शरीर का मालिक शनि और चन्द्रमा का बल

मकर और कुम्भ लगन वाले जातकों के लिये शनि शरीर का मालिक माना जाता है और शनि की भावानुसार स्थिति के कारण ही शरीर की पालना और विकास माना जाता है। अगर कुंडली में शनि को चन्द्रमा बल देता है तो शरीर की आभाव शनि से काली और चन्द्रमा से सफ़ेद मानी जाती है। काले सफ़ेद रंग का मिश्रण शनि और चन्द्रमा की भावानुसार स्थिति से ही पता की जा सकती है। शनि अगर लगन में है और चन्द्रमा का स्थान दूसरे भाव में है तो जातक का रंग काला होगा और मुंह पर सफ़ेद चन्द्रमा के बल के अनुसार दाग या एक विशेष क्षेत्र होगा। शनि लगन में है और चन्द्रमा तीसरे भाव में है तो दाहिने कान के अन्दर सफ़ेद निशान माना जा सकता है या कान के आसपास कोई सफ़ेद निशान माना जाता है। चन्द्रमा अगर चौथे भाव में है तो जातक के ह्रदय के ऊपर कोई सफ़ेद निशान होगा,पंचम में होने पर पेट पर,छठे भाव में होने पर कूल्हे पर सप्तम स्थान में होने पर नाभि के नीचे अष्टम स्थान में शनि के होने पर प्रजनन तंत्र के आसपास नवे भाव में होने पर पुट्ठो पर या जांघ पर दसवें भाव में होने पर पीठ पर या घुटने के पास ग्यारहवें भाव में होने पर कन्धे पर या पैर की पिंडली में बारहवें भाव में होने पर सिर में बायीं तरफ़ या बायें कान के आसपास तथा पैर के पंजे पर सफ़ेद निशान का होना पाया जाता है।

शनि के दूसरे भाव में होने पर और चन्द्रमा के लगन में होने पर शरीर की आभा तो सफ़ेद होगी लेकिन चेहरे पर माथे पर काले रंग की आभा मिलना जरूरी है। शनि के साथ चन्द्रमा के होने पर चेहरे पर काले सफ़ेद रंग का मिश्रण मिलना भी सही माना जाता है। बाकी का मिश्रण उपरोक्त स्थानो पर चन्द्रमा के होने के जैसा ही माना जाता है।

शनि से चन्द्रमा की युति अगर किसी भी भाव से तीसरे पांचवे सातवें और दसवें भाव में होती है तो शनि चन्द्रमा के साथ युति बनाकर भी अपने को सफ़ल नही बना सकता है वह कार्यो और रहने वाले स्थानों के मामले में बार बार मन बदलने और जनता से सम्बन्धित कार्य जो शनि के भावानुसार माने जाते है के लिये अपने प्रभाव को देने के लिये अपनी योग्यता को बताने का प्रभाव देगा।

चन्द्रमा से शनि अगर पंचम सप्तम या नवम स्थान में है तो जातक का रूखा पन जनता के लिये एक अजीब पहेली बना ही समझ में आयेगा जिस प्रकार से समुद्र की लहर चट्टान से टकराकर वापस छिन्न भिन्न होकर समाप्त हो जाती है उसी प्रकार से इस प्रकार के जातक के सामने कोई भी विचार प्रदर्शन करने के बाद विचारों की समाप्ति या जातक के लिये कोई भी मानसिक भावना अपना प्रभाव देती है।

चन्द्रमा माता के रूप में अपना प्रभाव देता है और जातक के पालन पोषण की जिम्मेदारी उसी पर होती है,जातक को इस युति के परिणाम में बचपन में ही सूखा रोग जैसे रोग होते है और जातक को पालने के लिये उसकी माता लाख कोशिश करे फ़िर भी जातक के शरीर को पनपाना उसके बस की बात नही होती है,जैसे ही पच्चीस साल का जीवन पार होता है और जातक अपने अनुसार शनि वाले भोजनों को ग्रहण करने लगता है उसका शरीर अक्समात ही पनपने लगता है शरीर पर मोटे मोटे बाल पैदा होने लगते है जातक के अन्दर तामसी भोजन लेने और कंद वाली वस्तुयें भोजन के रूप में लेने से जातक के अन्दर मेहनत करने वाले तत्वों की पूर्ति होने लगती है,जातक के अन्दर अपनी ही सोच होने के कारण और किसी के प्रति भी मानसिक भावना में दया नही होने के कारण उसे स्वार्थी और चालाक के रूप में समझा जा सकता है,उसे किसी भी प्रकार से गलत या सही समझाने के बाद भी उसके ऊपर कोई असर नही होता है,उसे कितना ही पीटा जाये या उसे कितना ही नहलाया जाये लेकिन उसके शरीर पर कोई असर नही होता है उसे किसी की भी भावना का असर नही होता है और उसे अक्सर उन्ही स्थानों में अच्छा लगता है जो गंदे हों और नीचे स्थानों में अपना आस्तित्व रखते हों।

दिमागी रूप से बल मिलने के लिये जातक को अगर राहु का प्रभाव दे दिया जाये तो जातक के अन्दर बुद्धि का विकास तो हो जाता है लेकिन शनि चन्द्र की युति के कारण जातक अपने स्वभाव को दूसरों के साथ आदेश होने पर ही अपना कार्य पूरा करता है उसे अपने दिमाग से चलना नही आता है,अगर केतु उसके साथ अपनी युति देता है तो वह अपने लिये साधन तो खोज सकता है लेकिन केतु के प्रयोग के लिये उसे दूसरों की बुद्धि पर ही निर्भर होकर रहना पडता है।

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