गुलिका-बुध-शनि

शनि अन्धेरा गुलिका बचपन और बुध चिडिया इस कम्बीनेशन को अगर गुलिका-बुध-शनि के लिये प्रयोग किया जाता है तो खरा उतरता है। शुरूआत होते ही जीवन को अन्धेरे में धकेलने का कार्य यह तीनो अपने अपने अनुसार करते है। शनि को अन्धेरे के लिये प्रयोग किया जाता है,शनि की सिफ़्त ठंडी भी है,शनि कठोर भी है,उसी जैसी सिफ़्त गुलिका के पास भी है,वह शुरु और अन्त में अपना असर देती है। बीच में अपना असर कम करती है,जैसे एक बच्चे का मिजाज होता है और उसी तरह का मिजाज बुजुर्ग के अन्दर देखा जाता है,उसी प्रकार से शनि की शुरुआत भी गुलिका के द्वारा होती है,इसी लिये कहा भी गया है कि शनि के आगे और पीछे के भाव भी शनि के प्रभाव से जुडे होते है। राजा रामचन्द्र को शनि का प्रभाव लगा था,लेकिन शनि की शुरुआत से पहले ही विश्वामित्र अपने साथ लेकर वन में चले गये थे,वन में उनका प्रभाव तो अपनी रक्षा करने के लिये था,लेकिन वन में रहने का अभ्यास तो उन्हे विश्वामित्र के साथ पहले ही मिल चुका था। विवाह संस्कार के लिये वे राजा जनक के यहां धनुष जग्य देखने के लिये गये थे,विवाह की युति के लिये शनि देव ने पराक्रम के द्वारा उनकी शादी करवायी थी,उसी पराक्रम के प्रतिफ़ल में उन्होने देश देश के महीपों के मान को मर्दन किया था और सीताजी को विवाह कर ले आये थे। राजा दसरथ ने जब विश्वामित्र के साथ भेजा था तो भी उन्हे भगवान राम की चिन्ता थी ही,तब वे क्यों नही आघात से मरे थे,उनके मरने का कारण भी शनि ने ही पैदा किया था,दुख के शुरु होने से पहले शनि की गुलिका ही संदेशा दे जाती है कि शनि देव आने वाले है,अगर प्राणी समझदार है तो वह अपने को बचा ले जाता है,और प्राणी यह समझता है कि थोडा सा ही दुख है तो वह भूल करता है,कांटा लगता है तो यह पता नही होता है कि वह जहरीला भी हो सकता है आराम से हल्की सी दर्द के साथ वह निकाल कर फ़ेंक दिया जाता है,लेकिन जब वह अपने लगे हुये स्थान पर अपनी जहरीली क्रियाओं के द्वारा सूजन और जहर फ़ैलाना चालू करता है तो लगता है कि वह अपना बडा असर दिया है। शनि के अनुसार गुलिका अपना असर देती है,शनि जब अच्छी नजर से देखता है तो गुलिका आराम का असर देती है,शनि जब बुरी नजर से देखता है तो गुलिका भी बुरा असर देती है,लेकिन शनि और गुलिका का सम्बन्ध त्रिक भावों से होता है तो या तो गुलिका के द्वारा भेजे जाने वाले संदेशे के अनुसार अपना असर नही दे पाते है या फ़िर गुलिका एक बार में ही बहुत बुरा संकट देकर चली जाती है। शनि के साथ बुध की युति में गुलिका के साथ होने के बाद बुध की कारक वस्तुयें प्राणियों का कोई भरोसा नही होता है,जैसे एक कुम्हार ने घडा बनाया उसे मिट्टी से बनाकर पकाने से पहले ही अन्धेरे में रख दिया है,वह कच्चा घडा है और अन्धेरे में रखा है,अन्धेरे के अन्दर कोई भूल से ही उधर से निकलता है और उसके पैर लगने से या किसी जानवर के निकलने पर उस घडे का अन्त भी हो सकता है,उजाले में आने पर उस घडे की मिट्टी ही कुम्हार को मिल सकती है,अथवा उस घडे की सिफ़्त बहुत पक्की इसलिये हो सकती है क्योंकि घडे को बनाने के बाद उसे शुरु में ही धूप नही मिली तो उसके चिटकने का अन्धेशा ही खत्म हो गया,रात की ठंडी हवा ने उसकी मिट्टी को और अधिक मजबूत बना दिया और घडे को आग के अन्दर जाने के बाद उसके अन्दर गर्मी से भरने वाली वाष्प नही भरी थी इसलिये वह बिना चटके ही पक गया और आगे चल कर उसकी जिन्दगी बहुत बडी बन गयी। उसी प्रकार से एक चिडिया का बच्चा पैदा होकर बडा होने से पहले ही प्रकृति ने उसे अन्धेरे में लेजाकर पटक दिया,वह रात के अन्धेरे में अपने को शान्त करने के बाद रात के भयानक माहौल में रात्रिचर जीवों से वह बच गया तो ठीक है वरना एक हल्की सी चीख के साथ उसका अन्त भी हो सकता है,लेकिन अगर वह किसी प्रकार से बच गया तो वह सुबह को अपनी रात की गुजरी हुयी भयानक अन्त होने वाली स्थिति को याद करने के बाद कभी अपने घोंसले को नही छोडेगा,और छोडेगा भी तो अपने साथ उस रात वाली निडरता को साथ रख कर हिम्मत भी रखेगा। इसी प्रकार से एक लडकी का जन्म होता है और उसे उसके पैदा होने के कुछ दिन बाद ही घर के या परिवार के माहौल से दूर अन्धेरे माहौल में पटक दिया जाता है,जो तेज उसके पिता से उसे मिलना था वह उससे दूर हो गया,जो देखरेख उसके अपने समाज से उसे मिलती थी वह दूर हो गयी,उसे मिला तो केवल दूसरों का सहारा और वह अपने समाज को समझने के लिये कभी भी जीवन में काबिल पहले तो हो ही नही सकती है,उसे दूसरों पर भी भरोसा इसलिये नही होगा क्योंकि माता पिता कितने भी दुश्मन हो,लेकिन कभी खून के सम्बन्ध को दूर करने के लिये राजी नहीं होगे,लेकिन पराये लोग केवल अपने स्वार्थ सिद्धि तक तो अपने पास रखेंगे,खूब मान मनुहार करेंगे,लेकिन जैसे ही स्वार्थ की पूर्ति हो जाती है या स्वार्थ की भावना खत्म हो जाती है,अथवा दयालुता की सीमा समाप्त हो जाती है अथवा उनके द्वारा किये गये सहायता के कामों के अन्दर उन्हे खुद लगने लगता है कि उन्होने बुरा किया है तो वे सहायता देना बन्द कर देते है,और उस सहायता के बन्द करने के बाद वह लडकी कभी भी अपना किसी को समझ नही पायेगी,वह जब भी किसी के साथ व्यवहार करेगी तो केवल काम से काम वाला व्यवहार करेगी,उसे कभी इस बात का पता नही होगा कि माता को पिता को कितनी ममता होती है वह जब भी अपने को अकेला पायेगी या अपने को किसी साथी दोस्त आदि के साथ रखेगी और उन दोस्त या साथियों के माता पिता को देखेगी तो उसके अन्दर एक भावना पैदा होगी कि काश ! उसके भी माता पिता ऐसे ही होते,या उसके साथ भी कभी पारिवारिक माहौल जुडा हुआ होता। इस प्रकार से एक टीस उसके जीवन में बनी रही। यह गुलिका का प्रभाव उस बच्ची के जीवन में कभी पूर्णता नही ला सकता है,वह सब कुछ होते हुये भी अपने को कहीं ना कहीं से खाली ही समझेगी,लेकिन उसके बाद उसके अन्दर जो पक्कापन आयेगा वह इस प्रकार से होगा कि वह किसी के देखे हुये दुख में अपने को भावनात्मक रूप से दखी नही करेगी,वह किसी भी दुर्घटना के समय अपने कार्य को बन्द नही करेगी,कोई भी उसके सामने मरेगा तो उसे फ़िकर नही होगी,उसे केवल अपने काम से मतलब होगा,वह किसी की दया को नही समझेगी,कोई दया भी करता है तो उसे वह अपनी चालाकी या अपने द्वारा अपने व्यवहारिकता या शिक्षा के द्वारा अथवा बेवकूफ़ बनाकर अपने काम को निकालना समझेगी। यही बात अगर हम एक फ़ूलो वाली बेल के लिये मानलें तो गुलिका और शनि के प्रभाव से बेल के पत्ते गहरे हरे रंग के होंगे,उसके जो फ़ूल निकलेंगे वे रात को चमकने वाले सफ़ेद रंग के होंगे,वे किसी भी तरह से संसार में काम आने वाले फ़ूल नहीं होंगे,जब तक उन फ़ूलों को प्रयोग करने का समय होगा उस समय तक वे उजाले के कारण या तो झड चुके होंगे। अक्सर रात के अन्दर पैदा होने वाली बेलों के फ़ूल जहरीले होते है उन्हे कोई रात्रिचर भी नही खा सकता है,मनुष्य की बात ही क्या है। लेकिन वह बेल किसी न किसी प्रकार से जहरीले रोगों में या जहरीले कीट के काटने के बाद दवाई के काम में आती होगी,कभी भी रात्रि को फ़ूल देने वाली बेलों का रस मीठा नही होगा,या तो वे कसैली होंगी या फ़िर बहुत ही अधिक कडवी होंगी।

बुध शनि की युति (पहला भाव)

