बिना कुंडली मिलाये कैसे की जाये शादी !

जन्म देने के कारण माता पिता होते है विवाह और संस्कार का प्रभाव तथा प्रदान करने के लिये परिवार समाज और खुद की योग्यता होती है तथा मरण का प्रभाव हमारे द्वारा हमारे किये जाने वाले कर्म और अच्छाई बुराइयां ही मानी जाती है। कुंडली के अनुसार तो विवाह के लिये लगन से चन्द्र राशि से सूर्य राशि से और नवांश की राशि से सप्तम को देखकर शादी का कारण सोच लिया जाता है चन्द्रमा की राशि से अक्सर गुण मिलान कर लिये जाते है लेकिन जब जन्म तारीख का ही पता नही हो या जन्म समय में कोई मतभेद हो तो बहुत बडी दिक्कत आना स्वाभाविक ही है,कहने को तो लोग चन्द्र राशि से ही अपने अनुसार कुंडली को मिलवा लेतेहै लेकिन जन्म समय मे एक मिनट का अन्तर होने से भी बडे बडे अनर्थ होते देखे गये है,कभी नाडी आगे पीछे हो जाती है कभी भकूट दोष पैदा हो जाता है और कभी गण दोष केवल एक मिनट के अन्तर से होता देखा गया है,बडी बडी आकांक्षायें उस एक मिनट की बलि चढ जाती है,और कुन्डली नही मिली का दोष देकर दो आत्माओं के मिलन को दूर कर दिया जाता है। अक्सर देखा जाता है कि मनुष्य के पैदा होने के बाद उसके नाम को प्रकृति रखती है। किसी भी प्रकार से चलाऊ नाम को रोका जाये लेकिन वह नही बदलता है। तथा किसी भी भ्रम से जो नाम राशि का भी होता है वह नही चल पाता है नाम दूसरा ही जो प्रकृति रखती है वही चलता है।
जिसने नाम का प्रभाव समझ लिया है उसके लिये ज्योतिषीय मान्यता अपने आप सामने आजाती है.अक्सर यह भी देखा जाता है कि राशि का पता नही हो और जन्म तारीख का भी पता नही हो लेकिन जैसे ही अनुभवी ज्योतिषी के पास जायेंगे वह अपनी गणना से केवल नाम के प्रभाव से जीवन के अनुभव और घटनाओं को बताना शुरु कर दे्गा.जन्म का मालिक सूर्य और चन्द्र है तो जिन्दा रखने का मालिक गुरु है,हिम्मत और पराक्रम को देने वाला मंग्ल है अपने को संसार मे दिखाने के लिये बुध की योग्यता है शुक्र आगे की सन्तति को बढाने और घटाने वाला है शनि शरीर के साथ साथ जीवन को जीने के लिये अपनी गति को प्रदान करने वाला है लेकिन राहु और केतु भी अपनी शक्ति से किसी भी भाव के व्यक्ति को वस्तु को सम्बन्ध को प्रभावित करने के लिये योग्यता को देने से नही चूकते है। ज्योतिष मे कहा भी जाता है कि भाग्य खराब हो जाये कोई बात नही है काबलियत खराब नह होनी चाहिये। भाग्य के खराब होने पर काबलियत काम करना शुरु कर देती है और काबलियत का मालिक केवल नाम ही होता है। नाम काबलियत के अनुसार जीवन को चलाना शुरु कर देता है,साथ ही यह भी बात देखी जाती है कि शादी और जन्म के बाद के जीवन के लिये काबलियत ही सबसे बडे रूप मे सामने आती है।
