गाय और शुक्र

गाय भारत में पूजी जाती है,और हिन्दू धर्म के लिये गाय की मान्यता वेदों पुराणों संहिताओं में बहुत ही विस्तृत रूप में देखने को मिलती है, शुक्र के लिये गाय की मान्यता ज्योतिष से भी मिलती है,व्यक्ति के अन्त समय में गोदान की महत्ता भी गरुण पुराण के अनुसार मिलती है और मृत्यु के बाद बैतरणी नदी से पार जाने के लिये भी गाय का मूल्यांकन किया गया है। ग्रहों के अनुसार जीवन में शुरु से आखिरी तक गाय का मूल्यांकन शुक्र के लिये किया गया है,मेष राशि से मीन राशि तक तथा सभी सत्ताइस नक्षत्रों में और सभी नक्षत्रों के पायों के अनुसार गायों के रूपों का वर्णन किया जाता है। वृहद जानकरी के लिये गाय का संक्षिप्त रूप और गाय से प्राप्त होने वाले फ़लों को तथा गाय के विभिन्न अंगों के अन्दर ग्रहों के निवास और भावानुसार मूल्य बहुत ही उत्तम माना गया है। गाय के दर्शन से लेकर गाय के दूध दही घी मूत्र और गोबर तक को पंचगव्य की मान्यता के अनुसार सभी तरह के धार्मिक कार्यों में प्रयोग करने का विवरण मिलता है।

गाय के लिए अक्सर लोग आपनी  मान्यता को शुद्ध रूप से नहीं देख पाते है,जब भी उन्हें गाय का रूप समझाने की बात मिलाती है तो केवल वे दूध तक ही सीमित रह जाते है.ग+आय=गाय को भी समझ लिया जाए तो पता चलता है की जब सब कुछ चला जाए तो भी गाय के प्रति श्रद्धा करने से वापस आजाता है,अर्थ के रूप में भारत में दो ही रूप मिलते थे एक तो नीम का पेड़ और दूसरी गाय,इन दोनों के कारण शरीर और धन दोनों की बढ़ोत्तरी हुआ करती थी,गाय के द्वारा धर्म अर्थ काम और मोक्ष चारो पुरुषार्थो की पूर्ती हुआ करती थी.

गोधन गजधन बाजिधन और रतन धन खान,यह कहावत और किसी की नहीं है सूफी संत रहीमदास की है उनके अनुसार यह चारो पशु रत्न धन के रूप में देखे जाते थे,आज के समय में इन धनो को रत्न धन के आगे भुला दिया गया है,और बाकी के लोहे में अपने दिमाग को लगाकर आगे बढ़ने की कोशिश  की जा  रही  है जिसे देखो अपनी तकनीक को लोहे के अन्दर लगाकर अपने जीवन  को आगे बढाने  की अपनी योग्यता  को बढ़ा रहा है लेकिन मनुष्य शरीर में बढ़ोत्तरी ताकत  और हिम्मत देने वाले तत्वों को दूर रखना दवाइयों  और आवार्चीन औषिधि को प्रयोग में लेकर आगे बढ़ने की हिम्मत देना आदि भी माना जाने लगा है. 

राहु शुक्र अथाह सम्पत्ति या केवल कनफ़्यूजन

कई बार देखने मे आता है कि जब राहु शुक्र की युति कर्क राशि में मिलती है तो जातक के पास या तो अथाह सम्पत्ति मिलती है अथवा वह पूरा जीवन केवल कनफ़्यूजन में ही निकाल देता है। कनफ़्यूजन भी ऐसे कि कोई भी समझाने की कोशिश करे लेकिन किसी भी बात से वे कनफ़्यूजन नही निकलें। राहु जब किसी भी ग्रह के साथ जुडा हो और वह अगर मन के कारक भावों में जैसे चौथे भाव मे आठवें भाव में या बारहवें भाव में हो तो या इन भावों के मालिकों से जुडा हो तो व्यक्ति के अन्दर उस ग्रह की आदत के अनुसार ऐसा नशा सवार रहता है कि व्यक्ति को आगे पीछे ऊपर नीचे कुछ भी नही दिखाई देता है और वह अपने अनुसार ही कार्य में घुसता चला जाता है,जब वह निकलता है उस समय या तो वह मरने की श्रेणी में होता है या वह बिलकुल खाली हाथ होकर सडक पर घूम रहा होता है। राहु एक बुखार की तरह से होता है और जब वह शुक्र के साथ स्त्री या पुरुष किसी की भी कुंडली में अपनी युति बनाता है तो जातक अगर पुरुष है तो वाहन स्त्रियों चमक दमक वाले भवनों के प्रति आशक्त होता है और अगर स्त्री की कुंडली में होता है तो वह उसे अपनी इमेज को प्रदर्शित करने के लिये एक नशा सा देता है,अक्सर यह उस समय और खतरनाक हो जाता है जब उसे किसी प्रकार से रोकने की कोशिश की जाये या फ़िर उसे उसके माहौल से दूर करने की कोशिश की जाये। अगर राहु को मंगल का बल मिल जाता है और वह पुरुष की कुंडली में होता है तो उसे प्रयास से असफ़लता मिलने के बाद वह जबरदस्ती किसी भी काम को निकालने की कोशिश करता है। इसके अलावा अगर उसे वाहन का नशा चढता है तो वह एक के बाद एक नये नये वाहनों को खरीद कर उसे चलाकर अपनी हाजिरी जाहिर करता है।
जब शनि का साथ राहु और शुक्र के साथ हो जाता है तो जातक के अन्दर बडी बडी चमक दमक वाली इमारतें बनाने का भूत सवार हो जाता है,उसे धन के लिये फ़िर चाहे कोई भी रास्ता अख्तियार करना पडे वह अपने को किसी भी प्रकार से चमक दमक के रूप में दिखाना चाहता है। शुक्र भौतिकता का ग्रह है और राहु असीमित सोच प्रदान करता है,अगर किसी प्रकार से जातक की मन की इच्छा पूरी नही हो पाती है तो वह रात की नींद और दिन का चैन अपने लिये हराम कर लेता है,उसके दिमाग में पता नही कितनी प्रकार की भावनाये पनपने लगती है और गोचर के अनुसार जैसे जैसे राहु शुक्र अपना रास्ता नापते जाते है जातक उसी प्रकार से अपने कार्यों को करता हुआ चला जाता है। यही नही अगर कालपुरुष की कुंडली के अनुसार भी राहु किसी भी प्रकार से शुक्र के साथ गोचर करने लगता है या राहु की नजर शुक्र पर होती है तो वह जमाने को भी चका चौंध में ले जाता है.राहु और शुक्र की उपस्थिति को शादी वाले पांडाल के रूप में देखा जा सकता है,चमक दमक वाले होटलों के रूप में और सजने सजाने वाले रूपों के रूप में देखा जाता है.

भाग्योदय का योग

लोगों का विश्वास जब भाग्य पर हो जाता है तो उनके अन्दर एक उत्कंठा बनने लगती है कि उनका भाग्योदय कब होगा,भाग्य की परिभाषा के अनुसार जब हमारे पूर्व कर्म हमें किसी भी अच्छे समय के लिये प्रेरित करने लगें और हमारी सोची जाने वाली समझी जाने वाली और की जाने वाली क्रिया सफ़ल होने लगे तो वह भाग्य की श्रेणी में मानी जाती है। इन क्रियाओं की असफ़लता ही दुर्भाग्य की श्रेणी में आने लगती है। जन्म कुंडली के अनुसार भाग्य का भाव नवां होता है,नवे भाव से हमारे पिता के लिये भी जाना जाता है और हमारे पूर्वजों और हमारी धार्मिकता के बारे में भी जाना जाता है,नवे से नवां भाव पंचम होता है जो हमारी बुद्धि का भाव माना जाता है,पंचम से नवम हमारा पहला भाव होता है जो हमारे शरीर और नाम रूप आदि के बारे में प्रदर्शित करता है। इन तीनो भावों यानी लगन पंचम और नवम के एक दूसरे की पूरक स्थिति में ही भाग्य का रूप समझा जा सकता है।
जिस प्रकार से आग जलाने के लिये तीन कारक ताप ईंधन और हवा की जरूरत होती है उसी प्रकार से जीवन की गति में ईंधन के रूप में शरीर ताप के रूप में बुद्धि और हवा के रूप में भाग्य का होना बहुत जरूर है,जैसे ईंधन के गीला रहने पर कितना ही ताप और हवा का प्रयोग किया जाये वह सुलग सुलग कर ही आग को पैदा कर पायेगा,उसी तरह से ईंधन कितना ही सूखा हो अगर हवा का और ताप का अभाव है तो वह आग को पैदा नही कर पायेगा। लेकिन ताप को प्रकट करने के लिये अगर हवा और ताप की समानता है,तो कैसा भी गीला ईंधन हो वह प्रयास करने पर जलने के लिये विवस हो जायेगा।
जन्म कुंडली में शरीर की बनावट अगर सही है और वह किसी भी मायने में किसी भी प्रकार के विकार से पीडित नही है तो वह बुद्धि को प्राप्त कर सकता है,जब बुद्धि को वह प्रबलता से प्रकट करेगा तो भाग्य नाम की हवा कितनी ही दूर हो वह अपने आप साथ देने लगेगी। आग के सिद्धान्त को समझ कर भाग्य की प्रबलता को भी सही रूप से समझा जा सकता है। लगन का मालिक पंचम भाव का मालिक और नवे भाव का मालिक अगर अपनी सामजस्यता को सही बनाये है तो व्यक्ति के जीवन में भाग्य अपने आप काम करने लगेगा,अगर भाग्य के मालिक को चन्द्रमा या शुक्र अपनी युति देता है तो भाग्य नामकी हवा गीली और आद्रता से पूर्ण होगी वह शरीर रूपी ईंधन और बुद्धि रूपी ताप को अपनी आद्रता से उस काबिल नही रखेगा कि वह सही समय पर सही कार्य कर सके। इसके अलावा अगर ताप को पैदा करने वाला ग्रह बुध है और ईंधन को पैदा करने वाला ग्रह शुक्र है,तो भाग्य नामकी हवा को प्रकट करने वाला ग्रह शनि अपने आप बन जायेगा.
मेष लगन की कुंडली के अनुसार मंगल मेष का स्वामी है,सूर्य बुद्धि भाव का मालिक है और गुरु इस राशि का भाग्य का मालिक है,जैसे ही तीनो ग्रहों का समानान्तर रूप से मिलना होगा भाग्य की चमक दिखाई देने लगेगी,उसी तरह से वृष लगन का स्वामी शुक्र है,इस राशि के पंचम का स्वामी बुध है और नवम का स्वामी शनि है तो इन तीनो की युति बनने पर भाग्य की प्रबलता अपने आप प्रकट होने लगेगी.यानी शुक्र रूपी ईंधन को बुद्धि रूपी आग से शनि रूपी हवा को प्राप्त होते ही व्यक्ति की जीवनी सही चलने लगेगी। इसी तरह से मिथुन लगन वालों के लिये बुध रूपी ईंधन से शुक्र रूपी ताप से तथा शनि रूपी हवा से भाग्य को चेताया जा सकता है,कर्क लगन में चन्द्र रूपी ईंधन को मंगल रूपी ताप से गुरु रूपी हवा को मिलाकर चेताया जा सकता है। सिंह लगन में सूर्य रूपी ईंधन को गुरु रूपी ताप से मंगल रूपी हवा मिलाकर भाग्य को चेताया सकता है। कन्या लगन में बुध रूपी ईंधन को शनि रूपी ताप से शुक्र रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। तुला लगन में शुक्र रूपी ईंधन को शनि रूपी ताप से बुध रूपी हवा को मिलाकर चेताया जा सकता है। वृश्चिक लगन में मंगल रूपी ईंधन को गुरु रूपी ताप को तथा चन्द्रमा रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। धनु लगन में गुरु रूपी ईंधन को मंगल रूपी ताप से तथा सूर्य रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। मकर लगन में शनि रूपी ईंधन को शुक्र रूपी ताप से तथा बुध रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। कुम्भ लगन में शनि रूपी ईंधन को बुध रूपी ताप के साथ शुक्र रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। मीन लगन में गुरु रूपी ईंधन को चन्द्रमा रूपी ताप के साथ मंगल रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है।

भारत वर्ष की कुंडली में षडाष्टक योग

वर्तमान मे भारत वर्ष में एक विचित्र बात देखने को मिल रही है,जिसे देखो वही अपने को परास्त करने के चक्कर में घूम रहा है,न्याय और कानून व्यवस्था का किसी को भी ध्यान नही है जिसे देखो वह अपने अपने अनुसार पता नही क्या क्या बोलता जा रहा है,जो भी बोल रहा है वह अपने अनुसार शायद सही बोलने की बात हो लेकिन कुछ समय बाद वह अपनी ही कही बात को बदल भी दे रहा है। व्यापारी व्यापारिक स्थान को द्रिष्टि में रखकर कुछ भी कह रहा है,नौकरी वाला पता नही क्यों अपने नौकरी करने वाले स्थान के लिये ही अनाप सनाप बोले जा रहा है,गरीब गरीब को ही काटने का कार्य कर रहा है,अमीर को अमीर ही काटने का कार्य करने के लिये आगे बढा जा रहा है,राजनीतिक राजनीति को ही काटने के लिये अपनी चाल चले जा रहा है,सत्ता में जमी पार्टी अपने को काटे जा रही है,विपक्षी पार्टी भी अपने अपने अनुसार अपने को ही बदनाम करने के लिये नये नये रास्ते अपनाये जा रही है,किसान किसान को काटे डासल रहा है,मीडिया मीडिया के पीछे पडा हुआ है,इन सब का कारण भारत वर्ष की कुण्डली में चल रहा ग्रहों का षडाष्टक योग माना जायेगा।
षडाष्टक योग का मतलब होता है जन्म के ग्रह को गोचर का ग्रह आठवें भाव से देखे और जन्म का ग्रह गोचर के ग्रह को छठे भाव से देखे,इस योग का मूल कारण बनता है उसके द्वारा अपनी ही औकात को अपमान की नजर से देखना और अपने को ही दुश्मनी की नजर से देखने लग जाना,अपने द्वारा ही पहले धन कमाने के लिये रिस्क वाले कारण पैदा करना और अपने ही द्वारा उस धन के प्रति खोजबीन करने लग जाना,अपने ही द्वारा पहले गल्ती करना और बाद में अपने ही द्वारा उस गल्ती के लिये अपमानित होना,जब भी किसी से कर्जा लिया जाये तो उस कर्जे को निगलने का प्रयास किया जाये,जो कर्जा देकर सहायता करने की बात करे उसे ही कर्जा लेने के बाद खत्म करने का मानस बना लिया जाये या कर्जा देने वाले को अपमानित करने के भाव से कोई गूढ युक्ति को सोच लिया जाये,अपने ही द्वारा नौकरी दी जाये और अपने ही द्वारा लांछन लगाकर बाहर कर दिया जाये,नौकरी करने वाला मालिक के लिये जानलेवा बन जाये,राजनीति में रहने वाला व्यक्ति पहले तो अन्दरूनी रूप से कोई मुसीबत वाला कार्य करने के लिये रिस्वत ले और बाद में काम बन जाने पर रिस्वत देने वाला उस राजनीति वाले व्यक्ति की धज्जियां उडा दे,पहले तो राजनीति करने वाला व्यक्ति किसी भी काम को करने के लिये जनता के सामने आये और बाद में जब जनता उसे चुन कर अपने भले के लिये भेज दे तो वह जनता के लिये ही मुशीबत बनकर सामने आये। जनता उसे चुने कि वह शासन में जाकर उसकी रोटी को सस्ता करेगा,लेकिन वह शासन में जाकर जनता की सब्जी भी बन्द करवा दे,मीडिया अपने को जनता के सामने जनता की मुशीबतों के लिये अपने कार्यों को करने के लिये शुरु हो लेकिन शुरु होने के बाद वह जनता में ही घुस कर जनता का ही नुकसान करने लगे। वह पहले तो रिक्सा चलाने वाले काम को बन्द करने का दावा करे,बाद में उसी रिक्सा वाले को भूख से मर जाने के बाद उसी की फ़ोटो छापकर प्रशासन को जिम्मेदार बना दे,पहले तो वह रिक्सा की दौड करवाये और बाद में रिक्सा दौड में एम बी ए करने वाले छात्र की फ़ोटो रिक्सा चलाते हुये दिखाये,व्यापारी पहले तो माल को जनता में वितरण के लिये मंगाये बाद में खुद के पास जमाकर जनता को दर्शाये कि माल है ही नही,और जब पकडा जाये तो बजाय जनता से लाभ लेने के राजनीतिक व्यक्ति की शरण में जाये और लाभ की बात को हानि में बदल दे, आदि बाते षडाष्टक योग के रूप में देखी जाती है।
भारत को आजादी पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस में मिली थी,यह आजादी मंगल केतु और राहु गुरु के षडाष्टक योग में मिली थी,यानी गुरु से राहु अष्टम में था,और केतु से मंगल षडाष्टक में था। जातियों के अनुसार राहु को मुस्लिम जाति और गुरु को हिन्दू जाति के रूप में देखा जाता है,केतु को सर्वधर्मी और सिख जाति और उन जातियों के प्रति जो अपने धर्म ग्रंथों को ही सर्वोपरि मानते है के रूप में तथा मंगल राजपूत और रक्षा करने वाली जातियों के रूप में देखा जाता है। हिन्दू को मुसलमान षडाष्टक योग से देख रहा है,तो केतु वाली जातियां मंगल वाली जातियों को षडाष्टक योग से देख रहे है। इस मंगल और केतु के बीच में जो पिसने वाली जातियां चन्द्रमा से खेती और यात्रा आदि के काम करने वाले लोग,बुध से व्यापार और संचार करने वाले लोग मीडिया आदि,शनि से गरीब और मेहनत करने वाले लोग जमीन जायदाद और प्रापर्टी आदि के लिये कार्य करने वाले लोग खनिज आदि के लिये कार्य करने वाले लोग,शुक्र से भवन निर्माण करने वाले लोग कला और संस्कृति का कार्य करने वाले लोग नाटक और फ़िल्म आदि का कार्य करने वाले लोग सूर्य से राजनीति और प्रशासनिक लोग है। गुरु से धर्म और मर्यादा पर चलने वाले लोग पूजा पाठ और ध्यान समाधि करने वाले लोग माने जाते है।
वर्तमान में भारत की स्वतंत्रता के समय का राहु अपने आपको ही षडाष्टक योग से देख रहा है,यानी मुस्लिम और इसी प्रकार की जातियां अपने को ही बरबाद करने पर तुले है,सूर्य जो भारत की स्वतंत्रता के समय सूर्य से छठे भाव में है और चन्द्र जनता को बुध व्यापारी को मीडिया को संचार के साधनो को जमीन जायदाद का कार्य करने वाले लोगों को सिनेमा नाटक और कम्पयूटर आदि के विजुअल रूप मे धता बताने के लिये सामने है,लेकिन जो भी हो रहा है वह गुप्त रूप से हो रहा है,गोचर के ग्रह भारत की कुंडली से जो अन्दरूनी तरीके से अपना प्रभाव उपरोक्त कारकों के लिये पैदा कर रहे उनके अन्दर वक्री बुध (जो लोग व्यापारिक कार्यों को छोड कर कमन्यूकेशन के कार्यों को त्याग कर,धन से धन को कमाने के कारणों को छोड्कर अथवा गुप्त रूप से गलत कार्यों को लेकर चलने वाले है वे ही वक्री बुध के अन्दर आते है) राहु भी गुप्त रूप से अपनी अक्समात हमले वाली प्रणाली के द्वारा भारत के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र को ग्रहण लगाने के लिये तैयार खडा है,मंगल भी राहु का साथ देकर अपने कारकों से चन्द्र बुध सूर्य शनि और शुक्र को कन्ट्रोल करने के लिये सामना कर रहा है,और मारक द्रिष्टि से देख रहा है। आगे आने वाली नौ जनवरी से यह मंगल सरकारी भवनों में सरकारी कार्य करने वाले लोगों में सरकारी वाहनों में सरकारी क्षेत्र की सम्पत्तियों में देश की उत्तरी-पश्चिमी सीमा में आमने सामने की लडाई के लिये सामने आयेगा,केतु जो भारतवर्ष की स्वतंत्रता के समय भारत के दक्षिण दिशा से सम्बन्ध रखता था,और वर्तमान में सर्वोच्च पद पर आसीन है,को मोक्ष देने के लिये अपना कार्य करेगा,यह तारीख भी सात जनवरी के आसपास की मानी जा सकती है,फ़िर नये व्यक्ति का चुनाव और उसकी सर्गर्मिया मीडिया के लिये बखान करने के लिये मिल सकती है,केतु शुक्र की युति भी है इसलिये यह योग किसी बुजुर्ग महिला के लिये भी माना जा सकता है। पन्द्रह जनवरी के आसपास दे सूर्य भी अपना षडाष्टक योग की सीमा को त्याग कर जनता के सामने आने के लिये बेवश होगा,इस साल की छब्बिस जनवरी भी कुछ अच्छी समझ मे नही आ रही है,राहु से अष्टम में बुध के होने के कारण कानूनी शिकंजा या युद्ध जैसे हालात भी समझ में आ रहे है। आने वाली बाइस सितम्बर सन दो हजार ग्यारह के आसपास से ही सूर्य के साथ चलने वाला राहु का समय समाप्त होने जा रहा है,तब तक देश की राजनीति को ग्रहण लगा ही रहेगा।