बुध शनि की युति अगर पहले भाव में हो तो या तो चेहरे पर कोई काला निशान जैसे गोल मस्सा होगा,लहसन का निसान होगा,या बहिन बुआ बेटी को अपना शरीर छुपाकर चलने की आदत होगी,अक्सर मर्यादा वाले घरों के अन्दर यह बात अधिक देखने के लिये मिलती है,बुध शनि की युति वाले परिवारों में घर में बहिन बुआ बेटी काम काज में भी बहुत हाथ बटातीं होंगी लेकिन सभी काम काज शरीर से सम्बन्धित होते है जैसे कि परिवार के लोगों की सेवा करना उनके खाने पीने और ठहरने आदि के बारे में घर की बहुयें काम नही करतीं होंगी,घर की बहिन बुआ बेटी के जिम्मे वह सभी काम होंगे जो शरीर पालन की क्रिया में शामिल किये जाते है। अक्सर बुध शनि की युति पहले भाव में मार्गी शनि के साथ होने पर और भाव का प्रभाव शनि या बुध के माफ़िक होने से व्यक्ति की प्रतिमा जनमानस के ह्रदय में बस जाती है,जिनकी प्रतिमायें चौराहों या सार्वजनिक स्थानों में लगी होती है वे पहले भाव की श्रेणी में नही आते है उनके चौथे भाव का रूप सामने आता है। बुध शनि के पहले भाव में होने से व्यक्ति के बाल घुंघराले होते है और बहुत ही मुलायम और काले होते है,अक्सर इस प्रकार के लोगों के बाल काफ़ी लम्बे भी होते है,लेकिन शनि की उपस्थिति से अक्सर इस प्रकार के लोगों के बालों में जुयें भी खूब पडती है। व्यक्ति को भावानुसार चुगली करने की आदत होती है,व्यक्ति के अन्दर जुबान में न समझने वाली स्थिति को भी जाना जाता है,अक्सर इस प्रकार के लोग अपनी अपनी आदतों के अनुसार जुबान के पक्के नही माने जा सकते है,उनके लिखने पढने के अन्दर देरी होती है,वे केवल शरीर के इशारों से अच्छी तरह से बात करना जानते होते है,अक्सर बुध शनि की आदतों के अनुसार परिवार में बडे भाई के जो लडकी होती है उसकी या तो ग्रहों के अनुसार प्रसंसा होती है अथवा उसकी गाथायें समाज में खूब बखानी जाती है। अक्सर इस प्रकार के जातक किसी भी दशा में अपने शरीर के हाव भाव प्रदर्शित करने में जैसे कैट-वाक करना आदि खूब कर सकते है,लेकिन इस काम में शुक्र और गुरु का भी योगदान होना चाहिये। शुक्र के साथ होने पर सजने सजाने के कामों में भी खूब मन लगाते है,एक्टिंग के कामो के अन्दर उनका नाम अक्सर सुना जाता है,दक्षिण भारतीय नृत्यांगनाओं की बुध शनि शुक्र की युति को समझा जा सकता है,उनके हाव भाव ही अधिक देखे जाते है। रात को गाये जाने वाले गीत भी शनि के पराक्रम को देखे जाने के कारण इस प्रकार के जातकों को खूब आते है,गुप्त सूचनायें देना और गुप्त जानकारी रखना आदि काम भी इस प्रकार के लोगों को खूब भाते है। सूर्य के साथ होने पर बुध का असर कम हो जाता है और इस प्रकार के जातक समाज या दिन की रोशनी में  घर से निकलना पसंद नही करते है,बातों के अन्दर पिता और पुत्र से कभी विचार नही मिलते है,घर के सदस्यों के साथ सुबह या शाम को ही मुलाकात हो पाती है,हमेशा साथ नही रहता है। जातक की प्राथमिक अवस्था में वह अक्सर पिता से दूर ही रहता है। शनि बुध के साथ चन्द्रमा के आने से जातक अपने विचारों और कामों को अपने अनुसार नही कर पाता है उसे दूसरों से पूंछ कर ही काम करना पडता है,स्वतंत्र विचार वह कभी प्रदान कर ही नही सकता है,उससे अगर किसी विचार के मामले में जानने की इच्छा होती है तो वह बता देता है कि फ़लां जगह पर फ़लां पन्ने पर यह बात लिखीहै,वह खुद उस बात को अपने द्वारा छानबीन कर नही बता पाता है। शनि का प्रभाव सप्तम स्थान पर होने और बुध का भी सम्प्तम स्थान को देखे जाने के कारण अधिकतर जीवन साथी की आवाज अधिक तेज होती है,उसका कारण भी या तो बुध शनि की लगन में स्थिति वाला जातक अपने विचारों को सही रूप से प्रकट नही कर पाता है अथवा वह अपने अनुसार अंधेरे में रहने के कारण समझ नही पाता है और जीवन साथी को बार बार एक ही बात कहने के अनुसार चिल्लाने या चीखने की आदत पड जाती है,इस प्रकार के जातकों को अक्सर कम सुनाई देने वाले जीवन साथी ही मिलते है,या तो वे जन्म से कम सुनते है अथवा शादी या विवाह के बाद जातक की शनि बुध की युति उन्हे कम सुनने का मरीज बना देते हैं। बुध शनि के जातकों को हरा और काला रंग बहुत पसंद होता है अक्सर इस प्रकार के जातकों को गहरा हरा रंग और गहरे हरे रंग के पत्ते वाले पेड अधिक पसंद होते है,अगर राशि का पूर्ण सहयोग हो तो जातक के निवास के आसपास बुध-शनि का पेड बरगद जरूर होता है अथवा चन्द्रमा की युति के कारण दूध के पेड भी पाये जाते है,बुध शनि का प्रभाव छोटे रूप से बडे रूप में होने का मिलता है,जैसे एक बरगद का पेड बहुत छोटे से बीज के अन्दर छुपा होता है,और जब वह फ़ैल जाता है तो उसकी जडें काफ़ी लम्बी चलती है और हर डाली से एक जड निकल कर अपना अपना भोजन ग्रहण करने लगती है,अक्सर बुध शनि वाले जातकों के कन्या संतान या तो बहुत अधिक होती है अथवा होती नही है,बुध शनि वाले जातकों की लडकियां खोती बहुत है,यह प्राभाव पहली साल में फ़िर तेरहवी साल और फ़िर पच्चीसवीं साल तक मिलता है। बुध का अन्धेरे में गुम हो जाना भी इसी बात का द्योतक है। बुध शनि वाल जातक संतान के मामले में शुरु में बहुत कमजोर संतानों को पैदा करने वाले होते है,लेकिन वे संताने अपनी उम्र में जाकर बहुत बडा नाम या क्षेत्र विकसित करती है।

बुध शनि की युति

मैने जितनी भी कुंडलियां देखी है वे सभी बुध शनि की युति में अपने अनुसार व्यक्तियों के प्रति अपनी जान पहिचान को बहुत बडे विस्तार के साथ दिखाने में समर्थ देखे गये हैं। जिस भाव में बुध होता है वह उसी भाव के द्वारा कमन्यूकेशन के द्वारा अपने को विस्तार के क्षेत्र में ले जाने का प्रयास जी जान से करता है। लगन का बुध शरीर से शरीर की जानपहिचान बढाने में और दूसरे भाव का बुध धन और परिवार के रूप में अपनी जान पहिचान को बढाने में तीसरे भाव का बुध टेलीफ़ोन मीडिया टीवी अखबार लिखने लेखक का काम करने अपने पहिनावे अपने शरीर के अंगों को संचालित करने के द्वारा जान पहिचान बढाने का काम करता है,चौथे भाव का बुध इमोसनल रूप से मातृत्व का भाव प्रदर्शित रखने में दूसरे लोगों की भावना से जुड जाने से कविता और बहुत जोर से महसूस होने वाले शब्दों से घूमने से बाहर की जनता से बोलने चालने और घर की वाहन की स्थिति से दिखाने की क्रिया के द्वारा कमन्यूकेशन करते है,पंचम भाव का बुध स्कूली शिक्षा से प्रेम सम्बन्धों से भावनात्मक और भावनाओं में शिक्षा के क्षेत्र से राजनीतिक लोगों से अपने विचारों का आदान प्रदान करने से जल्दी से धन कमाने के साधनों से छठे भाव का बुध तकनीकी कामों से कर्जे की तकनीक जानने जैसे बैंक आदि का काम करना घर के कामों के करने का तकनीकी ज्ञान होना,धन को जमा करने और धन को रोजाना के कामों में खर्च करना,क्रेडिट कार्ड आदि के बारे में पूरी जानकारी रखना,मीठा बोलना और बुद्धि को शार्प रखना,दुश्मनी को दूर करने की तकनीक जानना वकालत के काम करना धन के मामले में दुश्मनी को दूर करने या बढाने की तकनीक का भान होना बीमारी की तकनीक जानना बीमारी को बढाने या घटाने की तकनीक को जानना रोजाना के कामों के अन्दर कौन से काम के द्वारा बीमारी अधिक होने का अंदेशा है कौन सी दुश्मनी होने का अंदेशा है,कौन से कर्जे का होना हो सकता है आदि की जानकारी से अपने क्षेत्र का विकास करना,लिखने पढने कम्पयूटर के भेद जानना,सोफ़्टवेयर की तकनीक जानना आदि भी इसी क्षेत्र से सम्बन्ध रखते है। इसके अलावा सप्तम के बुध से साझेदारी के कामो से व्यापार बोलचाल सुझाव देना ज्योतिष और व्यवसाय से सम्बन्ध रखना दो लोगों के बीच के मनमुटाव को दूर करवाना,कागजी कार्यवाही के द्वारा कानूनी जानकरी देना,लिखना जो सबके लिये फ़ायदे वाला हो,धन कमाने के क्षेत्र का विकास करने के लिये सलाह देना धन्धा व्यवसाय नौकरी आदि के बारे में जानकारी देना प्लेस मेंट देने का कार्य करने आदि से कमन्यूकेशन का फ़ील्ड बढाने का काम करना,अष्टम बुध के द्वारा बीमारी के बारे में बताना,मौत के बाद की सम्पत्तिओं की कागजी कार्यवाही को बताना,बीमा बचत मौत के बाद धन की स्थिति को निपटाने का काम करना मीडिया में जाकर जान जोखिम के कामों का ब्यौरा देना,छुपे हुये तंत्र आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करना,खोयी हुयी वस्तुओं के बारे में पता करना,दांतों की बीमारी के बारे में बोलने या तुतलाने की बीमारी को ठीक करने का मंजन या पेस्ट बनाने के कामो को करना,शमशानी ताकतों के मंत्रों आदि को जानना उनका प्रयोग करना,गायनालोजिस्ट का काम करना दाई का काम करना,पराशक्तियों की आवाज को पहिचानना,ग्रहों के भेद को जानना,ज्योतिष की गूढ जानकारी को प्राप्त करना,ग्रहों की नीची हरकतों के बारे में उनकी रेमेडीज को बताना,नवें भाव के बुध के द्वारा धर्म भाग्य के द्वारा जानकारी को देना कानूनी किताबों को लिखने का काम करना यात्रा आदि के काम करने के बाद उनकी टिकटिंग का काम करना,हवाई यात्राओं के मामले में व्यापार करना,मीडिया और पबलिसिंग के कामों की कानूनी जानकरी रखना,भाग्य मंत्रों को बताना ग्रहों के अनुसार उनके भाग्य बढाने के मंत्रों को बताना उनके लिये पहिने जाने वाले रत्नों की जानकारी देना,सामाजिक कारणों का लेखा जोखा रखना,पारिवारिक बातों को बताना पिछले इतिहास को बताना आदि,दसवें बुध के द्वारा कैरियर की जानकारी देना,व्यवसायिक कार्य करवाना राज्य से सम्बन्धित गूढ जानकारी करना आदि माना जाता है,जीवन में काम करने के बाद काम की श्रेणी को वर्गीकृत करना,रहने वाले स्थान के बारे में जानकारी करना लोगों को उनके काम के बारे में सलाह देना कम्पयूटर आदि का काम करना कमन्यूकेशन कम्पनी से सम्पर्क बनाकर उनके द्वारा सरकारी कामों को करने का उपाय देना,सरकारी कानूनों को समझाने का काम करना भी माना जाता है। ग्यारहवें बुध के द्वारा कार्य के बाद मिलने वाले लाभ का लेखा जोखा रखना,कितने काम को कितने लोगों के द्वारा किया जाना और उसके अन्दर कितना लाभ या हानि होगी का ब्यौरा देना बडी बहिन के साथ रहना उसकी सहायता करना शिक्षा के समय अफ़ेयर आदि में मशूगल होना बडे भाई की नौकरी आदि के द्वारा जमीन की खरीददारी करना,लाभ के मामलों में पेपर वर्क का पूरा ज्ञान रखना आदि जाना जाता है,बारहवें भाव के बुध से विदेश से सम्बन्ध रखना विदेशी लोगों के बारे में जानकारी करना जन्म स्थान से दक्षिण पूर्व दिशा में प्रयोग की जाने वाली भाषा का ज्ञान प्राप्त करना,विदेश में जाकर विदेशी लोगों के कानून आदि की जानकारी करना वहाँ के कानून की सहायता कागजी कार्यवाही का पूरा ब्यौरा रखना उनके ऊपर खर्चा करना आदि जाना जाताहै।

जन्म के सूर्य पर विभिन्न ग्रहों का गोचर

जन्म कुन्डली के ऊपर जब गोचर के ग्रह अपनी युति देते है,तो वर्तमान में चल रही गति विधियों के बारे में ज्ञान मिलता है,ज्योतिषी इस बात के सहारे ही अपनी ज्योतिष विद्या का मान रखते है,जब किसी भी जातक के सामने चलता हुआ वर्तमान और बीता हुआ भूत बखान किया जाता है,और जातक हर बात पर सही का टिक करता जाता है,तब जाकर भविष्य के बारे में कथन करना उपयुक्त माना जाता है,और की गयी भविष्यवाणियां खरी उतरती है,ग्रह गोचर में अपना फ़ल जो देता है,उसमे ध्यान यह भी रखना पडता है,कि जो ग्रह बक्री है,या अस्त है,वह जो भी फ़लादेश लिखा जा रहा है,विपरीत कथन माना जा सकता है,साथ ही जो भी खराब ग्रह खराब स्थान यानी छ: आठ या बारहवें भाव में है,वह बजाय गलत प्रभाव के अच्छा प्रभाव देगा,जब वह बक्री हो या अस्त हो.यही बात स्थान परिवर्तन के मामले में देखी जाती है,और फ़लकथन करते वक्त ध्यान रखा जाता है.प्रस्तुत है गोचर में कुन्डली के ग्रहों पर गुजरने के दौरान मिलने वाले फ़ल:-

सूर्य पर गोचर से विभिन्न ग्रहों के गुजरने का फ़ल:-
सूर्य पिता है,सूर्य जातक की आत्मा है और सूर्य ही पुत्र है,जब चन्द्र गोचर से जन्म के सूर्य से गुजरता है,तो पिता को अपमान सहना पडता है,शरीर का सूर्य वीर्य के नाम से जाना जाता है,किसी छलिया स्त्री से या किसी छलिया पुरुष से ठगा जाना और अपमान का सामना करना पड सकता है,इन किसी भी कारकों के अन्दर अपने वीर्य को बरबाद किया जा सकता है,सूर्य पिता है,और चन्द्र यात्रा है,पिता को यात्रा भी करनी पड सकती है,जातक के साथ भी यही हो सकता है.चन्द्रमा का सूर्य के ऊपर से गुजरना मात्र सवा दो दिन का माना जाता है,और प्रभाव भी अन्त की सवा दो घडी का होता है.सूर्य और चन्द्र मिलकर महिने का काला दिन भी माना जाता है,इस दौरान किसी भी तरह से किया गया तांत्रिक कार्य शरीर पर प्रभावी हो जाता है,इन दिनो जातक को शमशान यात्रा,किसी तांत्रिक के पास जाना,और किसी प्रकार से किसी दूसरे के प्रति की जाने वाली बुराई से बचना चाहिये,अन्यथा काया और आम में दाग आसानी से लग सकता है.अगर सूर्य कुन्डली में बलवान है,और चन्द्रमा कमजोर है तो जातक की अहम की मात्रा में भडकाव भी आ सकता है,जातक के दिमाग में उग्रता आने से वह किसी भी प्रकार से अपने को बरवाद भी कर सकता है.

मन्गल का सूर्य के ऊपर गोचर:-
मन्गल सूर्य की स्थिति वाली राशि में आता है,तो जातक को खून सम्बन्धी बीमारी से जूझना पड सकता है,पित्त की अधिकता से जातक को उल्टी या दस्त वाली बीमारी हो सकती है,भाई का पिता के साथ कोई जिद्दीपना हो सकता है,पति का पिता के साथ झगडा हो सकता है,हड्डी वाली बीमारियों के लिये किसी डाक्टर से मदद ली जा सकती है,पुलिस का सरकारी कार्यों में हस्तक्षेप हो सकता है,खुद के साथ भी पुलिस के साथ किसी बात को लेकर कानूनी मामला फ़ंस सकता है,इनकम टेक्स या किसी सरकारी कर के बारे में  छापा पड सकता है.

बुध का सूर्य के ऊपर गोचर:-
बुध भूमि का कारक माना जाता है,पिता को या खुद को किसी प्रकार की भूमि का लाभ हो सकता है,भूमि चाहे किराये से या किसी प्रकार से कुछ समय के लिये बैठने के लिये प्रदान की गयी हो,बुध हर हाल में सूर्य का मित्र है,जातक को किसी मित्र से मिलना भी होता है,सूर्य जातक है,तो बुध व्यापार भी है,जातक को कोई नया व्यापार सामने आ रहा हो,सूर्य जातक है तो बुध बहिन बुआ बेटी भी है,जातक के पास मिलने के लिये बहिन बुआ बेटी आ रही हो,बुध बक्री है,और गोचर से बुध अगर सूर्य से मिलने आ रहा है,तो लम्बे समय से पास में रहने वाली बहिन बुआ बेटी कही कुछ समय के लिये जा रही हो.

गुरु का सूर्य के ऊपर गोचर
सूर्य और गुरु दोनो मिलकर जीवात्मा संयोग कहलाता है,गुरु जीव और सूर्य आत्मा दोनो मिलकर महानता की तरफ़ अपने को ले जाते है,गुरु अगर कुन्डली में बलवान है तो जातक को इस समय में काफ़ी सफ़लता मिलती है,अगर धन के भाव का प्रभाव रखता है,तो धन की सफ़लता मिलती है,अगर भाई बहिन के भाव के प्रति अपनी भावना रखता है,तो उनका सहयोग मिलता है,घर और परिवार के प्रति भावना है,तो घर बनता है,और माता के लिये तथा सम्बन्धित जनता के लिये फ़ायदा देने वाला होता है,शिक्षा से जुडा हुआ तो शिक्षा मे सफ़लता देता है,कर्जा दुश्मनी बीमारी से जुडा हुआ है तो उसमे फ़ायदा देता है,जीवन साथी के भाव से जुडा है,तो जीवन साथी या साझेदार से फ़ायदा या सहायता दिलवाता है,अविवाहित लोगों की शादी का समय भी पास मे होता है,मृत्यु के भाव मे होता है,तो बैंक बीमा या किसी प्रकार से पुराना फ़ंसा हुआ धन दिलवाता है,नवे भाव का योगकारक होता है,तो भाग्य और धर्म की तरफ़ रुचि देता है,दसवें भाव का भाव कारक है,तो काम धन्धे और सरकारी कार्यों के अन्दर तरक्की के मार्ग खोलता है,ग्यारहवें भाव से अचल सम्पत्ति और मित्रो से फ़ायदा दिलवाता है,किसी बुद्धिमान का साथ देता है,और अगर बारहवें भाव का कारक बना हुआ है,तो हवाई यात्रायें या ध्यान समाधि की तरफ़ इशारा करता है.

शुक्र का सूर्य के ऊपर गोचर
शुक्र धन और भौतिक कारकों का सहायक माना जाता है,शुक्र ही पुरुष की कुन्डली में पत्नी का कारक होता है,और स्त्री की कुन्डली मे गहनो जेवरातो और सजावत वाली चीजो के बारे मे जाना जाता है,शुक्र को ही जमीनी कारकों से जोडा जाता है,शुक्र से ही फ़लो सब्जियों के लिये जो रस युक्त होती है,के बारे में अपना भाव बताता है,सूर्य स्वर्ण है,तो शुक्र जेवरात के बारे में भी अपनी राय बताता है,सूर्य के साथ जब शुक्र का गोचर होता है,तो जातक को धन की कमी अनुभव होती है,पत्नी बीमार होती है,खेती में सरकारी दखल होता है,गेहूं की पैदावार में बढोत्तरी होती है,गेहूं के भाव चढते है,फ़लो के प्रति सरकारी दखल होता है,गाय और दूध वाले जानवरों के अन्दर तेजी आती है.सरकारी मीडिया और सजावटी सामान की बिक्री के लिये नुमायश आदि का प्रोग्राम आदि बनता है.

शनि का सूर्य के ऊपर गोचर
शनि कार्य का दाता है,शनि जब गोचर से सूर्य के साथ गोचर करता है,तो कार्य में असंतोष पैदा होता है,जो भी काम करवाने वाले होते है,वे अधिकतर खुश नही रहते है,धन बेकार के कामों में खर्च होता रहता है,पिता पुत्र में आपसी विचारों में मतभेद हुआ करता है,शनि और सूर्य की इस युति में मंगल बद हो जाता है,जातक का काम सुबह और शाम का हो जाता है,उसे दिन और रात में किसी प्रकार का कार्य संतुष्ट नही कर पाता है,खाने पीने के लिये हमेशा मन किया करता है,शराब कबाब की तरफ़ मन आकर्षित होता है,और अगर जातक के अन्दर किसी प्रकार की बन्दिश हुआ करती है,तो वह दवाइयों और तामसी चीजों के प्रति अपने को लगा लेता है,अधिकतर इस काल में जातक का दिमाग सही दिशा में नही जा पाता है,मंगल के बद होने के कारण जातक का दिमाग लडाई झगडों की तरह जाता है.

