ज्योतिष में योग,मन्दिर में भोग,अस्पताल में रोग,ज्योतिर्विद,पुजारी,और वैद्य के बस की बात ही होती है.
कन्या का सूर्य
बरसात का मौसम और क्वार का महिना,खेती किसानी के काम में जूझते लोग उन्हे चिन्ता होती है कि रबी की फ़सल के लिये खेतों की जुताई गुडाई अच्छी तरह से हो जानी चाहिये,जितनी धूप खेत खा जायेंगे उतनी अच्छी रबी की फ़सल पैदा हो जायेगी। इधर खरीफ़ की कटाई उधर रबी की तैयारी भारी काम पडता है किसान के ऊपर कितनी ही मशीने खेती के काम के लिये बना ली जायें लेकिन इस महिने में तो मेहनत करनी है। गुडाई मशीन से सही हो ही नही सकती है,कारण मशीन को पता नही होता है कि खेत की नमी कहां तक है और खेत के किस भाग तक कहां तक नमी फ़ैली हुयी है,जैसे जैसे किसान का हल खेत की छाती को चीरता है वैसे वसे उसे पता लगता जाता है कि खेत के इतने भाग में नमी है अधिक है इतने भाग में नमी कम है,जहां नमी कम होती है उस भाग को जोत कर पाटे से एक सा करने के बाद उसे ढक दिया जाता है जिससे नीचे से नमी ऊपर की तरफ़ आजाये और जैसे ही खेत में बीज डाला जाये वह कार्तिक के सूर्य की गर्मी को पाकर समान्तर रूप से उग जाये और अपने अनुसार नमी को खेत से प्राप्त करने के बाद फ़सल को अधिक से अधिक पैदा करने में सक्षम हो जाये। सूर्य जो आसमान का राजा है उसका असर इन दिनो कुछ कम हो जाता है,रोजाना के कामो के अन्दर सूर्य अपनी पूरी रोशनी देने से सक्षम नही हो पाता है,जैसे ही वह अपनी धूप को बिखेरना चाहता है कहीं से बादल की टुकडी आकर धूप को रोक लेती है,किसान को हल चलाते हुये कुछ समय के लिये तो आराम मिलता है लेकिन थोडी सी देर में ही वही चिलचिलाती धूप फ़िर से किसान को पसीने से तर करने लगती है,इधर जल्दी होती है कि खेत को अगर समय पर खोल कर जोता नही गया तो आने वाली नमी अपना रास्ता नही पकड पायेगी और बोया गया बीज जैसा का तैसा ही जमीन में रखा रह जायेगा,उसकी मेहनत और बीज दोनो बेकार हो जायेंगे। कन्या का सूर्य बहुत मेहनत करवाता है,चाहे वह खेत की किसानी काम हो या सरकार के द्वारा मजदूरी देने वाले काम हो। कन्या राशि को कर्जा दुश्मनी बीमारी का घर कहा जाता है,इस राशि से सेवा वाले कार्यों को भी देखा जाता है,जो भी सेवा करना जानता है उसके अन्दर कन्या राशि के कोई न कोई गुण अवश्य होते है,चाहे उसका लगनेश या राशि पति या नवांश का कारकत्व कन्या राशि का क्यों न हो। कन्या राशि के गुण जातक के अन्दर नही होते तो वह अपने रोजाना के कामो को पूरा कभी कर ही नही सकता था। वह आलसी होता और अपने कामो को करने के लिये किसी न किसी की सहायता को चाहने वाला होता,कई जगह देखने को मिला भी है कि बच्चा कुर्सी पर बैठा है और अपने माता पिता से कह रहा है पानी पिला दो,माता पिता भाग भाग कर बच्चे का काम कर रहे है और बच्चा आलसी बना बैठा है। कन्या राशि में सूर्य की सिफ़्त भी कुछ अच्छी नही कही गयी है,कारण सूर्य जो पिता का कारक होता है सूर्य जो शरीर में हड्डियों की और शरीर के ढांचे की निर्माण क्रिया में अपनी योग्यता को देता है उसके अन्दर कोई न कोई कमी रह ही जाती है,और वह कमी पूरी जिन्दगी के लिये दिक्कत देने वाली हो जाती है। अगर कोई कमी न भी रह पायी तो पिता या पुत्र के लिये या सरकार के लिये पूरी जिन्दगी की लडाई भी हो सकती है,इस लडाई का महत्व भी बहुत अधिक तब बढ जाता है जब पुत्र को पिता की औकात नही मिल पाती है और पिता अपने पुत्र के सुख से वंचित रह जाता है। रामनरायन के चारों पुत्र अगर क्वार के महिने में पैदा हुए और चारों ही पिता से अलग जाकर रहने लगे तो उसके अन्दर रामनरायन का कोई दोष नही है,दोष तो कन्या के सूर्य का ही माना जायेगा,और दूसरा अगर रामनरायन का दोष माना जाये तो उनका दोष इतना ही है कि उन्होने अपने खेत को कुरितु में जोता खोदा और बीज को बोया। दिसम्बर जनवरी की ठंड में रामनरायन को अपनी पत्नी से अधिक लगाव होता था और परिणाम में सितम्बर से अक्टूबर के मध्य में उनके पास पुत्रों का आना होता था। और जब संतान का पैदा होना हो उसी समय महिना ज्वर का हो