शरीर से धन कमाने का योग

शरीर से धन कमाने के लिये केतु का लगन मे होना,केतु का लगन के मालिक के साथ सहयोग होना या केतु के द्वारा लगन और लगनेश पर प्रभाव डालना,शरीर से धन कमाने के लिये साधन के रूप में प्रयुक्त होता है। केतु से गुरु से कौन सा लगाव होना मित्रता वाला लगाव होना या शत्रुता वाला लगाव होना या समान भाव वाला लगाव होना यह तीन बातें भी देखी जाती है। गुरु के बाद शुक्र का केतु के साथ कितना सम्बन्ध है,इस बात का भी विचार करना जरूरी होता है,राहु के द्वारा किन कारकों से बल लेकर केतु को प्रदान किया जा रहा है वह भी देखना जरूरी होता है,अगर लगन में केतु है तो वह सप्तम के राहु से बल ले रहा होगा,केतु का स्थान किस प्रकार की राशि में है और उस राशि का सबसे अधिक प्रभाव तथा उस राशि के मालिक का प्रभाव उस राशि के मालिक की प्रकृति आदि सभी कारकों को देखना जरूरी होता है,केतु किस क्षेत्र से जन्म की लगन से गोचर कर रहा है और केतु को बल देने वाला राहु गोचर से केतु को कहां से बल दे रहा है,इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी होता है। जैसे केतु अगर मेष राशि का है तो वह बल तुला राशि से लेगा,मेष राशि का स्वामी मंगल है और तुला राशि का मालिक शुक्र है,मेष का मंगल सकारात्मक रूप से अपनी स्थिति को दर्शाता है,तो तुला का शुक्र नकारात्मक रूप से अपनी स्थिति को दर्शाता है। मेष राशि के केतु को बल अगर कन्या मीन या वृश्चिक राशि का गुरु देता है तो इस केतु के कार्यों शरीर की सार संभाल करने वाले कार्य शरीर को आराम देने वाले कार्य शरीर से बीमारी कर्जा दुश्मनी आदि से रक्षा करने के काम करने पडते है। लेकिन शनि ने अगर किसी प्रकार से केतु को बल दिया है और गुरु त्रिक भाव का फ़ल दे रहा है तो शरीर के कर्म दुष्कर्म की तरफ़ भी चले जाते है। अनैतिक कार्य करना और उन कार्यों में शरीर का प्रयोग करना भी माना जाता है। इसी तरह से केतु से तीसरे भाव में अगर शुक्र है तो जातक अपने को एक्टर के रूप में प्रस्तुत करता है,चौथे भाव में शुक्र है तो जातक अपने को कला कौशल और वाहनों की रक्षा करने और ड्राइवरी आदि के कामों से जाना जाता है,पंचम में शुक्र है तो जातक के लिये शिक्षा और जल्दी से धन कमाने वाले साधन खेल कूद और मनोरंजन के साधन बनाकर लोगों का मनोरंजन आदि करने से धन कमाने के लिये जाना जाता है। छठे भाव का शुक्र है तो जातक कर्जा से धन को जुटाता है और बीमारी आदि से छुटकारा दिलवाने के कारकों से धन कमाने के लिये भी माना जाता है लेकिन मंगल के साथ होने से या बल देने से डाक्टर के रूप में मंगल और बुध के साथ होने से बैंक से फ़ायनेन्स के रूप में और गुरु के साथ होने से जमा धन को खर्च करने के बाद और धन को धन से प्राप्त करने के लिये एक सहायक के रूप में अपना कार्य करता है,धन के क्षेत्र के लिये शुक्र जो तुला राशि का है तो धनी लोगों की रक्षा करने के बाद उनके अपमान मौत और जोखिम के कामों में सहारा देने के रूप में उनकी दुश्मनी और उनके कम्पटीटर आदि से बचाने में रक्षा करने के काम में आता है,जिसे बाडी गार्ड भी कहा जा सकता है। इसी तरह से अन्य भावों के केतु के लिये देखा जाता है।

धन आने का योग

सम्पूर्ण मनुष्य जाति को धन की आवश्यकता गौढ रूप से जरूरी है। जैसे शरीर की पालना,परिवार का पोषण अपनी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की आवश्यक्ता,शिक्षा व्यवसाय और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धन की आवश्यकता होती है। अक्सर लोग अपने जीवन में धन की प्राप्ति के लिये कई उपाय करते है अपने अपने ज्ञान के अनुसार कार्य करते है,कोई धन से धन कमाता है कोई अपने को प्रदर्शित करके धन कमाता है,कोई अपनी अपनी भावना को प्रदर्शित करने के बाद धन को कमाता है,कोई अपनी शिक्षा को प्रदर्शित करने के बाद धन कमाता है कोई कर्जा दुश्मनी और बीमारी वाले कारणों से धन को कमाता है,कोई साझेदारी और विवाह आदि से धन कमाता है,कोई रिस्क लेकर अपमानित होकर जालसाजी करने के बाद धन कमाता है,कोई धर्म और भाग्य से अपने पैतृक कारणों से धन कमाने की चेष्टा करता है,कोई सरकारी या प्राइवेट नौकरी करने के बाद धन कमाता है,कोई मित्रों के सहयोग से कमन्यूकेशन वाले साधनों से और लाभ करवाने के द्वारा धन को कमाता है कोई अपने अनुसार यात्रा वाले साधन बनाकर बडी बडी संस्थायें बनाकर चैरिटीबल ट्रस्ट बनाकर धन कमाने की कोशिश करता है। जीवन में धन कमाने के लिये करोडों प्रकार के साधन धन कमाने के लिये प्रयोग में लाये जाते है। धन कमाने और धन के गंवाने के दो अलग अलग रूप जातक की कुंडली से देखे जाते है। कब धन आयेगा और कब धन जायेगा,धन आयेगा किस मद से और जायेगा किस कारण से दोनो की समानता को देखना भी जरूरी होता है। जो धन इकट्ठा हो जाता है वह धन भी भौतिक रूप में देखा जाता है,जो धन लगातार चलता रहता है वह भी धन चलायमान धन के रूप में देखा जाता है,जो अधिक धन कमाकर और धन को धन कमाने के साधनों में लगाकर और अधिक धन कमाने के लिये अपनी बुद्धि को प्रयोग में लाता है वही बडा धनी और समझदार कहलाता है। इसके बाद वे धन कमाने वाले लोग भी धन कमाने वाले माने जाते है जो कमाते तो है लाखों करोडों लेकिन उनके पास भोजन भी खाने को नही मिलता है,कई लोग धन को जीवन भर नही कमाते लेकिन बडे मौज से सारा जीवन ऐशो आराम से निकालते है। कई लोग कमाते भी खूब है और उनके पास अंत में धन बिलकुल नही होता है,कोई जीवन की शुरुआत में धन को कमा लेता है कोई जीवन की बीच की आयु में धन को कमाता है और कोई जीवन के अन्तिम समय में कमाना शुरु करता है। धन को ही लक्ष्मी के रूप में जाना जाता है और लोग इसे लक्ष्मी की कृपा के रूप से मानते है।

धन कमाने के लिये जातक की कुंडली में तीन कारण देखने जरूरी होते है,पहला कारण गुरु के रूप में देखा जाता है जो जातक की बुद्धि और ज्ञान के बारे में बताता है कि जातक का स्वभाव जीवन में किस प्रकार से अपने को संसार में प्रदर्शित करने लिये सामने आयेगा,वह लोगों के साथ कैसा व्यवहार करेगा,और व्यवहार के अन्दर वह कैसे लोगों से अपना सम्बन्ध स्थापित करेगा,उसे कैसे वातावरण में रहना होगा,उसके साथ कैसे साधन होंगे और किन साधनों को अपने जीवन में मुख्य रूप से मानेगा। गुरु के बाद कुंडली में धन के लिये साधनों के रूप में शुक्र को देखना जरूरी होता है,जातक को धन कमाने के लिये प्रयोग किये साधनों में कौन सा साधन अधिक उत्तम रहेगा,वह जिस धन को साधनों को चलाने के लिये प्रयोग में लायेगा वे उस धन से चल पायेंगे या नही,धन जो साधनों के रूप में प्रयोग में लाया जायेगा उसकी कीमत जातक के जीवन में कैसा व्यवहार करेगी,जातक जो धन कमाने के लिये धन का प्रयोग करेगा वह आगे के साधनों में उसी धन से धन कमाने के लिये कितना बचत करेगा,या धन को कमाने के चक्कर में इतने साधन बना लेगा कि उसके पास का धन बिलकुल नही बचेगा और वह कर्जा लेकर धन को साधनों में लायेगा,वह कैसे लोगों से धन कमाने के लिये अपनी सहायता को देगा या सहायता को लेने की कोशिश करेगा। तीसरा कारण धन कमाने के लिये साधनों के रूप में देखा जाता है,साधन हमेशा केतु के रूप में देखे जाते है और साधन के कारक केतु के सामने राहु के बिना साधनों की पूर्णता भी नही मिलती है,केतु जितना बली होगा उतना ही बली राहु होगा,केतु जितना खाने की कोशिश करेगा राहु उतना ही शक्ति के रूप में केतु को खिलायेगा,केतु की भूख मिटाने के लिये राहु धन को भी खाकर साधन रूपी केतु को चलाने के लिये अपने प्रयास को सामने करेगा,वह अपने प्रयास से प्रदर्शन करने की कला के रूप में शरीर को भी खाने की कोशिश करेगा,वह माता मन मकान और जानकार लोगों को भी अपनी भूख का आहार बनाकर केतु रूपी साधन को अपना बल देगा,वह शिक्षा की शक्ति को खाकर भी अपने बल को दे सकता है,वह कर्जा करवाकर बीमारी पालकर दुश्मनी पालकर भी केतु को बलवान करेगा,जीवन साथी और साझेदार को भी खाकर अपने बल को केतु को देने की कोशिश करेगा,वह जातक को अपमान में डालकर जातक को मौत देकर या मौत जैसे कारण पैदा करने के बाद अथवा भयंकर रिस्क देकर भी केतु को बलवान करने की कोशिश करेगा,धर्म भाग्य का बल लेकर या धर्म भाग्य से कमाकर भी केतु को बलवान करने की कोशिश करेगा,इस तरीके से इन तीन कारणों को कुंडली में देखकर जातक के धन कमाने के साधनों को देखा जाता है।

बालारिष्ट योग

राहु का गोचर या दशा के अनुसार गुरु के साथ जब भी सम्बन्ध स्थापित होता है बालारिष्ट योग की युति को पैदा करता है। गुरु जो जीव का करक है वह राहु के साथ मिलकर अपने को भ्रम वाली स्थिति में डाल लेता है जीव के अन्दर भावानुसार कई तरह के बल देखने को मिलते है,यह बल अजीब तरह के नशे के जैसे देखने को मिलते है,सबसे अधिक खतरनाक योग तब देखने को मिलता है जब गुरु के साथ राहु किसी नीच ग्रह की युति में या नीच राशि में अपना गोचर करता है। जैसे कर्क के मंगल के साथ गुरु राहु के साथ गोचर करता है तो व्यक्ति का हादसा किसी वाहन से होता है या किसी प्रकार से अस्पताली कारणों से या दवाई आदि के रियेक्सन करने से या फ़िर आग लगने गर्म पानी से जलने आदि की घटनायें मिलती है,पानी के अन्दर करेंट दौडने के कारण भी इस युति में हादसे होते देखे गये है। इसके साथ ही अगर नीच के चन्द्रमा के साथ गुरु राहु के साथ अपनी युति देता है तो व्यक्ति के अन्दर मानसिक बीमारियां मिलती है वह सोचने वाली बीमारी से ग्रस्त हो सकता है,लेकिन सही रूप से अगर व्यक्ति इस युति को अपने जीवन में प्रयोग करता है तो व्यक्ति के लिये मानसिक रूप से सोचे जाने वाले कार्यों भावनाओं के अनुसार समझे जाने वाले कार्यों के अन्दर यह गुरु राहु अपनी शक्ति को भी प्रदान करता है और किसी भी धार्मिक स्थान में लेजाकर स्नान आदि करवाने के लिये भी माना जा सकता है। इस युति का सबसे बेकार का प्रभाव जातक के अन्दर साफ़ सफ़ाई के लिये पानी के प्रयोग किये जाने वाले कारणों के प्रति भी समझा जा सकता है,व्यक्ति को अधिक पानी फ़ैलाने और साफ़ सफ़ाई के लिये अपनी मति को ले जाने का कारण भी देखा जा सकता है। जो लोग वायु वाली बीमारियों से पीडित होते है,वे भी अपनी सेहत का ख्याल इस युति में नही रख पाते है और किसी न किसी पानी वाली बीमारी या फ़ेफ़डे वाली बीमारी से ग्रसित हो जाते है।
इसी तरह से अन्य ग्रहों के साथ गुरु राहु की युति अपना फ़ल देती है.

