गुरु का राशि परिवर्तन (धनु)

मौत के बाद की स्थिति को अगर हम अपने मन में धारण करते है तो सीधे से हम शमशान या कब्रिस्तान की तरफ़ चले जाते है। हर प्रकार के प्राणी वस्तु और कारक का द्रश्य भाव केवल उसकी अन्तिम गति तक ही सीमित माना जाता है। उसके बाद हम केवल उसे कल्पनाओं क द्वारा ही समझ सकते है या महसूस सकते है। जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे रूह के रूप में मानकर उसके प्रति श्रद्धा करना स्वाभाविक है। जब किसी की लडाई हो जाती है और उसे अपमान मिलता है तो उसे न्याय के लिये भागना स्वाभाविक है,जब कोई व्यक्ति अपने को अपने रहने वाले स्थान में सफ़ल नही कर पाता है और अपने को बेकार का समझने लगता है तो उसे दूर देश यानी विदेश में भागना भी स्वाभाविक है। जब कोई व्यक्ति असहाय होकर किसी भयंकर बीमारी से जूझ रहा होता है और कोई दवा काम नही करती है तो उसे भी भगवान की तरफ़ भागना स्वाभाविक है। जीवन में जब लगातार अपमान मिलते रहते है हर कदम पर जोखिम ही देखने को मिलता है जो भी कार्य किया जाता है उसके अन्दर अगर बरबादी ही ही मिलती है तो उसे अपनी भाग्य की जानकारी के लिये भाग्य के बताने वाले लोगों और संस्थानों की तरफ़ भागना स्वाभाविक है। अपमान मौत जान जोखिम अस्पताली कारण आदि प्रभावों से बचने के लिये जो स्थान माना जाता है वह स्थान धनु राशि कहलाती है,इस राशि को गुरु की सकारात्मक राशि कहा गया है। न्याय ईश्वर की कृपा ईश्वर का रूप धर्म का स्वरूप और बाहरी ताकत के रूप में इसी राशि को प्रयोग में लाया जाता है। जीव की अद्रश्य शक्तियों से सहायता के लिये इसी राशि का प्रयोग में लाना वैदिक मनीषियों की बहुत बडी उपलब्धि मानी जाती है। जीव मौत तक के बाद शमशानी कारणों तक जाने तक तो दिखाई देता है उसके द्वारा जो भी कारण सप्तम भाव तक प्रदर्शित किये गये होते है वे भौतिक रूप से द्रश्य होते है लेकिन अष्टम भाव यानी वृश्चिक राशि में जाने के बाद उस जीव के कारण भौतिकता से दूर हो जाते है,वे पराशक्तियों के रूप में अपने प्रभाव को प्रदर्शित करते है। जो होना है उसके लिये जीव अपने कारण को समझ नही सकता है,जैसे किसी प्रकार से अस्पताल में किसी भयंकर बीमारी के बाद जाना पडा और उस बीमारी का कोई इलाज संभव नही हो रहा है तो दो ही कारण उसके सामने प्रस्तुत होते है या तो वह मृत्यु को प्राप्त होगा और उसे अपने समुदाय के अनुसार धर्ममय माना जाने लगेगा,उसकी फ़ोटो घर में लगाकर उसके ऊपर माला लगा दी जायेगी,अथवा वह अपने कार्त मन से ईश्वर का ध्यान करेगा और कोई अद्रश्य सहायता उसे अस्पताल से वापस सप्तम के युद्धों को पूरा करने के लिये ले आयेगी।

