लोगों का विश्वास जब भाग्य पर हो जाता है तो उनके अन्दर एक उत्कंठा बनने लगती है कि उनका भाग्योदय कब होगा,भाग्य की परिभाषा के अनुसार जब हमारे पूर्व कर्म हमें किसी भी अच्छे समय के लिये प्रेरित करने लगें और हमारी सोची जाने वाली समझी जाने वाली और की जाने वाली क्रिया सफ़ल होने लगे तो वह भाग्य की श्रेणी में मानी जाती है। इन क्रियाओं की असफ़लता ही दुर्भाग्य की श्रेणी में आने लगती है। जन्म कुंडली के अनुसार भाग्य का भाव नवां होता है,नवे भाव से हमारे पिता के लिये भी जाना जाता है और हमारे पूर्वजों और हमारी धार्मिकता के बारे में भी जाना जाता है,नवे से नवां भाव पंचम होता है जो हमारी बुद्धि का भाव माना जाता है,पंचम से नवम हमारा पहला भाव होता है जो हमारे शरीर और नाम रूप आदि के बारे में प्रदर्शित करता है। इन तीनो भावों यानी लगन पंचम और नवम के एक दूसरे की पूरक स्थिति में ही भाग्य का रूप समझा जा सकता है।
जिस प्रकार से आग जलाने के लिये तीन कारक ताप ईंधन और हवा की जरूरत होती है उसी प्रकार से जीवन की गति में ईंधन के रूप में शरीर ताप के रूप में बुद्धि और हवा के रूप में भाग्य का होना बहुत जरूर है,जैसे ईंधन के गीला रहने पर कितना ही ताप और हवा का प्रयोग किया जाये वह सुलग सुलग कर ही आग को पैदा कर पायेगा,उसी तरह से ईंधन कितना ही सूखा हो अगर हवा का और ताप का अभाव है तो वह आग को पैदा नही कर पायेगा। लेकिन ताप को प्रकट करने के लिये अगर हवा और ताप की समानता है,तो कैसा भी गीला ईंधन हो वह प्रयास करने पर जलने के लिये विवस हो जायेगा।
जन्म कुंडली में शरीर की बनावट अगर सही है और वह किसी भी मायने में किसी भी प्रकार के विकार से पीडित नही है तो वह बुद्धि को प्राप्त कर सकता है,जब बुद्धि को वह प्रबलता से प्रकट करेगा तो भाग्य नाम की हवा कितनी ही दूर हो वह अपने आप साथ देने लगेगी। आग के सिद्धान्त को समझ कर भाग्य की प्रबलता को भी सही रूप से समझा जा सकता है। लगन का मालिक पंचम भाव का मालिक और नवे भाव का मालिक अगर अपनी सामजस्यता को सही बनाये है तो व्यक्ति के जीवन में भाग्य अपने आप काम करने लगेगा,अगर भाग्य के मालिक को चन्द्रमा या शुक्र अपनी युति देता है तो भाग्य नामकी हवा गीली और आद्रता से पूर्ण होगी वह शरीर रूपी ईंधन और बुद्धि रूपी ताप को अपनी आद्रता से उस काबिल नही रखेगा कि वह सही समय पर सही कार्य कर सके। इसके अलावा अगर ताप को पैदा करने वाला ग्रह बुध है और ईंधन को पैदा करने वाला ग्रह शुक्र है,तो भाग्य नामकी हवा को प्रकट करने वाला ग्रह शनि अपने आप बन जायेगा.
मेष लगन की कुंडली के अनुसार मंगल मेष का स्वामी है,सूर्य बुद्धि भाव का मालिक है और गुरु इस राशि का भाग्य का मालिक है,जैसे ही तीनो ग्रहों का समानान्तर रूप से मिलना होगा भाग्य की चमक दिखाई देने लगेगी,उसी तरह से वृष लगन का स्वामी शुक्र है,इस राशि के पंचम का स्वामी बुध है और नवम का स्वामी शनि है तो इन तीनो की युति बनने पर भाग्य की प्रबलता अपने आप प्रकट होने लगेगी.यानी शुक्र रूपी ईंधन को बुद्धि रूपी आग से शनि रूपी हवा को प्राप्त होते ही व्यक्ति की जीवनी सही चलने लगेगी। इसी तरह से मिथुन लगन वालों के लिये बुध रूपी ईंधन से शुक्र रूपी ताप से तथा शनि रूपी हवा से भाग्य को चेताया जा सकता है,कर्क लगन में चन्द्र रूपी ईंधन को मंगल रूपी ताप से गुरु रूपी हवा को मिलाकर चेताया जा सकता है। सिंह लगन में सूर्य रूपी ईंधन को गुरु रूपी ताप से मंगल रूपी हवा मिलाकर भाग्य को चेताया सकता है। कन्या लगन में बुध रूपी ईंधन को शनि रूपी ताप से शुक्र रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। तुला लगन में शुक्र रूपी ईंधन को शनि रूपी ताप से बुध रूपी हवा को मिलाकर चेताया जा सकता है। वृश्चिक लगन में मंगल रूपी ईंधन को गुरु रूपी ताप को तथा चन्द्रमा रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। धनु लगन में गुरु रूपी ईंधन को मंगल रूपी ताप से तथा सूर्य रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। मकर लगन में शनि रूपी ईंधन को शुक्र रूपी ताप से तथा बुध रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। कुम्भ लगन में शनि रूपी ईंधन को बुध रूपी ताप के साथ शुक्र रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है। मीन लगन में गुरु रूपी ईंधन को चन्द्रमा रूपी ताप के साथ मंगल रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है।
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कन्या लगन में बुध रूपी ईंधन को शनि रूपी ताप से शुक्र रूपी हवा को मिलाकर भाग्य को चेताया जा सकता है NAHI SAMJA
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