स्वार्थ की पूर्ति

तीन तरह के स्वार्थ हर किसी की जिन्दगी में अपने आप पनप जाते है। पहला स्वार्थ उदर पोषण का माना जाता है दूसरा स्वार्थ अपने लिये सुरक्षा का होता है और तीसरा स्वार्थ अपनी समाज और परिवार के द्वारा बनायी गयी आदतों की पूर्ति के लिये माना जाता है। उदर पोषण के लिये लोग अपने अपने अनुसार कार्य करते है व्यवसाय करते है नौकरी करते है और तरह तरह के कार्य करते है,उन कारणों से जो प्राप्तियां होती है उनके द्वारा उदरपोषण और परिवार का लालन पालन होता है,मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह अपने ही उदर की पूर्ति के लिये किसी स्वार्थ को पूरित नही करता है वह अपने आसपास के जुडे लोगों के लिये उदरपोषण का भी इन्तजाम करता है,लेकिन इसके अन्दर एक भेद जब पैदा हो जाता है जब वह केवल कुछ ही काम करने के बाद कुछ ही उदरपोषण का इन्तजाम कर पाता है और अपनी भूख को मिटाने के बाद बचता है तो वह दूसरों के लिये अपने योगदान को देता है और नही बचता है तो सभी से अपना किनारा कर लेता है। इस स्वार्थ के अन्दर अधिकतर देखा जाता है कि व्यक्ति के अन्दर लोभ भी पैदा होता है कि आगे अगर कमाई नही हुयी तो वह अपने द्वारा बचाये गये धन को किसी कारण से उदरपोषण के लिये प्रयोग कर सकता है। अगर लगातार उसे साधन मिलते गये और बचाये गये धन आदि को खर्च नही किया गया तो वह उस बचे हुये धन आदि को और अधिक जोडने के लिये लोभ में फ़ंसता चला जाता है। इस लोभ में फ़ंसने के बाद जैसे कोई एक के बाद एक कारण बनाता जाता है उसी प्रकार से अपने अहम के लिये भी इसी प्रकार के कार्य करने लगता है। एक किसान अपने उदरपोषण के लिये खेत मे अन्न को पैदा करता है पहले वह साल भर के लिये अपने और अपने परिवार के लिये अनाज को भंडारण कर लेता है,जो बचता है वह उसे बाजार में बेच देता है और उस बेचे जाने वाले अन्न को वह कितने ही लोगों के लिये उदरपोषण का जरिया बनाता है,जो लोग धन वाले होते है उन्हे उस अनाज को पैदा करने वाले कारणों का ज्ञान नही होता है कि वह अनाज कैसे पैदा किया गया था उसके अन्दर कितनी खाद कितनी मेहनत और कितने पानी की जरूरत पडी थी उसे तो यही लगता है कि उसने इतने पैसे से इतना अनाज खरीदा है जो उसके लिये पैसे से मिला है। उदरपोषण के लिये की जाने वाली क्रियायें ही अपने लिये अच्छी मानी जाती है और उन क्रियाओं को अपनाने के बाद जो भी धन आदि मिलता है वह ही नौकरी व्यवसाय या अन्य कार्यों से जोड कर देखी जाती है। उदरपोषण समाज का हो या देश का हो या फ़िर विदेशी लोगों का हो वह सब होता है एक अन्न के द्वारा ही,वह बात अलग है कि मांसाहारी लोग जीव बलि के द्वारा उसके मांस आदि से अपने उदर पूर्ति को करते है। लेकिन वह मांस भी उन्ही जीवों का होता है जो घास खाने वाले होते है। वनस्पति को प्रयोग करने वाले जीवों के अन्दर जो उदरपोषण का जरिया होता है वह वनस्पति को पचाने और उसके द्वारा जो भी तत्व वनस्पति के अन्दर होते है वे सभी उदरपोषण की क्रियाओं में अपने अपने अनुसार कार्य करते है। संसार के सभी जीव चाहे वे मनुष्य जाति से सम्बन्ध रखते हों.

मेष लगन के लिये धन देने वाले ग्रह

मेष लगन के लिये धन देने वाले ग्रहों में मुख्य ग्रह शुक्र है। शुक्र भौतिक रूप में धन देने का भी कारक है और साझेदार या जीवन साथी के रूप में मानसिक सुझाव रूपी धन भी देने के लिये माना जाता है। बुध इस राशि के लिये मानसिक रूप से अपनी पहिचान देने का कारक है और भौतिक रूप से रोजाना के कार्य और नौकरी आदि के लिये भौतिक धन देने के लिये माना जाता है। चन्द्रमा केवल रहने वाले स्थान पर भावनात्मक रिस्ते देने का कारक है और उम्र की पच्चिस साल तक माता मन मकान और अपने आसपास के माहौल से जुड्कर चलने वाला माना जाता है। सूर्य केवल राजनीति और खेल कूद तथा जल्दी से धन कमाने के लिये बच्चों की शिक्षा और अपनी बुद्धि को प्रकट करने के लिये माना जाता है,मंगल भौतिक रूप से रक्षा सेवा वाले कार्य अपमान जोखिम और रिस्क आदि के काम करवाने वाला है डाक्टर बनकर शरीर की हिफ़ाजत करने वाला इन्जीनियर बनकर सामान और मशीनो को नई जान देने वाला तथा होटल आदि के निर्माण के बाद शरीर के पोषण का कार्य करने वाला है,गुरु भौतिक रूप से भाग्य की कारक वस्तुओं को उपलब्ध करवाने वाला है और मानसिक रूप से ध्यान समाधि यात्रा और धार्मिक संस्थानो वाले कार्य करने के लिये माना जाता है,शनि के द्वारा मेहनत वाले कार्य भौतिक रूप से भी किये जाते है लेकिन मानसिक रूप से लाभ के लिये पहले सोचने का कार्य मेष राशि वालों के लिये शनि के द्वारा होते है। शुक्र मारक होकर भी मारक नही बनता है और मंगल अष्टम का स्वामी होकर भी इस लगन वालों के लिये अपनी नीचता वाली बात नही करता है,केवल बुध ही रोजाना के कामों के अन्दर अपना असर देता है और पुत्री देकर अपमान करवाता है कर्जा लेकर चुकाने के लिये अपनी ऊंची नीची बात करता है।

