बुध यानी विस्तार

बुध के मामले में कई कारण ज्योतिष से समझ में आते है लेकिन बुध को प्राथमिक रूप से बहिन बुआ बेटी के रूप में देखा जाता है। बहिन की शादी अजनबी खानदान में करने के बाद विस्तार बढना शुरु हो जाता है यह विस्तार पारिवारिक विस्तार कहा जाता है। बहिन की शादी के बाद जब भानजी की शादी होती है तो वह और बडा विस्तार हो जाता है,मतलब कही तो रिस्तेदारी जायेगी,और परिवार का विस्तार बनता चला जायेगा,घर की बहू आती है वह भी किसी के घर की बेटी होती है और उस घर से जिसे हमने देखा नही है उससे जान पहिचान और आत्मीय रिस्ते बन जाते है,यह बुध का विस्तार कहा जाता है। इस बुध के दो साथी ग्रह भी है जैसे राहु के साथ होने पर ससुराल का सम्बन्ध और विस्तार बनना शुरु हो जाता है और केतु के साथ होने पर बहिन बुआ बेटी के रूप में विस्तार शुरु हो जाता है। इसी बुध के लिये अगर और अधिक आगे बढे तो विस्तार राहु के साथ आकाश तक जा पहुंचता है जिसकी कोई माप नही होती है और केतु के साथ जाने पर यह पाताल तक चला जाता है जिसकी भी कोई माप नही होती है.बुध को विस्तार के रूप में देखने पर इसे भाषाओं की जानकारी वाला ग्रह भी कहा जाता है कौन सी भाषा किस तरह के ज्ञान को कितने विस्तार को वर्णन कर रही है इसका अन्दाज भी नही लगाया जा सकता है। सूर्य के साथ बुध के मिलने से प्रकाश का विस्तार होना शुरु हो जाता है,शनि के साथ मिलने पर अन्धकार का विस्तार शुरु हो जाता है,गुरु के साथ मिलने पर हवा का विस्तार होना शुरु हो जाता है चन्द्रमा के साथ मिलने पर धरती के साथ विस्तार शुरु हो जाता है और मन्गल के साथ मिलने पर हिम्मत का विस्तार शुरु हो जाता है.

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