राहु का सूर्य के ऊपर गोचर
पिता के प्रति माया मोह का चक्कर चालू हो जाता है,उसे हर किसी से धन प्राप्त करने और धन के प्रति ही सोच काम करती है,सरकारी कामों में सडक या बिजली वाले कामों का ठेका आदि लेने के लिये जातक का मन जाता रहता है,पिता का अपमान करने से जातक को कोई हिचक नही होती है,वह पुत्र के प्रति उतना वफ़ादार नही होता है जितना कि होना चाहिये,अक्सर उसके भार युक्त दिमाग के कारण पति या पत्नी में मतभेद हुआ करते है,राहु सूर्य को ग्रहण देता है,नाम के आगे कोई न कोई दाग जरूर लग जाता है.पिता को इस दौरान कोई चोट या हादसा होने की पूरी पूरी सम्भावना होती है.

केतु का सूर्य के ऊपर गोचर
केतु सन्यासी प्रवृत्ति दिमाग में देता है,पिता के अन्दर या जातक के अन्दर त्याग की भावना का उदय होना चालू हो जाता है,जातक को लोगों को उपदेश देने वाली बात मिलती है,अक्सर जातक को सरकारी कामो या पिता वाले कामो के लिये डाकिये की तरह से काम करना पडता है,किसी सामाजिक संस्था में कार्य कर्ता के रूप में भाग लेना पडता है.

गुलिका का फ़लकथन

गुलिका का भावात्मक अर्थ पाने के लिये भचक्र की राशियों का प्रभाव भी देखना जरूरी होता है,भचक्र की राशि अगर गुलिका के विपरीत गुणों वाली है तो गुलिका नुक्सान की जगह पर फ़ायदा देने वाली मानी जायेगी। गुलिका की शिफ़्त बिलकुल शनि जैसी होती है,और गुलिका की चाल भी शनि जैसी मानी जाती है। गुलिका कन्या मिथुन में बलकारी हो जाती है,मीन वृश्चिक में बढोत्तरी देने वाली हो जाती है,तुला में हर काम देर से करवाती है,कर्क में परिवार का सुख देना बन्द कर देती है,मकर में कठोर परिश्रम करवाती है,कुम्भ में मित्रों से दूर रखती है,मेष में कपट और चालाकी में जाने का मानस देती है,मंगल के साथ कसाई बन जाती है,गुरु के साथ सन्यासी जैसा जीवन देती है,बुध के साथ लिखने पढने का काम देती है,शुक्र के साथ सभी कुछ देती है लेकिन मानसिक शांति का टोटा देती है। चन्द्रमा के साथ हमेशा टेंसन देने वाली होती है। वर्षफ़ल से गुलिका जब मृत्यु भाव में आजाती है तो अजीब वस्तुओं से धन प्रदान करवाती है,नवें भाव में गुलिका वर्षफ़ल से जाती है तो घूमने फ़िरने में ही पूरा साल बिताने को मजबूर करती है,केतु के साथ भटकाव और राहु के साथ मृत्यु वाले उपक्रम करने को बल देती है। राहु शुक्र के साथ वैश्या-वृत्ति की तरफ़ मानस बनाती है,शुक्र केतु के साथ वैश्याओं का दलाल तक बना देती है,शनि केतु के साथ दलाली वाले काम करने का बल देती है,शनि केतु और शुक्र के साथ मिलकर कपडे सिलने से लेकर एक्सपोर्ट इम्पोर्ट करने का काम देती है,गुरु शनि के साथ मिलकर पैकिंग का काम देती है,टूर और ट्रेवलिंग का काम करने के लिये चतुर्थेश से सम्बन्ध बनाने के बाद देती है,पुरुष की कुंडली में तीसरे भाव में बुध के साथ आने पर झूठा और मक्कार बना देती है,स्त्री की कुंडली में वर्षफ़ल से आने पर तिरस्कार देती है। सभी भावों को देखकर ही गुलिका का कथन करना चाहिये,कभी एक भाव और ग्रह को देखकर गुलिका का फ़लकथन नही करना चाहिये।

वास्तु शास्त्र

वास्तु प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति की देन है। जिसे पाश्चत्य रंग में रंगने के कारण एवं विदेशी आक्रमणों के कारण पुराने निर्माणों के टूटने पर किये गये नव निर्माणों में शास्त्र सम्मत नियमों प्राकृतिक सिद्धान्तों को भुला दिया गया,जिसके परिणाम स्वरूप आज भारत के आन्तरिक वासी असहनीय विपरीत प्रभाव से प्रभावित है,जिन लोगों ने वास्तु के नियमों को अपनाया वे इसका शुभ फ़ल प्राप्त कर रहे हैं।
वास्तुशास्त्र भवन निर्माण से सम्बन्धित प्राचीन भारतीय विद्या है,यह विद्या लोगों को संदेश देती है कि पृथ्वी पर स्थिति सभी द्रश्य अद्र्श्य वस्तुयें ब्रह्माण्ड में स्थिति पिण्डों से ऊर्जा लेती है,पिण्डों (ग्रहों) से प्राप्त ऊर्जा को सकारात्मक बनाने के लिये वास्तु पंचमहाभूत सिद्धान्त को अपनाकर जीवन में आशानुकूल परिवर्तन किये जा सकते हैं। वास्तुशास्त्र को समझने के लिये विज्ञान के साधारण सिद्धान्तों के साथ ही शरीर रचना विज्ञान को भी समझना होगा तभी वास्तु की गहराई को जान सकेंगे। एवं सकारात्मक ऊर्जा आपके आसपास स्थिर रह सकेगी,अन्यथा आप नकारात्मक ऊर्जा से तनाव,अस्थिरता,बीमारी आदि से घिरे रहेंगे।
पृथ्वी २३.१/२ अंश अपनी धुरी पर झुकी हुयी है,और पूर्व से उत्तर की तरफ़ से अपनी धुरी पर घूम रही है,जिस तरह कार का अगला हिस्सा नीचा और पिछला हिस्सा ऊंचा होता है,जिससे कार की प्रतिरोध क्षमता बढ जाती है,और कार तेज गति से चलती है,यदि इसका उल्टा कर दें,आगे भारी और पीछे हल्का तो गति की क्षमता में कमी आयेगी साथ ही अक्समात के भार को आगे रोकने में काफ़ी मेहनत करनी पडेगी। यानों में गाडियों में आगे का हिस्सा हल्का और पीछे का हिस्सा इसलिये ही भारी रखा जाता है जिससे गति अनिर्बाध रूप से जारी रह सके।
शरीर रचना के अनुसार पंचमहाभूत सिद्धान्त अग्नि,वायु,आकाश,पृथ्वी,जल को अपने हाथ की पांचों उंगलियो से समझिये,हाथ के अन्दर अंगूठे को अग्नि,तर्जनी को वायु,मध्यमा को आकाश,अनामिका को पृथ्वी,और कनिष्ठा को जल की मान्यता दी गयी है। उसी प्रकार से हाथ के अंगूठे को अग्निकोण अंगूठे वाले भारी भाग को नैऋत्य बताया गया है,तर्जनी को दक्षिण मध्यमा को पश्चिम अनामिका को पूर्व और कनिष्ठा को उत्तर दिशा का कारक बताया गया है।कनिष्ठा के पास वाले हिस्से से हथेली के बीच वाले हिस्से को ईशान कोण और अन्त के हिस्से को वायव्य की दिशा से बोधित किया गया है।
यदि आपका मकान उत्तर-पूर्व में नीचा और दक्षिण-पश्चिम में ऊंचा हो तो आपका भवन हवा के वेग के प्रतिरोध को सहन करने में सक्षम होगा,और सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहेगा। एक हीरे से भी बडा फ़ल प्रदान करेगा,जब भी मकान में रहने वाले लोगों का भाग्य डूबेगा,फ़ौरन मकान का भाग्य अपने कारणों से रहने वाले व्यक्ति को बचा जायेगा। लेकिन इसके उल्टे होने में जब भी व्यक्ति का भाग्य डूबेगा तो मकान का भाग्य भी डुबा कर व्यक्ति की औकात के साथ जीवन भी समाप्त कर सकता है।
अक्सर यह देखने में आता है कि लोग कहते है कि फ़लां का मकान बहुत फ़ल दायी है,फ़लां का मकान बहुत बेकार है,यह बात हम भाग्य के भरोसे देते है लेकिन भाग्य को दोष देने के पहले यह भी देखना चाहिये कि हमने तामसी बुद्धि के अन्दर कितना नुकसान अपने आने वाले बच्चों और अपने लिये कर लिया है।
वास्तुशास्त्र का परिचय
मानव जन्म के साथ भवन की अनिवार्यता जुडी हुयी है,इस ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम विश्वकर्मा ने भवन का प्रारूप और निर्माण विधि को जन्म देकर अनेक दिव्य भवन एवं सभाओं का निर्माण किया। आज जितने भी भवन दिखाई दे रहे है,यह सभी भगवान विश्वकर्मा से अनुप्रेरित है।
चारों आश्रमों में गृहस्थाश्रम प्रधान है,इसी पर तीन अन्य आश्रम आश्रित है। प्रत्येक गृहस्थ के लिये गृह का होना आवश्यक है,जिससे परिवार की रक्षा तथा इच्छित सुखों की प्राप्ति हो सके। गृह होने पर धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति अस्तित्व की स्थिति गृहस्थ की अस्मितता व्यवहारिक निर्वाह सम्भव है,गृहहीन का कोई आस्तित्व नही है। गृहस्थ के लिये अपना घर होना माता पिता की तरह से लालन का सुख पिता की तरह से पालन का सुख तथा मित्रों की तरह से सहायक होने का सुख तथा आनन्द देता है। संसार में अनेक मानव जम लेते है,उनमे से कम ही पुरुषार्थी होते है जो अपने अर्जित धन से भवन का निर्माण करने का सुख पाते हैं। घर का निर्माण करवाने पर घर का स्वामी सुखानुभूति मन की शांति प्रसन्नता सपरिवार अनुभव करने के लिये भागी होते है,तथा वास्तविक जीवन जीने का आनन्द लेते हैं।
जो व्यक्ति अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित भवन में अपना जीवन यापन कर रहे है,वे पूर्व संचित द्रव्य का भक्षण करने वाले मात्र होते है,जब भी भवन का निर्माण करवाया जाये या कोई कायापलट करवायी जाये,तो पास के किसी भी कुशल वास्तुविद से सलाह लेकर ही निर्माण या कायाकल्प करवानी चाहिये। इससे घर में बनी हुयी शांति नही बिगडेगी और वंश वृद्धि भी होती रहेगी। सुख सम्पदा का आधार घर ही है,अत: भवन निर्माण से पहले भूमि का परीक्षण करवाना चाहिये,भवन केवल एक पीढी के लिये नही बनवाया जाता है उसके अन्दर कई पीढी रह सकती है,मनुस्मृति में विश्वकर्मा ने सलाह दी है कि घर एक भावनाओं का मन्दिर भी होता है,जिसके अन्दर सदवृत्ति की भावनायें बनती है वह घर स्वर्ग के समान होता है,और जिस घर के अन्दर दूसरों की बुराइयां और चुगली आदि होती है वह घर घर नही होता है बल्कि शमशान में बनी हुयी बिना उद्दीपन चिता के समान माना जाता है। जिस घर के अन्दर घर के मालिक या मालिकिन को नींद नही आती है,वह घर किसी ना किसी प्रकार के दोष से पीडित होता है। जिस घर के पडौस में रहने वाले लोग हमेशा लडने के लिये तैयार रहते हों और किसी प्रकार का आवागमन नही होता हो तीज त्यौहार भी कोई आता जाता नही हो तो वह घर रहने के लायक नही होता है,उसके अन्दर भी कोई न कोई कमी होती है। वास्तु बिना ज्योतिष के अधूरा है और ज्योतिष भी बिना वास्तु के अधूरी है.

