ज्योतिष में योग,मन्दिर में भोग,अस्पताल में रोग,ज्योतिर्विद,पुजारी,और वैद्य के बस की बात ही होती है.
गुरु का राशि परिवर्तन (कुम्भ)
तुलसीदास जी ने एक चौपाई रामचरितमानस में लिखी है -"धर्म से विरति योग से ग्याना,ग्यान मोक्ष प्रद वेद बखाना",अर्थात जब व्यक्ति अपने को न्याय समाज जलवायु और मर्यादा में लेकर चलने लगता है तो उसके सामने हजारों कारण व्यस्त रहने के बन जाते है,जब वह अपने को कारण रूप से बने कार्यों के अन्दर व्यस्त कर लेता है तो वह एक योगी की भांति अपने जीवन को चलाने लगता है। उसे केवल भोजन अगर समय से मिल जाये तो ठीक है नही मिलता है तो ठीक है वह अपने को कार्यों में हमेशा ही लगाकर रखता है। कार्य की अधिकता के कारण और अपने शरीर को शरीर नही समझने पर इस प्रकार के जातक को एक योगी की भांति ही माना जा सकता है। जब व्यक्ति विरति यानी कर्म में अपने को लगा लेता है और संसार में केवल अपना कर्म ही धर्म के रूप में देखता है तो उसे योग अर्थात समय की पहिचान और कार्यों के दक्षता के साथ दुनियादारी के प्रति जानकार समझ लिया जाता है। उसे ज्ञानी की श्रेणी में रखा जाने लगता है और जब ज्ञान को खर्च करने के बाद उसका उपयोग किया जाता है,तो वह मोक्ष का अधिकारी माना जाता है। कुम्भ राशि वालों को कार्य के बाद प्राप्त फ़लों के रूप में माना जाता है,कालपुरुष के अनुसार यह राशि मित्रता और बडे भाई के रूप में माना जाता है। यह कार्य करने के बाद मिलने वाले फ़लों से भी माना जाता है,यह राशि घर बनाने और जनता से सम्बन्ध स्थापित करने के लिये प्राप्त की जाने वाली रिस्क से भी माना जाता है। यह भाव सन्तान के जीवन से चलने वाली जद्दोजहद से भी माना जा सकता है। पिता के द्वारा प्राप्त नगद आय से भी माना जाता है,पिता के द्वारा जोडे गये कुटुम्बी जनों के प्रति और उनसे मिलने वाली सहायता से भी माना जा सकता है। इस राशि का स्वभाव अपने कार्यों और पीछे की जिन्दगी से जुडे कार्यों से माना जाता है यानी जो कल किया है उससे मिलने वाले फ़लों से भी माना जा सकता है। यह राशि बडे रूप में हर कार्य को करना चाहती है छोटे रूप में कार्य करने पर यह केवल जनता के अन्दर रहकर जनता की सेवा करने के बाद और जनता से जुडी समस्याओं के प्रति अपनी वफ़ादारी को रखती है लेकिन इस प्रकार के जातकों का मोह कर्क राशि के छठे भाव में होने के कारण अन्दरूनी रूप से जनता के अन्दर की जानकारियां भी सही समय पर लेने की उत्कंठा रहती है,जब उन्हे जनता के अन्दर के भेद मिल जाते है तो उन्हे दुनियादारी में प्रसारित करने में भी अच्छा लगता है। इस राशि वाले अगर किसी प्रकार से मीडिया या इसी प्रकार के वायु वाले कमन्यूकेशन से जुड जाते है तो अपना अच्छा नाम कर लेते है और कभी कभी यह भी देखा गया है कि इनकी रुचि आलसी होने के कारण और पूर्व में अपने द्वारा फ़रेब आदि करने से गुरु के समय में दिक्कत भी आती है। इस राशि के दूसरे भाव में मीन राशि है गुरु ने इस राशि के दूसरे भाव में प्रवेश किया