श्रीदेवी का पाठ (शुक्रवार)

शमशान कालिका काली भद्रकाली कपालिनी,गुह्यकाली महाकाली कुरुकुल्ला विरोधिनी।
कालिका कालरात्रिश्च महाकाल नितम्बिनी,कालभैरव भार्या च कुल वर्त्म प्रकाशिनी॥
कामदा कामिनी कन्या कमनीय स्वरूपिणी,कस्तूरी रस लिप्तांगी कुंजरेश्वर गामिनी॥
ककार वर्ण सर्वांगी कामिनी कामसुन्दरी,कामार्ता कामरूपा च कामधेनु: कलावती॥
कांता कामस्वरूपा च कामाख्या कुल कामिनी,कुलीना कुल वत्यम्बा दुर्गा दुर्गति नाशिनी॥
कौमारी कुलजा कृष्णा कृष्ण देहा कृशोदरी,कृशांगी कुलाशांगी च क्रींकारी कमला कला॥
करालास्य कलारी च कुल कांतापराजिता,उग्रा उग्रप्रभा दीप्ता विप्र चित्ता महा बला॥
नीला घना मेघनादा मात्रा मुद्रा मिताऽमिता,ब्राह्मी नारायणी भद्रा सुभद्रा भक्त वत्सला॥
माहेश्वरी च चामुण्डा वाराही नारसिंहिका,वज्राम्गी वज्रकंकाली नृमुण्ड स्त्रग्विणी शिवा॥
मालिनी नर मुण्डाली गलद्रक्त विभूषना,रक्त चंदन सिक्तांगी सिंदूरारूण मस्तका॥
घोर रूपा घोर द्रंष्ट्रा घोरा घोरतरा शुभा,महाद्रंष्ट्रा महामाया सुदन्ती युग दन्तुरा॥
सुलोचना विरूपाक्षी विशालाक्षी त्रिलोचना,शारदेन्दु प्रसन्नस्या स्फ़ुरत स्मेराम्बुजेक्षणा॥
अट्टहासा प्रफ़ुल्लास्या स्मेर वक्त्रा सुभाषिणी,प्रफ़ुल्ल पद्म वदना स्मितास्या प्रियभाषिणी॥
कोटराक्षी कुल श्रेष्ठा महती बहुभाषिणी,सुमति: मतिश्चण्डा चण्ड मुण्डाति वेगिनी॥
प्रचण्डा चण्डिका चण्डी चर्चिका चण्ड वेगिनी,सुकेशी मुक्त केशी च दीर्घकेशी महाकचा॥
प्रेत देह कर्णपूरा प्रेत पाणिसुमेखला,प्रेतासना प्रिय प्रेता प्रेत भूमि कृतालया॥
शमशान वासिनी पुण्या पुण्यदा कुल पण्डिता,पुण्ड्यालया पुण्यदेहा पुण्य श्लोका च पावनी॥
पूता पवित्रा परमा परा पुण्य विभूषणा,पुण्य नाम्नी भीति हरा वरदा खंग पाशिनी॥
नृमुण्ड हस्ता शस्त्रा च छिन्नमस्ता स्नासिका,दक्षिणा श्यामला श्यामा शांता पीनोन्नतस्तनी॥
दिगम्बरा घोर रावा सृक्कान्ता रक्त वाहिनी,महारावा शिवा संज्ञा नि:संगा मदनातुरा॥
मत्ता प्रमत्ता मदना सुधा सिन्धु निवासिनी,अति मत्ता महामत्ता सर्वाकर्षण कारिणी॥
गीतप्रिया वाद्यरता प्रेत नृत्य परायणा,चतुर्भुजा दस भुजा अष्टादश भुजा तथा॥
कात्यायनी जगन्माता जगती परमेश्वरी,जगदबन्धुर्जगद्धात्री जगदानन्दकारिणी॥
जगज्जीय मयी हैमवती माया महालया,नाग यज्ञोपवीतांगी नागिनी नागशायनी॥
नागकन्या देवकन्या गान्धारी किन्नरेशवरी,मोह रात्री महारात्री दरुणाभा सुरासुरी॥