जीवात्मा योग

सूर्य और गुरु के मिलान में जातक को जीवात्मा योग का दर्जा दिया जाता है। गुरु जो जीव का कारक है और सूर्य आत्मा का कारक के मिलान को ही जीवात्मा योग का दर्जा दिया गया है। गुरु अपने मित्र ग्रही होकर अगर स्थापित है तो जीव का कारण मनुष्य शरीर में आकर दूसरों के लिये उपकार की भावना का उदय होना मिलता है,और वही गुरु अगर किसी प्रकार से राहु के साथ मिल जाता है तो वह जीवोद्धार के लिये आता तो है लेकिन वह कम से कम बहुत सारी समस्याओं से घिर भी जाता है,और उन समस्याओं के कारण ही उसका अन्त भी माना जाता है। राहु का प्रभाव गुरु से भी बहुत बडा माना जाता है। कारण गुरु का एक नियत स्थान है लेकिन राहु का स्थान असीमित है राहु की परिभाषा को कोई भी आज तक कह नही पाया है,वह किस तरह से अपना असर कहां से देगा इसका कोई विश्लेषण नही कर सका है। राहु की जरा सी गंदगी गुरु को आजीवन शुद्ध नही रहने देगी,और गुरु का पूरा का पूरा प्रभाव भी राहु की अशुद्धता को दूर नही कर सकता है। जीवात्मा योग के बारे में कहा गया है कि वह ईश्वर अंश से अवतारित है,और इसी के कारण वह सज्जनता की श्रेणी में गिना जाता है। गुरु के भावों में धनु और मीन राशि में यह युति धर्म और मोक्ष का रास्ता देती है,लेकिन मकर और वृश्चिक राशि में गुरु सूर्य की युति जातक के अन्दर ईश्वर अंश से अवतार होना तो मानते है लेकिन राज गद्दी के मोह के अन्दर वह सभी कुछ भूल जाता है और अपने खुद के ऐश्वर्य के लिये कार्य करने लगता है,जो दूसरों को देना था वह खुद ही खाने लगता है।

क्या कैमिकल बरसात का योग है?

नासा ने बडे जोर शोर से प्रचार किया है कि साढे सात सौ साल बाद एक बार कैमिकल युक्त बरसात होती है,और उस बरसात के दुष्परिणाम कैंसर जैसी बीमारियों को देता है। यह बात चन्द्रमा के चारों तरफ़ बने घेरे के अनुसार बताई गयी है। क्या होता है यह चन्द्रमा का घेरा,इसका पता पहले कर लेते है,पृथ्वी के धरातल पर जब नमी अधिक हो जाती है और नमी का उठान ऊपर की तरफ़ नही हो पाता है तो रात के समय चन्द्रमा के आसपास एक पीले रंग का घेरा दिखाई देने लगता है,इस घेरे को पुराने जमाने में पार्स कह कर सम्बोधित किया जाता था,जब यह पार्स चन्द्रमा के बिलकुल नजदीक हुआ करता था तो बरसात का होना अधिक समय बाद बताया जाता था,और जब चन्द्रमा के दूर में पार्स होता था तो पानी का बरसना नजदीक मालुम होता था। इस बात को आप जब वायुयान में यात्रा कर रहे हो और वायुयान पृथ्वी की सतह से ऊपर जा चुका हो तो आप समझ सकते है,नीचे की जो नमी युक्त सतह दिखाई देती है वह अगर सफ़ेद रंग की होती है तो वह बिना कैमिकल के पानी की भाप की शक्ल की होती है,और वही अगर लाल या कत्थई रंग की होती है तो वह कैमिकल और विभिन्न प्रकार के धरातलीय अपशिष्ट पदार्थों को साथ लिये होती है,यह नमी जब ठंडक में बदल जाती है तो धरातल पर पानी की बूंदों के रूप में बरसती है। इन बूंदो के अन्दर पहले से मौजूद अपशिष्ट पदार्थ होते है वे नंगे शरीर से छूने के कारण वैक्टीरियाओं के प्रकोप से शरीर को आच्छादित कर सकते है और शरीर में विभिन्न बीमारियों वाले कीटाणु प्रवेश कर जाते है,इसका असर किसी भी प्रकार से पीने वाले पानी के साथ नहाने के पानी के साथ छत पर रखी खुली टंकियों के साथ होने से दिक्कत देने वाला हो सकता है। क्या इस प्रकार का संयोग आगे हो सकता है इसके लिये आइये समय की कुंडली को देखते हैं।
वर्तमान में गुरु जो हवा का कारक है वह कालचक्र में कुम्भ राशि में विद्यमान है,कुम्भ राशि का स्थान कालचक्र के ग्यारहवे भाव का कारक है,और यह स्थान के कारकों में पृथ्वी के दक्षिण-पश्चिम एरिया को दर्शाता है। इस एरिया में आस्ट्रेलिया भारत सिंगापुर म्यांमार बंगला देश आदि देश आते है,लेकिन पृथ्वी की धुरी से अगर देखा जाये तो अफ़्रीका सहित कई देशों के भाग इस गुरु की चपेट में आजाते है। वायु मंडल के अनुसार ही समय की गति को मापा जा सकता है,कारण बिना वायु मंडल के प्रभावित हुये कोई भी घटक अपनी कमी या बढोत्तरी नही कर सकता है। पानी का का कारक चन्द्रमा है और गुरु के साथ लम्बे समय तक पानी का असर देने वाला शुक्र भी जलीय कारणों का मानक कहा जा सकता है। वर्तमान में शुक्र बुध और सूर्य एक ही राशि यानी गुरु की मीन राशि में है,यह राशि भी आसमान की राशि कही जाती है,गुरु अपने अंश से तीस अंश तक किसी भी ग्रह को तुरत बल देने का कारक माना जाता है। बुध का रूप गोल और शुक्र का रूप चितकबरा मालुम होता है,सूर्य गुलाबी आभा लेकर अपना रंग प्रदर्शित करता है,आप आसमान की तरफ़ देखें तो आपको कहीं कहीं रुई जैसे फ़ाये आसमान में तैरते दिखाई दे रहे है और कहीं कहीं पर हल्के गुलाबी रंग के धुयें की शक्ल का एक वातावरण बना हुआ दिखाई दे रहा है। मरुस्थलीय इलाकों और पठारी इलाकों में एक धुन्ध सी छायी हुयी है,इस धुन्ध का कारण एक और माना जा सकता है कि उत्तर दिशा में मंगल की स्थिति मिलती है,इस मंगल की स्थिति के कारण वातावरण में गर्मी भी मिलती है,अक्सर लोग कहने लगे है कि अबकी बार सर्दी पडी ही नही है,इसका कारण भी पिछले अक्टूबर से आगे आने वाली मई के आखिरी तक मंगल का स्थान पानी की राशि में नीच का प्रभाव लेकर रुक गया है,और इस मंगल की गर्मी जो पानी वाले क्षेत्रों में अधिक मिलती है का रूप भी सामने आ चुका है,लेकिन मंगल अपने स्थान से अधिक अपने से चौथे सातवें और आठवें भाव को देखता है,इस प्रकार से प्रभाव वाले क्षेत्र भूमंडल के पश्चिमी इलाके,भूमंडल के दक्षिणी इलाके और गुरु के स्थान वाले इलाके जिनके अन्दर आस्ट्रेलिया भारत सिंगापुर बांगलादेश म्यामार आदि देश है वे ही अधिक प्रभावित होते है। लेकिन नासा की इस भविष्य वाणी को इसलिये फ़ेल होना पडेगा क्योंकि उसके द्वारा घोषित २० और २८ तारीख को मंगल की डिग्री काफ़ी अधिक है,और अधिक गर्मी बरसात नही करती है,गुरु को उत्तेजित करने के बाद केवल आंधी का रूप लेती है। शुक्र अगर अपना रूप दिखायेगा भी तो वह चीन और सोवियत रूस के ऊपर विराजमान है,और अधिकतर अपनी ठंडी का रुख ग्रेट ब्रिटेन में दिखा सकता है।

