ज्योतिष में योग,मन्दिर में भोग,अस्पताल में रोग,ज्योतिर्विद,पुजारी,और वैद्य के बस की बात ही होती है.
कारकत्व सिद्धि
एक व्यक्ति को एक टोकरी मिट्टी दे दी जाती है और उससे कहा जाता है कि इस मिट्टी को सिद्ध करो,वह व्यक्ति उस मिट्टी को अपने दिमाग के अनुसार देश काल और परिस्थित के अनुसार विभिन्न तरीकों से सिद्ध करने के बाद जो रूप सामने करता है उस रूप को मिट्टी की सिद्धि का प्रतिफ़ल माना जाता है। लेकिन कारक की सिद्धि के अन्दर जो बातें मुख्य होती है उनके अन्दर जलवायु,रहने वाला स्थान,आसपास के लोग,खुद की भावनायें,कर्म करने का तरीका,और मानसिक विचार अगर सात्विक है तो वह अपने उद्देश्य में सफ़ल हो जाता है,और जिस भावना से उस मिट्टी को सिद्ध किया जायेगा,वह मिट्टी उसी के अनुसार कार्य करने में सफ़ल होगी।
किस प्रकार से मिट्टी को सिद्ध किया जा सकता है ?
दी गयी मिट्टी को सिद्ध करने के लिये व्यक्ति के अन्दर पहले मानसिक सोच होनी चाहिये,फ़िर उसके दिमाग में कोई सकरात्मक तस्वीर होनी चाहिये,फ़िर उस सकारात्मक तस्वीर में मिट्टी के अन्दर शक्ति मिलाने की कला होनी चाहिये,कला के बाद उसे लोगों को बताने का तरीका होना चाहिये,उससे जो सकारात्मक कारण बन कर तैयार हुआ है उसे देख कर जो भी देखे उनके अन्दर भी सकारात्मक विचार उत्पन्न हो,उस बनाये गये सकारात्मक कारक का रूप कुछ ऐसा भेद पैदा करे,जिससे आगे अगर किसी को एक टोकरी मिट्टी दी जावे तो वह उससे और कोई नया रूप तैयार करे,उस मिट्टी के अन्दर भावना और भावनाओं को बताने की सुन्दरता और कला भी समायोजन हो,व्यक्ति के अन्दर कार्य करने और उस मिट्टी को सुरक्षित रखने का पूरा ज्ञान होना भी आवश्यक है,उस मिट्टी के रूप के बन जाने के बाद भय हर्ष उमंग भावुकता अनन्त विचारों की कल्पना भी होनी जरूरी है,इसके बाद जो भी कारक बना है वह किसी ना किसी प्रकार से जनकल्याण के हित में हो। इन सब बातों के लिये जो मुख्य कारक सामने आयेंगे उनके अन्दर चन्द्र से सोचना,सूर्य से रूप प्रदान करना,मंगल से शक्ति का भरा जाना,बुध से उस कारक का खुद के द्वारा अपना बखान करना,गुरु से उस कारक के द्वारा जो ज्ञान मिलता है उसकी भावना का विकास कैसे और आगे हो सकता है की जानकारी मिलना,शुक्र से उसके अन्दर कलात्मक और सुन्दर लगने वाली छवि का विकास होना,शनि से उसे रखने और उस मिट्टी के अन्दर काम करने की मेहनत का सामजस्य होना,राहु से उसके देखने के बाद भय,उमंग हर्ष उन्माद आदि का प्रभाव होना और केतु से जनकल्याण की भावना से उस कारक का प्रयुक्त होना माना जा सकता है।
भावनात्मक विचार से कारकत्व का निर्माण
रामायण में गोस्वामी जी ने एक चौपाई लिखी है,-"जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरति देखी तिन तैसी",यह शरीर भी एक मिट्टी की भांति ही है,इसके अन्दर पृथ्वी से मिट्टी,पानी,आग,हवा,और जीवन का संचार मिला है। इसी प्रकार से गुरुगोरखनाथ ने स्वर्ण बनाने की क्रिया का बखान किया है-"अगरस मगरस गन्धक पारा,धूनी देकर गोरख झारा,सुन चेला यह कंचन का खेला",तो स्वर्ण भी मिट्टी से ही बना है,और लोहा भी मिट्टी से बना है,लोहा और सोना एक ही स्थान से बनते है वह स्थान भी पृथ्वी ही है। सोने के अन्दर १५९ तत्व और लोहे के अन्दर १५८ तत्व है,केवल एक तत्व की कमी से सोना सोना है और लोहा लोहा । मिट्टी को रूप परिवर्तित करते समय उसके अन्दर पानी मिलाकर गूंथा गया,फ़िर उसका रूप बनाकर निखारा गया,उसके बाद गर्मी देकर पकाया गया और कलात्मक रूप में उसका मूर्ति बनाने का सांचा तैयार किया गया,उस सांचे से चाहे तो एक भयानक राक्षस की मूर्ति बनाकर भय का संचार कर दिया जाये,चाहे तो उसके अन्दर मनमोहक बच्चे की मूर्ति बनाकर वात्सल्य की भावना को भर दिया जाये,चाहे तो एक योद्धा की मूर्ति बनाकर उन्माद भर दिया जाये,अथवा उस मूर्ति के अन्दर कामक्रिया को दर्शाकरशारीरिक उत्तेजना को पैदा कर दिया जाये। इसी प्रकार से अगर उस मिट्टी के अनुसार जलवायु मिल जाती है तो उसके द्वारा विष का पौधा लगाकर कितनों को मारा जा सकता है और उसी मिट्टी में दवाई का पौधा लगाकर उससे कितने लोगों को मौत के मुंह से बचाने का काम हो सकता है। यह सब कारण कारकत्व सिद्धि से ही सम्भव है।
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1 comment:
आपका समझाने का तरीका बहुत अच्छा है आपके ब्लॉक को
ओर पड़ना चाहता हु पर अब ऐसा हो नही पा रहा है क्योंकि अब आपकी ब्लॉक को चलाने वाला कोई नही है और न कोई पोस्ट
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