इस लगन वाले जातकों के लिये शनि गुरु के साथ होने पर निर्माण और बडी कामनाओं का कारक है,लेकिन शनि जब इस लगन में ही विराजमान होता है तो जातक को अपने द्वारा ही नौकरी आदि करने के बाद धन की प्राप्ति होती है। शनि दूसरे भाव में होता है तो जातक को भौतिक सुख के मामले में अन्धेरा और ठंडक देकर ही अपनी युति को पूरा करता है जो भी धन चल पूंजी के रूप में होता है उसे अचल सम्पत्ति के रूप में बदलने के लिये शनि को दूसरे स्थान में माना जाता है। तीसरे स्थान में शनि के होन से जातक को मानसिक रूप से अपने उद्गारों मो प्रकट करने का समय तो मिलता है लेकिन वह समय केवल कार्य को करने के लिये माना जाता है कार्य से फ़ायदा लेने के लिये अन्य लोग अपनी अपनी टांग लगाने लगते है,शनि के चौथे भाव में होने से जातक को आसपास का कार्य करने का माहौल भी बडा कठोर मिलता है और जो भी कार्य किया जाता है उसके अन्दर अधिक मेहनत और कम लाभ का मिलना पाया जाता है। शनि के पंचम स्थान में होने से और भी दिक्कत आजाती है कारण जो भी अपनी खुद की सुरक्षा के कारण होते है वे सभी किसी न किसी कारण से फ़्रीज हो जाते है और प्यार मुहब्बत जीवन साथी लाभ के साधन तथा नगद धन की हमेशा कमी बनी रहती है शनि के छठे भाव में जाने से केवल दूसरों के कार्य करने से ही रोटी और रहने के साधनों का मिलना पाया जाता है,सप्तम में शनि के आने से जीवन साथी या साझेदार का अडियल मिलना पाया जाता है जो भी कार्य खुद के द्वारा किया जाता है उसके अन्दर पहाड जैसा बेलेंस बनाने के बाद मिलना वही होता है जिससे केवल दो जून की मुश्किल से भोजन की व्यवस्था हो पाये। शनि का अष्टम स्थान में होने से जातक के लिये जमीन जायदाद की खरीद फ़रोख्त और कोयले और खनिज जैसे कार्य मिलते है,गुरु अगर कहीं से बल देता है तो अनाप सनाप धन की आवक होने लगती है और मंगल के साथ होने से केवल मशीनों के कलपुर्जों से या अस्पताल में चीरफ़ाड जैसे कार्य ही करने पडते है,नवे भाव में शनि के होने से न्याय या बडी शिक्षा या विदेश से सम्बन्धित काम तो होते है लेकिन परिवार और समाज की मर्यादा को एक तरफ़ रखने से कमाया चाहे कितना ही जाये लेकिन इज्जत का ढांचा खराब हो जाता है,दसवें भाव में शनि होने से जो भी कार्य किया जाता है वह एक बार खराब हो जाता है दूसरी बार सही होता है लेकिन एक कार्य को दो बार करने से जो भी मुनाफ़ा होता है वह कार्य के करने में ही समाप्त हो जाता है और इनकम के नाम पर केवल ठंडी आह के अलावा और कुछ नही मिलता है। ग्यारहवे भाव में शनि के होने से कार्य तो खूब होते है लेकिन इतनी ईमानदारी दिमाग में आजाती है कि काम करने के बाद भी धन का जुडना नही हो पाता है। बारहवे भाव में शनि के होने से केवल भटकाव और खर्चा ही सामने बना रहता है,कभी कभी तो गलत काम करने के बाद या किसी बडी जमानत को देने के बाद जो घर में पहले से रखा होता है वह भी लेजाकर देना पडता है।

शुक्र के लगन में होने से और मंगल के साथ देने से जातक के लिये जीवन साथी और खुद के द्वारा निर्मित सम्पत्ति बडे काम की होती है,जो भी कार्य किया जाता है वह सुन्दर और उत्तम होता है लोग एक के दो देने के लिये तैयार हो जाते है। दूसरे भाव में शुक्र के होने से दोहरी सम्पत्ति की प्राप्ति मिलती है और पुरुष जातक है तो दोहरी पत्नी का योग भी हो जाता है,इसके अलावा तीसरे भाव में शुक्र के होने से जातक के अन्दर इतनी क्षमता आजाती है कि वह अपने को धनी प्रदर्शित करने के लिये अपनी किसी भी पूंजी को बरबाद करने के लिये तैयार हो जाता है और अगर वह स्त्री जातक है तो इतनी तडक भडक से रहना पसंद करती है कि अधिकतर धन गहनो कपडो और साज श्रंगार के सामान पर ही खर्च होता है,चौथे भाव में शुक्र के होने से जातक के अन्दर कामुकता का प्रभाव अधिक हो जाता है या तो वह स्त्रियों की तरफ़ भागना शुरु कर देता है अथवा वह गाडियों और नई नई इमारतों को बनाने उन्हे संवारने के लिए लगा रहता है,पंचम का शुक्र जल्दी से धन कमाने वाले साधनों की तरफ़ ले जाता है और जातक अपने मन के अन्दर हमेशा ही प्रेम प्यार का खेल खेलने के मनोरंजन के लिये अपनी जिन्दगी दाव पर लगाने के लिये तैयार रहता है छठे भाव में शुक्र के होने से जीवन साथी के प्रति हमेशा कोई न कोई पंगा बना रहता है और पंगा नही भी होता है तो जीवन साथी की सेहत मोटापे के कारण अधिक परेशानी देने वाली होती है। सप्तम में शुक्र के होने से जातक अपने जीवन साथी को पैर के नीचे रखना चाहता है और जैसे ही जीवन साथी का दाव लगता है वह अपनी विवाह के बाद की सभी शिकायते एक पल में निकाल कर दूर हो जाता है अष्टम स्थान का शुक्र विदेश जाने के लिये अपनी ताकत देता है जब तक जातक माता के पास रहता है तब तक तो वह अपने जीवन साथी के साथ अपना जीवन बिताता है लेकिन विदेश जाते ही अपनी मर्जी का अधिकारी हो जाता है उसे अपने परिवार की इज्जत शौहरत कुछ भी समझ में नही आती है और अपने परिवार की मर्यादा को दाव पर लगाकर नो दो ग्यारह हो जाता है,नवे भाव में शुक्र के होने से जातक का विवाह होते ही पत्नी या पति धन लक्ष्मी का कारक बन जाते है और जो भी पूर्वजों ने कमाया होता है या अपने जीवन काल में उन्होने मेहनत की होती है उसका हजारों गुना जातक के द्वारा कमाकर अपनी पूर्वजों की इज्जत को बनाकर रखा जाता है। दसवे भाव में शुक्र होने से जातक को एक बार अपनी पूरी गृहस्थी तोडने के लिये मजबूर होना पडता है और दूसरी बार में वह अपने को इतना संयत रखकर अपनी जीवन शैली को अपनाता है कि उसके आसपास के लोग देखकर जलन पैदा करने लगते है। ग्यारहवे भाव का शुक्र जातक के लिये जीवन साथी के लिये बिलकुल बेकार की आफ़त जैसा होता है उसे कितना ही दे दिया जाये लेकिन उसकी भूख ही समाप्त नही होती है,एक से अधिक पुरुष या स्त्री मित्रों के होते घर में क्लेश का कारण बना रहता है,बारहवे भाव का शुक्र जातक की सभी समस्याओं को अपने हाथ में लेकर अपनी जीवन शैली को अपने जीवन साथी के लिये न्योछावर कर देता है।

इसी प्रकार से बुध के लगन में होने से जातक को बातूनी माना जाता है और चन्द्रमा का साथ कहीं से मिल जाता है तो जातक मजाकिया हो जाता है बात बात में मजाक करने के बाद लोगों को हसाने का काम उसके द्वारा होने लगता है,दूसरे भाव में बुध के होने से जातक को केवल बाते करना आता है वह करोड और अरब की बात करेगा लेकिन जेब में अधन्नी नही होगी तीसरे भाव में बुध के होने से जातक अगर किसी प्रकार के कमन्यूकेशन या मीडिया या पबलिकेशन का कार्य कर रहा है तो उसकी पैठ अच्छी मानी जाती है,व्यापारी के गुण भी जातक के अन्दर आजाते है,चौथे भाव में बुध को अगर केतु ने सहायता दी है तो जातक रिहायसी प्लाट आदि खरीद बेच करने के बाद धन को प्राप्त करता है,पंचम में बुध होने से जातक शेयर बाजार या खेल कूद वाले मामलो में जानकार होता है छठे भाव में बुध होने से जातक को मीठा बोलना आता है और वह अपने ह्रदय को सभी के सामने खोल कर रख देता है लोगों के अन्दर उसके प्रति सहानुभूति पैदा होती है साथ ही जुबान के कारण उसके कोई काम रुकते नही है,सप्तम में बुध का भरोसा नही होता है कभी तो वह बहुत ही बेलेंस बनाकर बात करने वाला होता है और कभी अपने ही आदमी को ठगने में उसे कोई दिक्कत नही होती है,अष्टम में बुध के होने से तथा मंगल के घर में होने से जातक को इलेक्ट्रोनिक उपकरण कमन्यूकेशन के साधन रद्दी प्लास्टिक के काम में फ़ायदा होता है नवे भाव का बुध कभी भी कही भी स्लिप होने वाला माना जाता है,कानूनी काम करने की कला होती है और दसवे भाव का बुध राजनीति में ले तो जाता है लेकिन जातक केवल भाषण से ही जनता का काम चलाना जानता है वह बात बनाने में माहिर होता है और किसी भी बात का जबाब बिना देर लगाये देने में समर्थ होता है उदाहरण भी उसकी जुबान पर रखे होते है जिससे कितने ही चतुर आदमी को उससे बात करने का अवसर मिले वह उसे भी अपने उदाहरण से संतुष्ट करने में देर नही लगाता है। इसी प्रकार से ग्यारहवें भाव के बुध के लिये कहा जाता है जातक के जान पहिचान में व्यापारी या कमन्यूकेशन वाले लोग ही होते है और वह अपने अनुसार इतने दोस्तों की संख्या को बढा लेता है कि उसके सभी कार्य दोस्त ही करते  है उसे चिन्ता नही रहती है कि उसके कोई काम रुके भी है। बारहवे भाव का बुध खतरनाक होता है जातक की कब खोपडी को घुमा दे कोई पता नही होता है,अक्सर यह तभी होता है जब राहु कहीं से भी इस बुध को देख रहा होता है।

