- वाक सिद्धि:- इस सिद्धि केलिये जातक के माता पिता परिवार आसपास का समाज और बाद में स्कूल शिक्षक सहपाठी मित्रवर्ग और उसके बाद पति या पत्नी होने वाली संतान काम करने वाले स्थान में साथ कर्म करने वाले लोग,वाकसिद्धि में सहायता देते हैं। इस सिद्धि को प्राप्त करने के लिये जिव्हा से जो भी बोला जाता है,उस बोली के अन्दर कोई हिंसा नही होती है,किसी का भी जी नही दुखाया जाता है,तो वाकसिद्धि जल्दी हो जाती है,उसके बाद दन्त धोवन,जिव्हा की सफ़ाई,गले की सफ़ाई,नेती आदि करने से वाणी के अन्दर पैदा होने वाले विकारों का अन्त हो जाता है,नीम की दातुन और लालमिर्च का सेवन भी वाकसिद्धि में सहायक होता है लेकिन लालमिर्च को शोधित करने के बाद ही प्रयोग करना चाहिये,बिना शोधित लाल मिर्च तामस को पैदा करती है,और शरीर में गर्मी को उत्पादित करती है। मिठाई और खटाई का कम से कम सेवन करना चाहिये,चिल्ला कर बोलना,जोर से हंसना,सर्दी की ऋतु में कानों को नही बांधना आदि गले की खराबियां पैदा कर देती है और वाणी के अन्दर जो तेज होता है वह क्षीण होता चला जाता है। इसके बाद ब्रह्म-विद्या का सस्वर जाप और माता सरस्वती के नाम का एक हजार बार सुबह और एक हजार बार रात को सोने के समय नाम लेने से वाकसिद्धि मिल जाती है,उस समय जो भी कहा जाता है वह सौ फ़ीसदी पूरा होता है। ऐसे लोगों को कोई बुरा विचार मन में नही लाना चाहिये और कोई हिंसा वाली बात किसी को भी नही कहनी चाहिये,भले ही वह कितना ही कठोर या हिंसक हो।
- कर्मसिद्धि:- बचपन से लेकर अन्त तक कभी बुरे कर्म करने का मानस नही बनाना चाहिये,जो भी किया जाये वह देश समाज और परिवार के लिये सोच कर किया जाये। कार्य के समय उत्तेजना नही करनी चाहिये जो भी करना है उसे पहले से सोच कर करना चाहिये,जो नही आता है उसे पूंछ लेने में कोई बुरी बात नही होती है,कोई आसपास बताने वाला नही है तो अपने आप से पूंछ लेना भी एक प्रकार से अच्छी बात मानी जाती है,जो भी महापुरुष कहते है उनके अनुसार ही कार्य करना चाहिये,शराब पीकर तामसी पदार्थ खाने के बाद और झूठ बोल कर किये जाने वाले काम कभी सफ़ल नही हो सकते है। कार्य से अगर किसी प्रकार की हिंसा होती है तो भी कार्य के पूरा नही होने में सन्देह होता है,कार्य को समय से करना चाहिये,कभी अधिक और कभी कम करने से कार्य पूरा नही होता है। उचित अनुचित का भेद जानकर किया जाने वाला कार्य जरूर सफ़ल होता है,यही कर्म सिद्धि कही जाती है। कर्म सिद्धि के लिये भी दोनो अलावा सिद्धियों की आवश्यकता होती है।
- भाव सिद्धि:-व्यक्ति की भावना अगर हिंसक नही है वह हर बात में जीव कल्याण की सोचता है,उसे किसी भी चीज का मोह नही है वह जो भी है उसी के अन्दर संतोष करने वाला है,वह सभी प्राणियों को समान भाव से देखता है,छल कपट और तृष्णा मन के अन्दर नही है,उसको भाव सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है। इस सिद्धि की प्राप्ति से वह प्राणी मात्र का कल्याण केवल सोचने के द्वारा ही कर सकता है।
ज्योतिष में योग,मन्दिर में भोग,अस्पताल में रोग,ज्योतिर्विद,पुजारी,और वैद्य के बस की बात ही होती है.
योग सिद्धि
योग सिद्धियों के अन्दर निम्न लिखित सिद्धियां आनी चाहिये:-
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