उदाहरण के लिये एक नाम को देखते है कि यह अपना किस प्रकार का प्रभाव जीवन मे देगा। नाम है ललिता यह नाम वैसे तो मेष रशि का है और जन्म से लेकर मृत्यु तक के कारण को केवल तीन अक्षर का नाम ही अपनी गति को प्रदान करने मे कितनी सार्थकता देता है इसे आप खुद समझ कर देख सकते है। नाम की ज्योतिष मे प्राचीन काल के विद्वानो का भी मत लेना अनिवार्य हो जाता है बिना मत को प्राप्त किये कोई भी सलाह उत्तम इसलिये नही मानी जा सकती क्योंकि मानव मस्तिष्क केवल समयानुसार ऊर्जा को प्रवाहित करता है उस ऊर्जा मे कहीं भी राहु केतु अपनी युति को देकर इधर उधर कर सकते है या शनि देव अपनी गति से उसे कर्म के रास्ते पर ले जा सकते है आदि कारण भी समझना जरूरी है।
अक्षर ’ल’ का उच्चारण करने पर जीभ और तालू का प्रयोग करना पडता है। गले से आने वाली आवाज को जीभ से साधा जाता है और उसे तालू की सहायता से कुछ समय के लिये रोका जाता है उसके बाद उन्मुक्त रूप से आवाज को होंठों से बाहर छोड दिया जाता है। जीभ चन्द्रमा की कारक है,तालू ब्रह्मांड का कारक है,और उन्मुक्त हवा जो साध कर बाहर भेजी जाती है वह गुरु की कारक है। जीवन की शुरुआती समय मे इस अक्षर की शुरुआत होने वाले नामो के लोग अक्सर बहुत ही बंदिस मे रखे जाते है उनकी हर कार्य शैली को समेट कर रखा गया होता है और उनके लिये शरीर शिक्षा उनके प्राथमिक जीवन की सभी आधारभूत सुविधाओं को उतना ही दिया जाता है जितना कि उन्हे जरूरत होती है। अक्सर इस नाम के जातक अपने माता पिता परिवार और समाज के अन्दर कंजस्टेड रहते है। उन्हे किसी भी प्रकार की छूट नही दी जाती है। वह अपने को बांध कर चलते है,यानी उन्हे यह आदेश होते है यह मत करना वह मत करना यहां मत जाना वहां मत जाना इसे मत खाना उसे मत खाना वह आदमी अच्छा नही है वह आदमी खराब नही है,यह स्थान बैठने का नही है वह स्थान बैठने के लिये है यानी हर प्रकार से उसे बांध कर रखा जाता है। जैसे ही वह अपने जीवन की प्राथमिक गति को पार करता है जीवन दूसरे अक्षर से जुड जाता है इस नाम मे दूसरा अक्षर ’लि’ आता है,प्रथम अक्षर मे शरीर के बालपन को बांधा गया था शिक्षा को सीमित रखा गया था लेकिन दूसरी गति यानी जवानी की गति मे आते ही उस शरीर मन और काबलियत को शक्ति प्रदान कर दी गयी यानी वह शरीर किसी ऐसे काम के अन्दर लग गया जो लोगों के लिये कार्य करता हो अपने परिवार के लिये वह धन कार्य और मानसिक रूप से सहायता करने के लिये अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने का कारक बन कर रह गया हो। जीवन के दूसरे क्षेत्र मे इस अक्षर के आने से इ की शक्ति ल को मिलने के कारण जो भी शरीर का बल बुद्धि और समाज की बैल्यू थी वह सब सिमट कर योग्यता पर टिक गयी। योग्यता भी इस प्रकार की काम को करो और अपने पिछले क्षेत्र मे आकर फ़िर से सिमट जाओ,अगर वह स्त्री की रूप मे है तो भी और पुरुष के रूप मे है तो भी,उसे काम करने के बाद भी दायरे मे रहना जरूरी है,उसकी सहायता के लिये केवल उसे अपने जीवन के दूसरे भाग मे भी अपने ही लोगो की छत्रछाया मे रहना जरूरी हो जाता है अगर व्यक्ति किसी प्रकार से कोई मानसिक कारण से अपने खुद के काम या अपने खुद के ज्ञान से कुछ हासिल करना भी चाहता है तो उसके खुद के ही लोग जिनकी छत्रछाया