है,पिछले समय से चली आ रही अपमान मौत और जोखिम के लिये जो शनि बार बार अपनी शक्ति को दे रहा था उसके अन्दर गुरु के सामने आजाने से धन वाली और परिवार कुटुम्ब वाली परेशानियों में अन्त होने का समय माना जाता है,जो लोग पहले अपनी रिस्क के अनुसार जनता के धन को प्रयोग में लाने के बाद जनता के कर्जी बन गये थे और उन्हे कोई रास्ता चुकाने का नही मिल रहा था वह इस गुरु की कृपा से कोई न कोई रास्ता मिल जाता है चाहे वह रास्ता किसी प्रापर्टी को बेचने के बाद मिलता हो या कोई प्रापर्टी वाला कार्य करने के बाद मिलने वाले कमीशन आदि से जाना जाता हो। दूसरे भाव के गुरु की तीसरी द्रिष्टि मकान और रहने वाले साधनों पर पडती है यह वृष राशि का प्रभाव गुरु को दोहरे धन और धन के द्वारा बनायी जाने वाली सम्पत्ति से तथा घर आदि केरहने के स्थान के परिवर्तन से भी माना जाता है। जनता के अन्दर से ही धन को लेने के बाद जनता के लिये ही कमाने का उपक्रम भी सामने आने लगता है जो लोग शेयर बाजार कमोडिटी आदि का कार्य करते है उन्हे जनता से धन प्राप्त करने और जनता के लिये कमाकर देने के लिये अच्छा समय माना जा सकता है लेकिन अगर वही लोग अपने कमाये धन को अचल सम्पत्ति के रूप में इकट्ठा करते रहे तो आगे के समय उनके लिये अपनी औकात दिखाने का और अपने नाम को बनाने का सही अवसर भी माना जाता है। जो भी रिस्क लेने वाले साधन है उनके अन्दर यह राशि वाले अगर अपनी बुद्धि को जरा भी प्रयोग में लाते है तो उन्हे धन के कमाने से कोई रोक नही सकता है,इसके लिये उन्हे यह भी ध्यान रखना पडेगा कि मित्र भाव में विराजमान राहु उन्हे मित्रों के द्वारा कपट पूर्ण व्यवहार से भी बाधित करेगा,मित्रो से झूठ और फ़रेब से बचकर भी जातक को चलना पडेगा.समय समय पर अपने द्वारा कमाये गये लाभ को अगर वह किसी दूसरे की मंत्रणा से खर्च करता है तो उसे अचानक हानि का भी सामना करना पडेगा। इस गुरु की सप्तम द्रिष्टि शनि पर और कन्या राशि पर जाने से भी अगर वह अपना मोह नौकरी आदि के लिये करता है तो उसके द्वारा किये जाने वाले कोई भी प्रयास जोखिम तो ले सकते है लेकिन सभी जोखिम लेने के पीछे केवल अन्धेरा और ठंडक मिलने के ही आसार मिलते है,अगर हो सके तो इस गुरु के प्रभाव की ठंडी हवाओं से बचने के लिये दूसरे की नौकरी में कोई रिस्क लेना बेकार ही माना जायेगा। इस गुरु की नवीं द्रिष्टि कर्म भाव में जाने से और कर्म भाव में वृश्चिक राशि में होने से जो भी कबाड से जुगाड बनाने की कला होती है वह जातक के अन्दर आराम से काम करने लगती है और व्यक्ति अपने दिमाग से राख से भी सोना पैदा करने की जानकारी रख सकता है। उसके द्वारा ब्रोकर वाले कार्य मौत के बाद के धनो को प्रयोग में लेने के बाद उससे अधिक धन पैदा करने के कार्य पिछले समय में अपनी योग्यता से जो हानि प्राप्त की है उस योग्यता को प्रदर्शित करने और उसके प्रयोग करने के बाद गयी हुयी प्रतिष्ठा को हासिल किया जा सकता है।
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