मेष लगन के लिये धन देने वाले ग्रह

मेष लगन के लिये धन देने वाले ग्रहों में मुख्य ग्रह शुक्र है। शुक्र भौतिक रूप में धन देने का भी कारक है और साझेदार या जीवन साथी के रूप में मानसिक सुझाव रूपी धन भी देने के लिये माना जाता है। बुध इस राशि के लिये मानसिक रूप से अपनी पहिचान देने का कारक है और भौतिक रूप से रोजाना के कार्य और नौकरी आदि के लिये भौतिक धन देने के लिये माना जाता है। चन्द्रमा केवल रहने वाले स्थान पर भावनात्मक रिस्ते देने का कारक है और उम्र की पच्चिस साल तक माता मन मकान और अपने आसपास के माहौल से जुड्कर चलने वाला माना जाता है। सूर्य केवल राजनीति और खेल कूद तथा जल्दी से धन कमाने के लिये बच्चों की शिक्षा और अपनी बुद्धि को प्रकट करने के लिये माना जाता है,मंगल भौतिक रूप से रक्षा सेवा वाले कार्य अपमान जोखिम और रिस्क आदि के काम करवाने वाला है डाक्टर बनकर शरीर की हिफ़ाजत करने वाला इन्जीनियर बनकर सामान और मशीनो को नई जान देने वाला तथा होटल आदि के निर्माण के बाद शरीर के पोषण का कार्य करने वाला है,गुरु भौतिक रूप से भाग्य की कारक वस्तुओं को उपलब्ध करवाने वाला है और मानसिक रूप से ध्यान समाधि यात्रा और धार्मिक संस्थानो वाले कार्य करने के लिये माना जाता है,शनि के द्वारा मेहनत वाले कार्य भौतिक रूप से भी किये जाते है लेकिन मानसिक रूप से लाभ के लिये पहले सोचने का कार्य मेष राशि वालों के लिये शनि के द्वारा होते है। शुक्र मारक होकर भी मारक नही बनता है और मंगल अष्टम का स्वामी होकर भी इस लगन वालों के लिये अपनी नीचता वाली बात नही करता है,केवल बुध ही रोजाना के कामों के अन्दर अपना असर देता है और पुत्री देकर अपमान करवाता है कर्जा लेकर चुकाने के लिये अपनी ऊंची नीची बात करता है।

इस लगन वाले जातकों के लिये शनि गुरु के साथ होने पर निर्माण और बडी कामनाओं का कारक है,लेकिन शनि जब इस लगन में ही विराजमान होता है तो जातक को अपने द्वारा ही नौकरी आदि करने के बाद धन की प्राप्ति होती है। शनि दूसरे भाव में होता है तो जातक को भौतिक सुख के मामले में अन्धेरा और ठंडक देकर ही अपनी युति को पूरा करता है जो भी धन चल पूंजी के रूप में होता है उसे अचल सम्पत्ति के रूप में बदलने के लिये शनि को दूसरे स्थान में माना जाता है। तीसरे स्थान में शनि के होन से जातक को मानसिक रूप से अपने उद्गारों मो प्रकट करने का समय तो मिलता है लेकिन वह समय केवल कार्य को करने के लिये माना जाता है कार्य से फ़ायदा लेने के लिये अन्य लोग अपनी अपनी टांग लगाने लगते है,शनि के चौथे भाव में होने से जातक को आसपास का कार्य करने का माहौल भी बडा कठोर मिलता है और जो भी कार्य किया जाता है उसके अन्दर अधिक मेहनत और कम लाभ का मिलना पाया जाता है। शनि के पंचम स्थान में होने से और भी दिक्कत आजाती है कारण जो भी अपनी खुद की सुरक्षा के कारण होते है वे सभी किसी न किसी कारण से फ़्रीज हो जाते है और प्यार मुहब्बत जीवन साथी लाभ के साधन तथा नगद धन की हमेशा कमी बनी रहती है शनि के छठे भाव में जाने से केवल दूसरों के कार्य करने से ही रोटी और रहने के साधनों का मिलना पाया जाता है,सप्तम में शनि के आने से जीवन साथी या साझेदार का अडियल मिलना पाया जाता है जो भी कार्य खुद के द्वारा किया जाता है उसके अन्दर पहाड जैसा बेलेंस बनाने के बाद मिलना वही होता है जिससे केवल दो जून की मुश्किल से भोजन की व्यवस्था हो पाये। शनि का अष्टम स्थान में होने से जातक के लिये जमीन जायदाद की खरीद फ़रोख्त और कोयले और खनिज जैसे कार्य मिलते है,गुरु अगर कहीं से बल देता है तो अनाप सनाप धन की आवक होने लगती है और मंगल के साथ होने से केवल मशीनों के कलपुर्जों से या अस्पताल में चीरफ़ाड जैसे कार्य ही करने पडते है,नवे भाव में शनि के होने से न्याय या बडी शिक्षा या विदेश से सम्बन्धित काम तो होते है लेकिन परिवार और समाज की मर्यादा को एक तरफ़ रखने से कमाया चाहे कितना ही जाये लेकिन इज्जत का ढांचा खराब हो जाता है,दसवें भाव में शनि होने से जो भी कार्य किया जाता है वह एक बार खराब हो जाता है दूसरी बार सही होता है लेकिन एक कार्य को दो बार करने से जो भी मुनाफ़ा होता है वह कार्य के करने में ही समाप्त हो जाता है और इनकम के नाम पर केवल ठंडी आह के अलावा और कुछ नही मिलता है। ग्यारहवे भाव में शनि के होने से कार्य तो खूब होते है लेकिन इतनी ईमानदारी दिमाग में आजाती है कि काम करने के बाद भी धन का जुडना नही हो पाता है। बारहवे भाव में शनि के होने से केवल भटकाव और खर्चा ही सामने बना रहता है,कभी कभी तो गलत काम करने के बाद या किसी बडी जमानत को देने के बाद जो घर में पहले से रखा होता है वह भी लेजाकर देना पडता है।

