दसवां शनि और वैवाहिक जीवन

उदाहरण के रूप मे एक कुम्भ लगन की कुंडली को सामने लेते है जिसके अनुसार लगन कुम्भ है,तीसरे भाव मे राहु है,अष्टम भाव मे मंगल चन्द्र है यानी कन्या राशि है,शुक्र केतु सूर्य नवे भाव मे है,शनि बुध दसवे भाव मे है,गुरु बारहवे भाव मे है। लगनेश और सप्तमेश का मिलान ही शादी का रूप कहा जाता है। लगनेश शनि और सप्तमेश सूर्य इनके मिलने का रूप सभी को समझ मे आता है कि सुबह शाम के अलावा इनका मिलन होता ही नही है.कारण भी है कि जहां शनि की सीमा समाप्त होती है वही से सूर्य की सीमा चालू हो जाती है। दसवे भाव मे बैठा लगनेश शनि मंगल की वृश्चिक राशि मे है,शनि की तिर्यक नजर जिस भाव मे पडती है उसी भाव को काटने का काम करती है साथ ही जिस ग्रह के साथ पडती है उसे भी काटने का काम करती है। शनि कार्य को मेहनत वाला बना रहा है,शनि के द्वारा बाहरी सम्बन्धो को केवल चालाकी और अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये अपनाया जा रहा है,शनि के द्वारा अपने ही लोगो से झूठ बोलकर अनैतिक काम करने के लिये अपनी योजना को मूर्त रूप दिया जा रहा है,माता मन मकान वाहन मानसिक सोच मे केवल धन ही समझ मे आ रहा है इसके अलावा अपने को दिखावा करने की बात भी सामने आ रही है,शिक्षा मे भी केवल वही कार्य समझ मे आ रहे है जो अपने द्वारा खुद काम करने सीखे जाये। धन के लिये तीन कारक ही जिम्मेदार है सरकार धन से सम्बन्धित कम्पनिया जैसे बैंक आदि और धन को उगाहने वाले काम या धन की समीक्षा वाले काम। पिता का भी यही कार्य माना जा सकता है,या तो खाने पीने के सामान का या खुद के द्वारा लोन आदि के द्वारा चलाये जाने वाले काम या धन को धन कमाने वाले कार्य दूसरो को धन दिलवाकर कमीशन आदि के काम।सबसे अधिक फ़ायदा देने वाले कारको मे विदेश से सम्बन्धित लोग या विदेशी काम चाहे वह यात्रा से सम्बन्धित हो या किसी प्रकार के परिधान से सम्बन्धित काम हो। शादी विवाह के लिये खुद की बुआ या खुद की रिस्तेदार ही अपनी बात को आगे बढाने वाली मिलती है,शादी का समय उम्र का पच्चीसवा साल और इकत्तीसवा साल मिलता है,एक मानसिक रिस्ता उन्नीसवी साल से भी चलता हुआ माना जा सकता है। दो शादी होने का योग है।

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