ऊखट योग

पाराशरीय पद्धति ज्योतिषीय योगों का समीकरण ग्रहों के अनुसार बताया गया है भावानुसार भी और ग्रहों के साथ नक्षत्र और पदानुसार भी योग बताये गये है.जैन ज्योतिष के अनुसार एक योग को ऊखट योग के नाम से बताया गया है। इस योग का मुख्य ग्रह अष्टम से सम्बन्धित होता है लेकिन नवम के ग्रह से उसे सम्बन्धित होना जरूरी है।
"झंझावत को सहत है,कांटे बहु फ़हराय,उखटे पेड बबूल को जो ऊंचे चढि जाय॥"

इस काहवत के अन्दर ऊखट का प्रयोग बहुत ही सुन्दर तरीके से किया गया है। बबूल का पेड किसी भी स्थान पर पैदा हो जाता है अपनी जडो को वह बहुत नीचे तक जमीन मे पहले पनपा लेता है उसके बाद अपने कांटों को जीवो को कष्ट देने के लिये फ़हराने लगता है.लेकिन एक समय ऐसा आता है कि जैसे ही वह ऊंचा होना शुरु हो जाता है उसकी जडों में दीमक आदि लगने लगती है और नीचे ही नीचे दीमक आदि जमीनी जन्तुओं के द्वारा उसकी जडों को बरबाद कर दिया जाता है और वह अक्समात ही बरसात के मौसम में भी सूख कर बरबाद हो जाता है।

"कठखटा मे पिसत है,चरमरात घिस जाँय,जो कांटे ही बुवत है भट्टी मे सुलगांय॥"

बबूल के पेड का जो कांटे ही प्रदान करता है को सूखने के बाद बैलगाडी और खाट आदि बनाने के लिये ही काम मे लाया जाता है उसकी कोई बिसात नही होती है। जब बबूल की लकडी किसी काम की नही रहती है तो उसे भट्टी मे सुलगाकर भोजन पकाया जाता है। इस कहावत का अर्थ है कि जो लोग अपने कार्यों से व्यवहार से लोगो के लिये कांटों को यानी दुख देने के कारण ही पैदा करते रहते है उनकी यही हालत उनके मरने के बाद भी होती है।

ऊखट योग में जातक की कुंडली मे सूर्य अष्टम मे होता है और नवे भाव का मालिक कोई भी ग्रह सूर्य के सामने यानी दूसरे भाव मे होता है,सूर्य जो अष्टम मे जाकर जमीनी कीट पैदा करने वाला होता है और वह सीधे से जमीनी पानी को सोखने के लिये अपनी अन्दरूनी गर्मी को पैदा करता है के नवे भाव के ग्रह के सामने आने से जातक के पूर्वजो ने पिता ने कोई ऐसे कर्म किये होते है जो नीची राजनीति का कारण बनते है वह राजनीति चाहे परिवार मे की गयी हो या समाज मे की गयी हो उस नीची राजनीति के चलते पहले तो वह अपनी शक्ति को धन से अपनी आसपास की स्थिति को अपनी कांटों जैसी सुरक्षा से कर लेता है लेकिन जैसे ही वह ऊंचे आसन की तरफ़ बढता है अचानक उसको मजबूत करने वाले तत्व अन्दरूनी रूप से बरबाद कर दिये जाते है और वह जब बढने का समय आता है अचानक ही किसी प्रकार की अपनी ही बनायी गयी सुरक्षा की दीवार में फ़ंस जाता है और उसे निकलने का रास्ता भी नही मिलता है जो जड उसे पानी जमीनी पोषक तत्वो को दिया करती थी वह उसके अहम की दीमक के द्वारा समाप्त कर दी जाती है और वह अपने कारणो से ही ह्रद्याघात पुत्र दुख या आगे की सन्तान से दूर रहकर अथवा किसी प्रकार के सामाजिक पक्षाघात से बरबाद हो जाता है।
उदाहरण के लिये मेष लगन की कुंडली में गुरु नवे भाव का मालिक है और सूर्य पंचम का मालिक है सूर्य अष्टम यानी पूर्वजों की पैदा होने की जगह पर जाकर स्थापित हो जाता है,गुरु दूसरे भाव यानी वृष राशि का हो जाता है,जातक के पिता ने धन की चाहत से अपने समाज परिवार मर्यादा भाई बन्धुओ को दुख दिया होता है और उसे केवल धन की चाहत मे ही अच्छे बुरे का ख्याल नही रहता है वह अपने कृत्यों से सभी को अहम के कारण दुख देने का कारक बन जाता है। सूर्य जो सन्तान और पुत्र का कारक भी है जाकर अष्टम यानी विदेश भाव मे बैठ जाता है और अपनी स्थिति को अपने समाज परिवार आदि से दूर जाकर स्थापित कर लेता है,उसके सामने भी परिवार मर्यादा आदि का कोई भी महत्व नही रहता है,वह अपने परिवार आदि को भूल कर बाहरी शक्तियों के घेरे मे जाकर अपने को शराब कबाब धन और परदेश की सभ्यता को ग्रहण कर लेता है,उसके आगे की सन्तति भी नही हो पाती है,गुरु अपने को स्त्री राशि मे ले जाने से तथा सूर्य अपने को मृत्यु की राशि मे ले जाने से मौत के बाद के धन को प्राप्त करना जहां से भी हो मुफ़्त का माल ग्रहण करना,अपने खुद के परिवार को छोड कर दूसरो की बातों पर चलना,शादी के बाद पिता का अपने परिवार से ही दूर रहना और केवल स्वार्थ के लिये प्रेम करना आदि बाते जातक को बरबाद कर देती है उसका बाद का जीवन भी या तो अस्पताल मे बीतता है या उसके धन को विदेशी लोग ही खाते है अथवा वह अपने को जवानी के बाद की स्थिति मे असमर्थ पाता है।

No comments: