप बेटे ने उसी ट्रेन के कम्पार्टमेंट मे घूम कर भोजन को पचाने के लिये सोची और दोनो एक तरफ़ से दूसरी तरफ़ घूमने लगे,रात के करीब बारह बजे होंगे,उनका कम्पार्टमेन्ट पीछे से बिलकुल पैक था,सभी खिडकियों के सीसे बन्द थे और खिडकियां लाक थीं,अचानक उनके सामने एक व्यक्ति उपस्थित हुआ और भागता हुआ बोला कि जल्दी से खिडकी को खोलो,दोनो बाप बेटे हडबडा गये और उसकी सूरत क देखकर डर भी गये.उसकी सूरत ऐसी लग रही थी जैसे वह किसी खड्डे से निकल कर आया हो और उसके माथे के बीचो बीच से खून भी टपक रहा था,अचानक वह बिना खिडकी को खोले जाने कहां गायब हो गया,दोनो बाप बेटे उस घटना को देखकर और मेरी बात को याद करने के बाद सोचने लगे। इसी प्रकार की कई घटनाये मेरे भी जीवन मे आयीं है और उन्हे काल का रूप समझ कर और घटना का रूप राहु की गति से समझ कर केवल संतोष करने के अलावा और कुछ नही समझा। लेकिन इस जातक की कुंडली को समझ कर दिमाग मे प्रकार की उथल पुथल इसलिये भी होनी जरूरी है कि वह आत्मा इस जातक से बोल कर गयी है कि वह जून के महिने मे उसके शरीर का खून समाप्त कर देगी और उसे अपने साथ ले जायेगी।
हमारे भारत मे प्रेतात्मा के दोष को हटाने के लिये कई प्रकार के जाप यज्ञ आदि किये जाते है,इन्हे दूर करने के लिये राजस्थान मे ही मेहंदीपुर के बालाजी का नाम भी खूब लोगों को पता है। यहाँ पर प्रेतराज के सामने कितनी बडी से बडी बाधा होती है उसे दूर करने के लिये जातको को लाया जाता है और जब वे अपनी जुबान से बोलती है तो आज का विज्ञान चुप जाता है। लोगों की श्रद्धा और विश्वास को देखने के लिये कोई भी मंगलवार और शनिवार को वहां जाकर देख सकता है।

क्या हीरा और गोमेद एक साथ पहिना जा सकता है ?


हीरा शुक्र का रत्न कहा जाता है और गोमेद राहु का रत्न कहा जाता है,राहु और शुक्र की युति अभी मैने आपके लिये लिखीहै और आप लोगों ने उसे फ़ेसबुक के माध्यम से सराहा भी है। पहले हीरा को समझना बहुत जरूरी है.
शुक्र का रत्न हीरा है और शुक्र के अलग अलग भाव और अलग अलग राशि से हीरे का रूप बदल जाता है,हीरे की कटिंग और उसकी धातु का परिवर्तन हो जाता है। मेष राशि के लिये हीरा जीवन साथी का और धन के क्षेत्र का मालिक है इसलिये हीरा १४४० धारी का सफ़ेद रंग का स्वर्ण धातु में अकेला पहिना जा सकता है।


