क्या कैमिकल बरसात का योग है?

नासा ने बडे जोर शोर से प्रचार किया है कि साढे सात सौ साल बाद एक बार कैमिकल युक्त बरसात होती है,और उस बरसात के दुष्परिणाम कैंसर जैसी बीमारियों को देता है। यह बात चन्द्रमा के चारों तरफ़ बने घेरे के अनुसार बताई गयी है। क्या होता है यह चन्द्रमा का घेरा,इसका पता पहले कर लेते है,पृथ्वी के धरातल पर जब नमी अधिक हो जाती है और नमी का उठान ऊपर की तरफ़ नही हो पाता है तो रात के समय चन्द्रमा के आसपास एक पीले रंग का घेरा दिखाई देने लगता है,इस घेरे को पुराने जमाने में पार्स कह कर सम्बोधित किया जाता था,जब यह पार्स चन्द्रमा के बिलकुल नजदीक हुआ करता था तो बरसात का होना अधिक समय बाद बताया जाता था,और जब चन्द्रमा के दूर में पार्स होता था तो पानी का बरसना नजदीक मालुम होता था। इस बात को आप जब वायुयान में यात्रा कर रहे हो और वायुयान पृथ्वी की सतह से ऊपर जा चुका हो तो आप समझ सकते है,नीचे की जो नमी युक्त सतह दिखाई देती है वह अगर सफ़ेद रंग की होती है तो वह बिना कैमिकल के पानी की भाप की शक्ल की होती है,और वही अगर लाल या कत्थई रंग की होती है तो वह कैमिकल और विभिन्न प्रकार के धरातलीय अपशिष्ट पदार्थों को साथ लिये होती है,यह नमी जब ठंडक में बदल जाती है तो धरातल पर पानी की बूंदों के रूप में बरसती है। इन बूंदो के अन्दर पहले से मौजूद अपशिष्ट पदार्थ होते है वे नंगे शरीर से छूने के कारण वैक्टीरियाओं के प्रकोप से शरीर को आच्छादित कर सकते है और शरीर में विभिन्न बीमारियों वाले कीटाणु प्रवेश कर जाते है,इसका असर किसी भी प्रकार से पीने वाले पानी के साथ नहाने के पानी के साथ छत पर रखी खुली टंकियों के साथ होने से दिक्कत देने वाला हो सकता है। क्या इस प्रकार का संयोग आगे हो सकता है इसके लिये आइये समय की कुंडली को देखते हैं।
वर्तमान में गुरु जो हवा का कारक है वह कालचक्र में कुम्भ राशि में विद्यमान है,कुम्भ राशि का स्थान कालचक्र के ग्यारहवे भाव का कारक है,और यह स्थान के कारकों में पृथ्वी के दक्षिण-पश्चिम एरिया को दर्शाता है। इस एरिया में आस्ट्रेलिया भारत सिंगापुर म्यांमार बंगला देश आदि देश आते है,लेकिन पृथ्वी की धुरी से अगर देखा जाये तो अफ़्रीका सहित कई देशों के भाग इस गुरु की चपेट में आजाते है। वायु मंडल के अनुसार ही समय की गति को मापा जा सकता है,कारण बिना वायु मंडल के प्रभावित हुये कोई भी घटक अपनी कमी या बढोत्तरी नही कर सकता है। पानी का का कारक चन्द्रमा है और गुरु के साथ लम्बे समय तक पानी का असर देने वाला शुक्र भी जलीय कारणों का मानक कहा जा सकता है। वर्तमान में शुक्र बुध और सूर्य एक ही राशि यानी गुरु की मीन राशि में है,यह राशि भी आसमान की राशि कही जाती है,गुरु अपने अंश से तीस अंश तक किसी भी ग्रह को तुरत बल देने का कारक माना जाता है। बुध का रूप गोल और शुक्र का रूप चितकबरा मालुम होता है,सूर्य गुलाबी आभा लेकर अपना रंग प्रदर्शित करता है,आप आसमान की तरफ़ देखें तो आपको कहीं कहीं रुई जैसे फ़ाये आसमान में तैरते दिखाई दे रहे है और कहीं कहीं पर हल्के गुलाबी रंग के धुयें की शक्ल का एक वातावरण बना हुआ दिखाई दे रहा है। मरुस्थलीय इलाकों और पठारी इलाकों में एक धुन्ध सी छायी हुयी है,इस धुन्ध का कारण एक और माना जा सकता है कि उत्तर दिशा में मंगल की स्थिति मिलती है,इस मंगल की स्थिति के कारण वातावरण में गर्मी भी मिलती है,अक्सर लोग कहने लगे है कि अबकी बार सर्दी पडी ही नही है,इसका कारण भी पिछले अक्टूबर से आगे आने वाली मई के आखिरी तक मंगल का स्थान पानी की राशि में नीच का प्रभाव लेकर रुक गया है,और इस मंगल की गर्मी जो पानी वाले क्षेत्रों में अधिक मिलती है का रूप भी सामने आ चुका है,लेकिन मंगल अपने स्थान से अधिक अपने से चौथे सातवें और आठवें भाव को देखता है,इस प्रकार से प्रभाव वाले क्षेत्र भूमंडल के पश्चिमी इलाके,भूमंडल के दक्षिणी इलाके और गुरु के स्थान वाले इलाके जिनके अन्दर आस्ट्रेलिया भारत सिंगापुर बांगलादेश म्यामार आदि देश है वे ही अधिक प्रभावित होते है। लेकिन नासा की इस भविष्य वाणी को इसलिये फ़ेल होना पडेगा क्योंकि उसके द्वारा घोषित २० और २८ तारीख को मंगल की डिग्री काफ़ी अधिक है,और अधिक गर्मी बरसात नही करती है,गुरु को उत्तेजित करने के बाद केवल आंधी का रूप लेती है। शुक्र अगर अपना रूप दिखायेगा भी तो वह चीन और सोवियत रूस के ऊपर विराजमान है,और अधिकतर अपनी ठंडी का रुख ग्रेट ब्रिटेन में दिखा सकता है।

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