पति-पत्नी और रिस्तों का योग

शादी एक अटूट सम्बन्ध है,शादी का मतलब होता है दो आत्माओं का मिलन और दोनो का आजीवन साथ निभाने का योग। ज्योतिष के अनुसार गुरु शादी सम्बन्ध का मालिक होता है,गुरु ही पति पत्नी के रिस्ते को अपनी स्थिति के अनुसार कायम रखता है,और गुरु के द्वारा ही गोचर के समय विभिन्न भावों में विचरण करने पर विभिन्न प्रकार के सुख और दुख पति पत्नी को झेलने पडते है,गुरु का असर अन्य ग्रहों के साथ होने पर पति पत्नी के रिस्तों के बीच में फ़र्क पैदा होता है और गुरु के अनुसार ही बिगडे रिस्ते या तो बनते है या फ़िर हमेशा के लिये खत्म हो जाते है,गुरु का बल ही जीवन में रिस्तों के लिये जाना जाता है। लेकिन शुक्र की राशियां शुक्र का साथ शुक्र के नक्षत्रों में गुरु का भेद बजाय आत्मिक सम्बन्ध के दिखावे का सम्बन्ध बन जाता है,अधिकतर मामलों में भौतिकता का प्रतीक,पति या पत्नी ने जहाँ भी भौतिकता का प्रभाव कम होता देखा अपने अपने स्वार्थ की खातिर सटकने में ही अपनी भलाई समझते है। वैसे कहा भी गया है कि शुक्र को अगर गाय मानते है तो जिधर ही हरी घास दिखी उधर की तरफ़ अपना रुख कर लिया,गुरु के लिये कहा गया है कि कितना ही ज्ञानी हो लेकिन भीख तो मांगनी ही पडेगी,अपनी सिद्धियों के बल पर मांगी जाये,चाहे वह ईश्वर से या ईश्वर के बंदों से गुरु को तो मांगना ही पडेगा। गुरु ने ही अपनी मांगने की प्रक्रिया के अन्दर राजा हरिश्चन्द्र जैसे सम्राट को कंगाल बनाकर शमशान की रखवाली तक करवाली थी,राजा नल को दर दर का भटकाकर कितने आक्षेप विक्षेप लगवा दिये थे। लेकिन शुक्र का अपना अहम होता है उसकी केवल एक आंख होती है,जिधर उसकी दिशा बनी उधर ही चल देता है,उसे मरना जीना नही दिखाई देता है। गुरु का स्वार्थ धर्म से रहना होता है,शुक्र का स्वार्थ आराम से रहना होता है,संसार में सभी आराम करना चाहते है,कोई महल में आराम से रहता है और कोई शमशान में लेट कर आराम कर रहा होता है। शुक्र की दशा में व्यक्ति कितना ही खराब हो मौज की जिन्दगी जीने लगता है,और गुरु की दशा में कितना ही मौज में रहने वाला व्यक्ति होता सिवाय घर और परिवार की जिम्मेदारियां और रिस्ते नातों की बजह से लुटता ही रहता है। भांग खाकर ख्वाब देखने वाले को भी गुरु की उपाधि में देखते है,वह एक ही स्थान पर बैठ कर आराम से आसमान की सैर करता है,जबकि दही जो शुक्र का है को खाकर बिना आराम की तलब लगे भी आराम करता है। तो देखना यह पडता है कि आजके जमाने में इस शादी सम्बन्ध को तोडने में कौन उत्तरदायी है ? क्या गुरु सम्बन्धों को बनाकर तोडता है अथवा शुक्र सम्बन्धो को बनाकर चलाता है।
गुरु उपदेश देता है कि सम्बन्धों को बनाकर चलो,अपने परिवार माता पिता भाई बहिन को समझ कर चलो,जो भी तुम्हारे मातहत है उनका पालन पोषण करो,जो बडे है उनको सम्मान से देखो,जहाँ बडे बुजुर्ग हों वहाँ पर कायदे से रहना सीखो,किसी मंदिर में या धार्मिक स्थान में प्रवचन हो रहे हो उन्हे ध्यान से सुनो और जो बातें प्रवचनों में कही जाती है उन्हे जीवन के अन्दर प्रयोग में लाओ,साफ़ रहो स्वस्थ रहने के लिये योग करो,कम खाओ और अधिक काम करो,किसी का माल मुफ़्त में मत खाओ,किसी की वस्तु को ऐसे वैसे मत देखो,कोई गाली दे तो चुपचाप सहन कर लो,हिंसा के सामने अहिंसा प्रदर्शित करो,आदि बातें गुरु के द्वारा मिलती है,लेकिन सम्बन्ध बिना शुक्र के बनाये जीवन भी नही चलना है,और शुक्र के साथ रहने से यह सब बातें चलने वाली नही है,गुरु कहता है कि माता पिता की बात को मानो,गुरु ने सम्बन्ध बनाया और शादी करवा दी,शादी के बाद पत्नी जो शुक्र का रूप है घर के अन्दर आयी और जो उसने देखा कि घर के अन्दर तो काफ़ी गहमागहमी है,अगर सभी के लिये काम करने पडे तो चौबीस घंटे काम करने के बाद भी गुजारा नही होना है,जो काम करना था वह तो पिता के घर पर कर लिया,जो खाना बनाना पढना लिखना था वह तो सब पिता के यहाँ कर लिया,अब अगर उससे अधिक करने के लिये शादी हुयी है तो बेकार है यह शादी,वह तो पति के घर पर आराम करने के लिये आयी है,उसे भी पता है कि लोग अपनी अपनी पत्नी को हवाई जहाज से सैर करवाने के लिये ले जाते है हनीमून मनाते है और एक एक साल घर से बाहर रहकर पत्नी का मूड गृहस्थी के लिये बनाते है,यह सब न होकर यहाँ तो केवल काम और काम ही करना है। वह शाम को पति से मिलती है,थोडा सा नाटक करने की जरूरत है,वह अपनी एक एक बात पति से कहती है,माताजी यह कह रही थी पिताजी ने ऐसे कहा था ननद ने यह कहा था देवर ने यह कहा था,पति भी सुनता तो है लेकिन वह जानता है कि जो बातें हुयी है वे होनी भी चाहिये,अगर लोग कहेंगे नही तो घर के अन्दर के काम उसकी पत्नी को आयेंगे कैसे,वह आधी बात को सुनता है और आधीबात को छोड कर चल देता है। सुबह होती है रात को काफ़ी बातें करने के बाद पति की नींद पूरी नही हुई पिताजी को आघात लगा कि काम की छुट्टी हो गयी,माताजी को लगा कि नई बहू आयी है और वह अगर इसी तरह से चलती रही तो रोजाना की चाय उसे ही बनानी पडेगी,वह तो रात को यह सोच कर सोई थी कि सुबह उसकी बहू चाय लेकर सामने खडी होगी और मनुहार करने के बाद कहेगी,-"माताजी उठो,चाय पीलो",लेकिन यहाँ तो पासा ही उल्टा पडा है,सुबह की पहली सीढी झल्लाहट से चालू हुयी और जब सुबह ही झल्लाहट हुयी तो शाम तक तो कुछ ना कुछ होना है ही। माताजी का पारा ननदों ने देखा तो उनकी भी चढ बन गयी,वे भी हर काम के अन्दर मीन मेख निकालने लग गयीं,भाभी से किसी ना किसी बात में पंगा लेना तो है ही,बेचारी भाभी का भी बुरा हाल था,वह भी सोच रही थी कि अगर सास को सही घर चलाना है तो वह पुचकारेगी और पूँछेगी कि कहो बहूरानी क्या बात है क्यों उदास हो,शाम को पति देव के आते ही झक झक चालू हो गयी,सास के तो करम फ़ूट गये,ससुर के लिये कमीने लोग मिले,ननदों के लिये जमाने की उतरी भाभी मिली,देवर के लिये घर तोडने वाली बकवास औरत मिली,गुरु का खेल एक ही दिन में समाप्त,दशा बदलते तो देर लगती है लेकिन यहाँ तो दशा लगी भी और बहुत जल्दी से उतर भी गयी। शाम को लडके ने आकर घर का हाल देखा,और फ़ौरन ही अपने ससुर को फ़ोन मिलाया,कि जल्दी से आकर ले जाओ,नही तो इस घर के अन्दर आतिशबाजी फ़ूटने वाली है,रोजाना अखबार की खबरें पढ कर उसे इतना तो ज्ञान हो ही गया था कि अगर किसी तरह से उसकी पत्नी ने अपनी उंगली भी घायल कर ली तो कानून उसे चार सौ अट्ठानबे के अन्दर अन्दर ही करेगा,वैसे किसी लडाई झगडे में कोई घर वाला जमानत करवाने वाला तो मिलता है लेकिन इस कानून के अन्दर तो रिस्तेदार भी जमानत करवाने से घबडाते है कहीं बहू का बाप उसके ऊपर भी कोई केश ना दायर कर दे,एक नही दो नही पूरे छ: महिने के लिये अन्दर जाना पडता है,आजकल जेलों के अन्दर भी अलग अलग माहौल है नेतागीरी जेल के अन्दर भी खूब चलती है,वहाँ पर लम्बरदार को अगर लम्बरदारी नही दी तो हालत बदसूरत से भी गयी गुजरी होगी,इधर घर की कोई बहिन माँ भाभी खूबसूरत है तो जेल के अन्दर काम करने वाले लोगों की नजर तो हमेशा भेडिया की नजर से भी तीखी होती है उन्हे भी नये माल की तलाश हमेशा होती है,इन बातों से घबडा कर पति देव ने फ़ोन किया,पत्नी के पिता आये और फ़ौरन अपनी बेटी को एक सूटकेश में ले गये,उन्हे भी पता था कि बाकी का सामान तो पुलिस वाले खुद लेकर आजायेंगे। 
हुआ भी वही पत्नी के पिताजी सीधे पत्नी को लेकर थाने पहँचे और पत्नी की हालत थानेदार को दिखाई थानेदार से तयपायी हुयी और एक पिक-अप पुलिस वालों से भरी चली आयी,एक साथ सभी घर वालों को लेजाकर थाने की हवालात में बन्द कर दिया सुबह को चालान काट दिया और सीधा रास्ता दिखा दिया सेन्ट्रल जेल का,वाह रे गुरु खूब कराया सम्बन्ध खूब बनाये रिस्ते शुक्र की करामात दो मिनट में सभी अन्दर,किसी को भी जमानत करवाने के लिये भी फ़ुर्सत नही मिली। दहेज का सामान पूरा नही पुलिस को मिल पाया था,उसे वसूल करने के लिये थानेदार ने अदालत से रिमांड मांग लिया,जेल से फ़िर थाने में आ गये,रात को दारू पीकर थानेदार ने अपनी झरपट दिखा दी,जरा सी देर में बरसों के खाये पिये हाथ पैर ठंडे कर दिये,सौदा तय हुआ कि पाँच दिन का रिमाण्ड लिया है,और इसकी एवज में इतने लाख का खर्चा है,अगर नही दिये तो कल तेरी बहिन का रिमांड है,मरता क्या नही करता पुलिस वालों के साथ एक जानकार के यहाँ गया,घर को गिरवी रखा,शुक्र का मामला था,गुरु को गाली दे रहा था,कैसा करवाया रे सम्बन्ध ! सभी कुछ तबाह,कुछ भी नही बचा,जो भी देखता,वही कहता देखो साले ने दहेज मांगा होगा इसलिये पुलिस ने पकडा है,अब उनको पतिदेव आपबीती कैसे सुनाते,मामला ले देकर रफ़ादफ़ा हुआ,थानेदार को पूरी मेहनत मिलने के बाद जमानत भी छुट्टी के दिन जज के घर पर ही जाकर हो गयी। सभी घर पर आगये,कोर्ट का केश चालू हो गया,आठ साल कोर्ट के चक्कर लगाये,गुरु ने न्याय दिया कि पत्नी को एक मुस्त बीस लाख रुपया देदो और उससे तलाक ले लो,वाह रे गुरु! पहले सम्बन्ध करवाया फ़िर बरबाद किया घर के अन्दर खाने के दाने नही छोडे,और अब न्याय दे रहा है,अगर यही था तो पहले क्यों नही कह दिया था कि गुरु और शुक्र में कभी नही बनती,गुरु को बदला ही लेना था तो वह शुक्र से सीधा लेता,पति देव को और उसके परिवार वालों को क्यों बीच में फ़ंसाया,ऐसी क्या गल्ती हो गयी थी,यह बात गुरु के कारण नही हुयी थी,बात के बीच में चन्द्रमा आ गया था,चन्द्रमा भी तो माँ होती है,बाकी सूर्य भी आ गया था,शुक्र की सूर्य के सामने चलती नही है लेकिन चन्द्रमा के कारण सूर्य भी परेशानी में आजाता है,बचा खुचा था वह बुध ने पूरा कर दिया,और जब इन बातों का समागम हुआ तो राहु ने अपनी एक झटके में पूरी की पूरी उतार कर रख दी।

