वास्तु शास्त्र

वास्तु प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति की देन है। जिसे पाश्चत्य रंग में रंगने के कारण एवं विदेशी आक्रमणों के कारण पुराने निर्माणों के टूटने पर किये गये नव निर्माणों में शास्त्र सम्मत नियमों प्राकृतिक सिद्धान्तों को भुला दिया गया,जिसके परिणाम स्वरूप आज भारत के आन्तरिक वासी असहनीय विपरीत प्रभाव से प्रभावित है,जिन लोगों ने वास्तु के नियमों को अपनाया वे इसका शुभ फ़ल प्राप्त कर रहे हैं।
वास्तुशास्त्र भवन निर्माण से सम्बन्धित प्राचीन भारतीय विद्या है,यह विद्या लोगों को संदेश देती है कि पृथ्वी पर स्थिति सभी द्रश्य अद्र्श्य वस्तुयें ब्रह्माण्ड में स्थिति पिण्डों से ऊर्जा लेती है,पिण्डों (ग्रहों) से प्राप्त ऊर्जा को सकारात्मक बनाने के लिये वास्तु पंचमहाभूत सिद्धान्त को अपनाकर जीवन में आशानुकूल परिवर्तन किये जा सकते हैं। वास्तुशास्त्र को समझने के लिये विज्ञान के साधारण सिद्धान्तों के साथ ही शरीर रचना विज्ञान को भी समझना होगा तभी वास्तु की गहराई को जान सकेंगे। एवं सकारात्मक ऊर्जा आपके आसपास स्थिर रह सकेगी,अन्यथा आप नकारात्मक ऊर्जा से तनाव,अस्थिरता,बीमारी आदि से घिरे रहेंगे।
पृथ्वी २३.१/२ अंश अपनी धुरी पर झुकी हुयी है,और पूर्व से उत्तर की तरफ़ से अपनी धुरी पर घूम रही है,जिस तरह कार का अगला हिस्सा नीचा और पिछला हिस्सा ऊंचा होता है,जिससे कार की प्रतिरोध क्षमता बढ जाती है,और कार तेज गति से चलती है,यदि इसका उल्टा कर दें,आगे भारी और पीछे हल्का तो गति की क्षमता में कमी आयेगी साथ ही अक्समात के भार को आगे रोकने में काफ़ी मेहनत करनी पडेगी। यानों में गाडियों में आगे का हिस्सा हल्का और पीछे का हिस्सा इसलिये ही भारी रखा जाता है जिससे गति अनिर्बाध रूप से जारी रह सके।
शरीर रचना के अनुसार पंचमहाभूत सिद्धान्त अग्नि,वायु,आकाश,पृथ्वी,जल को अपने हाथ की पांचों उंगलियो से समझिये,हाथ के अन्दर अंगूठे को अग्नि,तर्जनी को वायु,मध्यमा को आकाश,अनामिका को पृथ्वी,और कनिष्ठा को जल की मान्यता दी गयी है। उसी प्रकार से हाथ के अंगूठे को अग्निकोण अंगूठे वाले भारी भाग को नैऋत्य बताया गया है,तर्जनी को दक्षिण मध्यमा को पश्चिम अनामिका को पूर्व और कनिष्ठा को उत्तर दिशा का कारक बताया गया है।कनिष्ठा के पास वाले हिस्से से हथेली के बीच वाले हिस्से को ईशान कोण और अन्त के हिस्से को वायव्य की दिशा से बोधित किया गया है।
यदि आपका मकान उत्तर-पूर्व में नीचा और दक्षिण-पश्चिम में ऊंचा हो तो आपका भवन हवा के वेग के प्रतिरोध को सहन करने में सक्षम होगा,और सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहेगा। एक हीरे से भी बडा फ़ल प्रदान करेगा,जब भी मकान में रहने वाले लोगों का भाग्य डूबेगा,फ़ौरन मकान का भाग्य अपने कारणों से रहने वाले व्यक्ति को बचा जायेगा। लेकिन इसके उल्टे होने में जब भी व्यक्ति का भाग्य डूबेगा तो मकान का भाग्य भी डुबा कर व्यक्ति की औकात के साथ जीवन भी समाप्त कर सकता है।