धनु राशि कालपुरुष की नवीं राशि है और किसी भी देश और स्थान के दक्षिण-पश्चिम में धर्म स्थान के रूप में मानी जाती है,गरुड पुराण में इस राशि को पूर्वजों के निवास की राशि कहा जाता है,इसलिये ही जिन जातकों की कुण्डली में इस राशि में सूर्य मंगल राहु केतु शनि गुलिका यमगण्ड आदि की उपस्थिति होती है उन्हे पितृ दोष से युक्त कहा जाता है,उनके अपमान मौत और जानजोखिम तथा जूझने वाले सामयिक कार्यों के प्रति पूर्वज सहायता नही दे पाते है। जब उन्हे अपमान आदि के बाद सहायता नही मिलती है तो वे भी अपने को लगातार अष्टम के प्रभावों में डाले रखते है,जो अस्पताली कारणों से जूझते है वे अस्पताली कारणों से ही जूझते रहते है और मानवीय सहायता की अपेक्षा के बाद अपने शरीर धन और सम्बन्धों से परेशान होते रहते है अथवा किसी प्रकार की बाहरी क्रिया से परेशान होकर अपने न्याय के लिये भटकते रहते है उन्हे मानवीय न्याय उस श्रेणी पर जाने नही देता है,इस प्रकार से जीवन के अपने उन आयामों से दूर रहना उनकी मजबूरी हो जाती है और अपने अज्ञानता के कारण अपने जीवन को तिल तिल कर मारते रहते है। गुरु मीन राशि में जाने से इस राशि से चौथे भाव में गुरु की उपस्थिति हुयी है। पूर्वजों के रहने का स्थान मीन राशि को ही माना गया है,जैसे व्यक्ति के शरीर के रहने के स्थान को चौथा भाव कहा जाता है उसी प्रकार से मौत के बाद आत्माओं के निवास को मीन राशि का स्थान कहा जाता है। इस राशि के चौथे भाव में गुरु के आजाने से जातक को अपने व्यवसाय को करने के लिये जरूरत महसूस होती है,वह अपने लिये निवास स्थान को प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करने लगता है,उसे अपने लोगों से मिलने और अपने जन्म स्थान पर जाने का अवसर मिलता है। वह अपने लिये किये जाने वाले प्रयासों में जनता से जुड कर चलने की कोशिश करता है,उसे वाहन की जरूरत महसूस होने लगती है और वाहन की प्राप्ति भी होती है,उसे विद्या को सीखने का अवसर मिलता है और वह अपने को विद्या के क्षेत्र में ले भी जाता है,उसे पानी वाले कारणों से और विदेश जाने के अवसर भी प्रदान होते है वह विदेश जाने और वहां पर बसने की कोशिश भी करता है। इस प्रकार से गुरु का असर मिलता है,इस राशि के छठे भाव में शुक्र की सकारात्मक राशि वृष है,इस राशि के प्रभाव से जातक के लिये बैंक आदि के कारण भी पैदा होते है वह अपने लिये कोई नया खाता खुलवाने की कोशिश भी करता है उसे अपने प्रयासों से मिलने वाले धन को जमा करने के लिये भी कई कारण मिलते है,वह धन को जमा भी करता है,उसकी नौकरी सर्विस आदि की व्यवस्था धन वाले क्षेत्रों में होती है या वह अपने को बैंक बीमा अस्पताल या दवाइयों से सम्बन्धित क्षेत्रों में कार्य करने के लिये उद्धत होता है। भोजन के मामले में भी उसे किसी न किसी प्रकार की सहायता मिलती रहती है,सन्तान की परवरिस के लिये उसे कोई न कोई साधन बनाने की जरूरत मिलती है,जीवन साथी के दिमाग में यह गुरु राहत देता है और बाहरी समस्यायें जो जीवन साथी को परेशान करने वाली होती है उनके अन्दर वह अपने को स्वस्थ समझने लगता है। ननिहाल खान्दान में भी पहले से चली आ रही समस्यायें समाप्त होती जाती है। जो भी मानसिक रूप से दुश्मनी को माने होते है उनके लिये भी गुरु इस राशि में जाने के बाद अपनी बुद्धि को प्रदान करता है और कर्जा दुश्मनी बीमारी से मुक्ति का रास्ता मिलने लगता है। धनु राशि के गुरु का पंचम असर इस राशि के अष्टम में जाने से यानी कर्क राशि में जाने से पानी के लिये साधन जो या तो जमीनी होते है या जमीन के अन्दर बनवाये जाते है के लिये अपने प्रयास शुरु हो जाते है,इस राशि में गुरु के जाने के बाद न्याय भी इसी के लिये अपनी सहमति प्रदान करता है,जो लोग अपने को जनता से अपमानित महसूस करते है वे भी कोई न कोई अपमान से बचने का रास्ता समझ लेते है,माता या माता की परेशानी से भी मुक्ति मिलती है,वाहन के प्रति भी बदलाव होता है,पानी वाले धार्मिक स्थानों की यात्रा भी होती है,हवाई यात्रा के प्रभाव भी मिलते है समुद्री यात्राओं के लिये भी योग आते है। इस राशि के गुरु का चौथे भाव में होने से सप्तम द्रिष्टि कार्य भाव में भी जाती है और कार्य भाव में कन्या राशिकी उपस्थिति से जो भी कार्य मिलते है वे बैंक बीमा या फ़ायनेन्स से सम्बन्धित मिलते है,कार्यों के लिये अस्पताली कार्य डाक्टरी सानिध्य में कार्य बीमार व्यक्ति के सानिध्य में कार्य जो लोग सी एन्ड एफ़ से सम्बन्धित होते है उनके लिये कार्य चार्टेड एकाउन्टेन्ट वाले कार्य आदि माने जाते है इस राशि में शनिकी उपस्थिति से कार्यों के प्रति अधिक मेहनत और कम लाभ के लिये भी माना जा सकता है लेकिन सही तरीके से कार्य अगर किये जाते रहे तो नवम्बर ग्यारह के बाद जो वर्तमान में सीखा जायेगा उसके प्रति बहुत ही सुन्दर वल प्राप्त होने के आसार बन जायेंगे। गुरु की नवीं द्रिष्टि बारहवे भाव में व्यय भावों में जाने से धन का खर्चा केवल अस्पताली कारणों में वायु वाली बीमारियों में सन्तान और सन्तान के प्रति शिक्षा के कार्यों में ही व्यय माना जा सकता है,धर्म स्थान की यात्रा से भी सन्तान के लिये भाग्य वाली स्थिति पैदा हो सकती है.

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