लेकिन मेष राशि का शुक्र अगर लगन पंचम नवम मे है तो अन्यथा अन्य भावो में इस राशि के लिये हीरा अपनी प्रकृति को बेलेन्स नही कर पायेगा,और बजाय फ़ायदा के नुकसान देना शुरु हो जायेगा। जैसे इस राशि में शुक्र का स्थान अष्टम मे वृश्चिक राशि मे है तो हीरा किसी भी प्रकार से पहिनने के बाद खो जायेगा या चुरा लिया जायेगा या किसी प्रकार की दुर्घटना को दे कर वह चला जायेगा। इस बात के लिये कोहिनूर हीरे के इतिहास को देखकर समझा जा सकता है। महाराजा रंजीत सिंह तुला राशि के थे और उनका शुक्र वृश्चिक राशि का होकर दोसरे भाव में था। इस भाव मे शुक्र के होने के कारण उन्ही के हाथो से कोहिनूर का उनके हाथ से ही नही बल्कि देश से भी जाना हो गया,वह किसी प्रकार से मिल नही सकता है। इस शुक्र के लिये जो हीरा काम करता है वह कत्थई रंग का होने पर और लम्बे ओवल सेव का ही काम करेगा उसकी कटिंग भी ६४ धारी की होनी जरूरी है। इसी प्रकार से अगर राहु शुक्र के साथ है और शुक्र राहु की युति अगर पंचम स्थान में है तो मेष राशि का व्यक्ति राहु शुक्र के दोष को दूर करने के लिये तथा जातक की आदत जो हाथ मे दिल लेकर घूमने वाली होती है उसमे फ़ायदा देने के लिये पहिना जा सकता है,गोमेद का रंग भी सफ़ेद आभा वाला ही होना चाहिये और गोमेद को भी हीरे की कटिंग में ही कटा होना चाहिये। इसी प्रकार से अन्य राशियों के लिये अलग अलग तरह से हीरे को पहिना जा सकता है। अधिक जानकारी के लिये ईमेल कर सकते है।

राहु मे शुक्र का अन्तर

दही मे गुड मिला जाय और उसे दो दिन के लिये रख दिय जाये,तीसरे दिन जो दही का रूप बनेगा वह अगर पी लिया जाये तो जो कुछ भी पहले का खाया पिया सुबह को साफ़ हो जायेगा.पुराने जमाने मे भदावर क्षेत्र मे इस मिश्रण को सन्नाटे के रूप में बारात की लौटती की पंगत में दिया जाता था। इस मिश्रण को देने का एक ही उद्देश्य होता था कि जो भी बारात मे उल्टा सीधा चिकनाई और मिठाई आदि के साथ खाया पिया है वह पेट मे इकट्ठा रहने पर शरीर को दिक्कत दे सकता है जैसा हो सकता है या अतिशार जैसी बीमारी हो सकती है इस मिश्रण को पीने के बाद यह पेट की सफ़ाई कर देता है.उसी प्रकार से जब व्यक्ति अपनी हैसियत से अधिक कमा लेता है और उसे खर्च करने के लिये कोई रास्ता नही मिलता है तो वह अपनी हैसियत को बरबाद करने के लिये राहु शुक्र के घेरे मे आजाता है। यानी जो भी कार्य उसके पूर्वजों ने धन जोडकर किये है और वह आगे की पीढी के लिये मौज मस्ती को करने के लिये काफ़ी होते है उस जोडे गये धन और इज्जत आदि को जब तक बरबाद नही किया जायेगा उल्टे दिन नही माने जायेंगे। इसे एक प्रकृति का कारण भी माना जाता है कि वह हमेशा