तो और अधिक दिक्कत हो जाती है,जिस महिने में संतान का पैदा होना और उसी महिने में रामनरायन की पत्नी को ज्वर वाली बीमारी जापे की कमजोरी और सर्दी गर्मी के मिलन से होने वाली कफ़ वाली बीमारियां तो वे अपने बच्चों को दूध पिलायेंगी वह भी बु्खार और कफ़ से मिक्स ही होगा,परिणाम में शुरु से ही शरीर में गर्मी का प्रकोप और बुखार की अधिकता ने सभी के दिमागों के अन्दर केवल पिता और पिता की जायदाद को ही अपना अधिकार माना पिता से ही अपने लिये हर हक को पाने का अधिकार रखा पिता पूरी जिन्दगी अपने बच्चों के लिये नौकर बनकर काम करता रहा और बच्चे केवल यही मानते रहे कि पिता का कार्य केवल अपने बच्चों की तीमारदारी ही करना है। वैसे इसका असर और अधिक तब और दिखाई देता है जब सूर्य का चलन कन्या से तुला की तरफ़ बढना हो,उस समय के बच्चे जो पैदा होते है वे भी अपने पिता से दूरिया किसी न किसी बात पर बना ही लेते है उसके अन्दर बडे पुत्र का दूर रहना बहुत ही जरूरी हो जाता है,वह पिता से किसी भी बात में सहमत नही होता है,उसे अपने पिता के कार्यों से चरित्र से और पिता की भावनाओं से काफ़ी नफ़रत होती है,वह नफ़रत चाहे घर के मामलों में हो या बाहर के कार्यों से जुडी हो। तुला और कन्या की संधि वाली राशि के पिता का नाम कन्या और तुला की संधि से ही मिलता है जैसे राम प्रकाश,या केवल प्रकाश ही मान लिया जाये,यह तुला और कन्या की संधि के हिसाब से सही पाया जाता है दो पुत्र और एक पुत्री का अधिकतर योग मिलता है और कार्यों के अन्दर वही माने जाते है जो जनता से सम्बन्धित हो या किसी न किसी प्रकार से तकनीकी या रक्षा सेवा से जुडे हों। बडा पुत्र अपनी मर्जी का मालिक तभी से बन जाता है जैसे ही अपनी शादी को करने के बाद पत्नी के सानिध्य में आजाता है और छोटा पुत्र साथ रहने की कोशिश करता है,और अपने लिये पिता से ही सभी साधन जुटाने के लिये कोशिश में रहता है,खुद के करने के लिये काफ़ी काम होते है लेकिन पिता के धन को प्रयोग करना और ऐस करना ही मुख्य कारण को मानता है। छोटे पुत्र को हर काम में जल्दी होती है वह शादी भी जल्दी करता है कमाई भी जल्दी करने की कोशिश करता है और पत्नी से संतान को भी जल्दी पैदा करने की कोशिश करता है,कहीं सौ में से एक की सिफ़्त बदल जाये वह बात अलग है लेकिन निन्न्यानवे में यह जरूरी मिलता है। छोटे पुत्र की पत्नी को घर की जिम्मेदारी सम्भालने की जरूरत होती है वह काम भी करती है लेकिन अपने मायके का पूरा ख्याल करती है,जब उसे मायके वालों से फ़ुर्सत मिलती है तो वह अपने घर के लिये यानी ससुराल के लिये काम करने की कोशिश करती है। उसे चिन्ता यही रहती है कि उसके लिये अधिक से अधिक मिल जाये पता नही उसके सास ससुर कब बडे के लिये अपनी योजना को बना दे और जो भी उन्होने जोडा है उसे अपने बडे पुत्र को दे दें,उसकी ननद के लिये भी काफ़ी द्वेष भाव मन में रहता है उसका भी कारण होता है कि बडा भाई ननद के सानिध्य में ही रहना पसंद करता है,उसकी पत्नी को उसके साथ वनवास मिल जाता है,वह अपने बच्चों के पालन पोषण के लिये अपनी मूल्यवान जिन्दगी को दाव पर लगा देती है,बचपन से कोई न कोई कुटैव लगा रहने से वह अपने लिये तम्बाकू गुटका या कोई खाने पीने वाली चीज की आदत पाल लेती है नही तो दवाइयां उसकी आदत में आजाती है। कन्या का सूर्य सरकारी तंत्र में भी काफ़ी हद तक जिम्मेदार माना जाता है वह किसान को खेती वाले कामो मे लगा देता है तो सरकार को कर्मचारियों की हदबंदी और कार्य क्षमता के लिये लडाई शुरु करवा देता है वह लडाई चाहे सेवा करने वाले लोगों के प्रति हो या किसी प्रकार की तकनीकी और धन वाली समस्या से जुडी हो। अखबारों में समाचार आने लगते है कि आज अमुक स्थान पर डाक्टरों ने हडताल कर दी है तो कल वकीलों ने हडताल कर दी है,कहीं बैंक कर्मचारियों ने हडताल शुरु कर दी है,यह सब बातेम होती देख जनता के अन्दर एक विक्षोभ पैदा हो जाता है कि क्या कन्या के सूर्य के समय ही यह सब होना जरूरी है।
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