एक व्यक्ति का रंग काला है और वह अपने शरीर को इस प्रकार से सजाता है कि वह देखने में चित्ताकर्षक लगने लगता है,यही बात एक मकान के लिये मानी जाती है,मकान खूब मजबूत बना है,और उसको देखने पर वह भयानक लगता है लेकिन उसी को चित्ताकर्षक रंगों से पोत कर सजा दिया जाता है तो वह अच्छा लगने लगता है,एक तस्वीर बिना किसी रंगों के तालमेल से बनायी जाती है,वह देखने में भद्दी लगती है लेकिन उसी तस्वीर को अगर रंगो के तालमेल से बनाकर यथा उचित रंगो से सजाया जाता है तो वह मनभावन लगने लगती है। स्जाने संवारने की क्रिया को ही रूप सिद्धि के अन्तर्गत माना जा सकता है। इसी रूप सिद्धि के कारण बडे और छोटे होने का आभास होने लगता है इसी रूप सिद्धि के कारण वैश्या अपने को सजाने की कला से धन और वैभव इकट्ठा कर लेती है,और इसी रूप सिद्धि के कारण नौटंकी के कलाकार अपने विभिन्न रूप सजाकर दर्शकों का मन मोह कर धन और प्रसिद्धि इकट्टी कर लेते हैं। रूप सिद्धि के अन्दर जो बातें है वे कहीं ढूंढने नही जाना पडता है,उनके लिये खुद के अन्दर देखने परखने की क्रिया को आरम्भ करने की जरूरत होती है।
एक प्लास्टिक की गुडिया को इतना सजा दिया कि वह किसी भी मायने में बहुत ही सुन्दर लगे और एक सोने के टुकडे को बिना सजा हुआ कोई भी रूप दे दिया जाये तो वह अपना मोल तो रखेगा लेकिन गढाई की कला से सुसज्जित नही होने के कारण वह भद्दा ही लगेगा,लेकिन वह प्लास्टिक की गुडिया अपना रूप सबके लिये भावनात्मक रूप से और रूपसिद्धि के कारण पसंद किया जायेगा। जीवन के प्रत्येक कार्य में रूप सिद्धि का ज्ञान आवश्यक है,भोजन के मामले में वह महंगे होटलों में देखने को मिलता है,पहिनने के मामलों में वह सलीके वाली दुकानों के अन्दर मिलता है,इस प्रकार से रूप सिद्धि को बिना प्राप्त किये सभी सिद्धियां बेकार ही मानी जा सकती है,लेकिन रूप सिद्धि का प्रभाव भी जन कल्याण की भावना से होने पर वह इतिहास में लिखा जाता है,और रूप सिद्धि के होने पर भी जनकल्याण की बजाय अहितकारी और मारक है तो उसके बारे में कहा जा सकता है,-"विष रस भरा कनक घट जैसें".
No comments:
Post a Comment