हर व्यक्ति हर वस्तु और हर कारक पर अपना बेलेन्स बनाने की क्रिया को करती है। एक कहावत भी कही जाती है कि जब दादा ने इज्जत धन मान मर्यादा शौहरत आदि कमाई होती है तो पिता को अपने जीवन में परेशानी नही होती है और वह अपने जीवन को मस्ती के जीवन मे जीता है उसके बाद जो सन्तान पैदा होती है वह सन्तान पिता के द्वारा कुछ नही करने के कारण तथा मौज मस्ती के जीवन की शैली को अपनाने के कारण दादा की हैसियत को बरबाद करने का कारण बन जाती है। यानी तीसरी साख में कंडुआ पैदा होना माना जा सकता है। राहु की दशा वास्तव मे एक नशा है और वह जिस जिस भाव मे गोचर करता है और जिस राशि से अपनी युति बनाता है जिस ग्रह को अपने चपेटे मे लेता है उसी के अनुसार जातक को नशा देता चला जाता है। राहु का नशा अगर धन भाव का है तो व्यक्ति किसी भी कारण को एक तरफ़ करने के बाद केवल धन को ही कमाने के लिये अपनी हर कोशिश को जारी रखेगा उसे किसी भी प्रकार के कानून धर्म जाति और जीव के प्रति दया भाव नही रहेगा,उससे अगर कहा भी जायेगा कि यह बात गलत है तो वह उस बात को अपने तर्क से दूर करने की पूरी कोशिश को करेगा भी और सच को झूठ बताकर किसी प्रकार का आक्षेप देने के बाद अपने ही मन की करता जायेगा। जिन लोगों की जन्म कुंडली मे  राहु कन्या का है तो हर भाव मे जाकर वह कर्जा दुश्मनी बीमारी और लोन आदि के कारण ही पैदा करेगा,जिसकी कुंडली में राहु वृश्चिक राशि का है तो वह मरने मारने वाले कामो से लेकर किसी भी प्रकार की रिस्क किसी के भी प्रति लेने से नही चूकेगा उसे वही खेल भी अच्छे लगेंगे जो खेल या तो जान से मार सकते है या किसी प्रकार के बडे जोखिम मे डाल सकते है। वह जो भी कार्य करेगा वह गुप्त रूप से करने का स्वभाव उसके अन्दर जरूर ही होगा। उसे खुल कर सामने आने से डर भी रहेगा और भीतरी अपघात करना केवल शमशानी प्रभाव ही पैदा करना और किस प्रकार से गुप्त युक्ति फ़रेब आदि से धन को शरीर की पालना को अपनी शौहरत को बढाने का अवसर मिलेगा वह लगातार अपने को इन्ही क्षेत्रो मे ले कर चलने वाला होगा। अगर राहु मीन राशि का है तो वह हर बात से डरना सीखेगा और डर की बजह से बिना किये गये कार्यों में  भी उसे खर्चा और अपमान सहना पडेगा साथ ही कोई करेगा और भरना इस राशि वाले राहु के साथ होगा,बेकार का खर्चा,अक्समात खर्चा जिस भाव मे है उसी भाव के प्रति माना जा सकता है। जैसे मीन का राहु चलते चलते वृष मे आ गया है तो कुटुम्ब के सदस्यों के साथ अचानक हादसे होने लगेंगे,किसी प्रकार की चाल फ़रेब के कारण धन का अक्समात ही खर्चा होने लगेगा और इस कारण से जातक के अन्दर कोई न कोई नशा या दवाई आदि लेने की आदत भी पड जायेगी।