ग्रहयुति और दिमागी विचार

मन का कारक चन्द्रमा है,यह सवा दो दिन में एक राशि पर भ्रमण करता है,राशि में उपस्थित नक्षत्र और पायों के हिसाब से चन्द्रमा अपनी मानसिक गति देता है। चन्द्रमा भी अपने अनुसार भावानुसार अपन अपना फ़ल देता चला जाता है,जो फ़ल मिलता है वह केवल सोचने से मिलता है,सोचने के बाद सूर्य उस कार्य को करने के लिये द्रिष्टि देता है,जब जाकर शनि सोचे गये गये कार्य को करने के लिये अपना बल देना चालू कर देता है। कभी कभी सोचा गया पूरा नही होता है और मन में अशान्ति भी हो जाती है,वह कार्य चाहे भला हो या बुरा,लेकिन मानसिक गति के अनुसार कार्य की प्रगति ही सन्तोष देने के लिये मानी जा सकती है।

कर्क लगन की कुंडली और इसका स्वामी चन्द्रमा मकर राशि में है,चन्द्रमा सप्तम मे है,आजीवन व्यक्ति को मानसिक कारणों से जूझने के लिये अपनी गति को प्रदान करने वाला चन्द्रमा दसवें वक्री शनि से भी दसवीं नजर से अपना फ़ल चन्द्रमा के अन्दर प्रेषित कर रहा है। मार्गी शनि शरीर की मेहनत करने के लिये बल देता है जबकि वक्री शनि दिमागी मेहनत करने के लिये बल देता है। इस कारण से जातक को जो भी सोचने की कला मिलती है वह दिमागी रूप से बहुत ही अधिक मिलती है लेकिन शनि और चन्द्र कभी भी एक बात के लिये स्थिरता नही दे पाते है,चन्द्रमा की द्रव स्थिति शनि की ठंडी सिफ़्त से अपने को ठंडा करने के बाद बर्फ़ की तरह से जमाने का कार्य करती है और जो भी कार्य शुरु किया गया होता है या सोचा गया है वह जल्दी से बदल भी जाता है,इसलिये अक्सर इस युति का व्यक्ति कभी स्थिरता अपने जीवन में नही ला पाता है। Unstable mind position होने के कारण व्यक्ति जो भी सोचता है वह भी थोडी सी देर में लुप्त हो जाता है। अगर कोई समझदार व्यक्ति इस प्रकार के व्यक्ति के पूंछे गये सवाल का जबाब देना चाहे तो पूंछने वाला ही अपने सवाल को याद नही रख पाता है,और जब जबाब देने वाला अपने जबाब को तैयार करने के बाद जबाब को देना शुरु करता है तो सवाल पूंछने वाला और किसी दूसरे सवाल में उलझा हुआ मिलता है। इसके अलावा भी एक गति देखने को मिलती है कि चन्द्रमा केवल सोचने का कारक है और देखने के लिये सूर्य की स्थिति भी देखी जाती है तथा सोचने की क्रिया को हकीकत में बदलने के लिये शनि की जरूरत पडती है,अगर बुध से सामग्री मंगल से तकनीक शुक्र से सजावट गुरु से जानकारी मिलती है तो वह सोचा गया कार्य पूरा हो जाता है,अन्यथा किसी भी प्रकार के कारक ग्रह की सहायता नही होने से और राहु की कनफ़्यूजन वाली स्थिति तथा केतु की सहायताओं में कमी भी कार्य को पूरा नही करने के लिये जानी जा सकती है।

कर्क लगन की कुंडली में चन्द्रमा उसका मालिक है और मालिक ही अगर सप्तम में है तो सप्तम भाव मंत्रणा का भी जाना जाता है,यानी इस भाव को मंत्री का भाव भी कहा जाता है,इस भाव के आगे जो द्रिष्टि देने वाला भाव होता है वह आठवा भाव कहा जाता है,जो भी मंत्रणा ली गयी होती है वह अगर आठवें भाव की द्रिष्टि और स्वभाव तथा उसके स्वामी की गति से खरी उतरती है तो इस भाव का रिस्क Risk लिया जा सकता है,और कार्य को पूरा करने के लिये पैर मिल जाते है,जो किया जा रहा है उसके लिये ग्यारहवें भाव 11th House को भी देखना जरूरी है वह किये जाने वाले कार्य के प्रति अपनी भौतिक योग्यता को भी प्रदर्शित Show करता है.अगर किसी तरह से राहु आठवें भाव में बैठा है तो वह अपनी प्राप्त मंत्रणा के बारे में भी भ्रम वाली स्थति को पैदा कर देगा और जो भी मंत्रणा मिली है वह या तो भ्रम के कारण समाप्त हो जायेगी या वह आगे कार्य को रूप देने के लिये जब तैयार होगा तो उसके अन्दर तमाम तरह की बाधायें पैदा होने लग जायेंगी। अगर राहु जो भ्रम देने का कारक है और वह ग्यारहवे भाव के मालिक जो कि कर्क लगन से मालिक शुक्र है से देखना पडेगा,शुक्र अगर किसी प्रकार से चौथे भाव में है तो वह कनफ़्यूजन को देने वाले राहु के अष्टम में आजाता है और जातक की सोच जो या तो मकान प्राप्त करने के लिये अथवा शादी के लिये या फ़िर किसी सजावटी कार्य के लिये होगी वह कनफ़्यूजन में ही होगी। अक्सर यह राहु अपनी गति के अनुसार भी फ़ल देता है लेकिन जो भी फ़ल देगा वह मृत तुल्य परिणाम ही देगा। जैसे वर्तमान में यह राहु कर्क लगन के छठे भाव में गोचर कर रहा है तो यह जो भी फ़ल देगा वह कर्जा दुश्मनी बीमारी के प्रति कनफ़्यूजन के अलावा और कोई बात नही देगा,एक बात और भी मानी जा सकती है कि वह गूढ बातों को जानने के लिये अपनी बुद्धि का केवल प्रयोग करेगा,करने के नाम से यह राहु केवल कनफ़्यूजन ही देगा.

अगर किसी तरह से इस राहु पर गुरु भी नजर दे रहा है जैसे कर्क लगन के चौथे भाव में गुरु है तो वह गोचर के छठे राहु पर अपना असर देगा,उसके लिये जातक के अन्दर जो भी इच्छायें कनफ़्यूजन आदि पैदा होंगे वे केवल घर बनाने अपना व्यवसाय करने पानी के साधन बनाने और व्यवसाय की द्रिष्टि से व्यवसायिक सम्पत्ति को बनाने के प्रति ही होंगे। इसके अलावा एक बात और भी समझी जाती है,गोचर से छठा राहु जन्म के अष्टम राहु को भी देख रहा है तो कनफ़्यूजन जो कर्जा दुश्मनी और गूढ ज्ञान को प्राप्त करने के लिये माने जाते है उनकी ली जाने वाली रिस्क के लिये भी व्यक्ति के अन्दर सोच पैदा होगी,और वह अपने तरीके से गूढ जानकारी के बाद उस कार्य को नही करके केवल अपने अन्दरूनी ज्ञान को बढाने और पराशक्तियों आदि के प्रति जानकारी बढाने के लिये भी अपने कनफ़्यूजन को प्रस्तुत करेगा। जो भी कारक कर्जा दुश्मनी बीमारी से जुडे होंगे वे भी गुप्त रूप से जातक को छल करके या झूठ बोलकर अपना कार्य हासिल करने के लिये भी अपना बल देंगे,अक्सर कहा जाता है कि छ: और आठ के अन्दर बैठे ग्रह जातक के प्रति गुप्त रूप से घात करने के लिये माने जाते है और गुप्त रूप से जो घात की जाती है वह इस प्रकार की होती है कि राहु के स्वभाव से अक्समात मिलने वाली मानी जाती है,जैसे कर्जा होना है तो किसी मृत्यु वाले कारण में अक्समात ही होना है,कोई अक्समात ही ऐसी बीमारी भी होनी है जो अक्समात ही खर्चा करवाने के लिये काफ़ी है किसी के साथ लेन देन या काम धन्धे के अन्दर कोई बुरायी आनी है और वह अक्समात ही कर्जा करवाकर चली जानी है,कोई भी दुश्मन अपनी घात को करेगा तो अक्समात ही करेगा,अक्सर जातक को उस समय इसी प्रकार के लोगों से प्रेम भी होने लगता है,और उसे पता है कि अमुक व्यक्ति अपने बाप का नही हुआ है तो उसका क्या होगा लेकिन वह एक प्रकार के नशे के अन्दर उसके साथ चलता चला जाता है जब उसके साथ घात हो जाती है तो वह अपने को ही धिक्कारता है कि अगर उसने पहले से ही सोच लिया होता तो उसके साथ घात नही होती।

कर्क लगन का धन का कारक सूर्य है और अगर सूर्य धन के ही भाव मे है तो जातक के द्वारा सरकार या पिता से मिली नगद धन की सहायता मानी जाती है इसके अलावा तकनीकी जानकारी का मालिक पंचम और दसवें भाव का मालिक है और वह अगर सूर्य के साथ होता है तो जातक अपने पिता की पूंजी को या सरकार से मिली पूंजी को जल्दी से धन कमाने के प्रति अपनी कुशलता को तकनीकी बुद्धि के द्वारा देता है। तीसरे भाव और बारहवे भाव का मालिक बुध है और बुध अगर वक्री होकर इसी धन के भाव मे है तो व्यक्ति अपनी बुद्धि को उल्टा घुमाकर सरकारी या पिता के धन से अधिक धन पैदा करने की कोशिश करने का साहस करेगा। लेकिन इसी धन पर जन्म के राहु की नजर होने के कारण जो अष्टम स्थान में है अचानक धन का सफ़ाया भी करने के लिये बुद्धि को माना जा सकता है। कार्य भाव में विराजमान शनि वक्री है,सूर्य मंगल वक्री बुध से अगर वह युति लेता है तो पिता के लिये माना जा सकता है कि उसने अपनी उल्टी बुद्धि से धन को कमाया है,वह उल्टी बुद्धि धन से धन को कमाने के लिये भी मानी जा सकती है सरकारी सलाहकार के रूप में भी मानी जा सकती है और शिक्षा या संस्कृति वाले कार्यक्रम खेल आदि के द्वारा भी देखी जा सकती है। सूर्य बुध मिलकर जमीन से भी सम्बन्धित होता है और वक्री बुध के होने से जो भी जमीन पिता के द्वारा प्राप्त की जातीहै वह किसी न किसी प्रकार के दखल से या तो वापस चली जाती है या किसी फ़रेबी दोस्त की बातो से उसको खोना माना जा सकता है। इस युति में एक बात और भी देखने को मिलती है कि व्यक्ति के पास केतु का बल होता है,राहु जब अष्टम में है तो केतु जरूर धन भाव में होता है,और सूर्य केतु वक्री बुध तीनो मिलकर जो भी बुद्धि वाला कार्य करते है वह उल्टी बुद्धि वाला ही किया जाता है। केतु या राहु जिस ग्रह के साथ होते है उसकी शक्ति को अपने अन्दर धारण कर लेते है,कर्क राशि के दूसरे भाव में केतु के होने से और सूर्य वक्री बुध के साथ होने से भी व्यक्ति के पिता की और व्यक्ति की खुद की स्थिति किसी न किसी प्रकार की उल्टी राजनीति से भी होती है,वह व्यक्ति अपनी राजनीति से या किसी सरकारी संस्थान में कार्य करने से जो भी उल्टा धन आने की क्रिया होती है सभी को वह प्रयोग करना जानता है,इसके अलावा अगर चौथे भाव में गुरु और शुक्र स्थापित है तो वह लाभ और जीवन यापन के लिये व्यवसायिक स्थान बनाने के लिये ही अपनी बुद्धि को प्रयोग में लाता है। लेकिन यह होगा तभी जब सभी कारक अपने अपने अनुसार अपने अपने समय में सहायता के लिये कारकत्व प्रदान करें.

अपना घर बनाने का योग

घर भी रोटी और कपडा की तरह से जरूरी है,मनुष्य अपने लिये रहने और व्यापार आदि के लिये घर बनाता है,पक्षी अपने लिये प्रकृति से अपनी बुद्धि के अनुसार घोंसला बनाते है,जानवर अपने निवास के लिये गुफ़ा और मांद का निर्माण करते है। जलचर अपने लिये जल में हवा मे रहने वाले वृक्ष आदि पर और जमीनी जीव अपने अपने अनुसार जमीन पर अपना निवास करते है। अपने अपने घर बनाने के लिये योग बनते है। गुरु का योग घर बनाने वाले कारकों से होता है तो रहने के लिये घर बनता है शनि का योग जब घर बनाने वाले कारकों से होता है तो कार्य करने के लिये घर बनने का योग होता है जिसे व्यवसायिक स्थान भी कहा जाता है। बुध किराये के लिये बनाये जाने वाले घरों के लिये अपनी सूची बनाता है तो मंगल कारखाने और डाक्टरी स्थान आदि बनाने के लिये अपनी अपनी तरह से बल देता है। लेकिन घर बनाने के लिये मुख्य कारक शुक्र का अपना बल देना भी मुख्य है,अलग अलग राशियों के लोगों को अपने अपने समय में घर बनाने के योग बनते है।

मेष राशि वालों के लिये गुरु जब भी कर्क राशि का वृश्चिक राशि का या मीन राशि का होगा तभी उनके लिये घर बनाने के लिये योग बन जाते है। लेकिन गुरु जब कर्क राशि का होता है तो अपने द्वारा अर्जित आय से घर बनता है,गुरु जब वृश्चिक राशि का होता है तो दूसरे के बनाये गये घर या मृत्यु के बाद की सम्पत्ति पर अपना निवास बनाये जाने या किसी बेकार की पडी सम्पत्ति पर अपना अधिकार जमाकर घर बनाने वाली बात सामने आती है। मंगल के अनुसार घर बनाने की स्थिति भी अपने अपने समय पर बनती है। इस राशि वालों के लिये घर बनाना और घर छोडना बारह साल में तीन बार देखने को मिलता है। जब गुरु कर्क राशि का होता है तो यह घर के अन्दर ही नये प्रकार का निर्माण करते है,वृश्चिक राशि का होता है तो पुराने निर्माण को तुडवाकर अपना निर्माण करते है और जब मीन राशि का होता है तो सामाजिक या किसी अन्य प्रकार से बेदखल जमीन पर अपना निर्माण करते है। गुरु के साथ बुध की युति होती है तो कर्जा लेकर या घर के सामने वाले पोर्सन को सही किया जाता है,अथवा कोई दुश्मनी वाली जमीन पर कब्जा किया जाता है,शनि की साथ वाली स्थिति और केतु के सहयोग से जो घर बनता है वह वकीलो और कब्जा लेने वाली बातों से घर बनता है। सबसे अधिक खतरनाक स्थिति तब बनती है जब राहु किसी तरह से घर बनाने वाले कारकों पर अपना असर देता है।

वृष राशि वालों के लिये भी गुरु जब सिंह राशि का हो धनु राशि का हो या मेष राशि का हो तभी घर बनाने वाली बाते सामने आती है। सिंह राशि के गुरु के सानिध्य में घर बनता है लेकिन घर के अन्दर कई तरह की राजनीति बन जाती है,लेकिन घर बनता जरूर है और धनु राशि में बनाये जाने वाले घर के अन्दर या किसी प्रकार के बंटवारे को लेकर पुरानी सम्पत्ति को लेकर या बाप दादा की सम्पत्ति के बारे मे फ़ैसला लेकर घर बनवाया जाता है,लेकिन मेष राशि में गुरु के होने पर बनवाये जाने वाले घर में दिक्कत ही पैदा होती है। इस राशि वालों के लिये अक्सर घर और जमीनी कारणों में अदालती कारण भी सामने आते है और उन कारणों से वे अपने घर में चैन से नही रह पाते है। मिथुन और मेष राशि का दखल होने से भी घर के अन्दर की सभी बाते गुप्त नही रह पाती है और उस घर को एक धर्मशाला के रूप में भी माना जाये तो अन्यथा नही है। इस राशि के घर बनाने के बाद अक्सर दाहिनी तरफ़ वाला पडौसी अपने घर में रहने वाली व्यापारिक क्रिया को ही रखता है और वृष राशि वालों से किसी न किसी प्रकार का पंगा लेने के लिये ही तैयार रहता है जबकि बायीं ओर का पडौसी शांत भी होता है और घर की बातों को भी धीरे धीरे अपने उपक्रमो से सुनकर समझ कर और दूसरों के अन्दर अफ़वाह फ़ैलाकर बदनाम करने की कोशिश करता है।

मिथुन राशि वाले अपने घर को कन्या के गुरु में मकर के गुरु में और वृष राशि के गुरु में अपना घर बनाते है। कन्या राशि के अन्दर गुरु के रहने पर बनाये जाने वाले घर अक्सर कर्जा और किस्त आदि से बनाये जाते है और घर को बनाते समय पानी या किसी प्रकार की जनता की लडाई से भी जूझना पडता है। इस राशि वालों के घर के पडौसी भी बायीं तरफ़ वाले कोई राजनीतिक लोग या सरकारी सेवा वाले लोग होते है और दाहिनी तरफ़ वाले कोई व्यापारी या कानूनी जानकार रहते है। इस राशि वाले जब मकर के गुरु में अपना घर बनाते है तो उनके लिये यह भी देखना जरूरी होता है कि पहले उस स्थान पर या तो घर बन चुका होता है या उन्हे तोडकर घर बनाया जाता है। इसके साथ ही इस भाव में गुरु होने पर जो घर बनाया जाता है तो घर का बायां पडौसी किसी धार्मिक संस्था से जुडा होता है और दायां पडौसी किसी न किसी प्रकार के लगातार लाभ या कमन्यूकेशन के कारणों से जुडा होता है लेकिन दाहिना पडौसी हमेशा इस राशि वाले के लिये भाई जैसा व्यवहार ही करता है। लेकिन इस राशि का जीवन साथी अपनी गतिविधियों से उस पडौसी पर अपना वर्चस्व कायम रखने की कोशिश करता है। इस राशि के द्वारा जो भी घर वृष राशि के गुरु में बनाये जाते है वे केवल धन की कमाई या ऊपरी इन्कम को ध्यान में रखकर बनाये जात्गे है।

कर्क राशि वाले अपने घर को तुला के गुरु में कुम्भ के गुरु में और मिथुन के गुरु में ही बनाने की कोशिश करते है,इस राशि वाले जब भी अपना घर तुला के गुरु में बनाते है तो इन्हे सौगात में दाहिनी तरफ़ या तो सन्तान हीन लोग मिलते है और बायीं तरफ़ नौकरी पेशा और अपने घर को किराये पर चलाने वाले लोग मिलते है,दाहिनी तरफ़ वाला घर हमेशा तुला राशि वाले से मानसिक शत्रुता रखता है और दाहिनी तरफ़ वाला पडौसी केवल मतलब से ही मतलब रखने वाला होता है। इस राशि वालों का मकान अक्सर पूर्व मुखी ही मिलता है। जब इस राशि वाले कुम्भ राशि के गुरु में अपना मकान बनाते है तो मित्र इनकी सहायता में बहुत जल्दी आते है और इस राशि के बायीं तरफ़ एक मकान को दुबारा तोड कर बनाया जाता है और उसका दरवाजा पहले जो रहा होता है वह बदल कर लगाया जाता है,इसके अलावा जो मकान दाहिनी तरफ़ का होता है वह कई हिस्सेदारों का होता है और अक्सर उसके तीन ही हिस्सेदार मिलते है,लेकिन वह मकान किसी धर्म स्थान या सामाजिक जमीन को कब्जे में लेकर अनैतिक रूप से भी बनाया गया होता है। मिथुन राशि के गुरु में जब इस राशि वालों का मकान बनता है तो वह तीसरी सम्पत्ति के रूप में भी माना जाता है और तीन मन्जिल के आकार का भी बनता है। उस मकान से इस राशि वालों की पहिचान होती है। उस मकान के दाहिने साइड में कोई धन से सम्बन्धित या खाने पीने के सामान को बेचने से सम्बन्धित व्यक्ति का मकान होता है तथा बायीं तरफ़ जनता से जुडे व्यक्ति का या पब्लिक के लिये कार्य करने वाले व्यक्ति का मकान होता है।

