कब आता है कुंडली पढने का योग

आपको मेरे इस सौवें ब्लाग मे स्वागत है.आशा है आप को इससे पहले के ब्ला अच्छे लगे होंगे। आज आपको कुंडली पढने के समय के बारे मे बताना चाहूँगा.जिस प्रकार से मन के अन्दर अलग अलग भावनायें आती है वैसे ही एक भावना अपने बारे मे जानने की होती है,कि हम क्या थे अब क्या है और आगे क्या होंगे,समय की गणना करने के लिये अगर देखा जाये तो एक मिनट पहले अभी और आगे की गणना भी लाभदायी होती है,एक पीछे अभी और आगे की गणना भी काम आती है और पिछले जन्म इस जन्म और आगे के जन्म की गणना भी की जाती है।ज्योतिष की आंख सूर्य को माना जाता है और जब जन्म के सूर्य पर केतु का गोचर युति से द्रिष्टि से भाव से होता है तो अपने बारे मे जानने की बात की जाती है.इस प्रकार मे जब केतु जन्म के सूर्य से युति लेता है तो सीखने के उद्देश्य से भी बात की जाती है और जब सूर्य खुद केतु के साथ युति लेता है तो खुद की परेशानी के लिये ज्योतिष का प्रयोग किया जाता है। जन्म के केतु के साथ सूर्य जब आकर खुद युति लेता है तो जातक के पास चलकर ज्योतिष को जानने वाला पहुंचता है इस बात का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है।

प्रस्तुत कुंडली मिथुन लगन की है मैने पहले ही "करन" नामक टापिक मे इस राशि का विवरण दिया है। इसे पढने के बाद आपको मिथुन राशि वाले जातक की पूरी कहानी सामने आजायेगी। इस कुंडली मे गोचर से केतु का स्थान बारहवे स्थान मे है और जन्म के सूर्य से द्रिष्टि सम्बन्ध से युति लेकर जातक अपने बारे मे जानना चाहता है। कि उसकी कुंडली का फ़लादेश कैसे दिया जायेगा। इस कुंडली मे कालसर्प दोष भी है। इस दोष के प्रभाव से भी जातक के प्रति केतु से केतु का भी मिलन है और गोचर से सूर्य बुध केतु का आमने सामने का त्रिकोण है।

लगनेश बुध का चौथे भाव मे होना और लगनेश का शनि और सूर्य के बीच मे होना पापकर्तरी योग की सीमा को भी बता रहा है। साथ ही बुध का प्रभाव सूर्य के साथ बोलने की कला और भाग्येश का तीसरे भाव मे बैठना अपने अनुसार ज्योतिष आदि के विषय के बारे मे लिखना पढना और बताना भी माना जा सकता है। राहु का प्रभाव जब सूर्य पर कन्या राशि मे आता है तो लोगो की मुशीबतों के बारे मे जानकारी करना और उन मुशीबतो को दूर करने का कारण प्रकट करना भी माना जा सकता है। पिता का कारक सूर्य बुध के साथ राहु की शरण मे है,राहु का प्रभाव कन्या राशि मे उच्च का माना जाता है,इसलिये जातक के दादा का जीवन यापन उनकी स्थान बदल कर ननिहाल या काम करने के स्थान पर आकर रहने वाली मानी जाती है यही बात पिता के लिये भी मानी जाती है। माता का कारक चन्द्रमा लगन मे ही है और गुरु मंगल के साथ है,इसलिये माता का प्रभाव अधिक भी माना जा सकता है माता का भाग्य जो गुरु के साथ जुडा है के लिये भी उत्तम माना जा सकता है यानी जातक की माता के रहते जातक को कोई दुख नही है। गुरु जब मंगल के साथ जुडता है तो जातक जो गुरु के रूप मे जीव का कारक है अपने अन्दर विद्या के क्षेत्र मे एक अजीब सी स्थिति को बना लेता है वह सभी कारणो को सीखना चाहता है उन्हे प्रकट करना चाहता है साथ ही किसी एक क्षेत्र मे जाकर अपनी योग्यता को बहुत ही अधिक रूप से प्रकट करना चाहता है। लेकिन गुरु मंगल के साथ रहकर एक गलत प्रभाव भी देता है कि जितनी जानकारी होती है उससे अधिक बुद्धि वाले काम को पकडने के बाद अटकना भी माना जाता है।

कहा भी जाता है-"गुरु शरण मे आवे मंगल,विश्वामित्र बन जाता है,बल से वह ज्ञान युक्त हो राजगुरु कहलाता है",लेकिन चन्द्रमा के साथ होने से यही राजगुरु भावना से पूर्ण भी बन जाता है और एक प्रकार से बनिया स्वभाव का भी हो जाता है,जो जनता को बातों को बेच कर अपने जीवन यापन का साधन खोजने लगे। जब यह मंगल अपनी युति को राहु से प्रकट करता है तो यह हाथी को सम्भालने जैसा काम भी हो जाता है और जातक किसी बडे व्यापार को जो खाने पीने के सामान से युक्त होता है को बडे रूप से सम्भालने का काम भी करता है। "हाथी हौदा राहु बनता सूर्य साथ दे चौथे में",यानी राहु और सूर्य मिलकर अगर चौथे भाव मे हो और गुरु मंगल गद्दी पर विराजमान हो तो हाथी का हौदा यानी बैठने वाली सीट के रूप मे माना जाता है। जो माता के भाई बन्धुओं की कृपा से आगे बढने का रास्ता बताने के लिये भी माना जा सकता है।

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