धनुषकोटि की यात्रा ( नम्बू नाहि का मन्दिर)

मुझे समझ में तो आया था कि नम्बू नाहि ही कहा है,अगर किसी कारण से कोई गलत उच्चारण हो गया हो तो विद्वजन मुझे क्षमा करेंगे। यह मन्दिर भारत में इकलौता मंदिर माना जाता है,माता के मन्दिर में जाने पर पहले कुयें से हाथ पैर धोने पडते है पैर धोने के समय भी ध्यान रखना पडता है कि एडी धोयीं गयी है या नहीं। आगे पीछे दोनो तरफ़ से पैर धोकर माता के मन्दिर में प्रवेश किया जाता है। मन्दिर का पुजारी अपनी तरह से पूजा करवाता है अपने नाम को गोत्र को बोलना पडता है अपने नाम की राशि को बोलना पडता है और जन्म नक्षत्र को भी बोलना पडता है। इसके बाद पुजारी ले जाये जाने वाले प्रसाद को अपने हाथ में लेकर माता के सामने एक प्रार्थना करने के लिये खडा होता है और लगभग सौ बातें कहता है जो जीवन से सम्बन्धित होती है,उसके द्वारा बोली जाने वाली बातें लगभग पीछे के जीवन में गुजर ही चुकी होती है,जो लोग अपने नाम को जानते है लेकिन गोत्र को नही जानते है उनके लिये तथा जो लोग अपनी राशि को जानते है नक्षत्र को नही जानते है उनके लिये भी केवल साधारण पूजा ही होती है उनके लिये कुछ भी नही बोला जाता है,लेकिन नाम गोत्र नक्षत्र राशि को बताने के बाद पुजारी तमिल भाषा में बोलता चला जाता है। पूजा के बाद सभी लोग पास में खडे विशालकाय वट वृक्ष के पास गये,जहां पर कई पालने और कई धागे कपडे आदि बंधे थे,पूंछने पर पता लगा कि यह सभी लोगों की मान्यता होती है,और हर धागे के पीछे कोई न कोई मान्यता बंधी हुयी है।
मेरी पत्नी ने कोई मान्यता मांगी या नही लेकिन उस पेड के नीचे बंधे घंटे को जरूर बजाने लगीं थी,वहीं पर एक तरफ़ तीन जोडी लकडी की बनी खडांऊ रखी थी,उन खडाऊं में नुकीली कीलें लगीं थी,उन्हे स्पर्श करने पर लगता था कि बहुत तेज है,लोगों ने बताया कि वे ही खडाऊं पहिन कर यहां का पुजारी बैठ कर लोगों के लिये पूजा पाठ करवाता है और उसके पैरों में वे कीलें नही लगती है। उस पेड की लम्बाई चौडाई लगभग एक एकड में फ़ैली होगी,हर डाली से हजारों शाखायें निकल कर जमीन के अन्दर चली गयीं थी,तथा उसके अन्दर घुसने के बाद खोजना भी बडी मुश्किल का काम ही माना जा सकता है।

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