भावना अनुसार शरीर की गति

मनुष्य शरीर के अन्दर भावनाये बनती है। भावना मित्रता की भी होती है और भावना शत्रुता की भी होती है। मित्रता की भावना बनने के बाद ऐसा लगता है कि जिससे मित्रता है वह अपना ही खास है और उसके बिना कोई कार्य हो नही सकता है,लेकिन शत्रुता वाली भावना बनने के बाद एक बात समझ में आती है कि सामने वाला आंखों के सामने कैसे है और वह या तो समाप्त हो जाये या कहीं दूर चला जाये। भावनायें घर के सदस्यों के प्रति भी बनती है और भावना बाहर वाले लोगों के प्रति भी बनती है। कभी कभी अन्जान व्यक्ति से भी मोह होता है और ऐसा लगता है कि उससे चाह कर बोला जाये उसके बारे में जाना जाये और कुछ लोग ऐसे होते है जिन्हे कभी देखा भी नही होता है लेकिन देखते ही लगता है कि उन्हे अपनी आंखों से दूर कर दिया जाये। यह भावना आंख से देखकर और कानो से सुनकर भी बनती है शरीर के साथ शरीर के सम्पर्क करने के बाद भी बनती है। कई लोग मोह के कारण अपने को मोहपाश में बांध कर एक दूसरे के लिये समर्पित होना शुरु हो जाते है और जब तक उनका मोह टूटता है तो वे अपने अनुसार इतने बरबाद हो चुके होते है कि वे कुछ कह भी नही सकते है और कुछ समझ भी नही सकते है। इस भावना के खेल में कई लोग तो अपने को पूरा का पूरा बरबाद कर चुके होते है। एक अन्जान जगह पर एक व्यक्ति मिलता है और वह अपने अपन्त्व के कारण मन को इतना मोह लेता है कि जो भी उसके द्वारा कहा जाता है उस काम को करना पडता है और जब उस व्यक्ति का स्वार्थ पूरा होता है और वह जब दूर जाने लगता है तब लगता है कि जो भी पास में था वह सब बरबाद कर दिया है। ऐसा अक्सर उन लोगों के साथ अवश्य होता है जो अपने मोह पास में बांध कर प्यार और प्रेम का नाटक करने लगते है,मनुष्य शरीर मे नकारात्मक और सकारात्मक दो रूप होते है सकारात्मक का प्रभाव हमेशा नकारात्मक की तरफ़ जाने का होता है,और स्त्री को नकारात्मक की उपाधि दी गयी है पुरुष को सकारात्मक की उपाधि दी गयी है दोनो के आकर्षण के कारण ही एक दूसरे की पूरकता का प्रकार बनाया गया है। जब शरीर के अन्दर एक अजीब सी हलचल होने लगती है और एक दूसरे को देखने के बाद रहा नही जाता है बाते करने और एक साथ उठने बैठने का सिलसिला चलने लगता है तो काफ़ी समय निकल जाता है और कोई भी व्यक्ति उस व्यक्ति के सामने अच्छा नही लगता है भले ही यह पता हो कि सामने वाला व्यक्ति कितना खराब या दूसरा व्यक्ति कितना अच्छा है लेकिन भावनात्मक मोह नही टूटने के कारण ही लोग अपने जीवन को एक दूसरे के प्रति समर्पित कर देते है,लेकिन भावना जब अपना अन्तिम रूप लेती है तो वह रूप एक दुश्मन की तरह से दिखाई देने लगता है।

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