रूप सिद्धि

एक व्यक्ति का रंग काला है और वह अपने शरीर को इस प्रकार से सजाता है कि वह देखने में चित्ताकर्षक लगने लगता है,यही बात एक मकान के लिये मानी जाती है,मकान खूब मजबूत बना है,और उसको देखने पर वह भयानक लगता है लेकिन उसी को चित्ताकर्षक रंगों से पोत कर सजा दिया जाता है तो वह अच्छा लगने लगता है,एक तस्वीर बिना किसी रंगों के तालमेल से बनायी जाती है,वह देखने में भद्दी लगती है लेकिन उसी तस्वीर को अगर रंगो के तालमेल से बनाकर यथा उचित रंगो से सजाया जाता है तो वह मनभावन लगने लगती है। स्जाने संवारने की क्रिया को ही रूप सिद्धि के अन्तर्गत माना जा सकता है। इसी रूप सिद्धि के कारण बडे और छोटे होने का आभास होने लगता है इसी रूप सिद्धि के कारण वैश्या अपने को सजाने की कला से धन और वैभव इकट्ठा कर लेती है,और इसी रूप सिद्धि के कारण नौटंकी के कलाकार अपने विभिन्न रूप सजाकर दर्शकों का मन मोह कर धन और प्रसिद्धि इकट्टी कर लेते हैं। रूप सिद्धि के अन्दर जो बातें है वे कहीं ढूंढने नही जाना पडता है,उनके लिये खुद के अन्दर देखने परखने की क्रिया को आरम्भ करने की जरूरत होती है।
एक प्लास्टिक की गुडिया को इतना सजा दिया कि वह किसी भी मायने में बहुत ही सुन्दर लगे और एक सोने के टुकडे को बिना सजा हुआ कोई भी रूप दे दिया जाये तो वह अपना मोल तो रखेगा लेकिन गढाई की कला से सुसज्जित नही होने के कारण वह भद्दा ही लगेगा,लेकिन वह प्लास्टिक की गुडिया अपना रूप सबके लिये भावनात्मक रूप से और रूपसिद्धि के कारण पसंद किया जायेगा। जीवन के प्रत्येक कार्य में रूप सिद्धि का ज्ञान आवश्यक है,भोजन के मामले में वह महंगे होटलों में देखने को मिलता है,पहिनने के मामलों में वह सलीके वाली दुकानों के अन्दर मिलता है,इस प्रकार से रूप सिद्धि को बिना प्राप्त किये सभी सिद्धियां बेकार ही मानी जा सकती है,लेकिन रूप सिद्धि का प्रभाव भी जन कल्याण की भावना से होने पर वह इतिहास में लिखा जाता है,और रूप सिद्धि के होने पर भी जनकल्याण की बजाय अहितकारी और मारक है तो उसके बारे में कहा जा सकता है,-"विष रस भरा कनक घट जैसें".

कारकत्व सिद्धि


एक व्यक्ति को एक टोकरी मिट्टी दे दी जाती है और उससे कहा जाता है कि इस मिट्टी को सिद्ध करो,वह व्यक्ति उस मिट्टी को अपने दिमाग के अनुसार देश काल और परिस्थित के अनुसार विभिन्न तरीकों से सिद्ध करने के बाद जो रूप सामने करता है उस रूप को मिट्टी की सिद्धि का प्रतिफ़ल माना जाता है। लेकिन कारक की सिद्धि के अन्दर जो बातें मुख्य होती है उनके अन्दर जलवायु,रहने वाला स्थान,आसपास के लोग,खुद की भावनायें,कर्म करने का तरीका,और मानसिक विचार अगर सात्विक है तो वह अपने उद्देश्य में सफ़ल हो जाता है,और जिस भावना से उस मिट्टी को सिद्ध किया जायेगा,वह मिट्टी उसी के अनुसार कार्य करने में सफ़ल होगी।
किस प्रकार से मिट्टी को सिद्ध किया जा सकता है ?
दी गयी मिट्टी को सिद्ध करने के लिये व्यक्ति के अन्दर पहले मानसिक सोच होनी चाहिये,फ़िर उसके दिमाग में कोई सकरात्मक तस्वीर होनी चाहिये,फ़िर उस सकारात्मक तस्वीर में मिट्टी के अन्दर शक्ति मिलाने की कला होनी चाहिये,कला के बाद उसे लोगों को बताने का तरीका होना चाहिये,उससे जो सकारात्मक कारण बन कर तैयार हुआ है उसे देख कर जो भी देखे उनके अन्दर भी सकारात्मक विचार उत्पन्न हो,उस बनाये गये सकारात्मक कारक का रूप कुछ ऐसा भेद पैदा करे,जिससे आगे अगर किसी को एक टोकरी मिट्टी दी जावे तो वह उससे और कोई नया रूप तैयार करे,उस मिट्टी के अन्दर भावना और भावनाओं को बताने की सुन्दरता और कला भी समायोजन हो,व्यक्ति के अन्दर कार्य करने और उस मिट्टी को सुरक्षित रखने का पूरा ज्ञान होना भी आवश्यक है,उस मिट्टी के रूप के बन जाने के बाद भय हर्ष उमंग भावुकता अनन्त विचारों की कल्पना भी होनी जरूरी है,इसके बाद जो भी कारक बना है वह किसी ना किसी प्रकार से जनकल्याण के हित में हो।  इन सब बातों के लिये जो मुख्य कारक सामने आयेंगे उनके अन्दर चन्द्र से सोचना,सूर्य से रूप प्रदान करना,मंगल से शक्ति का भरा जाना,बुध से उस कारक का खुद के द्वारा अपना बखान करना,गुरु से उस कारक के द्वारा जो ज्ञान मिलता है उसकी भावना का विकास कैसे और आगे हो सकता है की जानकारी मिलना,शुक्र से उसके अन्दर कलात्मक और सुन्दर लगने वाली छवि का विकास होना,शनि से उसे रखने और उस मिट्टी के अन्दर काम करने की मेहनत का सामजस्य होना,राहु से उसके देखने के बाद भय,उमंग हर्ष उन्माद आदि का प्रभाव होना और केतु से जनकल्याण की भावना से उस कारक का प्रयुक्त होना माना जा सकता है।
भावनात्मक विचार से कारकत्व का निर्माण
रामायण में गोस्वामी जी ने एक चौपाई लिखी है,-"जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरति देखी तिन तैसी",यह शरीर भी एक मिट्टी की भांति ही है,इसके अन्दर पृथ्वी से मिट्टी,पानी,आग,हवा,और जीवन का संचार मिला है। इसी प्रकार से गुरुगोरखनाथ ने स्वर्ण बनाने की क्रिया का बखान किया है-"अगरस मगरस गन्धक पारा,धूनी देकर गोरख झारा,सुन चेला यह कंचन का खेला",तो स्वर्ण भी मिट्टी से ही बना है,और लोहा भी मिट्टी से बना है,लोहा और सोना एक ही स्थान से बनते है वह स्थान भी पृथ्वी ही है। सोने के अन्दर १५९ तत्व और लोहे के अन्दर १५८ तत्व है,केवल एक तत्व की कमी से सोना सोना है और लोहा लोहा । मिट्टी को रूप परिवर्तित करते समय उसके अन्दर पानी मिलाकर गूंथा गया,फ़िर उसका रूप बनाकर निखारा गया,उसके बाद गर्मी देकर पकाया गया और कलात्मक रूप में उसका मूर्ति बनाने का सांचा तैयार किया गया,उस सांचे से चाहे तो एक भयानक राक्षस की मूर्ति बनाकर भय का संचार कर दिया जाये,चाहे तो उसके अन्दर मनमोहक बच्चे की मूर्ति बनाकर वात्सल्य की भावना को भर दिया जाये,चाहे तो एक योद्धा की मूर्ति बनाकर उन्माद भर दिया जाये,अथवा उस मूर्ति के अन्दर कामक्रिया को दर्शाकरशारीरिक उत्तेजना को पैदा कर दिया जाये। इसी प्रकार से अगर उस मिट्टी के अनुसार जलवायु मिल जाती है तो उसके द्वारा विष का पौधा लगाकर कितनों को मारा जा सकता है और उसी मिट्टी में दवाई का पौधा लगाकर उससे कितने लोगों को मौत के मुंह से बचाने का काम हो सकता है। यह सब कारण कारकत्व सिद्धि से ही सम्भव है।