राहु के साथ शुक्र का अन्तर आने पर अगर व्यक्ति जवान है तो प्रेम करने और प्रेम विवाह करने का एक भूत सवार हो जायेगा उसे अपने परिवार जाति मर्यादा आदि का ध्यान नही रहेगा। वह अपने अनुसार युक्तियां बनायेगा और जब तक उसका भूत प्रेम का चढा रहेगा वह किसी की भी बात को नही मानेगा,वह दिन रात सोते जागते एक ही ख्वाब देखेगा कि कैसे प्रेम विवाह किया जाये,कैसे पसंद की गयी लडकी या लडका उसकी गिरफ़्त मे आये,और वह ख्वाब भरी जिन्दगी को एक ऊंची उडान के साथ जीने के लिये अपने प्लान बनाता रहेगा। राहु शुक्र की युति मे ही लोग महंगी और चमक दमक वाली गाडियों की तरफ़ भी अपना रुझान बनाने लगते है। उन्हे सजावट मे अधिक समय लगने लगता है,खुशबू और महंगे परफ़्यूम लगाने का शौक पैदा हो जाता है। मेरे ख्याल से जितने भी सजावटी चीजे है वे सभी राहु और शुक्र की युति मे ही ईजाद की गयी होंगी।


राहु शुक्र के अन्तर में अगर कुंडली मेष लगन की है तो जातक के अन्दर जीवन साथी से सम्बन्धित बडी बडी सोच पैदा हो जायेंगी वह हमेशा शादी विवाह वाले कारणो को सोचता रहेगा उसे केवल अपने और अपने जीवन साथी के लिये ही उत्तेजना वाली बाते याद रहेंगी। वह अपने जीवन साथी को बहुत ही सुन्दर रूप मे देखने का आकांक्षी होगा। किसी भी रूप मे वह अपने जीवन साथी को चमक दमक मे ही देखना चाहेगा। अगर राहु का गोचर इस अन्तर में मेष राशि पर है तो जातक अपने ही ख्वाब मे खोया रहेगा तरह के शायरी वाले कारण पैदा करेगा आपनी ख्वाबी बाते लिखेगा और फ़ोटोग्राफ़ी कैमरा और इन्टर्नेट पर अपने विचार उसी भाषा मे प्रसारित करने की युक्ति को पैदा करेगा,उसे फ़िल्म बनाने और फ़िल्म को दर्शाने तथा फ़िल्मो मे केवल प्यार मोहब्बत की बातों का ही खुलाशा करने का भूत सवार रहेगा। राहु हमेशा उल्टी गति से चलता है इसलिये वह जिस भाव मे होता है उससे आगे के भाव को देता है और पीछे के भाव से लेता है। यानी वह अगर  किसी की मेष लगन मे विराजमान है तो वह बाहरी शक्तियों से प्राप्त करेगा और कुटुम्ब और धन आदि के क्षेत्रो को देगा.इसी प्रकार से अगर वृष राशि में राहु गोचर कर रहा है तो वह व्यक्ति को अपने परिवार के प्रति अधिक सोच पैदा करेगा वह अपने परिवार के लिये ही समर्पित रहेगा,उसे यह ख्याल नही रहेगा कि वह अन्य को भी सजा दे रहा है या अन्य लोग भी उसके कामो से दुखी है वह अपने परिवार की जरूरतो को पूरा करने के लिये शरीर की किसी भी हानि से नही डरेगा,वह अपने नाम को भी बरबाद कर सकता है,उसे अपनी सेहत का भी ख्याल नही रहेगा,वह जो भी कुछ करेगा वह अपने छोटे भाई बहिनो के लिये हमेशा करने के लिये तत्पर रहेगा उसका अधिक से अधिक खर्चा केवल कमन्यूकेशन के साधनो और पहिनावे पर ही जायेगा उसे इस बात की चिन्ता नही रहेगी कि वह भोजन भी करेगा और उसे शिक्षा तथा अन्य कारणो को भी देखना है। इस राशि का राहु हमेशा ही जीवन साथी के लिये अपमान जान जोखिम और मृत्यु जैसे कारण पैदा करता है। धन का एक भूत उस व्यक्ति पर सवार रहेगा वह खाने पीने वाली चीजो का शौकीन होगा लेकिन वही खाने पीने की चीजो को प्रयोग मे लायेगा जो किसी न किसी प्रकार का नशा देती हो या शरीर के लिये दिक्कत का कारण बन रही हो। मिथुन लगन में राहु के गोचर करने पर जातक का धन अधिकतर घर बनाने माता या पानी वाले साधनो या लम्बी लंबी यात्राओं मे ही खर्च होगा वह अपने बचत किये धन को भी इन्ही कामो मे लगाने से नही चूकेगा। कर्क राशि का राहु शिक्षा के क्षेत्र और मनोरंजन में ही खर्च करने के लिये माना जाता है वह अपने लिये जल्दी से धन कमाने के कारणो को खोजना शुरु करेगा और जो भी उसके पास है वह अपने छोटे भाई बहिनो और कमन्यूकेशन के साधनो से ही प्राप्त करने के बाद अपने परिवार सन्तान और इसी प्रकार के कारणो में खर्च करेगा उसे प्यार मोहब्बत का भी शुरुर चढेगा वह अपने धन को अपने कमन्यूकेशन के साधनो को इन्ही पर खर्च करता चला जायेगा उसे होश नही रहेगा कि वह जो खर्चा कर रहा है वह किसी के लिये कितना कष्टकारी भी हो सकता है।
उपाय
  • शुक्रवार के दिन कम्पयूटर या टीवी अपने प्रयोग के लिये खरीद सकते है.
  • वाहन को खरीद सकते है.
  • घर मे नौकरानी को रख सकते है.
  •   गोदान कर सकते है.
  • रोजाना के भोजन में दही का प्रयोग कर सकते है.
  • मकान के बाहरी हिस्से में रंग रोगन पेंट आदि का काम करवा सकते है.
  • राहु का तर्पण करवा कर शांति प्राप्त कर सकते है,राहु तर्पण के लिये ईमेल करे.