गुरु का राशि परिवर्तन (मकर)

कालचक्र के अनुसार मकर राशि अर्थ नामक पुरुषार्थ की राशि है। इस राशि वालो को आजीवन अपने जीवन साथी और साझेदारी के प्रभाव में जूझना पडता है,वे अपने कार्य के आगे किसी भी इमोसन वाले भाव को सही समय पर समझ नही पाते है इस राशि वालों को बचपन से जो अनुभव होते है उन्हे वे अपने जीवन में लगातार साथ लेकर चलते है और बचपन से जब छोटे कन्धो पर जिम्मेदारियों का प्रभाव आजाता है तो वे अपने को किसी भी क्षेत्र में जाने से पहले अपने पीछे वाले जीवन को सोचते है। अक्सर अपनी भावनाओं को जल्दी से भुला भी नही पाते है और इस राशि वालों को पूर्व के किये गये कर्मों का भुगतान बहुत अच्छा मिलता है और जीवन की गति पूर्व कर्मों पर आधारित ही होती है,जातक अपने पूर्वजों की मान्यता में चलने वाला होता है और पिता का बहुत प्रिय होता है अथवा पिता से हमेशा के लिये त्यागा हुआ होता है।
इस राशि के तीसरे भाव में गुरु का गोचर शुरु हुया है,तीसरा भाव प्रदर्शन का कारक भी है इस राशि वाले के लिये यह प्रदर्शन करना अब आसान होगा कि वह जान कार है और सभी शान्ति वाले कारणों को वह अपनी बुद्धि से प्रसारित कर सकता है। इस भाव एक और सबसे अधिक प्रभाव देखा जा सकता है कि इस राशि वाला दूसरों को विदेश भेजने धर्म स्थान पर भेजने और मुक्ति के मार्ग पर भेजने के लिये जो भी प्रयास करेगा वे तो सफ़ल हो जायेंगे लेकिन खुद अगर प्रयास करे तो वे असफ़ल हो जायेंगे,गुरु के इस प्रभाव के कारण जातक को घर से बाहर रहने के बाद तो अच्छे असर मिलते है लेकिन घर के अन्दर रहते ही उसका दिमाग बाहरी दुनिया में घूमने लगता है,उसे भी अपने कार्यों में दूसरे को राय देना बहुत अच्छा लगता है और राशि के प्रभाव से जो भी सुझाव दिया जाता है वह ऊपर की बातों से सम्बन्धित ही होता है। वर्तमान में इस राशि के बारहवें भाव में राहु के विचरण करने से भी एक असर यह भी देखा जा सकता है कि इस राशि वाले को कम या अधिक समय के लिये बन्धन में भी रहना पड सकता है,या किसी वाहन या यात्रा वाले कारण से अपने द्वारा खर्चा भी करवाया जा सकता है इस राशि में गुरु के होने से सन्तान और शिक्षा के प्रति अपनी धारणा नई बनने लगती है और जातक अपने लिये कोई ऐसे कार्य की तलास मे होता है जो किसी प्रकार से कम मेहनत के बाद भारी लाभ दे सके। जातक के नवे भाव मे शनि होने से भी जातक के लिये कार्यों के अन्दर धर्म और कानून वाले कार्य उसके लिये अपना कर्जा दुश्मनी बीमारी वाला असर देते है,और इस क्षेत्र के कार्य उसे किसी न किसी बडी समस्या से उलझाने के लिये मुख्य माने जाते है गुरु शनि के आमने सामने होने से जातक को कार्यों के प्रति काफ़ी सजगता भी देखी जा सकती है और पूर्वजों की सम्पत्ति और इसी प्रकार के कारणों से भी आमना सामना होने के पूरे पूरे चांस होते है।

