इस तस्वीर में आप को एक ही नही कई लोग धरती पर और बेंचों पर सोते हुये दिखाई दे रहे है,यह एक सार्वजनिक विश्राम स्थान है और यह केवल उन्ही के लिये बनाया गया जो यात्रा में होते है और उनको कुछ समय के लिये ठहरना होता है। ईश्वर ने हम सभी मनुष्यों जीव जन्तुओं को विश्राम के स्थल नियत किये होते है,जल चर पानी के अन्दर अपना विश्राम करते है लेकिन उनका स्थान भी नियत होता है,लगातार साल भर एक जगह पर भरा पानी भी बरसात के दिनो में या तो बढ कर पास की नदी नाले में चला जाता है अथवा वह फ़ैल कर चारों तरफ़ चला जाता है,और अपनी सीमा को बढा लेता है,अथवा वह गरमी केदिनों में अपने फ़ैलाव वाले स्थान को कम कर लेता है अथवा बिलकुल ही सूख कर अपना स्थान वायु में बना लेता है। जिस समय पानी फ़ैलता है तो पानी के अन्दर रहने वाले जीवों के लिये फ़ैलने का स्थान बढ जाता है और जब स्थान संकुचित हो जाता है तो जीव कम स्थान पर अपना जीवन जीने के लिये मजबूर होते है और जैसे ही पानी अत्याधिक गर्मी से सूख जाता है और अपना स्थान वायु मंडल में बना लेता है वहां रहने वाले जीव तडप तडप कर मर जाते है,फ़िर कभी पानी बरसता है कहीं से उनके जीवन का संचार प्रकृति के द्वारा तय किया जाता है और वापस उसी स्थान पर नये नये जीव पैदा होने लगते है। उसी प्रकार से थल यानी पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के साथ होता है,लेकिन थल कभी सिकुडता नही है,वह जितना होता है उतना ही रहता है,उसके सिकुडने का मतलब होता है धरती का खत्म हो जाना,अगर धरती खत्म होती है तो जीव जो थल केनिवासी है वे एक ही स्थान पर रहकर आपस में खाने और रहने के लिये अपना जीवन दांव पर लगा लेते है। यह बात उन स्थानों के लिये भी मानी जाती है जहां पर खाने पीने के लिये पानी और रहने के लिये अच्छे आवास का प्रयोग उत्तम होता है,जैसे शहरों में रहने वाले लोग अपने जीवन यापन के लिये वहीं पर अपना अपना आवास बना लेते है और अपने काम करने के स्थान पर आराम से चले जायें इसलिये उनके रहने का स्थान अधिक कीमती होता चला जाता है। उसी स्थान पर जहां कोई कमाई का साधन नही होता है वहां पर कोई रहने को तैयार नही होता है और जहां जैसी जगह पडी है वैसी ही पडी रहती है। योग का मतलब होता है जोडना,और जब कोई एक या अधिक वस्तुयों का जुडना होता है तो वह योग कहलाता है जैसे एक रिस्तेदार दूसरे से तभी मिल पाता है जब उसका योग बनता है बिना योग बने वह किसी प्रकार से आपस में मिल नही पाता है। अक्सर सभी कहते है कि सोने के लिये घर और खाना बनाने के लिये रसोई का स्थान उत्तम रहता है लेकिन जब हम किसी लम्बी यात्रा पर होते है तो रहने के लिये होटल या धर्मशाला को देखते है और खाने के लिये होटल को देखते है,और खाना और रहना हमारे लिये घर जैसा नही हो पाता है। अगर कोई कह दे कि तुम्हे आज एक कोढी व्यक्ति के साथ सोना है तो कोई भी उसकी बदबू के कारण उसके पास सोना पसंद नही करेगा,लेकिन अगर उपरोक्त चित्र की तरह से अगर आप यात्रा में जा रहे है और बहुत ठंड है और आपको सिर छुपाने के लिये एक ऐसे स्थान पर रात भर रहना पडता है जहां पर कोढी और स्वस्थ मनुष्य एक साथ इकट्ठे हो तो आपको उस स्थान पर निद्रा की अधिकता के कारण वहां पर कोढी के साथ सोना भी पड सकता है। यह एक योग का रूप है। अक्सर कहा जाता है कि वैश्या स्त्री से कोई भी शादी के लिये तैयार नही होगा,लेकिन जैसे ही कोई आदमी आपके पुत्र के लिये रिस्ता लाता है और उस रिस्ते के कराने के लिये सामने वाले के पास कोई बडा लोभ होता है तो वह उस रिस्ते को आपके बेटे के साथ करवा जायेगा,उसके बाद जब शादी हो जायेगी और आप केवल देखने के लिये उस लडकी की तस्वीर को ही देखेंगे,आपको पता तो चलेगा नही,उसके बाद जब आपकी बहू घर पर आकर आपके नाम को