वेदो के अंग

वेदो के छ: अन्ग बताये गये हैं:-
१-शिक्षा
जिसका उपयोग वैदिक वर्णों,स्वरों,और मात्राओं के बोध कराने मे होता है।वैदिक भाषा संस्कॄत है और इस भाषा को पढने के लिये सही उच्चारण की जरूरत पडती है,बिना सही उच्चारण के अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
२-कल्प
जो आश्वालयन,आपस्तम्ब,बौधायन,और कात्यायन,आदि ॠषियों के बनाये श्रौतसूत्र,गॄहसूत्र,धर्मसूत्र हैं,जिनमे यज्ञ के प्रयोग,मन्त्रों के विनियोग की विधि है।
३-व्याकरण
जो प्रकॄति और प्रत्यय आदि के उपदेश से पद के स्वरूप और उसके अर्थ का निश्चय करने के लिये उपयोगी हैं।
४-निरुक्त
जो पद विभाग,मन्त्र का अर्थ,और देवताओं के निरूपण द्वारा एक एक पद के सम्भावित और अवयवार्थ निश्चय करता है।
५-छंद
जो लौकिक और वैदिक पादों की अक्षर संख्या को नियमित करने,पाद,यति,और विराम आदि की व्यवस्था करने मे उपयोगी है।
६-ज्योतिष
जो यज्ञादि-अनुष्ठान के काल विशेष की व्यवस्था करता है। और कालपुरुष के सभी देवताओं की जानकारी बताता है,कि कौन सा देवता किस समय मे संसार मे अवतरित होगा,मनुष्य रूप मे या अदॄश्य रूप मे,या ग्रह आदि की अनवरत मिलने वाली किरणों के रूप मे.

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