शादी एक अटूट सम्बन्ध है,शादी का मतलब होता है दो आत्माओं का मिलन और दोनो का आजीवन साथ निभाने का योग। ज्योतिष के अनुसार गुरु शादी सम्बन्ध का मालिक होता है,गुरु ही पति पत्नी के रिस्ते को अपनी स्थिति के अनुसार कायम रखता है,और गुरु के द्वारा ही गोचर के समय विभिन्न भावों में विचरण करने पर विभिन्न प्रकार के सुख और दुख पति पत्नी को झेलने पडते है,गुरु का असर अन्य ग्रहों के साथ होने पर पति पत्नी के रिस्तों के बीच में फ़र्क पैदा होता है और गुरु के अनुसार ही बिगडे रिस्ते या तो बनते है या फ़िर हमेशा के लिये खत्म हो जाते है,गुरु का बल ही जीवन में रिस्तों के लिये जाना जाता है। लेकिन शुक्र की राशियां शुक्र का साथ शुक्र के नक्षत्रों में गुरु का भेद बजाय आत्मिक सम्बन्ध के दिखावे का सम्बन्ध बन जाता है,अधिकतर मामलों में भौतिकता का प्रतीक,पति या पत्नी ने जहाँ भी भौतिकता का प्रभाव कम होता देखा अपने अपने स्वार्थ की खातिर सटकने में ही अपनी भलाई समझते है। वैसे कहा भी गया है कि शुक्र को अगर गाय मानते है तो जिधर ही हरी घास दिखी उधर की तरफ़ अपना रुख कर लिया,गुरु के लिये कहा गया है कि कितना ही ज्ञानी हो लेकिन भीख तो मांगनी ही पडेगी,अपनी सिद्धियों के बल पर मांगी जाये,चाहे वह ईश्वर से या ईश्वर के बंदों से गुरु को तो मांगना ही पडेगा। गुरु ने ही अपनी मांगने की प्रक्रिया के अन्दर राजा हरिश्चन्द्र जैसे सम्राट को कंगाल बनाकर शमशान की रखवाली तक करवाली थी,राजा नल को दर दर का भटकाकर कितने आक्षेप विक्षेप लगवा दिये थे। लेकिन शुक्र का अपना अहम होता है उसकी केवल एक आंख होती है,जिधर उसकी दिशा बनी उधर ही चल देता है,उसे मरना जीना नही दिखाई देता है। गुरु का स्वार्थ धर्म से रहना होता है,शुक्र का स्वार्थ आराम से रहना होता है,संसार में सभी आराम करना चाहते है,कोई महल में आराम से रहता है और कोई शमशान में लेट कर आराम कर रहा होता है। शुक्र की दशा में व्यक्ति कितना ही खराब हो मौज की जिन्दगी जीने लगता है,और गुरु की दशा में कितना ही मौज में रहने वाला व्यक्ति होता सिवाय घर और परिवार की जिम्मेदारियां और रिस्ते नातों की बजह से लुटता ही रहता है। भांग खाकर ख्वाब देखने वाले को भी गुरु की उपाधि में देखते है,वह एक ही स्थान पर बैठ कर आराम से आसमान की सैर करता है,जबकि दही जो शुक्र का है को खाकर बिना आराम की तलब लगे भी आराम करता है। तो देखना यह पडता है कि आजके जमाने में इस शादी सम्बन्ध को तोडने में कौन उत्तरदायी है ? क्या गुरु सम्बन्धों को बनाकर तोडता है अथवा शुक्र सम्बन्धो को बनाकर चलाता है।
गुरु उपदेश देता है कि सम्बन्धों को बनाकर चलो,अपने परिवार माता पिता भाई बहिन को समझ कर चलो,जो भी तुम्हारे मातहत है उनका पालन पोषण करो,जो बडे है उनको सम्मान से देखो,जहाँ बडे बुजुर्ग हों वहाँ पर कायदे से रहना सीखो,किसी मंदिर में या धार्मिक स्थान में प्रवचन हो रहे हो उन्हे ध्यान से सुनो और जो बातें प्रवचनों में कही जाती है उन्हे जीवन के अन्दर प्रयोग में लाओ,साफ़ रहो स्वस्थ रहने के लिये योग करो,कम खाओ और अधिक काम करो,किसी का माल मुफ़्त में मत खाओ,किसी की वस्तु को ऐसे वैसे मत देखो,कोई गाली दे