लगातार नीचा गिराने की कोशिश करेगी तो आप सोचेंगे कि आपके साथ विश्वास घात हुआ है लेकिन तब आपके पास के ही रास्ता रहता है कि या तो जीवन भर उस रिस्ते को झेलो या फ़िर कोर्ट केश या अन्य तरीके से उस रिस्ते कोखत्म करो,यह भी योग देखा जाता है कि आपके घर मे सभी बेकार आदमी है और आपके घर मे कोई उत्तम बहू आजाती है तो वह सभी बेकारी को खत्म करने के लिये अपने सभी प्रयास करेगी,और जब आपको दिखाई देगा कि आपकी बहू ने काया कल्प कर दिया है तो आप उस योग को बहुत अच्छा मानेंगे,और लेकिन उस वैश्या की प्रकृति वाली बहू के आने से आपके घर का योग खराब हुआ माना जायेगा। इन्ही कारणो से ज्योतिष में योगों का निर्माण ज्ञानी लोगों ने किया और सभी के सामने प्रदर्शित करना शुरु कर दिया कि आपकी कुण्डली में इस प्रकार का योग है इसलिये इस समय को इस प्रकार से निकालने पर यह योग समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार से हम सभी अपने अपने अनुसार खाना खाते है कभी हमारे घर का खाना कैसा बनता है और कभे कैसा बनता है,लेकिन समय पर जैसे हम उत्तर भारत के रोटी खाने वाले लोग है और किसी यात्रा या प्रयोजन से दक्षिण भारत में जाते है तो हमे रोटी कहीं नसीब नही होती है हमे वहां पर चावल खाकर ही अपनी क्षुधा पूर्ति करनी पडती है यह भी एक योग की तरह से ही होता है।
सामने की फ़ोटो में एक सत्तर साल की वृद्धा को भोजन करने के लिये जब रामेश्वरम में कहा गया तो वे केले के पत्ते में चावल और सांभर को खाकर कहने लगी कि यह योग मैने अपनी उम्र की पिचहत्तरवीं साल में प्राप्त किया है,नही तो हम हमेशा अपने घर की थाली में बिना केले के पत्ते पर ही रखे भोजन किया करते थे। केले के पत्ते का महत्व उन्हे पता ही नही था,और पता भी होता तो उत्तर भारत में हर जगह पर केले के पत्ते तो सुलभ नही होते है साथ में अनाजों के अधिक उत्पादन के कारण वहां पर केवल दाल रोटी और सब्जी पूडी के अलावा और कुछ बनता भी नही है,चावल का तो तभी उपयोग होता है जब किसी प्रकार से खीर या खिचडी का बनाया जाना हो तो वरना कहा जाता है कि भोजन में चावल तो पेट भरने के बाद खाये जाते है लेकिन पानी की अधिकता वाले स्थान में रहने वाले लोग आराम से चावल का भोजन भी करते है और उसे अच्छी तरह से पचा भी लेते है जबकि उत्तर भारत के लोग अगर चावल को लगातार खाते रहें हो तो उन्हे बुढापे में जरूर वात वाली बीमारी हो जाती है,अथवा उन्हे चलना फ़िरना तक दूभर हो जाता है। यही हाल मशालों के लिये जाना जाता है कि उत्तरी भारत में खूब चरपरे भोजन खाने का रिवाज है और दक्षिण में मिर्च का मामूली सा प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के भोजन का भी योग होता है और बिना योग के भोजन भी नही मिलता है। कभी कभी यह भी पोजीशन आजाती है कि खूब पूजा पाठ वाले व्यक्ति को अपनी भूख की शान्ति के लिये आमिष का भोजन करना पडता है,जैसे पुराणों में कथा आती है कि राजा नल बहुत ही पूजा पाठ वाले थे और जब उनके ऊपर कष्ट आये तो उन्होने भी मछलियों को भोजन के रूप में प्रयोग करके अपनी क्षुधा को समाप्त किया था।यह भी एक योग होता है एक खूब धर्म पर चलने वाला आदमी कभी कभी धोखे से ही आमिष को सेवन कर लेता है,जैसे कि एक यात्री राजधानी में यात्रा कर रहा है,उसे अंग्रेजी समझ में आती नही,उससे वेटर आकर खाने के लिये पूंछता है वह केवल हां या ना में सिर हिलाना जानता है। बैरा आकर उसे आमिष की थाली दे जाता है और वह आराम से खाने लगता है जब उसके सामने हड्डी का टुकडा निकलता है तो वह अपने साथ या आमने सामने वालों से पूंछता है तो उसे पता लगता है कि उसने आमिष खाया है वह कर क्या सकता है खा तो लिया है यह भी एक योग के कारण ही होता है।
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