स्वार्थ की पूर्ति

तीन तरह के स्वार्थ हर किसी की जिन्दगी में अपने आप पनप जाते है। पहला स्वार्थ उदर पोषण का माना जाता है दूसरा स्वार्थ अपने लिये सुरक्षा का होता है और तीसरा स्वार्थ अपनी समाज और परिवार के द्वारा बनायी गयी आदतों की पूर्ति के लिये माना जाता है। उदर पोषण के लिये लोग अपने अपने अनुसार कार्य करते है व्यवसाय करते है नौकरी करते है और तरह तरह के कार्य करते है,उन कारणों से जो प्राप्तियां होती है उनके द्वारा उदरपोषण और परिवार का लालन पालन होता है,मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह अपने ही उदर की पूर्ति के लिये किसी स्वार्थ को पूरित नही करता है वह अपने आसपास के जुडे लोगों के लिये उदरपोषण का भी इन्तजाम करता है,लेकिन इसके अन्दर एक भेद जब पैदा हो जाता है जब वह केवल कुछ ही काम करने के बाद कुछ ही उदरपोषण का इन्तजाम कर पाता है और अपनी भूख को मिटाने के बाद बचता है तो वह दूसरों के लिये अपने योगदान को देता है और नही बचता है तो सभी से अपना किनारा कर लेता है। इस स्वार्थ के अन्दर अधिकतर देखा जाता है कि व्यक्ति के अन्दर लोभ भी पैदा होता है कि आगे अगर कमाई नही हुयी तो वह अपने द्वारा बचाये गये धन को किसी कारण से उदरपोषण के लिये प्रयोग कर सकता है। अगर लगातार उसे साधन मिलते गये और बचाये गये धन आदि को खर्च नही किया गया तो वह उस बचे हुये धन आदि को और अधिक जोडने के लिये लोभ में फ़ंसता चला जाता है। इस लोभ में फ़ंसने के बाद जैसे कोई एक के बाद एक कारण बनाता जाता है उसी प्रकार से अपने अहम के लिये भी इसी प्रकार के कार्य करने लगता है। एक किसान अपने उदरपोषण के लिये खेत मे अन्न को पैदा करता है पहले वह साल भर के लिये अपने और अपने परिवार के लिये अनाज को भंडारण कर लेता है,जो बचता है वह उसे बाजार में बेच देता है और उस बेचे जाने वाले अन्न को वह कितने ही लोगों के लिये उदरपोषण का जरिया बनाता है,जो लोग धन वाले होते है उन्हे उस अनाज को पैदा करने वाले कारणों का ज्ञान नही होता है कि वह अनाज कैसे पैदा किया गया था उसके अन्दर कितनी खाद कितनी मेहनत और कितने पानी की जरूरत पडी थी उसे तो यही लगता है कि उसने इतने पैसे से इतना अनाज खरीदा है जो उसके लिये पैसे से मिला है। उदरपोषण के लिये की जाने वाली क्रियायें ही अपने लिये अच्छी मानी जाती है और उन क्रियाओं को अपनाने के बाद जो भी धन आदि मिलता है वह ही नौकरी व्यवसाय या अन्य कार्यों से जोड कर देखी जाती है। उदरपोषण समाज का हो या देश का हो या फ़िर विदेशी लोगों का हो वह सब होता है एक अन्न के द्वारा ही,वह बात अलग है कि मांसाहारी लोग जीव बलि के द्वारा उसके मांस आदि से अपने उदर पूर्ति को करते है। लेकिन वह मांस भी उन्ही जीवों का होता है जो घास खाने वाले होते है। वनस्पति को प्रयोग करने वाले जीवों के अन्दर जो उदरपोषण का जरिया होता है वह वनस्पति को पचाने और उसके द्वारा जो भी तत्व वनस्पति के अन्दर होते है वे सभी उदरपोषण की क्रियाओं में अपने अपने अनुसार कार्य करते है। संसार के सभी जीव चाहे वे मनुष्य जाति से सम्बन्ध रखते हों.

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