तो चुपचाप सहन कर लो,हिंसा के सामने अहिंसा प्रदर्शित करो,आदि बातें गुरु के द्वारा मिलती है,लेकिन सम्बन्ध बिना शुक्र के बनाये जीवन भी नही चलना है,और शुक्र के साथ रहने से यह सब बातें चलने वाली नही है,गुरु कहता है कि माता पिता की बात को मानो,गुरु ने सम्बन्ध बनाया और शादी करवा दी,शादी के बाद पत्नी जो शुक्र का रूप है घर के अन्दर आयी और जो उसने देखा कि घर के अन्दर तो काफ़ी गहमागहमी है,अगर सभी के लिये काम करने पडे तो चौबीस घंटे काम करने के बाद भी गुजारा नही होना है,जो काम करना था वह तो पिता के घर पर कर लिया,जो खाना बनाना पढना लिखना था वह तो सब पिता के यहाँ कर लिया,अब अगर उससे अधिक करने के लिये शादी हुयी है तो बेकार है यह शादी,वह तो पति के घर पर आराम करने के लिये आयी है,उसे भी पता है कि लोग अपनी अपनी पत्नी को हवाई जहाज से सैर करवाने के लिये ले जाते है हनीमून मनाते है और एक एक साल घर से बाहर रहकर पत्नी का मूड गृहस्थी के लिये बनाते है,यह सब न होकर यहाँ तो केवल काम और काम ही करना है। वह शाम को पति से मिलती है,थोडा सा नाटक करने की जरूरत है,वह अपनी एक एक बात पति से कहती है,माताजी यह कह रही थी पिताजी ने ऐसे कहा था ननद ने यह कहा था देवर ने यह कहा था,पति भी सुनता तो है लेकिन वह जानता है कि जो बातें हुयी है वे होनी भी चाहिये,अगर लोग कहेंगे नही तो घर के अन्दर के काम उसकी पत्नी को आयेंगे कैसे,वह आधी बात को सुनता है और आधीबात को छोड कर चल देता है। सुबह होती है रात को काफ़ी बातें करने के बाद पति की नींद पूरी नही हुई पिताजी को आघात लगा कि काम की छुट्टी हो गयी,माताजी को लगा कि नई बहू आयी है और वह अगर इसी तरह से चलती रही तो रोजाना की चाय उसे ही बनानी पडेगी,वह तो रात को यह सोच कर सोई थी कि सुबह उसकी बहू चाय लेकर सामने खडी होगी और मनुहार करने के बाद कहेगी,-"माताजी उठो,चाय पीलो",लेकिन यहाँ तो पासा ही उल्टा पडा है,सुबह की पहली सीढी झल्लाहट से चालू हुयी और जब सुबह ही झल्लाहट हुयी तो शाम तक तो कुछ ना कुछ होना है ही। माताजी का पारा ननदों ने देखा तो उनकी भी चढ बन गयी,वे भी हर काम के अन्दर मीन मेख निकालने लग गयीं,भाभी से किसी ना किसी बात में पंगा लेना तो है ही,बेचारी भाभी का भी बुरा हाल था,वह भी सोच रही थी कि अगर सास को सही घर चलाना है तो वह पुचकारेगी और पूँछेगी कि कहो बहूरानी क्या बात है क्यों उदास हो,शाम को पति देव के आते ही झक झक चालू हो गयी,सास के तो करम फ़ूट गये,ससुर के लिये कमीने लोग मिले,ननदों के लिये जमाने की उतरी भाभी मिली,देवर के लिये घर तोडने वाली बकवास औरत मिली,गुरु का खेल एक ही दिन में समाप्त,दशा बदलते तो देर लगती है लेकिन यहाँ तो दशा लगी भी और बहुत जल्दी से उतर भी गयी। शाम को लडके ने आकर घर का हाल देखा,और फ़ौरन ही अपने ससुर को फ़ोन मिलाया,कि जल्दी से आकर ले जाओ,नही तो इस घर के अन्दर आतिशबाजी फ़ूटने वाली है,रोजाना अखबार की खबरें पढ कर उसे इतना तो ज्ञान हो ही गया था कि अगर किसी तरह से उसकी पत्नी ने अपनी उंगली भी घायल कर ली तो कानून उसे चार सौ अट्ठानबे के अन्दर अन्दर ही करेगा,वैसे किसी लडाई झगडे में कोई घर वाला जमानत करवाने वाला तो