सिंह राशि के लिये मकान बनाने के लिये वृश्चिक राशि के गुरु में मीन राशि के गुरु में और कर्क राशि के गुरु में मकान बनाने की बारी आती है,इस राशि वालों का मकान पहले तो उसी स्थान पर बनाया जाता है जहां पहले कोई रहता ही नही हो और बंजर जमीन पर बनाये जाने वाले मकानों की श्रेणी में आता है। अक्सर इस प्रकार के लोग इस गुरु की उपस्थिति में उस जमीन को सरसब्ज करने की कोशिश करते है जिसका पहले कोई मूल्य नही रहा होता है। मीन राशि में गुरु के होने पर भी इस राशि वाले किसी प्रकार की मौत के बाद की सम्पत्ति को अपने आधीन करने के बाद अपना घर बनाने की कोशिश करते है,और इसके दाहिने तरफ़ वाला पडौसी या तो रक्षा सेवा में होता है या डाक्टरी या इन्जीनियरिंग वाले कामों के अन्दर अपना स्थान रखता है,बायीं तरफ़ वाला व्यक्ति पहले उस मकान मालिक का कोई बनाया गया रिस्तेदार होता है लेकिन जैसे ही इस राशि वाला मकान का निर्माण करता है उससे पहले ही वह अपना मकान जो पहले होता है उसे तोड कर बनाने की कोशिश करता है। कर्क राशि के गुरु में मकान की बनाने की क्रिया जनता के बीच में या बाजार में बनाने की होती है और अक्सर पानी वाले स्थानों नदियों या समुद्र के किनारे तालाबों या नालों के किनारे मकान बनाने की क्रिया होती है।

ग्रह अनुसार फ़लदायक युति

यह चित्र एक कन्या का है पिता दो भाई है और दो बहिन है,इसके पिता दादा और बहिनों के कुंडलियों में किसी न किसी भाव में किसी न किसी ग्रह की केतु के साथ युति है,इसके दादा की कुंडली में बारहवे भाव में मंगल के साथ केतु की युति है,इस युति से दादा का एक कान चोट लगने से बरबाद हो गया था और वे एक ही कान के है,उन्होने अपने बडे भाई के लिये पूरी जिन्दगी कार्य किया और बडे भाई ने समर्थ होते ही इसके दादा को दूर कर दिया,इसके दादा के बडे भाई का परिवार बहुत ही अच्छी हालत में है जबकि इसके परिवार में किसी न किसी के साथ कोई न कोई शारीरिक मानसिक और पारिवारिक विच्छेद है,कोई भी अपने कार्यों को सुचारु रूप से नही कर पाता है,केतु की युति के कारण दादा की ससुराल में भी कोई नही है और ननिहाल में भी कोई नही है ससुराल में किसी के नही होने के कारण इकलौते साले को इसका दादा अपने पास लेकर अपने ही गांव में आ गया था और उसकी परवरिस तो की लेकिन उसके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करता रहा,जब भी कोई गल्ती हो जाती तो वह उसे बडी बुरी तरह से पीटता और उसकी शादी भी करने के बाद उसे बन्धक की तरह से रखा। इसके पिता की कुंडली में बुध केतु की युति सप्तम भाव में है वह अपने ही परिवार के चाचा की लडकी को लेकर भाग गया और बाद में उसे दीन हीन अवस्था में छोडा,उसके बाद जब इसके पिता की शादी हुयी तो पत्नी भी दिमागी रूप से शादी के बाद अस्वस्थ हो गयी और वह अपने ही परिवार को त्याग कर अपने मायके में जाकर बैठ गयी। इस बच्ची की जुबान भी है लेकिन आवाज नही है,कारण तालू के अन्दर बडा खड्डा है और डाक्टरों ने किसी भी प्रकार के आपरेशन के बाद स्पष्ट आवाज के आने से मना कर दिया है। इस बच्ची के पिता के बडे भाई भी पोलियो से ग्रस्त है उनकी दोनों टांगे बेकार है और बैसाखियों के सहारे चलते है,उनकी कुंडली मे भी मेष राशि में गुरु और केतु की युति है। इसकी बुआ की कुंडली में चन्द्र केतु की युति होने के कारण उसे ह्रदय सम्बन्धी बीमारी है और ह्रदय का आपरेशन भी हो चुका है साथ ही वह कभी भी पानी के क्षेत्र में जाने या रहने अथवा किसी भी प्रकार से पानी को अधिक प्रयोग करने के बाद अस्वस्थ हो जाती है। इसके साथ एक और बात देखी गयी है कि चन्द्र केतु की युति के कारण जैसे ही इसकी बुआ की शादी हुयी इसका फ़ूफ़ा अपने परिवार से ताल्लुक तोड कर ससुराल खान्दान से अपना लगाव कर बैठा और अपने माता पिता को दूर कर दिया आज उसकी भी हालत बहुत खराब है उसके भी दोनो पैर एक एक्सीडेंट के बाद अपने काबू में नही है। इसकी छोटी बुआ की कुंडली में सूर्य केतु की युति होने से पित्त की थैली ही निकाल दी गयी जिससे उसे भी आजीवन भोजन को पचाने सम्बन्धी दिक्कत का सामना करना पडेगा,उसके भी बच्चों में बडे वाले बच्चे की बुद्धि में मंदता आ गयी है।
इस व्यक्ति का नाम नाथू है और यह राजस्थान के प्रसिद्ध भुवाल माता के मन्दिर में बैठ कर भीख मांगा करता है यह लम्बाई में भी नही बढ पाया। जब इसकी जन्म तिथि के अनुसार गणना की तो इसकी कुंडली में सूर्य केतु की युति अष्टम भाव में मिली तथा बुध राहु शुक्र इसके दूसरे भाव में है। यह गाना बजाना अच्छा जानता है और कई धार्मिक फ़िल्मों में इसका डांस भी देखने को मिलता है। बहुत सोरीली आवज है साथ ही शराब का भी सेवन करता है। राजस्थान की भुवाल माता को जो शराब पीती है के लिये भी बुध राहु की युति से युक्त माना जाता है और जो लोग बुध राहु की युति से परेशान होते है इस मन्दिर में जाकर माता को दारू का भोग लगाते है उन्हे परेशानियों से निजात मिलती देखी गयी है। बुध राहु की युति में अगर शुक्र साथ देता है तो लोग माता के भजन गाने और सजावटी मन्दिर आदि बनाकर उनके अन्दर अपने कार्यक्रम को प्रस्तुत करने के मामले में भी जाने जाते है लेकिन सूर्य अगर केतु के साथ अष्टम में आजाता है तो व्यक्ति की हड्डियों का विकास रुक जाता है और जातक किसी भी तरह से अपनी लम्बाई को नही प्राप्त कर पाता है।
यह जातिका बांसवाडा राजस्थान में जन्मी है,यह घर से कई बार जा चुकी है और कभी यह कुये में मिलती है तो कभी गहरी खाई में मिलती है,लेकिन आठ आठ दिन भूखी प्यासी रहने के बाद मरी नही है। गरीब परिवार में जन्म लेने के कारण इसके लिये मानसिक इलाज भी नही हो पाया। जैसा जिसने बताया गरीब माता पिता ने इसका इलाज किया। इसकी जन्म तिथि देखने के बाद पता लगा कि इसके लगन में चन्द्रमा को शनि और मंगल दोनो ही देख रहे है और शुक्र वृश्चिक राशि का होकर त्रिक भाव में पडा है,गुरु अष्टम स्थान को देख रहा है,सूर्य भी मंगल से द्र्ष्ट है,इस जातिका कुंडली में भी बुध केतु का योगात्मक रूप छठे भाव में शुक्र के साथ है,यह बुध केतु इसे मंद बुद्धि का बना रहा है,और किसी के सामने रहकर यह बोलती नही है अकेले में बैठ कर पता नही क्या क्या बातें करती रहती है। चन्द्र शनि और गुलिक के साथ भी केतु के होने से यह जड बुद्धि वाला योग मिलता है।
बुध केतु के योगात्मक प्रभाव को समझने के लिये इस जातिका के लिये भी देखना उचित होगा,यह जातिका कन्या लगन में पैदा हुयी है और इसके तीसरे भाव मे बुध के साथ केतु और शनि की युति है यह कपडे का व्यापार अच्छी तरह से कर लेती है केवल छठी पास होने के बाद भी इसकी बुद्धि बहुत ही तीक्षण है और बेकर से बेकार कपडे को काट कर उसे काम के योग्य बना लेती है। इसके जीवन में बुध केतु और शनि के प्रभाव से पति सुख नही मिला है पति ने शादी के बाद तीन बच्चे पैदा होने के बाद इसे बेसहारा छोड दिया और इसने अपने कार्य कुशल और कमन्यूकेशन में प्रवीणता के कारण अपने को कपडे के व्यवसाय में लगा लिया,यह अपने में एक विलक्षण बात केतु के बारे में जानी जा सकती है,गुरु क असर लगन में होने के कारण इसका दिमाग भी धार्मिक कार्यों की तरफ़ अधिक जाता है,साथ ही इसके साथ छल भी बहुत होते है और गंडे ताबीज पर अधिक विश्वास करवाने के लिये भी बुध केतु अपना असर देते है।

कम्पयूटर में निपुणता का योग

कम्पयूटर में तीन ग्रहों के योग को मुख्य माना जाता है,बुध जो गणित का कारक है और गुरु जो प्राप्त किये गये ज्ञान को संग्रह करके रखता है और शनि जो परिश्रम करने का कारक है,इसके साथ ही गहरी सोच जो असीमित जानकारी को प्रदर्शन करने के लिये अपनी बुद्धि को प्रकट कर सके,इसका कारक राहु होता है। सिंह और वृष लगन के धन भाव का स्वामी बुध होता है और वह उच्च का होकर मिथुन राशि में ही विराजमान हो जाये,गुरु बुध को बल देने लगे,शनि वक्री होकर शरीर बल की अपेक्षा बुद्धि बल को प्रदर्शित करने लगे और राहु बुध का साथ देने लगे तो व्यक्ति को कम्पयूटर के क्षेत्र मे अपने विकास से कोई रोक नही सकता है। वृष लगन के जातक में अगर यह योग मिलता है तो जातक को धन के मामले में बहुत ही गहरी जानकारी हो जाती है और वह किसी भी प्रकार के धन से सम्बन्धित साफ़्टवेयर की रचना कर सकता है,अगर यह सिंह राशि में मिलती है तो व्यक्ति कमन्यूकेशन के मामले में अपनी बुद्धि को विकसित करने के बाद नाम कमा सकता है।

अन्य राशियों के मामले में भी देखने की बात है कि अगर यह युति तुला राशि में मिलती है तो व्यक्ति के पास इन्ही मामलों में अन्तराष्ट्रीय मामले में आगे बढने की उपाधि मिलती है और वह बाहरी कार्यों को बाहरी व्यक्तियों को बडे आराम से डील कर सकता है,बाहरी साफ़्टवेयर उसकी समझ में जल्दी आने शुरु हो जाते है तथा वह अपने मेहनत और ज्ञान से अपने लिये कोई न कोई रास्ता भी खोज लेता है,अगर तुला राशि का केतु भी तीन सात ग्यारह में अपना बल दे रहा है तो व्यक्ति के पास आजीवन कमन्यूकेशन से लडने की क्षमता का विकास अपने आप शुरु हो जाता है। इस प्रकार का योग अगर मेष राशि वालों को मिलता है तो वे अपने ज्ञान के द्वारा बैन्किन्ग फ़ायनेन्स चिकित्सा ह्यूमेन रिसोर्स आदि के मामले में अपनी जानकारी से सोफ़्टवेयर का निर्माण कर सकता है,और अपने द्वारा तुरत कमन्यूकेशन और प्रदर्शित करने वाले कमन्यूकेशन के मामले में भी वह अपने विचार प्रदर्शित कर सकता है।

नाम राशि से अगर देखा जाये तो बिल गेटस और माइक्रोसाफ़्ट जैसे लोगों के नाम की राशि वृष और सिंह ही है। इसके अलावा विन्डो और माइक्रोसाफ़्ट के लिये भी देखा जा सकता है।

धनेशे ज्ञे स्वोच्चे गुरौ लग्नेऽष्टमे मंदे गणितज्ञ: वाली कहावत का पूरा ब्यौरा इन दोनो कम्पनियों में मिलता है,इन दोनो राशियों का स्वभाव भी अपने दिमाग में बैठे बैठे मीजान बिठाने वाला होता है। जिस तरह से वृष और सिंह साफ़्टवेयर के मामले में उसी प्रकार से वृश्चिक और कुम्भ हार्डवेयर के मामले में भी जानी जाती है.

अपने बुध और राहु की प्रोग्रेस के लिये तथा गुरु और शनि की युति को कायम रखने के लिये जातक को जब भी वह अकेला हो कोई न कोई धारणा सोचने के साथ उसके पाइंट लिखते रहने से वह अपनी सभी गतिविधियों को उच्चता की श्रेणी तक ले जा सकता है,इसके अलावा उसके लिये हरा भरा वातावरण और नीला परिवेश भी उसके लिये सहायक होता है,सीमित मात्रा के तापमान वाली जलवायु भी जातक के लिये जरूरी है,अगर इन राशियों वाले लोग अधिक ठंडे और अधिक वातावरण में अपने कार्य को करते है तो वह फ़ेल केवल इसलिये हो जाते है क्योंकि उनका दिमाग गुरु और शनि की अधिकता से फ़्रीज होना शुरु हो जाता है और राहु की अधिकता से वे जो सोचते है वह कर नही पाते है।

सन्तान योग

किस मनुष्य की कैसी सन्तान होती इस्का पता भी लगाया जा सकता है। जन्म कुण्डली में चलित नवमांश कारकांश के द्वारा जन्म योग है या नही इसका पता लगाना तो असंभव नही है तो कठिन अवश्य है।

सन्तान सुख का विचार करने के लिये त्रिकोण यानी पहले पांचवे और नवे भाव तथा दूसरे ग्यारहवे भाव से सन्तान सम्बन्धी विचार करना चाहिये।
पहले भाव यानी शरी के भाव से जो शरीर के बारे में नये जन्म का विचार देता है से सन्तान के प्रति जानने के महत्वपूर्ण भाव के रूप में जाना जाता है। इसके अन्दर सबसे पहले पति और पत्नी जातक के शरीर के बारे में परीक्षा करनी चाहिये। स्त्री के शरीर से में प्रजनन क्षमता है कि नही और पुरुष के अन्दर प्रजनन के लिये कारक वीर्य की बलवता है कि नही इस बारे में पहले विचार किया जाना उत्तम रहता है। इसके बाद दूसरे भाव से यह भी जानना आवश्यक है कि शरीर से उत्पन्न कुटुंब की बढोत्तरी है कि नही,कहीं ऐसा तो नही कि मारक ग्रह दूसरे स्थान में हो और संतान के पैदा होते ही वह ग्रह सन्तान को समाप्त कर दे। अगर मारक ग्रह है तो उसका इलाज भी करना जरूरी है। इसके बाद पंचम भास एसन्तान सुख का विचार किया जाता है,पांचएं स्थान से पांचवे स्थान यानी नवें स्थान अप्र आखिर में ग्यारहवां स्थान यानी लाभ स्थान पांचवे स्थान से सामने बैठे हुये ग्रह भी देखने जरूरी होते है और अपना असर पूरा संतान के मामले में देते है।

इन पांचों स्थान पर गुरु की द्रिष्टि युति और अन्य प्रकार की गुरु वाली बाते याद रखनी चाहिये,इसके बाद सप्तमांश नवमांश कारकांश यह कुण्डली में जन्म के इन पांचों स्थानों के स्वामी की क्या पोजीसन है उसका भी ध्यान होने के बाद सन्तान सम्बन्धी जातक को योग्य मार्गदर्शन करना चाहिये।

सूर्य मंगल गुरु पुत्र संतान के कारक होते है,चन्द्रमा स्त्री ग्रह है और बुध शुक्र शनि कुंडली में बलवान होने पर पुत्र या पुत्री का सुख प्रदान करते है,सूर्य की सिंह राशि बहुत कम सन्तान देने वाली है,और अगर सूर्य ग्यारहवें भाव में बैठ कर पंचम को देखता है तो एक पुत्र से अधिक का योग नही बन पाता है,कभी कभी इस सूर्य के कारण वंश वृद्धि में बाधा भी मिलती है। लेकिन सूर्य कम से कम एक पुत्र तो देगा ही। यदि चन्द्रमा की राशि कर्क किसी प्रकार से योगकारक बन रही है और माता के कारक चन्द्रमा का प्रभाव जीवन में अधिक है या राहु के द्वारा चन्द्रमा और शुक्र को देखा जा रहा है तो भावना के अनुसार चन्द्रमा का भय यानी राहु और चन्द्रमा मिलकर सास का रूप देते है और पत्नी भय से केवल सास के अलावा और किसी के बारे में सोच भी नही पाती है तो कन्या सन्तान का होना आवश्यक हो जाता है और तीन कन्या तक की मान्यता मानी जाती है। एक कहावत "चन्द्र कन्या प्रजावान" के अनुसार भी माना जाता है कि कन्या राशि का चन्द्रमा अधिक प्रजा को उत्पन्न करने वाला होता है। इसके बाद भी पंचम में अगर कर्क या मीन राशि है तो भी कन्या सन्तान की अधिकता होती है। अगर पंचम में कर्क राशि को ग्यारहवे भाव से शनि देखता हो तो वास्तव में सात पुत्री का भी योग बनता है। और पुत्र भी एक ही होता है। शनि पुत्र सुख नही देता है यह बात अटल रूप से मानकर चलनी चाहिये।
अगर पंचम स्थान पर शनि और मंगल की द्रिष्टि होती है या पंचम स्थान का मालिक व्यय स्थान से सम्बन्ध रखता है अथवा पंचम और धन स्थान पर पाप ग्रहों की युति होती है तो पुत्र का सुख नही मिल पाता है पुत्र होता भी है तो वह या तो बाहर चला जाता है या घर पर भी रहते हुये अजनबी जैसा व्यवहार करता है।

मनपसन्द सन्तान के लिये स्त्री के ऋतुकाल से सोलह रात तक ऋतुकाल रहता है,उसमें ही गर्भ धारण हो सकता है,उसमें पहली चार रातें ऋतुदान के वास्ते मना की गयी है,क्योंकि दम्पति के आरोग्य को पहली चार राते रोग पैदा करने वाली होती है,यह समय अनेक रोगों और बाधाओं को बढाने वाला होता है,और विद्वान स्त्री पुरुष इन रातों का परित्याग करते है। इसके बाद की बारह रातें ऋतुदान के लिये मानी गयी है,चौथी रात के ऋतुदान से पुत्र की प्राप्ति होती है लेकिन उसकी उम्र कम होती है,पंचम रात से पुत्री उत्पन्न होती है लेकिन उसकी भी या तो उम्र कम होती है या रोगी होकर पूरी जिन्दगी निकालती है,छठी रात को पुत्र की पैदाइस मानी जाती है और लम्भी उम्र तथा वंश के आगे वृद्धि के लिये माना जाता है,सातवीं रात से पुत्री पैदा होती है लेकिन वह आजीवन सन्तान पैदा करने से दूर रहती है,आठवीं रात से पुत्र पैदा होता है नवी रात से पुत्री दसवीं रात से श्रेष्ठ पुत्र पैदा होता है,ग्यारहवी रात से सुन्दर पुत्री की पैदाइस होती है,बारहवीं रात से श्रेष्ठ पुत्र की पैदाइस होती है,तेरहवीं रात से चिन्ता करने वाली पुत्री पैदा होती है,चौदहवीं रात से पुत्र और पन्द्रहवी रात से लक्ष्मीवान पुत्री प्राप्त होती है,सोलहवीं रात से सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की उत्पत्ति होती है,इसके बाद के संयोग से पुत्र संतान की प्राप्ति नही होती है,अगर होती भी है तो या तो गर्भ स्त्राव हो जाता है अथवा मृत अवस्था में पैदा होती है।

सुकर्म का कारक गुरु


कर्म की महिमा अपने अपने बडी ही विचित्र है। इस संसार में कर्म अपने अपने अनुसार बनाये गये है। जो भी व्यक्ति मनुष्य रूप में पैदा हुआ है वह अच्छे कर्म करने के लिये ही शुरु हुया है। हर व्यक्ति अपने अपने अनुसार अच्छा ही कर्म करता है लेकिन कभी कभी जाने अन्जाने में वह कर्म भी हो जाते है जो हर मनुष्य को बुरे लगते है। मनसा वाचा कर्मणा जिन कर्मों से हिंसा होती है वे कर्म नही कुकर्म कहलाते है। कुकर्मों का फ़ल यह गुरु अपने अनुसार समय समय पर देता है। लोग अपने कुकर्मों को करने के बाद सोचते है कि उन्हे कोई देख नही रहा है और वे बडे आराम से अपने कुकर्मो को कर रहे है। जब गुरु उनके विपरीत भावों में प्रवेश करता है तो जो कुकर्म किये गये है उनकी सजा भरपूर देने के लिये अपनी कसर बाकी नही छोडता है। जब गुरु अपने अनुसार सजा देता है तो वह यह नही देखता है कि जातक के अन्दर कुकर्मों को करने के बाद धार्मिकता भी आगयी है या वह अपने को लोगों की सहायता के लिये तैयार रखने लगा है बल्कि उसे वह सजा मिलती है जो मनुष्य अपने अनुसार कभी दे ही नही सकता है।

गुरु केतु के साथ मिलकर जब छठे भाव में प्रवेश करता है तो वह धन वाले रोग पहले देना शुरु कर देता है,वह धन को जो किसी प्रकार के कुकर्मो से जमा किया गया है उसे बीमारियों में खर्च करवा देता है जातक को अस्पताल पहुंचा देता है,और उन पीडाओं को देता है जिसे दूर करने में दुनिया के बडे से बडे डाक्टर असमर्थ रहते है। जातक को ह्रदय की बीमारी देता है और गुरु जो सांस लेने का कारक है गुरु जो जिन्दा रखता है,गुरु जो ह्रदय में निवास करता है और हर पल की खबर ब्रह्माण्ड तक पहुंचाता है,यानी जातक के द्वारा जितनी सांसें खींची जाती है और जितनी सांसे ह्रदय के अन्दर थामी जाती है सभी में व्यक्ति के मानसिक रूप से सोचने के बाद कहने के बाद और करने के बाद सबकी खबर हर सांस के साथ ब्रह्माण्ड में पहुंचाता है और हर आने वाली सांस में ब्रह्माण्ड से अच्छे के लिये अच्छा फ़ल और बुरे के लिये बुरा फ़ल गुरु के द्वारा भेज दिया जाता है। अगर व्यक्ति किसी के लिये बुरा सोचता है तो सांस के साथ गुरु उन तत्वों को भेजता जो जातक के सिर के पीछे के भाग्य में जाकर जमा होने लगते है और जातक को चिन्ता नामक बीमारी लग जाती है जातक दिन रात सोचने के लिये मजबूर हो जाता है उसे चैन नही आता है वह खाना समय पर नही खा सकता है वह नींद समय पर ले नही सकता है वह अन्दर ही अन्दर जलने लगता है,और एक दिन वह गुरु उसे लेजाकर किसी अस्पताल या किसी दुर्गम स्थान पर छोड देता है जिन लोगों के लिये जिन कारणों के लिये उसने अपने अनुसार कुकर्म किये थे,उनकी सजा गुरु देने लगता है। व्यक्ति कोजिन्दा रहना भी अच्छा नही लगता है और अन्त में अपने कुकर्मों की सजा यहीं इसी दुनिया में भुगत कर चला जाता है।

लोगों के द्वारा मनीषियॊं के द्वारा कहा जाता है कि स्वर्ग नरक अलग है,लेकिन सिद्धान्तों के अनुसार यहीं स्वर्ग है और यहीं नरक है। जब व्यक्ति सात्विक तरीके से रहता है अपने खान पान और व्यवहार में शुद्धता रखता है और जीवों पर दया करता है तो वह देवता के रूप में स्वर्ग की भांति रहता है। जब व्यक्ति के कुकर्म सामने आने लगते है तो वह अपने स्वभाव में परिवर्तन लाता है,आमिष भोजन को लेने लगता है शराब आदि का सेवन करने लगता है जीवों को मारने और सताने लगता है,अच्छे लोगों के लिये प्रहसन करता है,अपने अन्दर अहम को पालकर सभी को सताने के उपक्रम करने लगता है यही नर्क की पहिचान होती है उसका सम्बन्ध बुरे लोगों से हो जाता है और वह बुरी स्त्री या पुरुषों से सम्पर्क करने के बाद बुरी ही सन्तान को पैदा करता है,अन्त में किसी न किसी भयंकर रोग से पीडित होता है या किसी कारण से अपने को गल्ती करने से अंग भंग कर लेता है अपंग हो जाता है या किसी दुर्घटना उसका शरीर छिन्न भिन्न हो जाता है,उसके पीछे कोई नाम लेने वाला पानी देने वाला नही रहता है,यह नर्क की सजा को भुगतना बोला जाता है।

हर मनुष्य की मर्यादा होती है वह अपने को दूसरे के भले के लिये ही जिन्दा रखे,उसे किसी प्रकार का मोह पैदा नही हो वह जिससे भी मोह कर लेगा वही उसका दुख का कारण बन जायेगा। जिस वस्तु की अधिकता होती है वही वस्तु परेशान करने वाली हो जाती है,यानी अति किसी भी प्रकार से अच्छी नही होती है,इस अति से बचा जाय उतना ही संचय किया जितने से परिवार कुटुंब का पेट भरे और उनके लिये संस्कारों वाली शिक्षायें मिले जो लोग आधीन है वे किसी प्रकार से बुरे रास्ते पर नही जा पायें,वे दुखी नही रहे बुर्जुर्गों को बुजुर्गों वाले सम्मान देने चाहिये और छोटो के लिये हमेशा दया रखनी चाहिये। दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान,तुलसी दया न छोडिये जब लग घट में प्राण।

गुरु का राशि परिवर्तन (मीन)

मीन राशि कालचक्र के अनुसार मोक्ष नामक पुरुषार्थ से सम्बन्ध रखती है। व्यक्ति के जन्म लेने के बाद मौत तक तो वृश्चिक राशि का प्रभाव चलता है लेकिन धनु राशि से लेकर जन्म लगन तक जातक का पिछला परिवार और जातक के पिछले जीवन के बारे में जानकारी मिलती है। मीन राशि गुरु की नकारात्मक राशि है,इस राशि से जातक के लिये देखा जाता है कि जातक पिछले जन्म में किस योनि मे अपना स्थान रखता था,वह आदतों से कैसा था,और उसके द्वारा जो भी आराम करने के स्थान,शांति प्रदान करने के कार्य, कमाने के बाद खर्च करने के स्थान आदि के बारे में सोचा जाता है,वैसे यह राशि कर्क राशि से नवें भाव की राशि है वृश्चिक राशि के पंचम की राशि है, जो भी मौत के बाद की जानकारी होती है इसी राशि से मिलती है। कमाने के बाद जो खर्च कर दिया जाता है और खर्च करने के बाद जो संतोष मिलता है वह इसी राशि से मिलता है,अपने स्वभाव के अनुसार जीव अपने स्वार्थ के लिये खर्च करता है उसे संतोष तभी होता है जब उसने जिस कार्य के लिये खर्च किया है,ऋषि मुनि अपने अपने ज्ञान और शरीर को ही खर्च कर देते थे,धनी लोग अपने स्वार्थ के लिये बडे बडे चैरिटीबल ट्रस्ट बनाकर अपने पूर्वजों के लिये धर्मशाला और मन्दिर आदि बनवा कर खूब खर्च कर देते है। यह मीन राशि का स्वभाव होता है। इसी स्वभाव में जातक का जब जन्म होता है तो उसे ईश्वर की तरफ़ से सौगात मिलती है कि वह बडे संस्थान या बडे काम को सम्भालने के लिये अपनी जीवन को खर्च करने के लिये आया है। उसे जो भी मिलेगा वह बडे रूप में ही मिलेगा,और इस राशि के प्रभाव से वह कार्य भी बडे ही करेगा,उसके लिये कोई छोटा कार्य जभी समझ में आता है जब राहु या शनि का साथ गुरु के साथ हो गया हो। जैसे मीन राशि का गुरु और राहु एक साथ हो गये,और शनि की नजर इस राशि के गुरु और राहु पर है,तो या तो व्यक्ति किसी बडे संस्थान में साफ़ सफ़ाई का कार्य करता होगा या वायुयान की सेवा में अपना जीवन ऊपर ही गुजार रहा होगा। लेकिन मंगल का बल भी देखना पडेगा कि वह अपने लिये क्या सौगात देता है और कितना बल देता है बल सात्विक है या तामसिक है आदि बाते भी अपना अपना महत्व रखती है। मीन राशि हवा की राशि है और अपने को एक एक कदम पर हवा में उछालती है,शरीर में इस राशि का प्रभाव पैर के तलवों पर होता है,जब भी व्यक्ति चलता है तो हर कदम पर तलवे चलने लगते है भूमि से स्पर्श करने का कार्य तलवों का ही होता है,मीन राशि का शनि जूते के रूप में जाना जाता है और मीन राशि का गुरु जहाँ भी अपना स्थान बनाता है लोग उसके पैरों में ही झुकते रहते है। लेकिन शनि और गुरु के अन्दर शक्ति की भी जरूरत होती है। कई बार ऐसा भी होता है कि मीन राशि के गुरु का जातक अपने स्वभाव और पहिने ओढने के बाद देखने में तो पक्का गुरु लगता है लेकिन उसके स्वभाव में गुरु के बक्री होने का असर भी होता है वह कब सात्विक से बदल कर तामसी हो जायेगा कोई पता नही होता है,अगर इस गुरु के साथ में राहु भी है या जन्म के राहु के साथ गुरु का गोचर हो गया तो बहुत ही बडा फ़न्दा सामने आने की तैयारी हो जाती है या तो जातक को सूर्य की शक्ति के अनुसार जेल में रहना पडता है या किसी ऊंचे स्थान से पतन होकर हमेशा के लिये शांति भी मिल जाती है। लेकिन केतु का कमजोर भी होना जरूरी है यह नही कि केतु बलवान है और शनि के साथ केतु भी अपनी बलबत्ता को भूल जायेगा ऐसा नही मानना चाहिये अगर कोई वक्त गुरु के साथ राहु होने से जेल जाने का बनता है और केतु शनि के साथ बलवान है तो जातक को शनि जो केतु का काम करता है वकील के रूप में सामने आकर उसे छुडा लेगा भले ही उसे सूर्य और राहु की युति से जज अपना फ़ैसला सही ही क्यों न दे दे।

गुरु का मीन राशि में प्रवेश होने से जिनका गुरु जन्म से ही मीन राशि में था उनके लिये विदेश जाने के रास्ते खुल जाते है। जो लोग अविवाहित होते है उनके लिये रिस्ते आने शुरु हो जाते है लेकिन जो भी रिस्ते आते है उनके लिये देखना यह पडता है कि इस राशि के सप्तम में अभी शनि भी विराजमान है,जातकों के अन्दर विवाह और जीवन साथी के प्रति अनिच्छा भी मिलती है,कामेक्षा की कमी होती है,इस प्रकार से जो भी रिस्ता आता है या रिस्ता बनाया जाता है वह कुछ समय के लिये तो चल सकता है लेकिन जातक के अन्दर अधिक ठंडक होने से और कार्यों के प्रति जद्दोजहद होने से भी दिक्कत आनी शुरु हो सकती है। गुरु के प्रभाव के कारण इस राशि से तीसरे स्थान पर वृष राशि होने से और इस राशि के अष्टम में राहु होने से इस राशि के साथ जो धन वाले मामलो मे या कमन्यूकेशन के बाद धन का आना होता था वह किसी न किसी प्रकार से कपट पूर्ण रीतियों से खर्च कर लिया जाता था उसे पता करने के लिये कोई बडी संस्था को अपनी सेवायें देकर उस कपट का पता चलने की बारी भी यह गुरु अपने स्वभाव से प्रदान करता है। गुरु की पंचम नजर कर्क राशि पर होने से जातक के अन्दर जल्दी से धन कमाने की कला की पैदाइस भी मानी जा सकती है जो लोग तकनीकी शिक्षा के प्रति कमजोरी महसूस कर रहे थे उनका दिमाग भी सही चलने की बारी आजाती है,लेकिन शिक्षा से सम्बन्धित लोगों को इस राशि का सप्तम का शनि रहने की परेशानी देता है,कभी पीने वाले पानी से परेशान करता है कभी आने जाने के साधनों से परेशान करता है और कभी मानसिक रूप से दिक्कत देने वाला होजाता है। इस राशि वालों के लिये दक्षिण पश्चिम की यात्रायें भी बनने लगती है,जो लोग अपने पूर्वजों को तर्पण आदि देना भूल गये होते है वे अपने अपने अनुसार तर्पण की व्यवस्था भी करते हुये देखे जा सकते है। कोई फ़ूलो की माला से कोई दीपक जलाकर और कोई अगरबत्ती जलाकर और कोई पिंड आदि देकर अपने कार्य को सम्भाल लेता है और नही तो कोई अपने पूर्वजों के नाम से धर्म स्थानो का निर्माण ही करवाने लगता है।

गुरु का राशि परिवर्तन (कुम्भ)

तुलसीदास जी ने एक चौपाई रामचरितमानस में लिखी है -"धर्म से विरति योग से ग्याना,ग्यान मोक्ष प्रद वेद बखाना",अर्थात जब व्यक्ति अपने को न्याय समाज जलवायु और मर्यादा में लेकर चलने लगता है तो उसके सामने हजारों कारण व्यस्त रहने के बन जाते है,जब वह अपने को कारण रूप से बने कार्यों के अन्दर व्यस्त कर लेता है तो वह एक योगी की भांति अपने जीवन को चलाने लगता है। उसे केवल भोजन अगर समय से मिल जाये तो ठीक है नही मिलता है तो ठीक है वह अपने को कार्यों में हमेशा ही लगाकर रखता है। कार्य की अधिकता के कारण और अपने शरीर को शरीर नही समझने पर इस प्रकार के जातक को एक योगी की भांति ही माना जा सकता है। जब व्यक्ति विरति यानी कर्म में अपने को लगा लेता है और संसार में केवल अपना कर्म ही धर्म के रूप में देखता है तो उसे योग अर्थात समय की पहिचान और कार्यों के दक्षता के साथ दुनियादारी के प्रति जानकार समझ लिया जाता है। उसे ज्ञानी की श्रेणी में रखा जाने लगता है और जब ज्ञान को खर्च करने के बाद उसका उपयोग किया जाता है,तो वह मोक्ष का अधिकारी माना जाता है। कुम्भ राशि वालों को कार्य के बाद प्राप्त फ़लों के रूप में माना जाता है,कालपुरुष के अनुसार यह राशि मित्रता और बडे भाई के रूप में माना जाता है। यह कार्य करने के बाद मिलने वाले फ़लों से भी माना जाता है,यह राशि घर बनाने और जनता से सम्बन्ध स्थापित करने के लिये प्राप्त की जाने वाली रिस्क से भी माना जाता है। यह भाव सन्तान के जीवन से चलने वाली जद्दोजहद से भी माना जा सकता है। पिता के द्वारा प्राप्त नगद आय से भी माना जाता है,पिता के द्वारा जोडे गये कुटुम्बी जनों के प्रति और उनसे मिलने वाली सहायता से भी माना जा सकता है। इस राशि का स्वभाव अपने कार्यों और पीछे की जिन्दगी से जुडे कार्यों से माना जाता है यानी जो कल किया है उससे मिलने वाले फ़लों से भी माना जा सकता है। यह राशि बडे रूप में हर कार्य को करना चाहती है छोटे रूप में कार्य करने पर यह केवल जनता के अन्दर रहकर जनता की सेवा करने के बाद और जनता से जुडी समस्याओं के प्रति अपनी वफ़ादारी को रखती है लेकिन इस प्रकार के जातकों का मोह कर्क राशि के छठे भाव में होने के कारण अन्दरूनी रूप से जनता के अन्दर की जानकारियां भी सही समय पर लेने की उत्कंठा रहती है,जब उन्हे जनता के अन्दर के भेद मिल जाते है तो उन्हे दुनियादारी में प्रसारित करने में भी अच्छा लगता है। इस राशि वाले अगर किसी प्रकार से मीडिया या इसी प्रकार के वायु वाले कमन्यूकेशन से जुड जाते है तो अपना अच्छा नाम कर लेते है और कभी कभी यह भी देखा गया है कि इनकी रुचि आलसी होने के कारण और पूर्व में अपने द्वारा फ़रेब आदि करने से गुरु के समय में दिक्कत भी आती है। इस राशि के दूसरे भाव में मीन राशि है गुरु ने इस राशि के दूसरे भाव में प्रवेश किया है,पिछले समय से चली आ रही अपमान मौत और जोखिम के लिये जो शनि बार बार अपनी शक्ति को दे रहा था उसके अन्दर गुरु के सामने आजाने से धन वाली और परिवार कुटुम्ब वाली परेशानियों में अन्त होने का समय माना जाता है,जो लोग पहले अपनी रिस्क के अनुसार जनता के धन को प्रयोग में लाने के बाद जनता के कर्जी बन गये थे और उन्हे कोई रास्ता चुकाने का नही मिल रहा था वह इस गुरु की कृपा से कोई न कोई रास्ता मिल जाता है चाहे वह रास्ता किसी प्रापर्टी को बेचने के बाद मिलता हो या कोई प्रापर्टी वाला कार्य करने के बाद मिलने वाले कमीशन आदि से जाना जाता हो। दूसरे भाव के गुरु की तीसरी द्रिष्टि मकान और रहने वाले साधनों पर पडती है यह वृष राशि का प्रभाव गुरु को दोहरे धन और धन के द्वारा बनायी जाने वाली सम्पत्ति से तथा घर आदि केरहने के स्थान के परिवर्तन से भी माना जाता है। जनता के अन्दर से ही धन को लेने के बाद जनता के लिये ही कमाने का उपक्रम भी सामने आने लगता है जो लोग शेयर बाजार कमोडिटी आदि का कार्य करते है उन्हे जनता से धन प्राप्त करने और जनता के लिये कमाकर देने के लिये अच्छा समय माना जा सकता है लेकिन अगर वही लोग अपने कमाये धन को अचल सम्पत्ति के रूप में इकट्ठा करते रहे तो आगे के समय उनके लिये अपनी औकात दिखाने का और अपने नाम को बनाने का सही अवसर भी माना जाता है। जो भी रिस्क लेने वाले साधन है उनके अन्दर यह राशि वाले अगर अपनी बुद्धि को जरा भी प्रयोग में लाते है तो उन्हे धन के कमाने से कोई रोक नही सकता है,इसके लिये उन्हे यह भी ध्यान रखना पडेगा कि मित्र भाव में विराजमान राहु उन्हे मित्रों के द्वारा कपट पूर्ण व्यवहार से भी बाधित करेगा,मित्रो से झूठ और फ़रेब से बचकर भी जातक को चलना पडेगा.समय समय पर अपने द्वारा कमाये गये लाभ को अगर वह किसी दूसरे की मंत्रणा से खर्च करता है तो उसे अचानक हानि का भी सामना करना पडेगा। इस गुरु की सप्तम द्रिष्टि शनि पर और कन्या राशि पर जाने से भी अगर वह अपना मोह नौकरी आदि के लिये करता है तो उसके द्वारा किये जाने वाले कोई भी प्रयास जोखिम तो ले सकते है लेकिन सभी जोखिम लेने के पीछे केवल अन्धेरा और ठंडक मिलने के ही आसार मिलते है,अगर हो सके तो इस गुरु के प्रभाव की ठंडी हवाओं से बचने के लिये दूसरे की नौकरी में कोई रिस्क लेना बेकार ही माना जायेगा। इस गुरु की नवीं द्रिष्टि कर्म भाव में जाने से और कर्म भाव में वृश्चिक राशि में होने से जो भी कबाड से जुगाड बनाने की कला होती है वह जातक के अन्दर आराम से काम करने लगती है और व्यक्ति अपने दिमाग से राख से भी सोना पैदा करने की जानकारी रख सकता है। उसके द्वारा ब्रोकर वाले कार्य मौत के बाद के धनो को प्रयोग में लेने के बाद उससे अधिक धन पैदा करने के कार्य पिछले समय में अपनी योग्यता से जो हानि प्राप्त की है उस योग्यता को प्रदर्शित करने और उसके प्रयोग करने के बाद गयी हुयी प्रतिष्ठा को हासिल किया जा सकता है।