योग सिद्धि

योग सिद्धियों के अन्दर निम्न लिखित सिद्धियां आनी चाहिये:-
  1. वाक सिद्धि:- इस सिद्धि केलिये जातक के माता पिता परिवार आसपास का समाज और बाद में स्कूल  शिक्षक सहपाठी मित्रवर्ग और उसके बाद पति या पत्नी होने वाली संतान काम करने वाले स्थान में साथ कर्म करने वाले लोग,वाकसिद्धि में सहायता देते हैं। इस सिद्धि को प्राप्त करने के लिये जिव्हा से जो भी बोला जाता है,उस बोली के अन्दर कोई हिंसा नही होती है,किसी का भी जी नही दुखाया जाता है,तो वाकसिद्धि जल्दी हो जाती है,उसके बाद दन्त धोवन,जिव्हा की सफ़ाई,गले की सफ़ाई,नेती आदि करने से वाणी के अन्दर पैदा होने वाले विकारों का अन्त हो जाता है,नीम की दातुन और लालमिर्च का सेवन भी वाकसिद्धि में सहायक होता है लेकिन लालमिर्च को शोधित करने के बाद ही प्रयोग करना चाहिये,बिना शोधित लाल मिर्च तामस को पैदा करती है,और शरीर में गर्मी को उत्पादित करती है। मिठाई और खटाई का कम से कम सेवन करना चाहिये,चिल्ला कर बोलना,जोर से हंसना,सर्दी की ऋतु में कानों को नही बांधना आदि गले की खराबियां पैदा कर देती है और वाणी के अन्दर जो तेज होता है वह क्षीण होता चला जाता है। इसके बाद ब्रह्म-विद्या का सस्वर जाप और माता सरस्वती के नाम का एक हजार बार सुबह और एक हजार बार रात को सोने के समय नाम लेने से वाकसिद्धि मिल जाती है,उस समय जो भी कहा जाता है वह सौ फ़ीसदी पूरा होता है। ऐसे लोगों को कोई बुरा विचार मन में नही लाना चाहिये और कोई हिंसा वाली बात किसी को भी नही कहनी चाहिये,भले ही वह कितना ही कठोर या हिंसक हो।
  2. कर्मसिद्धि:- बचपन से लेकर अन्त तक कभी बुरे कर्म करने का मानस नही बनाना चाहिये,जो भी किया जाये वह देश समाज और परिवार के लिये सोच कर किया जाये। कार्य के समय उत्तेजना नही करनी चाहिये जो भी करना है उसे पहले से सोच कर करना चाहिये,जो नही आता है उसे पूंछ लेने में कोई बुरी बात नही होती है,कोई आसपास बताने वाला नही है तो अपने आप से पूंछ लेना भी एक प्रकार से अच्छी बात मानी जाती है,जो भी महापुरुष कहते है उनके अनुसार ही कार्य करना चाहिये,शराब पीकर तामसी पदार्थ खाने के बाद और झूठ बोल कर किये जाने वाले काम कभी सफ़ल नही हो सकते है। कार्य से अगर किसी प्रकार की हिंसा होती है तो भी कार्य के पूरा नही होने में सन्देह होता है,कार्य को समय से करना चाहिये,कभी अधिक और कभी कम करने से कार्य पूरा नही होता है। उचित अनुचित का भेद जानकर किया जाने वाला कार्य जरूर सफ़ल होता है,यही कर्म सिद्धि कही जाती है। कर्म सिद्धि के लिये भी दोनो अलावा सिद्धियों की आवश्यकता होती है।
  3. भाव सिद्धि:-व्यक्ति की भावना अगर हिंसक नही है वह हर बात में जीव कल्याण की सोचता है,उसे किसी भी चीज का मोह नही है वह जो भी है उसी के अन्दर संतोष करने वाला है,वह सभी प्राणियों को समान भाव से देखता है,छल कपट और तृष्णा मन के अन्दर नही है,उसको भाव सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है। इस सिद्धि की प्राप्ति से वह प्राणी मात्र का कल्याण केवल सोचने के द्वारा ही कर सकता है।

गुलिक


गुलिक को मंदि भी कहा जाता है,एक दिन के आठ भाग करने पर सात भाव तो सात ग्रहों के माने जाते है और आठवां भाग गुलिक का माना जाता है। इसकी गणना करने के लिये वारेश को ध्यान में रखना पडता है,और वारेश से ही गणना की जाती है। जैसे रविवार को गुलिक की गणना करनी है,और दिन के आठ भाग किये तो रवि सोम मंगल आदि के बाद शनि का सातवां भाग होगा,जैसे दिन का मान ३२ घडी था तो एक भाग चार घडी का हुआ और शनि का भाग समाप्त होता है उस समय गुलिक का भाग शुरु हो जाता है।
गुलिक के विभिन्न भावों में फ़ल
गुलिक के अलग अलग भावों में अलग अलग फ़ल सामने आते है,जातक के जन्म के समय गुलिक का प्रभाव इस प्रकार से देखना चाहिये।
पहले भाव में गुलिक का फ़ल
पहले भाव में गुलिक की उपस्थिति में जातक क्रूर स्वभाव का होता है उसके अन्दर दया नही होती है,उसकी आदत के अन्दर चोरी करना छुपाकर बात करना और कठोर भाषा का बोलना और मंद बुद्धि का फ़ल देता है। सन्तान सुख उसे नही के बराबर ही मिलता है या तो सन्तान होती  ही नही है और होती भी है तो बुढापे में छीछालेदर करने वाली होती है,ऐसा जातक धर्म कर्म को नही मानता है और जितना हो सकता है भौतिकता पर अपना बल देता है।
दूसरे भाव में गुलिक का फ़ल
दूसरे भाव वाला जातक झूठ बोलने की कला में माहिर होता है,उसे शान्ति कभी अच्छी नही लगती है केवल कलह करने से उसे सन्तोष मिलता है,धन की भावना बिलकुल नही होती है केवल किसका मुफ़्त में मिले और उसका प्रयोग करने के बाद फ़िर से कोई दूसरा शिकार तलासना उसका काम होता है। ऐसा जातक कभी भी एक स्थान पर नही बैठता है हमेशा दर दर का भटकाव उसके जीवन में मिलता है। इस प्रकार के जातकों की जुबान का कोई भरोसा नही होता है,वे आज कुछ बोलते है और कल क्या बोलने लगें कोई भरोसा नही होता है।
तीसरे भाव में गुलिक का फ़ल
तीसरे भाव के गुलिक वाला जातक क्रोधी होता है,उसे घमंड कूट कूट कर भरा होता है,इसके अलावा वह हमेशा लालच करने वाला होता है।किसी सभा समाज से वह नफ़रत करता है,एकान्त मे रहना और शराब कबाब के भोजन करना उसकी शिफ़्त होती है। अक्सर इस प्रकार के जातक जुआरी भी होते है।
चौथे भाव में गुलिक का फ़ल
चौथे भाव के गुलिक वाला जातक हमेशा अपने घर वालों से शत्रुता किये रहता है उसे अपने ही भाई बहिनो से दुश्मनी और क्षोभ रहता है। अक्सर इस गुलिक वाले जातक को कभी भी वाहन का सुख नही मिलता है।
पांचवे भाव के गुलिक का फ़ल
पांचवे भाव के गुलिक वाले जातक को संतान का सुख नही मिल पाता है,और अक्सर उनकी पत्नी और पत्नी के परिवार वालों से सामजस्य नही बैठ पाता है। अपनी ही संतान के द्वारा वह अपमानित होता है और अपनी ही सन्तान उसकी मौत का कारण बनती है।
छठे भाव के गुलिक का फ़ल
जातक के अन्दर काम करने में आलस होता है वह बैठा रह सकता है लेकिन कोई भी दैनिक काम करने के लिये उसकी आदत नही होती है,यहाँ तक कि वह रोजाना मलमूत्र त्याग और रोजाना के नहाने धोने के कार्यों से भी दूर रहता है। इसके साथ ही शमशान सिद्धि और भूत प्रेत वाली बातों में अपना लगाव भी रखता है। अक्सर इस प्रकार के जातकों का नाम उसके पुत्र करते है और वे आगे से आगे बढने वाले होते हैं।
सातवें भाव में गुलिक का फ़ल
पति या पत्नी में आपस में शत्रुता और कभी भी एक दूसरे के विचारों का नही मिलना,इसके साथ ही अगर इस प्रकार का जातक किसी के साथ भी काम करता है तो साझेदारी की पूरी की पूरी हिस्सेदारी वह चालाकी से खा जाने वाला होता है। हर किसी से उसे लडाई करने में मजा आता है और जहां भी लडाई होती है वह वहां जाकर अपना भाव जरूर प्रदर्शित करता है। एक से अधिक जीवन साथी बनाना उसकी आदत में होता है।
आठवें भाव में गुलिक का फ़ल
आठवें भाव के गुलिक वाला जातक ठिगने कद का होता है। उसके बचपन में उसकी आंख में आघात होता है,अक्सर इस प्रकार के जातक हकलाने वाले भी होते है,अधिक खर्च करना और अपनी पत्नी या पति के स्वभाव से व्यथित रहना भी मिलता है। इस प्रकार के जातकों का धन अधिकतर मामलों में पुत्री धन ही बनता है,पुत्र संतान या तो होती नही है और अगर होती भी है तो परिवार से दूर चली जाती है,पुत्रियों की राजनीति से घर में विद्रोह पैदा होता है।
नवें भाव में गुलिक का फ़ल
नवे भाव के गुलिक वाला जातक भाग्य हीन होता है और वह अधिकतर अपने ही परिवार से हमेशा के लिये दूर हो जाता है,भाग्य और धर्म के मामलों मे वह जाना नही चाहता है और अगर जाता भी है तो वह उनके अन्दर कोई ना कोई दखल ही देता है।
दसवें भाव में गुलिक का फ़ल
जातक पापी अधर्मी और धार्मिक स्थानों का तिरस्कार करने वाला होता है,धर्म की ओट में वह कमाकर बेकार के बुरे कर्मों को करने में तथा ऐयासी में खर्च करने वाला होता है।
ग्यारहवें भाव में गुलिक का फ़ल
इस भाव के गुलिक का फ़ल जातक के लिये साहसी बनाने वाला होता है,और अधिकतर मामलों में वह न्याय वाले काम करता है।
बारहवें भाव में गुलिक का फ़ल
इस भाव के गुलिक वाला जातक परदेश में रहने वाला और मलिन स्थानों में निवास करने वाला था अपव्ययी होता है,अक्सर इस प्रकार के जातकों का निवास किसी शमशान या मुर्दा स्थान के आसपास होता है।


गुलिक के बारे में अन्य विचार
गुलिक जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है वह कितना ही कारक जीवन के लिये होता उसे बेकार कर देता है। ग्रह के कारकत्व को समाप्त करने में गुलिक की मुख्य भूमिका होती है।
सूर्य के साथ मिलने से पिता की अल्पायु और पुत्र की बरबादी का कारण होता है आंखों में रोग देता है और अन्धत्व के कारणों मे ले जाता है। चन्द्रमा के साथ होने पर वह माता का सुख नही देता है और पानी वाले रोग तथा बेकार के छली लोगों से छला जाता है। माता भी अल्पायु होती है। मंगल के साथ होने से जातक को भाइयों का सुख नही मिलता है और भाई ही उसकी सम्पत्ति का विनास कर देते है,भाई भी अल्पायु के होते हैं। बुध के साथ होने से जातक को दौरे पडने की बीमारी देता है और पागल पन की बीमारी भी देता है। जातक लगातार बोलने का आदी होता है,और उसकी बडे भाई की पत्नी या पति के बडे भाई से सम्बन्ध बना होता है जिससे अवैद्य सन्तान का पैदा होना और पितृ दोष की उत्पत्ति का कारण भी माना जाता है। गुरु के साथ धर्म से अलग होना शिक्षा का पूरा नही होना,शुक्र के साथ होना बहु स्त्री या बहु पुरुष का भोगी,अधिकतर नीच स्त्रियों का समागम करना या नीच पुरुषों के साथ कामसुख की प्राप्ति करना माना जाता है,गुलिक का शनि के साथ होने से अधिकतर कोढ होना देखा गया है,राहु के साथ होने से जातक को खून की बीमारी और जातक की मौत जहर खाने से होती है। गुलिक का केतु के साथ होना जातक को अग्नि सम्बन्धी कारकों से मृत्यु को सूचित करता है। गुलिक अगर त्याज्य काल में हो तो व्यक्ति राजा के घर में भी पैदा हो फ़िर भी वह दरिद्री होता है।