मिलता है लेकिन इस कानून के अन्दर तो रिस्तेदार भी जमानत करवाने से घबडाते है कहीं बहू का बाप उसके ऊपर भी कोई केश ना दायर कर दे,एक नही दो नही पूरे छ: महिने के लिये अन्दर जाना पडता है,आजकल जेलों के अन्दर भी अलग अलग माहौल है नेतागीरी जेल के अन्दर भी खूब चलती है,वहाँ पर लम्बरदार को अगर लम्बरदारी नही दी तो हालत बदसूरत से भी गयी गुजरी होगी,इधर घर की कोई बहिन माँ भाभी खूबसूरत है तो जेल के अन्दर काम करने वाले लोगों की नजर तो हमेशा भेडिया की नजर से भी तीखी होती है उन्हे भी नये माल की तलाश हमेशा होती है,इन बातों से घबडा कर पति देव ने फ़ोन किया,पत्नी के पिता आये और फ़ौरन अपनी बेटी को एक सूटकेश में ले गये,उन्हे भी पता था कि बाकी का सामान तो पुलिस वाले खुद लेकर आजायेंगे। हुआ भी वही पत्नी के पिताजी सीधे पत्नी को लेकर थाने पहँचे और पत्नी की हालत थानेदार को दिखाई थानेदार से तयपायी हुयी और एक पिक-अप पुलिस वालों से भरी चली आयी,एक साथ सभी घर वालों को लेजाकर थाने की हवालात में बन्द कर दिया सुबह को चालान काट दिया और सीधा रास्ता दिखा दिया सेन्ट्रल जेल का,वाह रे गुरु खूब कराया सम्बन्ध खूब बनाये रिस्ते शुक्र की करामात दो मिनट में सभी अन्दर,किसी को भी जमानत करवाने के लिये भी फ़ुर्सत नही मिली। दहेज का सामान पूरा नही पुलिस को मिल पाया था,उसे वसूल करने के लिये थानेदार ने अदालत से रिमांड मांग लिया,जेल से फ़िर थाने में आ गये,रात को दारू पीकर थानेदार ने अपनी झरपट दिखा दी,जरा सी देर में बरसों के खाये पिये हाथ पैर ठंडे कर दिये,सौदा तय हुआ कि पाँच दिन का रिमाण्ड लिया है,और इसकी एवज में इतने लाख का खर्चा है,अगर नही दिये तो कल तेरी बहिन का रिमांड है,मरता क्या नही करता पुलिस वालों के साथ एक जानकार के यहाँ गया,घर को गिरवी रखा,शुक्र का मामला था,गुरु को गाली दे रहा था,कैसा करवाया रे सम्बन्ध ! सभी कुछ तबाह,कुछ भी नही बचा,जो भी देखता,वही कहता देखो साले ने दहेज मांगा होगा इसलिये पुलिस ने पकडा है,अब उनको पतिदेव आपबीती कैसे सुनाते,मामला ले देकर रफ़ादफ़ा हुआ,थानेदार को पूरी मेहनत मिलने के बाद जमानत भी छुट्टी के दिन जज के घर पर ही जाकर हो गयी। सभी घर पर आगये,कोर्ट का केश चालू हो गया,आठ साल कोर्ट के चक्कर लगाये,गुरु ने न्याय दिया कि पत्नी को एक मुस्त बीस लाख रुपया देदो और उससे तलाक ले लो,वाह रे गुरु! पहले सम्बन्ध करवाया फ़िर बरबाद किया घर के अन्दर खाने के दाने नही छोडे,और अब न्याय दे रहा है,अगर यही था तो पहले क्यों नही कह दिया था कि गुरु और शुक्र में कभी नही बनती,गुरु को बदला ही लेना था तो वह शुक्र से सीधा लेता,पति देव को और उसके परिवार वालों को क्यों बीच में फ़ंसाया,ऐसी क्या गल्ती हो गयी थी,यह बात गुरु के कारण नही हुयी थी,बात के बीच में चन्द्रमा आ गया था,चन्द्रमा भी तो माँ होती है,बाकी सूर्य भी आ गया था,शुक्र की सूर्य के सामने चलती नही है लेकिन चन्द्रमा के कारण सूर्य भी परेशानी में आजाता है,बचा खुचा था वह बुध ने पूरा कर दिया,और जब इन बातों का समागम हुआ तो राहु ने अपनी एक झटके में पूरी की पूरी उतार कर रख दी।
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