अक्सर यह देखने में आता है कि लोग कहते है कि फ़लां का मकान बहुत फ़ल दायी है,फ़लां का मकान बहुत बेकार है,यह बात हम भाग्य के भरोसे देते है लेकिन भाग्य को दोष देने के पहले यह भी देखना चाहिये कि हमने तामसी बुद्धि के अन्दर कितना नुकसान अपने आने वाले बच्चों और अपने लिये कर लिया है।
वास्तुशास्त्र का परिचय
मानव जन्म के साथ भवन की अनिवार्यता जुडी हुयी है,इस ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम विश्वकर्मा ने भवन का प्रारूप और निर्माण विधि को जन्म देकर अनेक दिव्य भवन एवं सभाओं का निर्माण किया। आज जितने भी भवन दिखाई दे रहे है,यह सभी भगवान विश्वकर्मा से अनुप्रेरित है।
चारों आश्रमों में गृहस्थाश्रम प्रधान है,इसी पर तीन अन्य आश्रम आश्रित है। प्रत्येक गृहस्थ के लिये गृह का होना आवश्यक है,जिससे परिवार की रक्षा तथा इच्छित सुखों की प्राप्ति हो सके। गृह होने पर धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति अस्तित्व की स्थिति गृहस्थ की अस्मितता व्यवहारिक निर्वाह सम्भव है,गृहहीन का कोई आस्तित्व नही है। गृहस्थ के लिये अपना घर होना माता पिता की तरह से लालन का सुख पिता की तरह से पालन का सुख तथा मित्रों की तरह से सहायक होने का सुख तथा आनन्द देता है। संसार में अनेक मानव जम लेते है,उनमे से कम ही पुरुषार्थी होते है जो अपने अर्जित धन से भवन का निर्माण करने का सुख पाते हैं। घर का निर्माण करवाने पर घर का स्वामी सुखानुभूति मन की शांति प्रसन्नता सपरिवार अनुभव करने के लिये भागी होते है,तथा वास्तविक जीवन जीने का आनन्द लेते हैं।
जो व्यक्ति अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित भवन में अपना जीवन यापन कर रहे है,वे पूर्व संचित द्रव्य का भक्षण करने वाले मात्र होते है,जब भी भवन का निर्माण करवाया जाये या कोई कायापलट करवायी जाये,तो पास के किसी भी कुशल वास्तुविद से सलाह लेकर ही निर्माण या कायाकल्प करवानी चाहिये। इससे घर में बनी हुयी शांति नही बिगडेगी और वंश वृद्धि भी होती रहेगी। सुख सम्पदा का आधार घर ही है,अत: भवन निर्माण से पहले भूमि का परीक्षण करवाना चाहिये,भवन केवल एक पीढी के लिये नही बनवाया जाता है उसके अन्दर कई पीढी रह सकती है,मनुस्मृति में विश्वकर्मा ने सलाह दी है कि घर एक भावनाओं का मन्दिर भी होता है,जिसके अन्दर सदवृत्ति की भावनायें बनती है वह घर स्वर्ग के समान होता है,और जिस घर के अन्दर दूसरों की बुराइयां और चुगली आदि होती है वह घर घर नही होता है बल्कि शमशान में बनी हुयी बिना उद्दीपन चिता के समान माना जाता है। जिस घर के अन्दर घर के मालिक या मालिकिन को नींद नही आती है,वह घर किसी ना किसी प्रकार के दोष से पीडित होता है। जिस घर के पडौस में रहने वाले लोग हमेशा लडने के लिये तैयार रहते हों और किसी प्रकार का आवागमन नही होता हो तीज त्यौहार भी कोई आता जाता नही हो तो वह घर रहने के लायक नही होता है,उसके अन्दर भी कोई न कोई कमी होती है। वास्तु बिना ज्योतिष के अधूरा है और ज्योतिष भी बिना वास्तु के अधूरी है.

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