उत्तर का भारी हिमपात जापान के लिये आफ़त बना

शनि का स्थान वर्तमान में कन्या राशि पर है,शनि की शिफ़्त है पानी को जमा देने की अन्धेरा और कठिन जीवन कर देने की,पिछले समय में उत्तर दिशा में बसे देशों को इसी शनि की उपस्थिति से भारी हिमपात का सामना करना पडा। उस हिमपात से वातावरण में उपस्थिति नमी की मात्रा को जमना जरूरी हो गया। जो नमी हवा में अपने आस्तित्व को रखती है वह नमी पानी बनकर धरती पर जब जम जायेगी तो धरती का वजन तो बढना जरूरी है। उत्तर की तरफ़ धरती का वजन बढता गया और दक्षिण की तरफ़ से वजन घटता गया,समुद्र से निकली बादलों की शक्ल में भाप उत्तर में जाकर जम गयी,उससे जो नुकसान हुआ उसमें एक तो जहाँ जहाँ बरसात होती है वहां अकाल की मार झेलनी पडी दूसरे जहां का जन जीवन साधारण रहता है वहाँ वहाँ सर्दी की मार ने जन जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया। धरती का एक मिलीमीटर का कम्पन अरबों लीटर पानी को कटोरे की माफ़िक कहाँ तक फ़ैला सकता है उसका अन्दाज लगाना हर किसी के वश की बात नही है। वर्तमान में मंगल का सूर्य के साथ होना और सूर्य मंगल का शनि से षडाष्टक रूप से योग कारक होना शनि की शीतलता को गर्मी में बदलने के लिये काफ़ी है,जैसे ही यह शीतलता गर्मी के रूप में बदलनी शुरु हुयी वह जमी हुआ भाप पिघल कर समुद्रों की तरफ़ चलने लगी। इधर जमी हुयी धरती की ठंडक जब धरती की अन्दरूनी गर्मी से मिली तो धरती की पिघली अवस्था में चट्टाने एकत्रित होने लगीं इस अवस्था से धरती की चट्टानों में दरार आते ही और गर्मी के एकदम ऊपर की ओर उठते ही ईशान दिशा में पानी का उछाल मारना काफ़ी था। सबसे अधिक द्वीप ईशान दिशा में होना इसी बात का संकेत है कि जब भी धरती पर उत्तर या पश्चिम की तरफ़ पानी जमाव बिन्दु पर जाता है तभी धरती का अपनी अन्य ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बीच में विक्षेप खलबली पैदा करने के बाद कितने द्वीपों को तोड देता है और कितने नये द्वीपों का निर्माण कर देता है,यही क्रिया करोडों वर्षों से चलती आ रही है। भारतीय भूगर्भ वैज्ञानिक आज भी धरती के अन्दर की हलचल को समझने के लिये अन्य ग्रहों की रश्मियों को देखते है,और जैसे ही उन्हे पता लगता है कि किसी एक ग्रह की रश्मि धरती के आमने सामने आ रही है उनके दिमाग काम करने लगते है और अपनी भविष्य वाणी को प्रसारित करने लगते है।

राहु की स्थिति वर्तमान में दक्षिण पश्चिम में है,राहु अन्दरूनी शक्ति यानी करेंट का कारक है,राहु के विलोम में केतु की उपस्थिति ठीक एक सौ अस्सी डिग्री के कोण में यानी सीधी रेखा में होती है। बीच में राहु के अवरोध आने से शक्ति का धरती के बीच में दखल देना भी जरूरी है। यह दखल इन्सानी दिमागों के साथ साथ धरती के हर जीवित कारक पर होती है,पानी भी करेंट का सुचालक माना जाता है,गीली मिट्टी और ऐसे पदार्थ भी राहु रूपी करेंट के सुचालक माने जाते है,धनात्मक करेंट का घेरा हमेशा उत्तर से पश्चिम दिशा की तरफ़ होता है,और वह बीच में स्थित नकारात्मक स्थान के लिये लगातार भागता रहता है। यह कारण भी धरती के अन्दर कम्पन करने के लिये काफ़ी है जब वह एक जगह इकट्ठा होने लगे। जापान में सुनामी आने और भूकम्प आने तथा विनाशलीला को पैदा करने के लिये उस दिन के राहु की नजर सूर्य और मन्गल के साथ भी है,शनि और राहु का शुक्र चन्द्र के साथ षडाष्टक योग भी है,कोई भी षडाष्टक कारक का अवरोध करने वाला माना जाता है। शनि को शीतलता शुक्र को जमीन और चन्द्रमा को पानी मानने के कारण यह अवरोध सीधा सूर्य और मंगल पर जाता है,जो भी कारक सूर्य और मंगल से सम्बन्धित है वे सभी धरती के अन्दर आहत होते है। मंगल को तकनीक माना जाता है और सूर्य शाही तरीके से निवास करना और अपने दिमागी कारणों को प्रयोग में लेने के बाद जापान को आगे से आगे से आगे बढाने के लिये माना जा सकता है।

अगला इसी प्रकार का योग 11 सितम्बर 2012 के आसपास यूरोप में भी देखने को मिलेगा रूस में भी मिलने के आसार है।

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