शुक्र के लगन में होने से और मंगल के साथ देने से जातक के लिये जीवन साथी और खुद के द्वारा निर्मित सम्पत्ति बडे काम की होती है,जो भी कार्य किया जाता है वह सुन्दर और उत्तम होता है लोग एक के दो देने के लिये तैयार हो जाते है। दूसरे भाव में शुक्र के होने से दोहरी सम्पत्ति की प्राप्ति मिलती है और पुरुष जातक है तो दोहरी पत्नी का योग भी हो जाता है,इसके अलावा तीसरे भाव में शुक्र के होने से जातक के अन्दर इतनी क्षमता आजाती है कि वह अपने को धनी प्रदर्शित करने के लिये अपनी किसी भी पूंजी को बरबाद करने के लिये तैयार हो जाता है और अगर वह स्त्री जातक है तो इतनी तडक भडक से रहना पसंद करती है कि अधिकतर धन गहनो कपडो और साज श्रंगार के सामान पर ही खर्च होता है,चौथे भाव में शुक्र के होने से जातक के अन्दर कामुकता का प्रभाव अधिक हो जाता है या तो वह स्त्रियों की तरफ़ भागना शुरु कर देता है अथवा वह गाडियों और नई नई इमारतों को बनाने उन्हे संवारने के लिए लगा रहता है,पंचम का शुक्र जल्दी से धन कमाने वाले साधनों की तरफ़ ले जाता है और जातक अपने मन के अन्दर हमेशा ही प्रेम प्यार का खेल खेलने के मनोरंजन के लिये अपनी जिन्दगी दाव पर लगाने के लिये तैयार रहता है छठे भाव में शुक्र के होने से जीवन साथी के प्रति हमेशा कोई न कोई पंगा बना रहता है और पंगा नही भी होता है तो जीवन साथी की सेहत मोटापे के कारण अधिक परेशानी देने वाली होती है। सप्तम में शुक्र के होने से जातक अपने जीवन साथी को पैर के नीचे रखना चाहता है और जैसे ही जीवन साथी का दाव लगता है वह अपनी विवाह के बाद की सभी शिकायते एक पल में निकाल कर दूर हो जाता है अष्टम स्थान का शुक्र विदेश जाने के लिये अपनी ताकत देता है जब तक जातक माता के पास रहता है तब तक तो वह अपने जीवन साथी के साथ अपना जीवन बिताता है लेकिन विदेश जाते ही अपनी मर्जी का अधिकारी हो जाता है उसे अपने परिवार की इज्जत शौहरत कुछ भी समझ में नही आती है और अपने परिवार की मर्यादा को दाव पर लगाकर नो दो ग्यारह हो जाता है,नवे भाव में शुक्र के होने से जातक का विवाह होते ही पत्नी या पति धन लक्ष्मी का कारक बन जाते है और जो भी पूर्वजों ने कमाया होता है या अपने जीवन काल में उन्होने मेहनत की होती है उसका हजारों गुना जातक के द्वारा कमाकर अपनी पूर्वजों की इज्जत को बनाकर रखा जाता है। दसवे भाव में शुक्र होने से जातक को एक बार अपनी पूरी गृहस्थी तोडने के लिये मजबूर होना पडता है और दूसरी बार में वह अपने को इतना संयत रखकर अपनी जीवन शैली को अपनाता है कि उसके आसपास के लोग देखकर जलन पैदा करने लगते है। ग्यारहवे भाव का शुक्र जातक के लिये जीवन साथी के लिये बिलकुल बेकार की आफ़त जैसा होता है उसे कितना ही दे दिया जाये लेकिन उसकी भूख ही समाप्त नही होती है,एक से अधिक पुरुष या स्त्री मित्रों के होते घर में क्लेश का कारण बना रहता है,बारहवे भाव का शुक्र जातक की सभी समस्याओं को अपने हाथ में लेकर अपनी जीवन शैली को अपने जीवन साथी के लिये न्योछावर कर देता है।

इसी प्रकार से बुध के लगन में होने से जातक को बातूनी माना जाता है और चन्द्रमा का साथ कहीं से मिल जाता है तो जातक मजाकिया हो जाता है बात बात में मजाक करने के बाद लोगों को हसाने का काम उसके द्वारा होने लगता है,दूसरे भाव में बुध के होने से जातक को केवल बाते करना आता है वह करोड और अरब की बात करेगा लेकिन जेब में अधन्नी नही होगी तीसरे भाव में बुध के होने से जातक अगर किसी प्रकार के कमन्यूकेशन या मीडिया या पबलिकेशन का कार्य कर रहा है तो उसकी पैठ अच्छी मानी जाती है,व्यापारी के गुण भी जातक के अन्दर आजाते है,चौथे भाव में बुध को अगर केतु ने सहायता दी है तो जातक रिहायसी प्लाट आदि खरीद बेच करने के बाद धन को प्राप्त करता है,पंचम में बुध होने से जातक शेयर बाजार या खेल कूद वाले मामलो में जानकार होता है छठे भाव में बुध होने से जातक को मीठा बोलना आता है और वह अपने ह्रदय को सभी के सामने खोल कर रख देता है लोगों के अन्दर उसके प्रति सहानुभूति पैदा होती है साथ ही जुबान के कारण उसके कोई काम रुकते नही है,सप्तम में बुध का भरोसा नही होता है कभी तो वह बहुत ही बेलेंस बनाकर बात करने वाला होता है और कभी अपने ही आदमी को ठगने में उसे कोई दिक्कत नही होती है,अष्टम में बुध के होने से तथा मंगल के घर में होने से जातक को इलेक्ट्रोनिक उपकरण कमन्यूकेशन के साधन रद्दी प्लास्टिक के काम में फ़ायदा होता है नवे भाव का बुध कभी भी कही भी स्लिप होने वाला माना जाता है,कानूनी काम करने की कला होती है और दसवे भाव का बुध राजनीति में ले तो जाता है लेकिन जातक केवल भाषण से ही जनता का काम चलाना जानता है वह बात बनाने में माहिर होता है और किसी भी बात का जबाब बिना देर लगाये देने में समर्थ होता है उदाहरण भी उसकी जुबान पर रखे होते है जिससे कितने ही चतुर आदमी को उससे बात करने का अवसर मिले वह उसे भी अपने उदाहरण से संतुष्ट करने में देर नही लगाता है। इसी प्रकार से ग्यारहवें भाव के बुध के लिये कहा जाता है जातक के जान पहिचान में व्यापारी या कमन्यूकेशन वाले लोग ही होते है और वह अपने अनुसार इतने दोस्तों की संख्या को बढा लेता है कि उसके सभी कार्य दोस्त ही करते  है उसे चिन्ता नही रहती है कि उसके कोई काम रुके भी है। बारहवे भाव का बुध खतरनाक होता है जातक की कब खोपडी को घुमा दे कोई पता नही होता है,अक्सर यह तभी होता है जब राहु कहीं से भी इस बुध को देख रहा होता है।

तुला लगन और धन आने के क्षेत्र

तुला लगन मे जन्म लेने वाले जातको के लिये धन प्रदाता ग्रह मंगल है।धनेश मंगल की शुभाशुभ स्थिति से धन स्थान से संबंध जोडने वाले ग्रहों की स्थिति  योगायोग एवं मंगल तथा धन स्थान पर पडने वाले ग्रहों के द्रिष्टि संबंध से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति आय के स्त्रोतों तथा चल अचल संपत्ति का पता चलता है।  इसके अतिरिक्त लगनेश शुक्र पंचमेश शनि भाग्येश बुध ऐश्वर्य एवं वैभव को बढाने में पूर्ण सहायक होते है। वैसे तुला लगन के लिये गुरु सूर्य मंगल अशुभ है। शनि बुध शुभ होते है चन्द्र और बुध राजयोग कारक होते है,मंगल प्रधान मारकेश होकर भी मारक कार्य नही करता है। गुरु छठे भाव के मालिक होने से अशुभ फ़लदायक है। गुरु परमपापी है सूर्य व शुक्र भी पापी है,अति शुभ फ़लदायक शनि है। मंगल साहचर्य से मारक का कार्य करेगा। मंगल के कार्यों से अगर जातक को जोडा जाता है तो जातक अस्पताली कार्यों के प्रति निपुणता का प्रदर्शन करने के बाद धन को प्राप्त कर सकता है,मंगल ही इन्जीनियरिंग आदि के कार्यों से अपना सम्बन्ध जोडता है और मंगल ही तोडफ़ोड और पुराने सामान जो लोहे और मशीनरी आदि से सम्बन्ध रखते है से अपना सम्बन्ध बनाकर कर रखता है। मंगल भोजन के लिये भी जाना जाता है और मंगल होटल ढाबा और इसी प्रकार के कार्यों से जोडा जाता है। लेकिन तुला लगन में मंगल का आधिपत्य दूसरे भाव की वृश्चिक लगन से होने से भी जातक के लिये उन कार्यों के प्रति भी रुझान बढेगा जो कार्य गूढ होते है और जो कार्य कबाड से जुगाड बनाने वाले कारणों में जाने जाते है। धनेश मंगल ही सप्तमेश का कार्य करता है,अगर सप्तम स्थान जातक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करता है तो जातक को धनी बनने से कोई रोक नही सकता है। अक्सर सप्तम स्थान से मंगल की स्थिति अगर छ: यानी लगन से बारहवे स्थान में होती है तो जातक का जीवन साथी जातक के द्वारा कमाये गये धन को अपने अनुसार कर्जा दुश्मनी बीमारी और रोजाना के घर के खर्चों के बहाने खर्च कर लेगा और उसके पास कुछ भी नही बचेगा जितना जातक कमायेगा उससे अधिक जातक का जीवन साथी अपने कारणों से खर्च कर लेगा। इसके अलावा सप्तम से छठे स्थान में अगर गुरु किसी प्रकार से अपनी युति देता है तो जातक के द्वारा बनाये गये संबध भी जीवन साथी की बजह से बेकार होजाते है और उन सम्बन्धो की बजह से भी जातक को मुकद्दमा या पारिवारिक कारणों से खर्च करना पडता है। यह बाते संतान से सम्बन्धित रिस्तों में भी होते है और रोजाना के कार्यों के अन्दर भी माने जाते है। इसके अलावा अगर मंगल का स्थान सप्तम से अष्टम यानी जातक के दूसरे भाव में होता है तो जातक को अपने ही परिवार के कारण धन को खर्च करना पडता है और यह भी जीवन साथी के प्रति अपमान या मौत जैसे कारणों के लिये माना जाता है।जीवन साथी को जोखिम के कामों में अधिक मन लगने से भी जातक को धन के साथ कभी कभी शारीरिक क्षति मिलती है।

तुला लगन में अगर शुक्र लगन में ही विराजमान हो शनि बुध की आपसी युति किसी भी प्रकार से हो तो जातक के लिये अपनी प्रसिद्धि का कारण बन जाता है,शुक्र लगन में होता है तो जातक को तुला राशि का पूरा प्रभाव मिलता है उसे धन को जायदाद को और जो भी धन के देने वाले कारक होते है के अन्दर बेलेंस बनाने की अभूतपूर्व क्षमता का विकास होता है,वह किसी भी प्रकार के धन और सम्पत्ति को बेलेंस बनाने के कामों में अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है अगर जातक पुरुष है तो वह महिलाओं के सानिध्य से और महिला है तो पुरुषों और सम्पत्ति के बल पर अपनी औकात को बनाता चला जाता है,बुध के भाग्य और खर्च करने के भावों का मालिक होने के कारण वह धन की स्थिति को जोडने घटाने के कामों मे और कई तरह की भाषाओं को जानने की बजह से भी अपनी योग्यता को बढाता चला जाता है उसे कमन्यूकेशन के साधनों से भी अच्छी कमाई होती है और वह अपने विस्तार को अधिक से अधिक बढाता हुआ अपने को प्रसिद्धि के रास्ते पर ले जाता है। शनि का आधिपत्य मकर और कुम्भ राशि पर होने से शनि सुख और बुद्धि का मालिक बन जाता है और कुंडली में जहां भी होता है वह सुख और बुद्धि वाले कामों को ही देता है। शनि कर्म का भी दाता है और भावों के अनुसार अपना फ़ल जातक को देता चला जाता है,अगर शनि लगन से छठे भाव में है तो जातक को रोजाना के कामों में और कर्जा दुश्मनी बीमारी से भी लाभ देने का कारक बना होता है। अगर शनि लगन से सप्तम स्थान में होता है तो वैसे तो शनि को मेष राशि का होने पर नीच का कहा जाता है लेकिन जातक धन के मामलो में अपने जीवन साथी की नीचता का लाभ उठाता है उसके पास वही साझेदार होते है जो अपनी नीचता के द्वारा जातक को लाभ देने के मामले में जाने जाते है। अक्सर इस स्थान का शनि जातक को उसी प्रकार के जीवन साथी को प्राप्त करने के लिये बल देता है जो अनैतिक कार्यों को करने वाले और अपने शरीर को किसी भी गलत कार्यों में लगा सकने में समर्थ होते है। यह बात अक्सर अच्छे कार्यों के लिये भी माना जाता है जैसे राजनीति आदि के कारणों में अपनी पहिचान बनाने के लिये और नीची बस्तियों में रहने वाले लोगों से ताल मेल बैठाकर उनसे अपने कार्यों को करवाने के लिये माने जाते है। शनि जब बुध के साथ अपनी युति रखता है तो जातक को कार्य के प्रति आकलन करने की अच्छी शक्ति अपने आप पैदा हो जाती है और अगर शनि का स्थान अष्टम में होता है तो जातक प्लास्टिक के कामों में और जमीन की खरीद बेच करने में अपनी योग्यता का अच्छा परिचय देता है और अन्दरूनी तरीके से धन कमाने के लिये अपने को छुपाकर रखता है,साधारण आदमी को पता नही चलता है कि जातक के पास कितनाधन कहां से आया है और कहां है। अक्सर इस प्रकार के कार्यों के अन्दर दवाइयों के व्यापार से भी जोड कर देखा जाता है,और कबाड आदि के कार्यों से भी मिलाकर देखा जाता है।