मे वह रहता आया है वे लोग उसे किसी न किसी कारण से बदनाम भी कर सकते है उसके लिये गाथाये बनाकर भी गा सकते है। अन्त का अक्षर ’ता’ आने पर वह पीछे के दोनो अक्षरो से मुक्त होकर अपने को जीवन की गति मे ले जाना चाहता है और उस समय भी उसके साथ कई कारण इस प्रकार के भी जुड जाते है जो उसे अपने कारणो में गति नही देने देते है। अक्सर इस नाम के लोग अपने जीवन साथी के मामले मे बहुत ही अधूरे माने जाते है,उनकी गति से उनके लायक वर या वधू का मिलना दिक्कत देने वाला ही माना जाता है अगर शादी विवाह कर भी दिया जाये तो औलाद के मामले मे नकारात्मक कारण ही मिलते है जैसे पुरुष औलाद का नही होना या पुरुष औलाद का होना भी तो वह अपने कार्यों से व्यवहार से नकारात्मक हो जाना आदि बाते मानी जा सकती है। इस नाम वालो के लिये जीवन में तीसरे पन मे अक्सर अपनी पिछली हसरतो को पूरा करने का समय शुरु होता है पहला और दूसरा पन तो दूसरो की खुशामद मे या परिवार की जिम्मेदारी मे ही निकल जाता है अपनी हसरतों के लिये जब समय शुरु होता है तो वह अक्सर बयालीस साल के बाद ही शुरु हो पाता है,कारण उम्र के लिहाज से जीवन के दो भाग पूरे होते है और पहला भाग कम होने से उम्र २५+२५+१२.५=६२.५ साल ही मिलती है.बयालीस साल से शादी शुदा जिन्दगी का प्रभाव शुरु होता है और पैन्तालीस साल मे नर सन्तान का होना माना जाता है अगर पहले से भी मादा सन्तान है तो भी नर सन्तान का कारण बयालीस से ही शुरु होता है।
एक दूसरा नाम भी आपके सामने बता रहा हूँ जैसे ’सीमा’,यह नाम कहने के लिये तो कुम्भ राशि का है और कालपुरुष की कुंडली के अनुसार ग्यारहवे भाव की कारक है। इस राशि वाले लोग या तो मनोरंजन के कामो मे निपुण होते जाते है या शिक्षा के मामले मे निपुण होते है,कमन्यूकेसन के कामो मे अपने मित्रो की सहायता करने के लिये या अपनी बडी बहिन या भाई की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिये भी माने जाते है। अक्सर जीवन उम्र की सात साल के बाद ही इनकी बुद्धि जाग्रत हो जाती है और सोचने विचारने के कारण इनका स्वास्थ्य या तो बहुत ही गिरता जाता है या चिन्ता के कारण मोटापा शुरु हो जाता है.अक्षर की पूर्णता से भी इनकी आयु की गणना को जोडने पर ३०+३०=६० की श्रेणी से जोडा जाता है यह लोग या तो जानकर शादी विवाह मे देरी करते है या शादी विवाह के बाद भी अकेले रहने की कोशिश करते है। नाम राशि से सप्तम की राशि सिंह होने से यह सरकारी या शिक्षा के क्षेत्र मे प्रवेश कर जाते है,अपने को मनोरंजन के क्षेत्र मे ले जाते है और खुद ही अपनी ही जिन्दगी मे मस्त बने रहते है,बाहर वालो को भले ही इनकी शादी विवाह की चिन्ता हो लेकिन यह खुद जानबूझ कर अपनी चिन्ता को नही करते है। जीवन की आधी उम्र मे इनके लिये काफ़ी इकट्ठा करने की चिन्ता होती है और आधी उम्र मे उसे बरबाद होने से रोकने के लिये चिन्ता का होना शुरु हो जाता है।

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