ज्योतिष में योग,मन्दिर में भोग,अस्पताल में रोग,ज्योतिर्विद,पुजारी,और वैद्य के बस की बात ही होती है.
गुलिका का फ़लकथन
गुलिका का भावात्मक अर्थ पाने के लिये भचक्र की राशियों का प्रभाव भी देखना जरूरी होता है,भचक्र की राशि अगर गुलिका के विपरीत गुणों वाली है तो गुलिका नुक्सान की जगह पर फ़ायदा देने वाली मानी जायेगी। गुलिका की शिफ़्त बिलकुल शनि जैसी होती है,और गुलिका की चाल भी शनि जैसी मानी जाती है। गुलिका कन्या मिथुन में बलकारी हो जाती है,मीन वृश्चिक में बढोत्तरी देने वाली हो जाती है,तुला में हर काम देर से करवाती है,कर्क में परिवार का सुख देना बन्द कर देती है,मकर में कठोर परिश्रम करवाती है,कुम्भ में मित्रों से दूर रखती है,मेष में कपट और चालाकी में जाने का मानस देती है,मंगल के साथ कसाई बन जाती है,गुरु के साथ सन्यासी जैसा जीवन देती है,बुध के साथ लिखने पढने का काम देती है,शुक्र के साथ सभी कुछ देती है लेकिन मानसिक शांति का टोटा देती है। चन्द्रमा के साथ हमेशा टेंसन देने वाली होती है। वर्षफ़ल से गुलिका जब मृत्यु भाव में आजाती है तो अजीब वस्तुओं से धन प्रदान करवाती है,नवें भाव में गुलिका वर्षफ़ल से जाती है तो घूमने फ़िरने में ही पूरा साल बिताने को मजबूर करती है,केतु के साथ भटकाव और राहु के साथ मृत्यु वाले उपक्रम करने को बल देती है। राहु शुक्र के साथ वैश्या-वृत्ति की तरफ़ मानस बनाती है,शुक्र केतु के साथ वैश्याओं का दलाल तक बना देती है,शनि केतु के साथ दलाली वाले काम करने का बल देती है,शनि केतु और शुक्र के साथ मिलकर कपडे सिलने से लेकर एक्सपोर्ट इम्पोर्ट करने का काम देती है,गुरु शनि के साथ मिलकर पैकिंग का काम देती है,टूर और ट्रेवलिंग का काम करने के लिये चतुर्थेश से सम्बन्ध बनाने के बाद देती है,पुरुष की कुंडली में तीसरे भाव में बुध के साथ आने पर झूठा और मक्कार बना देती है,स्त्री की कुंडली में वर्षफ़ल से आने पर तिरस्कार देती है। सभी भावों को देखकर ही गुलिका का कथन करना चाहिये,कभी एक भाव और ग्रह को देखकर गुलिका का फ़लकथन नही करना चाहिये।
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