शनि का स्थान अगर दूसरे भाव में है और बुध का स्थान अगर अष्टम में है तो जातक मंत्र विद्या में पारंगत होता है और जातक किसी भी जासूसी वाले कार्य में निपुण होता है। जातक को जमीन के अन्दर के तत्वों की पूरी जानकारी होती है वह अपने दिमाग से रत्न व्यवसाय का अच्छा व्यवसाय कर सकता है,और अन्दर से कुछ कार्य बाहर से कुछ दिखाई देने वाले कार्यों की बजह से भी जातक अपने को धन के क्षेत्र में ले जाता है,जातक रद्दी से रद्दी वस्तु का स्तेमाल करने की योग्यता रखता है,बेकार से बेकार आदमी को कार्य में लगाने की हिम्मत रखता है,जडी बूटी से अच्छी से अच्छी दवाई बनाकर बेचने की भी औकात रखता है।जातक का धन अक्सर उन्ही फ़सलों के उत्पादनों से सम्बन्धित होते है जो जमीन के अन्दर कन्द के रूप में पैदा होती है और उन फ़सलों के द्वारा जातक खुले रूप में या उन्हे परिष्कृत करने के बाद अच्छा धन कमा सकता है। जातक ज्योतिष विद्या और इसी प्रकार की भाषाओं से से अपनी जीविका को चलाने की हिम्मत रखता है। अगर शनि तीसरे स्थान में होता है तो जातक का ध्यान बडी मीडिया या पब्लिसिंग वाले कार्यों की तरफ़ ध्यान जाता है जातक को कानूनी कार्य करने का शौक होता है जातक लम्बी रेल यात्रा करने का शौकीन होता है और जातक के लिये कोई भी धर्म और भाग्य के कार्य करने और उन्हे बताने का अच्छा व्यवहारिक ज्ञान होता है। अगर पंचम स्थान में शनि होता है और लाभ स्थान का सूर्य होता है तो जातक अपने कार्यों से अपने इलाके का मसहूर व्यक्ति बन जाता है जातक को लोग अपने अपने अनुसार पहिचानने लगते है। तुला लगन में भाग्य स्थान यानी मिथुन राशि का बुध जातक को विदेशी भाषाओं और कानून के मामले में अपनी पहिचान देता है तथा किसी भी तरह के हाईकोर्ट जैसे मामले को वह चुटकी से निपटाने की औकात रखता है। विदेशी व्यापार और विदेशी कानून को वह आसानी से पहिचानने और करने के लिये अपनी बुद्धि का सही प्रयोग करता है। घर में परिवार में और शहर में वह अपने अनुसार जाना जाता है उसकी प्रसिद्धि अल्प प्रयत्न से होती है,उसे किसी प्रकार से अपनी पहिचान किसी को बताने की जरूरत नही पडती है। बुध का स्थान अगर सिंह राशि में होता है तो जातक के मित्र अधिकतर धनी वर्ग के होते है या बनिया स्वभाव के होते है उनसे जातक को किसी भी मुशीबत में अपने लिये सहायता मिलती रहती है और जातक को अपनी पुत्री बहिन या बुआ से काफ़ी सहायता मिलती है,उसी सहायता से जातक अपने को बलशाली बना लेता है। इस स्थान का बुध जातक को रिहायसी प्लाट आदि खरीदने और बेचने से धनवान बनाने में सहयोग करते है,अगर जातक किसी प्रकार से अपनी बडी बहिन या बडी बुआ से बनाकर चलता है तो जातक के पास अकूत धन बहिन या बुआ के भाग्य से पैदा होने लगता है। इस स्थान के बुध के लिये जातक की पहिचान होती है कि उसके सामने वाले दांतों में दाहिनी तरफ़ के दांत के ऊपर एक दांत और होता है जिसे दतूसर के नाम से जाना जाता है,अगर जातक किसी प्रकार से तामसी भोजन यानी शनि का प्रयोग करना शुरु कर देता है तो उसके पास धन की बढोत्तरी शुरु हो जाती है कारण बुध दतूसर और शनि तामसी भोजन दोनो का संयोग लक्ष्मी को बढाने के लिये जाने जाते है।

तुला लगन में मंगल अगर मेष राशि का होता है तो जातक के जीवन साथी के अन्दर शारीरिक बल की अच्छी क्षमता होती है वह जातक के जीवन को कमजोर होने पर भी एक प्रहरी की तरह से संभाल कर रखता है,जब भी जातक के लिये कोई कठिनायी दुश्मनी बीमारी आदि होती है तो वह अकेले ही अपने कार्यों से प्रयासों से जातक को बचा लेता है। जातक का जीवन साथी जुबान का पक्का होता है और जो भी कह देता है वह पूरा करके दिखाता है,इसी कारण से जातक के जीवन साथी से कभी कभी तनाव बना रहता है,इस स्थान का मंगल सप्तम का मंगल कहा जाता है और जातक के अन्दर एक से अधिक जीवन साथी बनाने की भी आदत पायी जाती है लेकिन अपनी तुला लगन की बुद्धि से वह दोनो के अन्दर किसी न किसी प्रकार से बेलेंस बनाकर जीवन में सहयोग लेने के लिये भी जाना जाता है। अक्सर तुला लगन के जातक की आदत भी दोहरी होती है एक अपने लिये और एक दूसरे लोगों के लिये वह अपने लिये कुछ और होता है और दूसरों के लिये कुछ और,इसी कारण से जातक के अक्सर दो नाम होते है एक घर का और एक बाहर का। तुला लगन के जातकों के लिये मंगल का स्थान नकारात्मक पहले होता है और सकारात्मक बाद में होता है। सकारात्मक के लिये जातक के जीवन साथी का सहयोग माना जाता है नकारात्मक होने के लिये इस लगन के जातकों के सम्मुख होने पर पता चलता है। जितनी वाहवाही इस लगन के जातकों की दूर से सुनाई देती है उतनी ही घटिया आदते इस लगन के अन्दरूनी भागों में मानी जाती है,अगर किसी प्रकार से गुरु का स्थान इस लगन से बारहवां होता है तो जातक जैसा घर पर होता है वैसा ही बाहर दिखाई देता है। गुरु के साथ अगर मंगल की युति होती है तो जातक का धन आने के बाद भी नही रुकता है उसका कारण है कि जैसे धन आता है वह किसी न किसी प्रकार से घटता ही जाता है,और जातक किसी को धन किसी प्रकार की सहायता के लिये देता है तो वह जातक को या तो वापस नही मिल पाता है और मिलता भी है तो वह किसी न किसी प्रकार की बुराई को देकर जाता है। वह बुराई अक्सर परिवार की तरफ़ या खुद के चालचलन की तरफ़ इशारा करती है। तुला लगन के ग्यारहवें भाव का मालिक सूर्य होता है,और पिता के स्थान का कारक जातक का बडा भाई माना जाता है,लेकिन जातक के पंचम में कुम्भ राशि होने से जातक की भाभी या जीजा दोहरी बात करने का कारक होता है और यही हाल जातक के बडे पुत्र और उसकी पुत्रवधू के लिये समझा जाता है। बडा भाई अपने अहम के कारण सूर्य की योग्यता को प्रदर्शित करता है,और जातक के साथ किसी न किसी प्रकार से मानसिक अलगाव ही बना रहता है। इसका एक कारण और भी होता है कि जातक की लगन का मालिक शुक्र होने से और बडे भाई की लगन का कारक सूर्य होने से जो भी कारण बनते है वे स्त्री सम्बन्धी राजनीति ही कहे जाते है। सूर्य और शुक्र के संयोग से जब तक बडा भाई जातक से बनाकर चलता है उसके पास पुत्र और धन की अधिकतता बनी रहती है,और बडे भाई या बडी बहिन का भाग्य बनता रहता है,सरकारी या इसी प्रकार के उपक्रमो से जातक के बडे भाई या बडी बहिन को फ़ायदा मिलता रहता है और समाज तथा उन्नतशील लोगों में नाम और प्रशंसा बनी रहती है। बडे भाई या बडी बहिन के भाव से दूसरे भाव में बुध की कन्या राशि तथा ग्यारहवे भाव से दसवें भाव में बुध की मिथुन राशि होती है। बडा भाई या बडी बहिन के लिये धन और भौतिक सुख के कारण बैंक बीमा फ़ायनेन्स अस्पताल या इसी प्रकार की संस्थायें रेडक्रास धन वाले क्षेत्र कर्जा दुश्मनी बीमारी या रोजाना के किये जाने वाले कार्य नाना या मामा परिवार की सम्पत्ति या इन्ही कारकों से मिलने वाला धन आदि माने जाते है,तथा दसवें भाव में मिथुन राशि के होने से पद गरिमा बुध प्रधान शासन करने वाले क्षेत्र कमन्यूकेशन और धन के क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वाले लोगों से जान पहिचान कर्जा देने वाली दुश्मनी रखने वाले बीमारी पालने वाले लोगों के प्रति अपनी मानसिक भावना को प्रदर्शित करने वाले कारकों के प्रति माना जाता है। जातक का बडा भाई बुध से हमेशा अपने को जोड कर चलता है,बुध ही जातक के बडे भाई या बहिन के लिये कर्णधार के रूप में माने जाते है।