गुरु की तीसरी द्रिष्टि बुद्धि वाले भाव मे जाने से जातक के अन्दर बुद्धि का विकास भी माना जाता है और पारिवारिक स्थितियों से निपटने के लिये भी धन को जल्दी प्राप्त करने वाले उपाय किये जाते है उसी प्रकार की शिक्षायें भी मिलती है जो कार्य को करने के बाद प्राप्त होती है,इसका मुख्य कारण शनि और गुरु की आपसी सहमति से यह कार्य होते है अगर जातक राहु के प्रभाव से दूर रहने के उपाय करता रहता है तो उसे कोई भी आने कार्य की निपुणता से रोक नही सकता है यह कारण या तो उसे वाहन की तरफ़ से मिले या किसी बाहरी दुश्मनी या बीमारी से मिले या फ़िर वह अक्समात ही किसी बेकार की यात्रा में अपने मन को लगाले या फ़िर उसके ससुराली कारण उसे परेशान न करे। सन्तान के भाव मे भी गुरु और शनि की आपसी युति होने के कारण सन्तान को सांस वाली बीमारी होने के अन्देशे होते है,और गले की खरास या किसी प्रकार से सूर्य से सम्बन्धित बीमारिया जैसे गर्मी की कमी होने और वायु के साथ कफ़ की मात्रा बढने से भी दिक्कत आने के कारण बनते है सन्तान की शिक्षा के लिये जो भी प्रयास किये जाते है उनके द्वारा शिक्षा में कार्यात्मक शिक्षा का रूप ही सन्तान के लिये प्रभावी रहता है अन्य प्रकार के प्रयास जैसे याद रखने वाली क्षमता का विकास नही हो पाता है जो भी कारण बनते है या तो वे ऊपर के ऊपर ही निकल जाते है या फ़िर अपने पूर्व के किये गये मेहनत वाले कारणों से और लगातार प्रयास करने के बाद जो परिणाम मिलते है वे शिक्षा में सर्वोपरि रिजल्ट लाने के लिये भी माने जा सकते है। इस गुरु की सप्तम द्रिष्टि विवाह और साझेदारी के भाव में भी पडती है इसके प्रभाव से जीवन साथी की गतिविधियों में जो पहले से शत्रुतात्मक रही होती है उनके अन्दर प्रभाव सही मिलना शुरु होता है जीवन साथी को मर्यादा वाले कार्य करवाने के लिये शनि और गुरु अपने अपने प्रभावों से आदर्श मार्ग की तरफ़ ले जाने के लिये अपने प्रयास तेज रखते है। लेकिन सप्तम से छठे भाव में राहु और बारहवे भाव में केतु के होने के कारण जातक के जीवन साथी की गतिविधियां आदेश देकर कार्य करवाने के लिये और किसी भी प्रकार का कमन्यूकेशन केवल क्लेश देने वाला होता है अगर जातक का जीवन साथी अपने को कमन्यूकेशन के कारणों से अधिक दूरियां बनाने की कोशिश करता है तो उसके लिये भी और जातक के लिये भी खर्चे और आकस्मिक घर के क्लेश से बचने का मुख्य तरीका माना जा सकता है,राहु के धनु राशि में होने से और राहु के द्वारा जीवन साथी के अष्टम भाव को देखे जाने से खाज खुजली या इन्फ़ेक्सन वाली बीमारियों को जननांगों भी पैदा होने का खतरा होता है इस मामले में भी जातक को खर्चाकरना और दिमाग को परेशान करने के लिये माना जा सकता है जो लोग जातक के साथ साझेदारी करते है और अपने कार्यों को साझेदारी से चलाने की कोशिश करते है अक्समात यह राहु उनके धन को भी समाप्त करने की कोशिश करता है,और इस धन की कमी के कारण भी जातक के लिये परेशानी हो सकती है,अक्सर इस युति में जातक के जीवन साथी या साझेदार की नीयत में खोट भी पैदा हो जाती है और वह अपने कारणों से चोरी और कपट आदि की नीति को भी पैदा कर सकता है। मकर राशि के तीसरे गुरु की नवी द्रिष्टि जातक के ग्यारहवें भाव पर भी पडती है जो नकारात्मक मंगल की वृश्चिक राशि के रूप में मानी जाती है,इस राशि में जातक की प्रदर्शन वाली नीति में पूर्वजों के प्रति सम्मान और अति कष्ट में घिरे बडे भाई बहिन या दोस्तों के लिये सहायता वाली नीति भी मिलती है,इस नीति से जातक अपने इन कारकों को अपनी स्थिति के अनुसार फ़ायदा भी देता है लेकिन फ़ायदा देने के बाद भी इस राशि के जातकों को इन्ही कारकों से अपमानित भी होना पडता है.

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