गुरु का राशि परिवर्तन (मकर)

कालचक्र के अनुसार मकर राशि अर्थ नामक पुरुषार्थ की राशि है। इस राशि वालो को आजीवन अपने जीवन साथी और साझेदारी के प्रभाव में जूझना पडता है,वे अपने कार्य के आगे किसी भी इमोसन वाले भाव को सही समय पर समझ नही पाते है इस राशि वालों को बचपन से जो अनुभव होते है उन्हे वे अपने जीवन में लगातार साथ लेकर चलते है और बचपन से जब छोटे कन्धो पर जिम्मेदारियों का प्रभाव आजाता है तो वे अपने को किसी भी क्षेत्र में जाने से पहले अपने पीछे वाले जीवन को सोचते है। अक्सर अपनी भावनाओं को जल्दी से भुला भी नही पाते है और इस राशि वालों को पूर्व के किये गये कर्मों का भुगतान बहुत अच्छा मिलता है और जीवन की गति पूर्व कर्मों पर आधारित ही होती है,जातक अपने पूर्वजों की मान्यता में चलने वाला होता है और पिता का बहुत प्रिय होता है अथवा पिता से हमेशा के लिये त्यागा हुआ होता है।
इस राशि के तीसरे भाव में गुरु का गोचर शुरु हुया है,तीसरा भाव प्रदर्शन का कारक भी है इस राशि वाले के लिये यह प्रदर्शन करना अब आसान होगा कि वह जान कार है और सभी शान्ति वाले कारणों को वह अपनी बुद्धि से प्रसारित कर सकता है। इस भाव एक और सबसे अधिक प्रभाव देखा जा सकता है कि इस राशि वाला दूसरों को विदेश भेजने धर्म स्थान पर भेजने और मुक्ति के मार्ग पर भेजने के लिये जो भी प्रयास करेगा वे तो सफ़ल हो जायेंगे लेकिन खुद अगर प्रयास करे तो वे असफ़ल हो जायेंगे,गुरु के इस प्रभाव के कारण जातक को घर से बाहर रहने के बाद तो अच्छे असर मिलते है लेकिन घर के अन्दर रहते ही उसका दिमाग बाहरी दुनिया में घूमने लगता है,उसे भी अपने कार्यों में दूसरे को राय देना बहुत अच्छा लगता है और राशि के प्रभाव से जो भी सुझाव दिया जाता है वह ऊपर की बातों से सम्बन्धित ही होता है। वर्तमान में इस राशि के बारहवें भाव में राहु के विचरण करने से भी एक असर यह भी देखा जा सकता है कि इस राशि वाले को कम या अधिक समय के लिये बन्धन में भी रहना पड सकता है,या किसी वाहन या यात्रा वाले कारण से अपने द्वारा खर्चा भी करवाया जा सकता है इस राशि में गुरु के होने से सन्तान और शिक्षा के प्रति अपनी धारणा नई बनने लगती है और जातक अपने लिये कोई ऐसे कार्य की तलास मे होता है जो किसी प्रकार से कम मेहनत के बाद भारी लाभ दे सके। जातक के नवे भाव मे शनि होने से भी जातक के लिये कार्यों के अन्दर धर्म और कानून वाले कार्य उसके लिये अपना कर्जा दुश्मनी बीमारी वाला असर देते है,और इस क्षेत्र के कार्य उसे किसी न किसी बडी समस्या से उलझाने के लिये मुख्य माने जाते है गुरु शनि के आमने सामने होने से जातक को कार्यों के प्रति काफ़ी सजगता भी देखी जा सकती है और पूर्वजों की सम्पत्ति और इसी प्रकार के कारणों से भी आमना सामना होने के पूरे पूरे चांस होते है।

गुरु की तीसरी द्रिष्टि बुद्धि वाले भाव मे जाने से जातक के अन्दर बुद्धि का विकास भी माना जाता है और पारिवारिक स्थितियों से निपटने के लिये भी धन को जल्दी प्राप्त करने वाले उपाय किये जाते है उसी प्रकार की शिक्षायें भी मिलती है जो कार्य को करने के बाद प्राप्त होती है,इसका मुख्य कारण शनि और गुरु की आपसी सहमति से यह कार्य होते है अगर जातक राहु के प्रभाव से दूर रहने के उपाय करता रहता है तो उसे कोई भी आने कार्य की निपुणता से रोक नही सकता है यह कारण या तो उसे वाहन की तरफ़ से मिले या किसी बाहरी दुश्मनी या बीमारी से मिले या फ़िर वह अक्समात ही किसी बेकार की यात्रा में अपने मन को लगाले या फ़िर उसके ससुराली कारण उसे परेशान न करे। सन्तान के भाव मे भी गुरु और शनि की आपसी युति होने के कारण सन्तान को सांस वाली बीमारी होने के अन्देशे होते है,और गले की खरास या किसी प्रकार से सूर्य से सम्बन्धित बीमारिया जैसे गर्मी की कमी होने और वायु के साथ कफ़ की मात्रा बढने से भी दिक्कत आने के कारण बनते है सन्तान की शिक्षा के लिये जो भी प्रयास किये जाते है उनके द्वारा शिक्षा में कार्यात्मक शिक्षा का रूप ही सन्तान के लिये प्रभावी रहता है अन्य प्रकार के प्रयास जैसे याद रखने वाली क्षमता का विकास नही हो पाता है जो भी कारण बनते है या तो वे ऊपर के ऊपर ही निकल जाते है या फ़िर अपने पूर्व के किये गये मेहनत वाले कारणों से और लगातार प्रयास करने के बाद जो परिणाम मिलते है वे शिक्षा में सर्वोपरि रिजल्ट लाने के लिये भी माने जा सकते है। इस गुरु की सप्तम द्रिष्टि विवाह और साझेदारी के भाव में भी पडती है इसके प्रभाव से जीवन साथी की गतिविधियों में जो पहले से शत्रुतात्मक रही होती है उनके अन्दर प्रभाव सही मिलना शुरु होता है जीवन साथी को मर्यादा वाले कार्य करवाने के लिये शनि और गुरु अपने अपने प्रभावों से आदर्श मार्ग की तरफ़ ले जाने के लिये अपने प्रयास तेज रखते है। लेकिन सप्तम से छठे भाव में राहु और बारहवे भाव में केतु के होने के कारण जातक के जीवन साथी की गतिविधियां आदेश देकर कार्य करवाने के लिये और किसी भी प्रकार का कमन्यूकेशन केवल क्लेश देने वाला होता है अगर जातक का जीवन साथी अपने को कमन्यूकेशन के कारणों से अधिक दूरियां बनाने की कोशिश करता है तो उसके लिये भी और जातक के लिये भी खर्चे और आकस्मिक घर के क्लेश से बचने का मुख्य तरीका माना जा सकता है,राहु के धनु राशि में होने से और राहु के द्वारा जीवन साथी के अष्टम भाव को देखे जाने से खाज खुजली या इन्फ़ेक्सन वाली बीमारियों को जननांगों भी पैदा होने का खतरा होता है इस मामले में भी जातक को खर्चाकरना और दिमाग को परेशान करने के लिये माना जा सकता है जो लोग जातक के साथ साझेदारी करते है और अपने कार्यों को साझेदारी से चलाने की कोशिश करते है अक्समात यह राहु उनके धन को भी समाप्त करने की कोशिश करता है,और इस धन की कमी के कारण भी जातक के लिये परेशानी हो सकती है,अक्सर इस युति में जातक के जीवन साथी या साझेदार की नीयत में खोट भी पैदा हो जाती है और वह अपने कारणों से चोरी और कपट आदि की नीति को भी पैदा कर सकता है। मकर राशि के तीसरे गुरु की नवी द्रिष्टि जातक के ग्यारहवें भाव पर भी पडती है जो नकारात्मक मंगल की वृश्चिक राशि के रूप में मानी जाती है,इस राशि में जातक की प्रदर्शन वाली नीति में पूर्वजों के प्रति सम्मान और अति कष्ट में घिरे बडे भाई बहिन या दोस्तों के लिये सहायता वाली नीति भी मिलती है,इस नीति से जातक अपने इन कारकों को अपनी स्थिति के अनुसार फ़ायदा भी देता है लेकिन फ़ायदा देने के बाद भी इस राशि के जातकों को इन्ही कारकों से अपमानित भी होना पडता है.

गुरु का राशि परिवर्तन (धनु)

मौत के बाद की स्थिति को अगर हम अपने मन में धारण करते है तो सीधे से हम शमशान या कब्रिस्तान की तरफ़ चले जाते है। हर प्रकार के प्राणी वस्तु और कारक का द्रश्य भाव केवल उसकी अन्तिम गति तक ही सीमित माना जाता है। उसके बाद हम केवल उसे कल्पनाओं क द्वारा ही समझ सकते है या महसूस सकते है। जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे रूह के रूप में मानकर उसके प्रति श्रद्धा करना स्वाभाविक है। जब किसी की लडाई हो जाती है और उसे अपमान मिलता है तो उसे न्याय के लिये भागना स्वाभाविक है,जब कोई व्यक्ति अपने को अपने रहने वाले स्थान में सफ़ल नही कर पाता है और अपने को बेकार का समझने लगता है तो उसे दूर देश यानी विदेश में भागना भी स्वाभाविक है। जब कोई व्यक्ति असहाय होकर किसी भयंकर बीमारी से जूझ रहा होता है और कोई दवा काम नही करती है तो उसे भी भगवान की तरफ़ भागना स्वाभाविक है। जीवन में जब लगातार अपमान मिलते रहते है हर कदम पर जोखिम ही देखने को मिलता है जो भी कार्य किया जाता है उसके अन्दर अगर बरबादी ही ही मिलती है तो उसे अपनी भाग्य की जानकारी के लिये भाग्य के बताने वाले लोगों और संस्थानों की तरफ़ भागना स्वाभाविक है। अपमान मौत जान जोखिम अस्पताली कारण आदि प्रभावों से बचने के लिये जो स्थान माना जाता है वह स्थान धनु राशि कहलाती है,इस राशि को गुरु की सकारात्मक राशि कहा गया है। न्याय ईश्वर की कृपा ईश्वर का रूप धर्म का स्वरूप और बाहरी ताकत के रूप में इसी राशि को प्रयोग में लाया जाता है। जीव की अद्रश्य शक्तियों से सहायता के लिये इसी राशि का प्रयोग में लाना वैदिक मनीषियों की बहुत बडी उपलब्धि मानी जाती है। जीव मौत तक के बाद शमशानी कारणों तक जाने तक तो दिखाई देता है उसके द्वारा जो भी कारण सप्तम भाव तक प्रदर्शित किये गये होते है वे भौतिक रूप से द्रश्य होते है लेकिन अष्टम भाव यानी वृश्चिक राशि में जाने के बाद उस जीव के कारण भौतिकता से दूर हो जाते है,वे पराशक्तियों के रूप में अपने प्रभाव को प्रदर्शित करते है। जो होना है उसके लिये जीव अपने कारण को समझ नही सकता है,जैसे किसी प्रकार से अस्पताल में किसी भयंकर बीमारी के बाद जाना पडा और उस बीमारी का कोई इलाज संभव नही हो रहा है तो दो ही कारण उसके सामने प्रस्तुत होते है या तो वह मृत्यु को प्राप्त होगा और उसे अपने समुदाय के अनुसार धर्ममय माना जाने लगेगा,उसकी फ़ोटो घर में लगाकर उसके ऊपर माला लगा दी जायेगी,अथवा वह अपने कार्त मन से ईश्वर का ध्यान करेगा और कोई अद्रश्य सहायता उसे अस्पताल से वापस सप्तम के युद्धों को पूरा करने के लिये ले आयेगी।

धनु राशि कालपुरुष की नवीं राशि है और किसी भी देश और स्थान के दक्षिण-पश्चिम में धर्म स्थान के रूप में मानी जाती है,गरुड पुराण में इस राशि को पूर्वजों के निवास की राशि कहा जाता है,इसलिये ही जिन जातकों की कुण्डली में इस राशि में सूर्य मंगल राहु केतु शनि गुलिका यमगण्ड आदि की उपस्थिति होती है उन्हे पितृ दोष से युक्त कहा जाता है,उनके अपमान मौत और जानजोखिम तथा जूझने वाले सामयिक कार्यों के प्रति पूर्वज सहायता नही दे पाते है। जब उन्हे अपमान आदि के बाद सहायता नही मिलती है तो वे भी अपने को लगातार अष्टम के प्रभावों में डाले रखते है,जो अस्पताली कारणों से जूझते है वे अस्पताली कारणों से ही जूझते रहते है और मानवीय सहायता की अपेक्षा के बाद अपने शरीर धन और सम्बन्धों से परेशान होते रहते है अथवा किसी प्रकार की बाहरी क्रिया से परेशान होकर अपने न्याय के लिये भटकते रहते है उन्हे मानवीय न्याय उस श्रेणी पर जाने नही देता है,इस प्रकार से जीवन के अपने उन आयामों से दूर रहना उनकी मजबूरी हो जाती है और अपने अज्ञानता के कारण अपने जीवन को तिल तिल कर मारते रहते है। गुरु मीन राशि में जाने से इस राशि से चौथे भाव में गुरु की उपस्थिति हुयी है। पूर्वजों के रहने का स्थान मीन राशि को ही माना गया है,जैसे व्यक्ति के शरीर के रहने के स्थान को चौथा भाव कहा जाता है उसी प्रकार से मौत के बाद आत्माओं के निवास को मीन राशि का स्थान कहा जाता है। इस राशि के चौथे भाव में गुरु के आजाने से जातक को अपने व्यवसाय को करने के लिये जरूरत महसूस होती है,वह अपने लिये निवास स्थान को प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करने लगता है,उसे अपने लोगों से मिलने और अपने जन्म स्थान पर जाने का अवसर मिलता है। वह अपने लिये किये जाने वाले प्रयासों में जनता से जुड कर चलने की कोशिश करता है,उसे वाहन की जरूरत महसूस होने लगती है और वाहन की प्राप्ति भी होती है,उसे विद्या को सीखने का अवसर मिलता है और वह अपने को विद्या के क्षेत्र में ले भी जाता है,उसे पानी वाले कारणों से और विदेश जाने के अवसर भी प्रदान होते है वह विदेश जाने और वहां पर बसने की कोशिश भी करता है। इस प्रकार से गुरु का असर मिलता है,इस राशि के छठे भाव में शुक्र की सकारात्मक राशि वृष है,इस राशि के प्रभाव से जातक के लिये बैंक आदि के कारण भी पैदा होते है वह अपने लिये कोई नया खाता खुलवाने की कोशिश भी करता है उसे अपने प्रयासों से मिलने वाले धन को जमा करने के लिये भी कई कारण मिलते है,वह धन को जमा भी करता है,उसकी नौकरी सर्विस आदि की व्यवस्था धन वाले क्षेत्रों में होती है या वह अपने को बैंक बीमा अस्पताल या दवाइयों से सम्बन्धित क्षेत्रों में कार्य करने के लिये उद्धत होता है। भोजन के मामले में भी उसे किसी न किसी प्रकार की सहायता मिलती रहती है,सन्तान की परवरिस के लिये उसे कोई न कोई साधन बनाने की जरूरत मिलती है,जीवन साथी के दिमाग में यह गुरु राहत देता है और बाहरी समस्यायें जो जीवन साथी को परेशान करने वाली होती है उनके अन्दर वह अपने को स्वस्थ समझने लगता है। ननिहाल खान्दान में भी पहले से चली आ रही समस्यायें समाप्त होती जाती है। जो भी मानसिक रूप से दुश्मनी को माने होते है उनके लिये भी गुरु इस राशि में जाने के बाद अपनी बुद्धि को प्रदान करता है और कर्जा दुश्मनी बीमारी से मुक्ति का रास्ता मिलने लगता है। धनु राशि के गुरु का पंचम असर इस राशि के अष्टम में जाने से यानी कर्क राशि में जाने से पानी के लिये साधन जो या तो जमीनी होते है या जमीन के अन्दर बनवाये जाते है के लिये अपने प्रयास शुरु हो जाते है,इस राशि में गुरु के जाने के बाद न्याय भी इसी के लिये अपनी सहमति प्रदान करता है,जो लोग अपने को जनता से अपमानित महसूस करते है वे भी कोई न कोई अपमान से बचने का रास्ता समझ लेते है,माता या माता की परेशानी से भी मुक्ति मिलती है,वाहन के प्रति भी बदलाव होता है,पानी वाले धार्मिक स्थानों की यात्रा भी होती है,हवाई यात्रा के प्रभाव भी मिलते है समुद्री यात्राओं के लिये भी योग आते है। इस राशि के गुरु का चौथे भाव में होने से सप्तम द्रिष्टि कार्य भाव में भी जाती है और कार्य भाव में कन्या राशिकी उपस्थिति से जो भी कार्य मिलते है वे बैंक बीमा या फ़ायनेन्स से सम्बन्धित मिलते है,कार्यों के लिये अस्पताली कार्य डाक्टरी सानिध्य में कार्य बीमार व्यक्ति के सानिध्य में कार्य जो लोग सी एन्ड एफ़ से सम्बन्धित होते है उनके लिये कार्य चार्टेड एकाउन्टेन्ट वाले कार्य आदि माने जाते है इस राशि में शनिकी उपस्थिति से कार्यों के प्रति अधिक मेहनत और कम लाभ के लिये भी माना जा सकता है लेकिन सही तरीके से कार्य अगर किये जाते रहे तो नवम्बर ग्यारह के बाद जो वर्तमान में सीखा जायेगा उसके प्रति बहुत ही सुन्दर वल प्राप्त होने के आसार बन जायेंगे। गुरु की नवीं द्रिष्टि बारहवे भाव में व्यय भावों में जाने से धन का खर्चा केवल अस्पताली कारणों में वायु वाली बीमारियों में सन्तान और सन्तान के प्रति शिक्षा के कार्यों में ही व्यय माना जा सकता है,धर्म स्थान की यात्रा से भी सन्तान के लिये भाग्य वाली स्थिति पैदा हो सकती है.