तुला लगन वालों के लिये अगर मंगल और सूर्य का परिवर्तन योग होता है यानी सूर्य मंगल के घर में और मंगल सूर्य के घर में विद्यमान होता है तो जातक के पास अकूत लक्ष्मी होती है। मंगल मेष राशि का होता तो ऊपर हम बताकर ही आये है लेकिन सूर्य अगर मेष राशि का होता है तो जातक राजनीति या सरकारी क्षेत्र में अपना नाम सेना इन्जीनियरिंग अस्पताल या इसी प्रकार के क्षेत्र में बनाकर चलता है। तुला लगन वाले जातकों के बारे में एक बात और मानी जाती है कि वे लडाई झगडे से दूर रहने वाले होते है और जो भी कार्य दुश्मन के प्रति करते है वह अन्दरूनी ही होता है और वे खुल कर कभी सामने नही आते है। अक्सर इस लगन के जातक पुराने विवादों को जल्दी से भूल जाते है और जो भी उन्हे समय पर प्रताणित करने की कोशिश करता है उससे वे अपने अनुसार केवल समयानुसार ही बदला लेने के लिये जाने जाते है हमेशा के लिये दुश्मनी पालकर चलना उनके वश की बात नही होती है। सूर्य चूंकि बडे भाई मित्रों और पुत्र वधू के रूप में सामने आने की युति देता है,और इस युति का अवसर जब भी जातक को मिलता है वे अपने अनुसार इन्ही कारकों से अपनी कर्जा दुश्मनी बीमारी निपटाने का कार्य करते है,सामाजिक व्यवस्था के प्रति जब इनके अन्दर कोई बदलाव मिलता है तो इनकी जल्दबाजी की आदत से इन्हे दिक्कत आजाती है,और किसी भी काम को जोखिम से करने के प्रति इन्हे अधिक लालसा रहती है किसी भी लम्बी यात्रा या किसी भी अस्पताली काम को अथवा किसी भी तकनीकी काम को यह जोखिम के रूप अक्समात अपने ऊपर धारण कर लेते है,किसी भी खरीद बेच के कामों के अन्दर यह अपने को अपने आप ही प्रवेश करा लेते है लेकिन ग्रह योग अगर किसी प्रकार से विपरीत होता है तो यह अपने दर्द को किसी को बताते भी नही है और अपने ही अन्दर उस दर्द को पीकर रह जाते है। तुला लगन के लिये माता यानी चन्द्रमा अगर किसी प्रकार से सहायक के रूप में होती है जैसे लगन में ही चन्द्रमा होता है तो जातक को माता की शिक्षा के द्वारा एक बनिया प्रकृति का व्यक्ति बना दिया जाता है और उसे जनता तथा जान पहिचान वाले लोगों के प्रति सामने आते ही बेलेंस करने की क्षमता का विकास हो जाता है और जो भी उन्हे धोखा देना चाहता है उससे यह अपने को बचा लेते है,उसी प्रकार से अगर चन्द्रमा मकर राशि का होता है तो जातक की माता का प्रभाव जातक के बचपन के कार्यों के प्रति समझा दिया जाता है और इस लगन के जातक अपने कार्यों को बचपन से ही समझने लगते है और उन्हे अपने परिवार आदि का भार सहन करने की आदत पड जाती है किसी भी कठिन परिस्थिति में वे अपने को चलाकर निकाल लेते है और उनके कोई भी कार्य अटकते नही है,लेकिन अपनी हठधर्मी और माता की मृत्यु के बाद वे अक्सर अपने को अकेला पाते है और जो भी उन्हे ममता देता है उसी की तरफ़ अपने को समेटते चले जाते है भले ही पहले दी जाने वाली ममता ही उनके लिये सर्वनाश के लिये अपने जाल को क्यों न बिछा कर बैठी हो। बारहवें भाव में कन्या राशि होने से या तो जातक के द्वारा कोई असमान्य स्थिति में कन्या आदि के लिये सहायता वाले कार्य किये जाते है अथवा वे किसी कन्या को पुत्री की तरह से मानने लगते है और जितना वे उस कन्या के प्रति खर्च करते जाते है उतना ही धन उनके लिये आगे से आगे बढता जाता है। इस लगन वाले जातकों के लिये यही सुझाव सबसे बढिया है कि वे जीते जागते बुध को अगर अपने माफ़िक बनाना चाहते है तो वे कन्या जाति को अपने सहायता वाले कारकों से फ़लीभूत करते रहे। इस लगन के जातकों की कुंडली में अगर सूर्य शुक्र और चन्द्रमा एक ही स्थान में होता है तो जातक के पास अकूत काला धन भी पाया जाता है। यही हाल तब और देखने को मिलता है जब सूर्य और शुक्र का आपसी परिवर्तन योग होता है।

ग्रह गणित

धरती पर भी ग्रह का अंश विद्यमान है और हमे उसे पहिचानने की आवश्यकता होती है। आप अपने कम्पयूटर की टेबिल पर विराजमान है और आप को यह समझना जरूरी है कि इस टेबिल के आसपास कौन कौन से ग्रह के अंश विद्यमान है। की बोर्ड केतु है और की बोर्ड के अन्दर लिखा जाने वाला कार्य बुध है,की बोर्ड के अन्दर जो बिजली का प्रवाह है वह मंगल के रूप में है और की बोर्ड की बनावट को दर्शाने वाला सूर्य है,की बोर्ड की सजावट शुक्र है और की बोर्ड पर की जाने वाली मेहनत वह की दबाने से सम्बन्ध रखती हो या की बोर्ड की जानकारी के लिये जानी जाती हो। की बोर्ड को चलाने का तरीका ही गुरु है और की बोर्ड के अन्दर के पार्ट राहु के रूप में है जो अपनी भाषा से कम्पयूटर के अन्दर डाटा भेज कर अपने कार्य को बृहद गणना से पूरा करने के बाद सम्बन्धित प्रोग्राम को खोलकर सामने लाते है। की बोर्ड का तार भी केतु की श्रेणी मे आता है और कीबोर्ड का जैक भी केतु की श्रेणी में आता है। कम्पयूटर का हार्डवेयर केतु है,उसके अन्दर लगे पार्ट्स भी केतु की श्रेणी में आते है चलने वाली बिजली मंगल है और अन्दर जो डाटा चल रहा है वह राहु की श्रेणी में आता है। बनाये गये प्रोग्राम जो भी स्क्रीन पर आते है वे द्रश्य रूप में सूर्य की श्रेणी में आते है और स्क्रीन जो मनभावन कलर में और मन को अच्छी लगने वाली वालपेपर के रूप में सामने है वह शुक्र की श्रेणी में आता है। माउस भी केतु की श्रेणी में आता है लेकिन माउस के द्वारा किया जाने वाला कार्य जो कम्पयूटर को शक्ति देता है वह राहु की श्रेणी में आता है। सभी को मिलाकर गुरु और बुध की श्रेणी में इसलिये लिया जाता है क्यों कि बुध और राहु मिलकर असीमित विस्तार का रूप देते है,बुध और केतु मिलकर यंत्र का निर्माण करते है और मंगल उनके अन्दर बिजली की शक्ति देता है,सूर्य से ढांचा बनाया जाता है और शुक्र से उसका रूप सजाया जाता है। जो भी रंग हमे कम्पयूटर में दिखाई देते है वे सभी ग्रहों के अंश के रूप में दिखाई देते है। इसी तरह से प्रिंटर को भी समझा जा सकता है,प्रिंट करना बुध और शनि के अन्दर आता है कागज का रूप शनि चन्द्र के रूप में आता है कागज पर छपा हुआ मेटर केतु की श्रेणी में और कागज पर छपे मेटर से उत्पन्न होने वाला भाव राहु की श्रेणी में आता है,उसकी उपयोगिता और अनुपयोगिता को गुरु की श्रेणी में लाया जाता है।

