छिद्रान्वेषण

 "काटि छांटि पाहन को जीवन की छाहन को,
चुनि के रंग रोगन को घर को सजायो है।
कीडी के स्वभाव को जानत है सकल जग,
छेद को खोजन में अमूल को गंवायो है॥"


अर्थात- बहुत ही मेहनत करने के बाद पत्थर आदि को काट छांट कर बहुत ही सुन्दर तरीके से घर को बनाया जाता है,उसे सजा कर संवार कर रखा जाता है,लेकिन चीटी का स्वभाव सभी को पता है वह अपनी आदत के अनुसार उस घर के अन्दर हमेशा भाग भाग कर छेद को खोजा करती है। उसे लगने वाली मेहनत और भावना का पता नही होता है वह केवल छेद की भावना को लेकर ही अपने पूरे जीवन को व्यतीत कर देती है। यह भावना अक्सर उन्ही लोगों के अन्दर भी पायी जाती है जिन्हे ज्ञान की परिभाषा तक का पता नही होता है केवल वे अपने अधूरे ज्ञान की भाषा मे अपनी पूर्णता को बखान करने के लिये और अपनी प्रसंसा को पाने के लिये अपनी जुगत को लगाने की कोशिश करते रहते है। इसे ही विद्वानो ने भ्रम की परिभाषा मे रूपित किया है। जब व्यक्ति के अन्दर राहु अपने भ्रम को भर देता है तो वह अपने ही अन्दर के नशे के अनुसार अपनी ही क्रिया मे व्यस्त रहता है। उसे किसी से कोई मतलब नही होता है,कोई किस भावना से क्या बता रहा है उसे तो केवल वही नशे वाली कारक वस्तु का ही ध्यान रहता है,अलावा कारक उसकी बुद्धि से परे होते है। राहु के अनुसार उसकी उल्टी गति होती है वह अपने उल्टे काम के लिये ही सफ़ाई कर्मचारी की श्रेणी मे गिना गया है। लोग अपने अपने स्वभाव से अपने मूल्यवान कारको को ग्रहण करने के बाद अलावा को बेकार समझ कर फ़ेंक देते है वही राहु उस बेकार के कारक को अपनी समझ की झाडू से साफ़ करने का काम भी करता है। लालकिताब ने लगन को गद्दी की सीमा मे परिभाषित किया है सप्तम को मंत्रणा की श्रेणी मे माना है अष्टम को लगन की आंख के रूप मे बताया है और लगन के चलने के लिये ग्यारहवे भाव को भी गिना है। जब लगन मे केतु हो तो वह अपनी मंत्रणा को सप्तम के राहु से ही युति को बनायेगा इस प्रकार से केतु के सामने राहु होने से वह राहु की भ्रम वाली स्थिति मे अपने को ले कर अपनी अष्टम की गति को नही समझ पायेगा यानी उसे आगे जाने के लिये कुछ भी दिखाई नही देगा राहु का प्रभाव उसे अष्टम की आंखे नही देगा तो वह ग्यारहवे घर के पैर चलने के लिये भी प्रयोग मे नही ला पायेगा। जब व्यक्ति के सामने आगे जाने का रास्ता नही होगा यानी वह अपनी धुन के आगे कुछ भी समझ नही पायेगा तो केवल दूसरो के प्रति भावना से नुक्ताचीनी ही कर सकता है,नुक्ताचीनी भी इस बात की जिसका कोई भाव ही नही हो,और बिना भाव की बातो को करने से बेकार की बुराइया देने और अपने को किसी भी प्रकार से साम दाम दण्ड भेद की नीति को प्रयोग करने के बाद स्थान बनाने की कोशिश करेगा उसके स्वभाव को ही छिद्रान्वेषण की परिभाषा मे लाया गया है।

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