गुरु का राशि परिवर्तन (वृश्चिक)

बिच्छू का स्वभाव उन्ही को समझ मे आता है जो बिच्छू से आमने सामने दो दो हाथ किये होते है। बिच्छू एक धरती का जीव है जो अपने विषैले डंक के साथ जमीन के नीचे निवास करता है,उसकी उपस्थिति गर्मियों के दिनो में ही देखने को मिलती है और दिन के समय अन्धेरे स्थानों में छुपे रहना तथा रात्रि के समय जहां कीट पतंगो और मच्छरों का जमाव होता है वहां से अपने आहार को प्राप्त करने की कोशिश में लगे रहना होता है। अपने पीछे पूंछ की आकार में सुई से भी महीन डंक को प्रयोग में लाता है जैसे इंजेक्सन से दवाई को शरीर में प्रवेश करवाया गया होता है उसी तरह से बिच्छू अपने जहर को खतरे के समय और अपनी रक्षा के लिये प्राणियॊं शरीर में प्रवेश करवाकर भाग लेता है,जिससे जिस प्राणी के अन्दर इसका जहर गया होता है वह तडपने लगता है और कमजोर होता है तो मर भी जाता है,बलवान होता है तो पूरे चौबीस घंटे के बाद इसके जहर से मुक्ति मिलती है। शमशानी जीव भी इसे कहा जाता है क्योंकि यह आबादी से बाहर बाले क्षेत्र में जंगलों में पर्वतों पर और चिकनी मिट्टी वाले क्षेत्रों में मिलता है। इसका रंग काला और पीला भी होता है,सबसे खतरनाक काला बिच्छू होता है। वृश्चिक राशि के जातक भी इसी स्वभाव के होते है,उनके द्वारा की जाने वाली बात ह्रदय के अन्दर अपना पूरा असर देती है,इस राशि वाले लोग जिससे भी एक बार अपने को मिलालेते है वे हमेशा उसे अपनी कोई न कोई पहिचान दे देते है,और उस पहिचान से लोग इस राशि वाले जातक को याद रखते है। कर्क और मीन राशि से अपनी शक्ति को इकट्ठी करने के कारण इनके पास मोक्ष देने के उपाय भी होते है और भावना से अपनी पहिचान बनाने और ह्रदय के अन्दर उतरने की हिम्मत भी रखते है। दवाइयों को कई रूप में प्रयोग किया जाता है,कई दवाइयां बहुत कडवी होती है और कई दवाइयां बहुत मीठी होती है,जहर चाहे मीठा हो या कडवा कहलाया जहर ही जायेगा। भावनाओं का दरिया जब इस राशि वाले बहाने के लिये तैयार होते है तो किसी को भी अपनी भावना का प्रभाव देकर उसे अपनी तरफ़ आकर्षित कर लेते है उस समय इनके मन में कतई बैर भाव वाली बात नही होती है,इनके भावनात्मक प्रभाव को प्रदान करने वाली बुद्धि बहुत ही अजीब मानी जाती है,कारण इनकी बुद्धि की मालिक ही मीन राशि होती है और जब भी अपने को प्रदर्शित करने की कोशिश करते है तो लगता है कि यह पूरी तरह से अपने में संतुष्ट है लेकिन इनके नवें भाव में जो इकट्ठा होता है वह कर्क राशि का प्रभाव होता है,इस प्रभाव को जब यह दूसरों पर उडेलते है तो लगता है इनके पास समुद्र इकट्ठा है,लेकिन कर्क राशि के पीछे इस राशि के अष्टम की राशि मिथुन होने से और मिथुन राशि के मृत प्रभाव को जब कर्क राशि में इकट्ठा किया जाता है उसी को यह अपने लिये बडे रूप में प्रदर्शित करते है। इनकी बातों में कभी कभी बहुत ही रूखापन भी मिलता है। यह अपने अन्दर शक्ति रखते है वह शक्ति मृत शरीर में भी जान डाल देने के लिये काफ़ी मानी जाती है भौतिकता में आने के बाद यह बडी से बडी मशीनरी को अपने प्रयास से ठीक करने की इन्जीनियरिंग वाली हैसियत भी रखते है तो अस्पताली कार्यों के अन्दर दक्षता लेकर यह मरने वाले को भी अपनी शक्ति से जिसे तकनीकी शक्ति भी कहा जा सकता है जिन्दा रखने की औकात रखते है। यह अपने प्रभाव को साधारण आदमी के अन्दर अगर किसी तरह से प्रवेश करवा देते है तो वह आदमी इनसे मिले बिना भी नही रह सकता है और इनके पास भी नही रह सकता है।
गुरु इस राशि से पंचम में आया है,यह मोक्ष की भी राशि कहलाती है जैसे कर्क राशि को जन्म स्थान के नाम से जाना जाता है तो वृश्चिक राशि को मौत के स्थान से भी माना जाता है मीन राशि को आसमानी निवास भी बताया जाता है। जिसे रूह का निवास स्थान भी कहाजाता है। इस राशि के पंचम में इस राशि के आने से इस गुरु पिछले समय से चले आ रहे धन और परिवार के सुखों से पूर्ण करने के लिये अपना असर देना शुरु करेगा,इस राशि वालों के पास जो संतान की कमी थी उसके लिये यह गुरु अपने पूरे असर के साथ अपना असर देगा और नि:संतान लोगों को अपने अस्पताली कारणों से अपने प्रभाव देकर भूण प्रत्यारोपड आदि तरीके से संतान सुलभ करवाने की कोशिश करेगा,इसके अलावा जिन लोगों के बारहवें भाव का चन्द्रमा था वे भी इस राशि के प्रभाव से अपने को लाभान्वित कर सकते है। जो लोग जल्दी से धन कमाने के साधनों के बारे में नही समझते थे उनके लिये यह गुरु कैसे और किन साधनों से धन को जल्दी कमाया जा सकता है का कारण पैदा करेगा,जो लोग पिछले समय में अपनी कविता या भावना से अपने को संसार के सामने प्रस्तुत करते रहे है उनके सामने किसी बाहरी व्यक्ति की दखलंदाजी से प्यार मोहब्बत वाली बात भी पनपेगी और वे अपने को इस साल में प्यार की जीत का साल मानने से भी दूर नही रहेंगे,इस साल के वेलेंटाइन डे पर वृश्चिक राशि वालों के द्वारा ही सबसे अधिक सन्देश देखने को मिलेंगे। मंगल की नकारात्मक राशि होने के कारण और भूत प्रेत पिशाच की शक्ति को जानने के कारण तथा अपने पूर्वजों के अन्दर अधिक विश्वास करने के कारण इस राशि के रहन सहन में भी बदलाव देखने को मिलेगा,यह गुरु धनी लोगों की संगति भी दिलवायेगा,धन के प्रति साझेदारी के मौके भी आयेंगे,वृष राशि वाले इस राशि के इस प्रकार के प्रभाव में जल्दी आयेंगे। वृश्चिक राशि के गुरु का पंचम प्रभाव नवे भाव में जाने से और कर्क राशि की उपस्थिति होने से इन्हे जनता से सम्बन्धित मकान जायदाद और अपनी भावनाओं की लडाई में वाहन वाले कारणों से पानी वाले कारणों से न्याय के लिये भी जाना पड सकता है,साथ ही इनके लिये घूमने और मौज मस्ती के लिये पानी के किनारे वाले स्थान भी रास आ सकते है,हवाई यात्रायें करवाने के लिये और घूमने के मामले में जो लोग अपनी सेवायें प्रदान करते है उनके लिये भी इस गुरु का प्रभाव बहुत ही प्रभावी रहेगा। इसके अलावा शनि का इनके मित्र और बडे भाई के स्थान में उपस्थिति रहने के कारण इनकी मित्रता भी बुजुर्ग लोगों से होने के कारण सामने आते है,बडे भाई या बडी बहिन को कोई तकलीफ़ होती है तो वृश्चिक राशि के पंचम भाव का गुरु उन्हे आराम देता है,जो मित्र कर्जा दुश्मनी बीमारी और शरीर की तकलीफ़ों से जूझ रहे है वे इस राशि की बुद्धि का सहारा लेकर अपने में राहत महसूस करेंगे,इस गुरु का अष्टम और मारक प्रभाव इस राशि के बारहवें भाव में जाने से और बारहवें भाव में तुला राशि के होने से जो भी फ़ैसला इनके द्वारा बाहरी सामजस्य बैठाने के लिये किया जायेगा उसके अन्दर केवल त्याग की भावना ही समझ में आयेगी इनके द्वारा जो भी फ़ैसला बाहरी आफ़तों के लिये दिया जायेगा वह केवल त्याग के प्रति ही माना जा सकता है। इन्हे बाहरी कार्यों से ब्रोकर वाला कार्य करने के बाद भी धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होने के कारण बनेंगे,जो लोग अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को बाहरी क्षेत्रों में स्थापित करने के लिये अपने प्रयास कर रहे है उनके प्रयासों भी सफ़लतायें सामने आयेंगी। वृश्चिक राशि के बुद्धि वाले भाव में गुरु की उपस्थिति होने के कारण जो विद्यार्थी पहले से अपने को किसी भी विषय में कमजोर मानते आये है उनके लिये यह गुरु सुनहरा अवसर प्रदान कर रहा है वे अगर अपनी बुद्धि को जरा सा भी समय देकर फ़ैलाने की कोशिश करते है और अपने अन्दर पैदा होने वाले विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण में कमी कर लेते है तो उन्हे उच्च सफ़लता में जाने से कोई रोक नही सकता है। इस राशि के पंचम में गुरु आने का एक प्रभाव और भी सामने आता है वह होता है उनके अन्दर जो पहले से भावनात्मक मित्र जुडे होते है उनसे परित्याग की भावना इस गुरु के द्वारा पैदा होती है,जो लोग पहले से किसी जनता से जुडी कमन्युटी से अपने को बांधे बैठे है वे अपने कार्यों की अधिकता से अब अधिक वक्त इस प्रकार की कमन्युटी के प्रति नही पायेंगे।

गुरु का राशि परिवर्तन (तुला)

तुला राशि तुलनात्मक कार्यों के लिये उत्तम राशि है,यह धर्म अर्थ काम और मोक्ष के बारे में तुलनात्मक अध्ययन करना जानती है.बिना शुक्र की भौतिकता के इस राशि वाले अपने कार्यों को प्रदर्शित नही कर सकते है। तुला राशि वाले अपने अन्दर ही हमेशा सिमटे रहने वाले होते है और वक्त पडने पर उसी राय को प्रदान करते है जो उनके अनुसार सर्वश्रेष्ठ होती है। इस राशि वालों को हमेशा नकारात्मक परिस्थितियों से जूझना पडता है,जो भी खुद के लोग होते है वे केवल शमशानी क्रियाओं तक ही साथ रहते है,जिन्हे सहायता दी जावे वे अपने को दूर करने के बाद पीछे से बुराइयां ही प्रदान करते है,गुरु इस राशि के तीसरे और छठे भाव का मालिक होता है,तीसरा भाव धनु राशि होने से इस राशि वालों को अपने को प्रदर्शित करने के लिये केवल न्याय वाले क्षेत्र,धर्म और भाग्य से सम्बन्धित क्षेत्र, समाज मर्यादा और देश के प्रति किये जाने वाले प्रयासों के लिये लिखने पढने और बोलने के अन्दर सामाजिकता प्रभाव रखने वाले आदि स्थान माने जाते है,मीन राशि जो गुरु की नकारात्मक राशि है इस राशि के छठे भाव मे अपना स्थान रखती है,यह भाव भी नकारात्मक है और यह राशि भी नकारात्मक है,नियम के अनुसार जब दो नकारात्मक शक्तियां आपस में मिलती है तो कोई न कोई सकारात्मक परिणाम ही निकलता है। किसी भी नकारात्मक स्थान की सेवा करने के बाद उस स्थान को सकारात्मक बनाना इस राशि वालों के लिये इसी मीन राशि से सहायता मिलती है। इस राशि वालों के पास या तो कर्जा होगा नही और होगा तो इतना बडा होगा कि आजीवन उसे चुकाने में लगे रहना पडेगा,या तो कोई बीमारी होगी नहे और होगी भी तो इतनी बडी कि आजीवन उस बीमारी के लिये सोचना ही पडेगा,या तो इस राशि वाले सेवा करेंगे नही और करेंगे तो आजीवन सेवा के कार्य ही करते रहेंगे।
वर्तमान में गुरु का गोचर इस राशि के छठे भाव से हो रहा है इस राशि में गोचर के प्रभाव से और गुरु के द्वारा इस राशि को ही अष्ट्म द्रिष्टि से देखे जाने से इस राशि के अन्दर जोखिम लेने की और गूढ बातों को निकालने की जो लोग मानसिक रूप से अपने को समाप्त कर चुके है उन्हे बल देने के लिये और जो पुरानी दुश्मनी आदि से पीडित है उन्हे आपस में मिलवाने की क्षमता इस राशि वालों के पास आगयी है। गुरु के द्वारा उन्हे अपने नौकरी और सेवा वाले क्षेत्रों में नाम मिलने और पदवी बढने के कारण मिलेंगे,जो भी कार्य उनके द्वारा दूसरों के लिये किये जा रहे है उन कार्यों के सम्पादन के बाद उन्हे यश मिलेगा,जो गुप्त भेद धन और समाज से सम्बन्धित है उनसे मिलने वाले लाभों को इस राशि वाले अपने और अपने समाज के लिये प्रयोग करने की शक्ति को संजित करने के लिये अपने को बलवान समझेंगे,इसके साथ ही इस राशि वालों का झुकाव उन्ही क्षेत्रों की तरफ़ अधिक होगा जो मृत्यु के बाद के जीवन को समझने क लिये काफ़ी होते है,साधारण लोग अपने अनुसार बीमा और बचत के लिये अपने को आगे लायेंगे,किसी भी उपक्रम से उस धार्मिक स्थान के लिये अपने को आगे करने की कोशिश करेंगे जो साधारण लोगों के लिये पहुंच से दूर होता है। जीवन साथी से दूरियां केवल इस लिये बनेंगी क्योंकि इस राशि के सप्तम स्थान से बारहवां गुरु है,और इस गुरु के प्रभाव से जीवन साथी के लिये बाहर रहना ही हितकर होगा,इसका भी एक बडा मुख्य कारण है कि साथ रहने से जीवन साथी के द्वारा व्यय करने वाली नीति सर्वाधिक सामने रहेगी।