इसी तरह से जब हम अपनी बैठक में बैठ कर कोई टीवी प्रोग्राम देख रहे होते है तो टीवी भी बुध और राहु की श्रेणी में आता है उसके अन्दर चलने वाले प्रोग्राम बुध और गुरु की देन होती है और हमें क्या अच्छा लग रहा है वह उस समय के ग्रह के अनुसार मानसिक रूप से चन्द्रमा के द्वारा समझ में आता है सैटेलाइट से या केबिल से जो भी प्रोग्राम हमारे टीवी के अन्दर आ रहे होते है वे केतु के द्वारा राहु की देन होते है और जो भी कार्यक्रम हम पसंद करते है वह हमारे मन यानी चन्द्रमा के आधीन होते है। इसी लिये कोई प्रोग्राम हम सभी को एक साथ देखने में अच्छा लगता है वह उस समय की बुध और राहु की देन होती है जो चन्द्रमा पर अपना अधिकार दे रही होती है। कभी कभी हमें कोई प्रोग्राम अच्छा नही लगता है और कभी कभी हमे बेकार का प्रोग्राम भी अच्छा लगता है,बुध और सूर्य के मिलने पर हमे समाचार अच्छे लगते है और बुध शुक्र के मिलने पर हमे गाने अच्छे लगते है,शुक्र का प्रभाव जब मानसिक रूप से सूर्य को प्रभावित करता है तो हमें उत्तेजक द्रश्य अच्छे लगते है और बुध का प्रभाव जब गुरु के अनुसार होता है तो हमे धार्मिक और बुद्धि को बढाने वाले प्रोग्राम अच्छे लगते है। धन से सम्बन्धित प्रोग्राम हमारे दूसरे भाव के द्वारा समझ में आते है और खेल कूद के प्रोग्राम हमें हमारे पांचवे भाव के अनुसार अच्छे लगते है।

जब भोजन की टेबिल पर बैठे होते है तो भी ग्रह हमारे आसपास ही होते है । पानी के रूप में चन्द्रमा हमारे आसपास होता है। रसों के रूप में शुक्र हमारे पास होता है वही शुक्र फ़लों के रूप में सजीव दिखाई देता है जब रस का बना हुआ ढांचा शुक्र और सूर्य का मिलावटी रूप होता है। मंगल के साथ होने पर फ़ल लाल रंग का मीठा होता है और गुरु के साथ होने पर पीला होता है। बनी हुई दाल गुरु और मंगल के साथ सूर्य से अपना संबध रखती है और बना हुये चावल चन्द्रमा मंगल और सूर्य के साथ हमारे साथ होते है। वेजेटेरियन खाना हमारे गुरु के अनुसार होता है और नानवेज खाना हमारे शनि और राहु के अनुसार माना जाता है,भोजन को ग्रहण करने के समय जो भी कारक चाहे वे प्लेटें हो चमचा हों या भोजन को मुंह तक पहुंचाने के लिये हाथों का प्रयोग होता हो या भोजन को करवाने के लिये किसी अन्य व्यक्ति का रूप सामने हो वह केतु के रूप में माना जाता है। भोजन जो किया जाता है उसका प्रभाव शक्ति के रूप में हस्तांतरित होता है,शक्ति अच्छी या बुरी राहु के रूप में खून यानी मंगल के अन्दर अपना स्थान बनाती है और जैसे जैसे मंगल खून के रूप में अपना प्रभाव शरीर पर देता है उसी प्रकार की शक्ति मन की शक्ति के रूप में समझने में आने लगती है। अगर तामसी भोजन किया होता है तो खून के अन्दर राहु का प्रभाव बद के रूप में शामिल हो जाता है और वह अपनी शक्ति से मन को गंदा करता है दिमाग मे कुत्सित विचार आने लगते है तथा कोई भी गलत कार्य करने के बाद जो सोच रह जाती है वह केवल चिन्ता को पैदा करती है इससे ह्रदय के ऊपर अधिक भार पडने से हाई या लो ब्लड प्रेसर का रूप सामने आने लगता है।

जब हम कोई भी कार्य कर रहे होते है तो वह भी ग्रह के अनुसार ही सामने होता है। अगर गाडी की ड्राइव कर रहे है तो शुक्र केतु का रूप सामने होता है,और राहु जो सडक के रूप में होती है उस पर केतु शुक्र का आमना सामना होता रहता है। दिमागी विचार के रूप में गुरु अपनी शक्ति को देता रहता है और बुध के साथ राहु का दूसरा प्रभाव अगर चिन्ता के रूप में सामने होता है तो दिमाग सडक की वजाय अन्यत्र भटकने लगता है,इससे ही दुर्घटना होने के अन्देसे सामने आने लगते है। जब व्यक्ति चल कहीं रहा होता है और दिमाग कहीं भटक रहा होता है तो जो सामने होने को है उससे दिमाग अपने विस्तार रूपी केलकुलेशन को हटा देता है,और उसी समय ही दुर्घटना हो जाती है। शुक्र के ऊपर जो राहु का प्रभाव सामने आता है तो हमेशा दिमाग में सुन्दरता के प्रति विचार दिमाग में पनपते रहते है और शुक्र राहु का नशा भी जब व्यक्ति को परेशान करता है तो वह अपने चलने वाले कार्यों और विचारों को भूल कर एक अनौखी दुनिया में विचरण करने लगता है। उस विचरण के दौरान ही व्यक्ति के अन्दर जो भी लाभ हानि होती है,वह राहु और शुक्र के प्रति ही समझा जाता है। जब व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास होता है तो वह काफ़ी कुछ खो बैठता है या काफ़ी कुछ राहु की कृपा से प्राप्त कर चुका होता है।

हमारा पूरा जीवन ही ग्रह गणित में फ़ंसा है। जन्म से लेकर मौत तक ग्रह ही अपनी अपनी शक्ति से अपना अपना कार्य करवाते जाते है और हम आसानी से उन कार्यों को करते जाते है जब ग्रह अपना रूप अटकाने के लिये सामने लाते है तो हम अटक जाते है और जब ग्रह अपने अनुसार सही होते है तो हम उन्ही कार्यों को करते हुये आगे निकलते जाते है,जब हमारे कार्य पूरे होते है तो हम सुखी रहते है और जब हमारे कार्य पूरे नही होते है तो हम दुखी होते है। ग्रह गणित में रिस्ते नाते भी आते है,सूर्य से पिता या पुत्र को माना जाता है चन्द्रमा का विभिन्न रूप माता के सरीखे लोगों से सामने आने लगता है मंगल या तो भाई होता है या स्त्री जातक के लिये पति का रूप भी सामने लाता है बुध बहिन बुआ या बेटी के रूप में होती है और गुरु जो जीव के रूप में स्वयं भी होता है शुक्र पत्नी का कारक है स्त्री के लिये सजावटी कार्यों का कारक है शनि से कर्म का अन्दाज लिया जाता है या घर के बुजुर्ग लोगों के लिये भी शनिकी गिनती की जाती है। राहु को अन्दरूनी शक्ति के लिये जाना जाता है केतु के लिये केवल साधनो के रूप में ही जाना जाता है वैसे दोनो ही ग्रह छाया ग्रह के रूप में जाने जाते है केतु को नकारात्मक छाया और राहु को सकारात्मक छाया के लिये जाना जाता है। राहु केतु के बिना जीवन के अन्दर कोई भी कार्य पूरा नही होता है,कारण नही बनता है तब तक उसका निवारण भी नही बनता है कारण को बनाने वाला केतु होता है और निवारण के लिये अपनी शक्ति को देने वाला राहु होता है।