इस राशि वालो के छठे भाव का गुरु अपनी पंचम द्रिष्टि से कार्य भाव को भी देख रहा है,और जो भी कार्य उसके द्वारा सम्पादित किये जाते है वे अपनी नवी द्रिष्टि से जातक के धन भाव को भी देखते है,यानी जातक के द्वारा जो भी कार्य किये जायेंगे वे जातक को नगद भुगतान करने के लिये माने जा सकते है,जातक अगर नौकरी करता है तो उसके पास उन कार्यों का जखीरा इकट्ठा होजायेगा जो नगद भुगतान देने के लिये अपना प्रभाव देते है,अगर जातक अस्पताली कार्य करता है तो उसे नगद भुगतान मिलता भी है और किसी प्रकार से पीछे कोई दुष्कर्म किये गये है तो अस्पताली कारणों में खर्चा करना भी पडता है। यह स्थान इस राशि वालों के लिये बैंक बीमा और बचत के साधनों को भी देखता है इस राशि वालों के लिये इस राशि में गुरु के रहने तक बचत की हुयी देखी जा सकती है,और जो कोई पीछे के दुष्कर्म किये गये होंगे उनके द्वारा बचत को बरबाद करने की नीति भी देखी जा सकती है। इस राशि के बारहवें भाव में शनि के होने से और गुरु के आमने सामने होने से जो भी खर्चे किये जायेंगे वे बहुत ही संभाल कर किये जायेंगे,और जो भी कार्य बाहरी लोगों के लिये होंगे वे बहुत ही कम और बहुत ही खतरनाक स्थिति में होंगे वह बाहर आने जाने के लिये अपने प्रभाव को प्रदर्शित करने की कोशिश तो करेगा लेकिन बाहर के खर्चों के प्रति उसके लिये कोई न कोई बंदिस ही सामने आने के कारण अपने आप पैदा हो जायेंगे,इस राशि के विरोधी अपने को फ़्रीज होना पायेंगे उन्हे न तो निकलने का रास्ता दिखेगा और न ही वे अपने को सुरक्षित पायेंगे। राहु के द्वारा वर्तमान में गुरु को चौथी द्रिष्टि से देखा जा रहा है इस द्रिष्टि के कारण दिमाग में भय पैदा करने वाले कारण पैदा होंगे जरूर लेकिन अगले ही पल उस भय को दूर करने वाले कारण भी पैदा होंगे.इस राशि वालों के लिये शनि भी अपने सुख का रूप लेकर और बुद्धि का रूप लेकर बाहरी लोगों के द्वारा सुख दिलवाने की कोशिश करेगा,साथ ही नवां केतु विधर्मी लोगों से मित्रता करवाने के लिये भी माना जाता है। जातक को किसी भी प्रकार के खानपान से अरुचि नही होती है,वह अपने को किसी भी खानपान से जोड सकता है,साथ ही सभी लोगों से मित्रता भी कर सकता है। कोई न कोई ईशाई धर्म से सम्बन्धित या कोई भी जो इसी तरह के धर्म से सम्बन्धित होता है इस राशि वाले के लिये अपने धर्म और समुदाय से सामने आने की कोशिश करता है,साथ ही जो लोग पहले अपने को किसी न किसी तरह से प्रसिद्धि दे चुके है उनके लिये प्रयोग किये जाने वाले साधनों से धीरे धीरे मुक्ति मिलने के कारण सामने आते जा रहे है।

गुरु का राशि परिवर्तन (कन्या)

अर्थ नामक पुरुषार्थ से यह राशि जुडी है,जातक के जन्म के बाद उसे जो भौतिक सम्पत्ति मिलती है और वे उसके जीविकोपार्जन के लिये जब तक उपस्थिति होती है तो वह कार्य करने के लिये अपने को नही लगाता है,जैसे ही पास की सम्पत्ति खत्म हो जाती है तो उसे कार्य करने के लिये अपने को संसार के सामने ले जाना पडता है। जो भी कार्य किये जाते है चाहे वे शरीर से सम्बन्धित हो,जिसके अन्दर भोजन रहन सहन पहिनावा रहने का स्थान शिक्षा बीमारी पत्नी को पति के लिये और पति को पत्नी के लिये आने वाली मुशीबतों से बचने के लिये अपने को समाज के अंदर स्थापित रखने के लिये लाभ के लिये अपने उद्यमशील रखने के लिये आने जाने के लिये और जो भी कार्य चाहे वे किसी समाज के लिये देश के लिये रोजाना की जिन्दगी के लिये किये जाते है वे सभी इस राशि के अन्दर आते है। कन्या राशि का स्वामी बुध है और यह बुध की नकारात्मक राशि है। इस राशि के द्वारा केवल शरीर के प्रति ही सेवा कार्य करने की मान्यता है। यह राशि कालपुरुष की छ्ठे भाव की राशि है,और कालपुरुष के सेवा वाले कारकों में इसका नाम है। इस राशि वाले जातक अपने शरीर को जोखिम में डालने वाले होते है,वे अपने शरीर को किसी भी सेवा कार्य के लिये समर्पित करते है और बदले में जो भी सेवा कार्य किया जाता है प्रतिफ़ल चाहे शिक्षा के रूप में हो या धन के रूप में हो उन्हे प्राप्त होता रहता है। इस राशि का बुध जातक को मीठी भाषा बोलने वाला बना देता है तो मंगल इस राशि वाले जातक को शरीर की तकनीकी और धन की तकनीकी भाषा में ले जाता है। जातक के लिये अपने शरीर और परिवार के पालन पोषण के लिये भविष्य की चिन्ता करने के बाद जो भी धन आदि जमा किया जाता है वह सभी इसी राशि से देखा जाता है। यह स्थान चोरी का स्थान भी वह चोरी चाहे धन की हो या फ़िर कर्म की,इस राशि के छठे भाव में कुम्भ राशि के आने से यह राशि अपने मिलने वाले लाभ को गुप्त रखने के लिये भी मानी जाती है। गुरु इस राशि का चौथे और सातवें भाव का मालिक होता है,चौथे भाव के फ़ल इस राशि वालों को सकारात्मक मिलते है और सप्तम वाले फ़ल नकारात्मक मिलते है.जातक रहने और सुख के कारणों में अपने को पूर्ण पाता है लेकिन सप्तम की नकारात्मक राशि होने से जातक अपने जीवन साथी और साझेदार तथा जीवन की जद्दोजहद से अपने को नकारात्मक ही पाता है। इस राशि वालों को जब भी कोई रिस्क लेने की आदत होती है तो वह सीधा अस्पताली कारणों से जुडता है या तो वह अस्पताली कारणों में अपने को माहिर पाता है अथवा वह अस्पताली कारणों से अस्पतालों के चक्कर लगाया करता है। अपने जीवन साथी के परिवार वालों से शुरु में वह सामजस्य रखने की कोशिश करता है लेकिन इस राशि के बारहवें भाव में सिंह राशि होने से बाहरी लोग उसके दिमाग को घुमाकर अपनी राजनीति से जीवन साथी के परिवार से दूरियां दे देते है।

कन्या राशि के सप्तम में गुरु का प्रवेश एक उत्तमफ़लदायी माना जाता है,पिछले समय में जातक के लिये जो कारण मित्रों और सम्बन्धियों से न्याय आदि के लिये चला करते है वे अपने अनुसार हल होने लगते है,इस राशि का गुरु सीधा न्याय वाले कारणों को देखता है और जो भी न्याय प्रक्रिया से जुडे कार्य होते है वे सभी हल होने लगते है। जो लोग विदेश में वास कर रहे होते है और जो लोग विदेश जाने की उत्कंठा अपने मन में रखते है उनके लिये यह परिवर्तन का समय माना जाता है। जीवन साथी के प्रति भी विचारधारा सकारात्मक बनने लगती है और जातक अपने जीवन में वैवाहिक सुख आदि से पूर्ण होने लगता है।कन्या राशि के सप्तम का गुरु इस राशि के ग्यारहवें भाव की कर्क राशि को देखता है जातक के जीवन में जनता से इस समय में बहुत से मित्रों का आना भी माना जाता है और जनता से मिलने वाले लाभों में बढोत्तरी भी मानी जाती है। कन्या राशि के सप्तम के गुरु की सप्तम द्रिष्टि कन्या राशि पर पडने से और इस राशि में पहले से विराजमान शनि की बदौलत जो कार्य पहले अन्धेरे में दिखाई देते है वे गुरु के ज्ञान के कारण फ़लदायी होने लगते है,जिन कारकों के प्रति पहले से कुछ समझ में नही आता है वे ही कारक फ़लदायी होने लगते है। इस राशि में जो लोग पहले से अपने धन को नही जमा करपाते है उनके लिये धन को बचाने के लिये नये नये रास्ते खुलने लगते है और उन रास्तों से जो भी कार्य कन्या राशि वालों को मिलते है वे भी अपनी अपनी योग्यता से आगे बढते रहते है। इस राशि में शनि गुरु की युति से अधिकतर जो भी वैवाहिक सम्बन्ध बनते है वे अपनी उम्र से बडी उम्र के लिये अथवा अपनी उम्र से बहुत छोटी उम्र वालों के लिये बनते है। गुरु की निगाह कन्या राशि वालों के तीसरे भाव में होने से पहले जो उनका रूप किसी भी रिस्क कोलेने का होता उसके अन्दर भी फ़लदायी स्थितियां मिलने लगती है,वे कबाड से जुगाड निकालने में माहिर हो जाते है और अपने रहने के स्थान और बाहर के साधनों को भली भांति पूर्ण कर लेते है।

गुरु का राशि परिवर्तन (सिंह)

पुरुषार्थ के मामले में सिंह राशि धर्म नामक पुरुषार्थ से सम्बन्धित है। मेष धनु भी धर्म नामक पुरुषार्थ से सम्बन्धित मानी जाती है। धर्म का जो वास्तविक अर्थ है वह पूजा पाठ और ध्यान समाधि से ही नही माना जाता है धर्म का अर्थ व्यक्ति शिक्षा और न्याय से माना जाता है। व्यक्ति जो धर्म नामक पुरुषार्थ से पूर्ण होता है वह सबसे पहले अपनी प्राथमिक शिक्षाओं के रूप में समाज कुल देश की शिक्षाओं की प्राप्ति करता है,इन शिक्षाओं के पूर्ण होने पर वह बडी शिक्षाओं के प्रति अग्रसर होता है। जब वह बडी शिक्षाओं को पूर्ण कर लेता है तो उसे अपने जीवन में मिलने वाली जद्दोजहद यानी अर्थ नामक पुरुषार्थ की तरफ़ पलायन करता है। सिंह राशि प्राथमिक शिक्षाओं के रूप में मानी जाती है और व्यक्ति अपने जन्म के बाद यानी माता की गोद से जब जमीन पर पैर रखता है तो वह अपने आसपास के वातावरण की शिक्षाओं को ग्रहण करने में समर्थ होने लगता है। प्राथमिक रूप में पानी को पप्पा ही कहता है,फ़िर पानी कहना चालू कर देता है उसके बाद जब वह पानी के प्रति पूर्ण रूप से वाकिफ़ हो जाता है तो वह पानी के भेद भी समझने लगता है,कि कौन सा पानी सही है और कौन सा पानी गलत है,पानी के अन्दर क्या मिलाने से क्या बन जाता है। सहयोगी राशि गुरु की धनु राशि है,और जोखिम देने वाली राशि मीन राशि है,कारण इस राशि से धनु राशि तो पंचम में आती है और प्राथमिक शिक्षा को सर्वोच्च शिक्षा की तरफ़ ले जाती है लेकिन इस राशि के अष्टम में गुरु की मीन राशि के आजाने से जातक को रिस्क लेने के लिये और अपने द्वारा जमा कर्मों और कुकर्मों को परखने के लिये भी माना जाता है। सिंह राशि को राजनीति की राशि भी कहा जा सकता है,कारण इस राशि का मालिक सूर्य है और सूर्य ही राजनीति का कारक है। गुरु जब मीन राशि में प्रवेश करता है तो राज्य से सम्बन्धित लोग अपने जमा धन को मीन के परिवेश में ले जाने की कोशिश करते है। मीन के परिवेश को विदेश और बाहरी कारकों को माना जाता है। जैसे एक व्यक्ति ने अपने पीछे के समय अपने सहयोगी और मित्रों की सहायता से धन की प्राप्ति की और उसे जमा करने के लिये सोचा तो उसे पता है कि उसने जो कार्य किये है वह उसके सहयोगी और मित्रों को पता है तो वह उस धन को ऐसे माहौल में ले जाने की कोशिश करेगा जहां उसके धन को कोई समझ नही सके। और उसके लिये वह अपने धन को अन्जान और विदेशी माहौल में ले जाने की कोशिश करेगा,जो कि पूरी तरह से गूढ और अन्य साधरण लोगों को समझ में नही आये। इस कारण को अगर गुरु के मीन राशि में प्रवेश के समय मंगल धनु राशि में है तो वह व्यक्ति के जमा किये गये धन को कन्ट्रोल करने की क्षमता रखता है,और यही मंगल इस राशि के लिये इन्कम टेक्स या इसी प्रकार के उपक्रमों की वाहवाही के लिये भी माना जाता है क्योंकि जब तक राजनीतिक ने अपने धन को अन्यत्र छुपा रखा था तब तक मंगल को पता नही था,लेकिन जब धनु राशि का मंगल है और व्यक्ति अपने धन को कहीं भी ले जाने के लिये निकालेगा यह मंगल उस पर पकड जमा लेगा,इस तरह से जो भी जमा पूंजी बाहर ले जाने या विदेशी परिवेश में जमा करवाने की जरूरत समझी गयी थी वह नेस्तनाबूद हो जायेगी। इसके अलावा भी कारण जो बनते है वे भी अपने में महत्व रखते है,जैसे जातक ने अपनी पिछली जिन्दगी में जो धन जमा किया था,अचानक जरूरत पडने पर वह उस धन को खर्च करने के लिये निकालेगा। इसी तरह से अधिकतर इस राशि वाले अपनी बीमा बचत और इसी प्रकार से मौत के बाद के प्राप्त धन को स्थिति के अनुसार प्रदर्शित करने के लिये भी माने जाते है।

मीन राशि में गुरु के आजाने से इस राशि के अष्टम में गुरु का जाना माना जाता है। यह राशि समुद्र पारीय यात्रा के लिये भी मानी जाती है,दिशाओं से यह राशि आस्ट्रेलिया और इसी तरफ़ के भूभाग से पहिचानी जाती है,इस राशि वालों की यात्रायें जो विदेश में जाकर कार्य करने और अपनी औकात को बढाने के लिये या अगली साल में बडी शिक्षा को प्राप्त करने के लिये मानी जा सकती है वह इस राशि वाले अपने अनुसार पलायन करने के लिये भी अग्रसर होने लगेंगे। इस राशि के दूसरे भाव में शनि की उपस्थिति है और शनि सिंह राशि वालों के लिये दूसरे भाव में होने पर धन और भौतिक कारकों को फ़्रीज करने के लिये भी माना जा सकता है,सिंह राशि वालों को रोजाना जो कर्जा दुश्मनी बीमारी और इसी तरह के कारणों से जूझने के लिये माहिर माना जाता है शनि की उपस्थिति से वे सभी फ़्रीज पडे होते है और इस राशि वालों के पास अगर सही मायने में देखा जाये तो केवल शरीर के पालन पोषण करने के अलावा और कोई कार्य भी सामने नही होता है,इस कारण से भी इस राशि वाले अपने आगे के कार्यों और जीवन निर्वाह के लिये अपने पूर्व के जमा धन का उपयोग करने के लिये कोशिश करते है और यह गुरु उन्हे अपने अपने अनुसार सहायता देने के लिये तत्पर रहता है। गुरु की खोजी निगाह भी इस भाव में जाकर बनती है,साधारण इन्सान से भी इस गुरु के बल के कारण कोई खोजी कार्य करने के लिये कहा जाये तो वह अपने को जासूस बनाने से नही चूकता है,इस गुरु के समय में सिंह राशि वालों का स्वभाव जासूसी भी हो जाता है और वे किसी भी भयानक खतरे से रिस्क लेने में भी नही चूकते है। बाहरी कारणों को जानने मौत के बाद के जीवन को जानने मौत वाले कारणों को जानने पराशक्तियों के अन्दर विश्वास करने आदि के मामले में यह गुरु उन्हे बल देने लगता है। जो पारिवारिक लोग या जो धन वाले कार्य होते है उनके लिये यह गुरु अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने के लिये भी अपना बल देता है। इसका भी मुख्य कारण होता है कि यह मीन राशि का गुरु न्याय व्यवस्था के लिये सुप्रीम कोर्ट का मालिक माना जाता है,और जब सुप्रीम कोर्ट का कोई कार्य होता है तो यह गुरु न्यायाधीश को गुप्त रूप से कार्य करने और न्याय को न्यान नही मानकर अपनी रिस्क से कुछ भी करने के लिये मनमर्जी का अधिकारी हो जाता है। वह अपने अहम को कायम रखने के लिये न्याय को तलवे के नीचे रखने की कोशिश करता है और जो न्याय की परिभाषा होती है इस राशि वाले उसे भूल कर खुद ही अपना अपना कानून बनाकर अपनी गति से न्याय देने की कोशिश करते है,लेकिन यह गुरु जब अपनी स्थिति को बदलता है और मेष राशि में प्रवेश करता है तो मीडिया और जनता के द्वारा के द्वारा बहुत बुरी तरह से प्रताणित भी किया जाता है। अथवा उसे पदच्युत भी होना पडता है और वह अपने किये कर्मों की सजा भी पाता है। कैरियर के मामले में भी इस राशि वालों के सामने अनैतिक कार्य समझ में आते है,और यह गुरु इस राशि वालों को बाहर की जनता के साथ अपनी पहिचान बनाने तथा जनता के प्रति कई कारण बनाकर खर्च करवाने के लिये भी प्रयास करने से बाज नही आता है। इस राशि का गुरु जब अष्टम में होता है तो वह अपने लिये निवास और धर्म आदि के लिये गुप्त स्थान की खोज करता है। यह कारण केवल इसलिये ही माना जाता है कि इस राशि का प्रतीक चिन्ह शेर जब असहाय हो जाता है तो गुप्त स्थान में जाकर अपनी बाकी की जिन्दगी बचाना चाहता है। इसके अलावा उसकी मानसिक धारणा तंत्र विद्या और मारक कारकों के प्रति भी रुचि को उत्पन्न करने के लिये मानी जाती है उसे डर होता है कि उसने अवैद्य कार्य तो कर दिया है और उस कार्य के बाद उसे प्रताणित भी होना है तो क्यों न पहले से ही अपने बचाव का कारण खोजा जाये,वह अपने को शारीरिक बल से तो प्रस्तुत कर ही नही सकता है क्योंकि अगर वह अपने शारीरिक बल को प्रदर्शित करेगा और कारणों को बतायेगा तो वह सभी के सामने प्रदर्शित भी हो जायेगा।
गुरु जो जीव का कारक है और जब वह मौत के स्थान में बैठता है तो अपने को किसी न किसी कारण से मौत वाले प्रभावों को भी देखता है,जैसे उसके परिवार में मौतें होने लगना,इसके अलावा मीन के गुरु की सिंह राशि वालों के लिये एक सौगात दूसरे शनि के प्रभाव से यह भी मानी जाती है कि वह अपने को अस्पताली कारणों से भी जोड कर चलता है,और दवाइयां आदि लेकर अपने पीछे के खानपान से उत्पन्न रोगों के निवारण के उपाय करने की कोशिश करता है,अक्सर इस राशि वालों को सांस की बीमारियों से भी जूझना पडता है उसका भी कारण है कि गुरु वायु तत्व का मालिक है,यह गुरु तलवों की बीमारी को भी प्रदर्शित करता है,कारण मीन राशि शरीर के तलवों से सम्बन्ध रखती है।