विद्याधारी वसुमती यक्षिणी योगिनी जरा,राक्षसी डाकिनी वेदमयी वेद विभूषणा॥
श्रुति स्मृतिर्महा विद्या गुह्यविद्या पुरातनी,चिंताऽचिंता स्वधा स्वाहा निद्रा तन्द्रा च पार्वती॥
अर्पणा निश्चला लीला सर्व विद्या तपस्विनी,गंगा काशी शची सीता सती सत्यपरायणा॥
नीति: सुनीति: सुरुचिस्तुष्टि: पुष्टिधृति: क्षमा,वाणी बुद्धिर्महालक्ष्मी लक्ष्मीर्नील सरस्वती॥
स्तोत्रस्वती स्तोत्रवती मातंगी विजया जया,नदी सिन्धु: सर्वमयी तारा शून्य निवासिनी॥
शुद्धा तरंगिणी मेघा लाकिनी बहु रूपिणी,सदानन्द मयी सत्या सर्वानन्द स्वरूपिणी॥
स्थूला सूक्ष्मा सूक्ष्मतरा भगवत्यनुरूपिणी,परमार्थस्वरूपा च चिदानन्द स्वरूपिणी॥
सुनन्दा नन्दिनी स्तुत्या स्तवनीया स्वभाविनी,रंकिणी टंकिणी चित्रा विचित्रा चित्र रूपिणी॥
पद्मा पद्मलया पद्ममुखी पद्मविभूषणा,शाकिनी हाकिनी क्षान्ता राकिणी रुधिरप्रिया॥
भ्रान्तिर्भवानी रुद्राणी मृडानी शत्रु मर्दिनी,उपेन्द्राणी महेशानी ज्योत्स्ना चेन्द्र स्वरूपिणी॥
सूर्यात्मिका रुद्रपत्नी रौद्री स्त्री प्रकृति: पुमान,शक्ति: सूक्तिर्मती भुक्तिर्मुक्ति: पतिव्रता॥
सर्वेश्वरी सर्वमाता सर्वाणी हर वल्लभा,सर्वज्ञा सिद्धिदा सिद्धा भाव्या भयापहा॥
कर्त्री हर्त्री पालयित्री शर्वरी तामसी दया,तमिस्त्रा यामिनीस्था न स्थिरा धीरा तपस्विनी॥
चार्वंगी चंचला लोल जिव्हा चारु चरित्रिणी,त्रपा त्रपावती लज्जा निर्लज्जा ह्रीं रजोवती॥
सत्ववती धर्मनिष्ठा श्रेष्ठा निष्ठुर वादिनी,गरिष्ठा दुष्ट संहर्त्री विशिष्ठा श्रेयसी घृणा॥
भीमा भयानका भीमानादिनी भी: प्रभावती,वाकीश्वरी श्रीर्यमुना यज्ञकर्त्री यजु:प्रिया॥
ऋक सामाथर्व निलया रागिणी शोभनस्वरा,कलकण्ठी कम्बुकण्ठी वेणुवीणापरायणा॥
वशिनी वेष्णवी स्वच्छा धात्री त्रिजगदीश्वरी,मधुमती कुण्डलिनी ऋद्धि: सिद्धि: शुचि स्मिता॥
रम्भोर्वशी रती रामा रोहिणी रेवती मघा,शंखिनी चक्रिणी कृष्णा गदिनी पद्मनी तथा॥
शूलिनी परिघास्त्रा च पाशिनी शारंग पाणिनी,पिनाक धारिणी धूम्रा सुरभि वन मालिनी॥
रथिनी समर प्रीता वेगिनी रण पण्डिता,जटिनी वज्रिणी नीला लावण्याम्बुधि चन्द्रिका॥
बलि प्रिया महा पूज्या पूर्णादैत्येन्द्र मन्थिनी,महिषासुर संहत्री वासिनी रक्तदंतिका॥
रक्तपा रुधिराक्तांगी रक्त खर्पर हस्तिनी,रक्तप्रिया मांस रुचिरासवासक्त मानसा॥
गलच्छोणित मुण्डालि कण्ठमाला विभूषणा,शवासना चितान्त:स्था माहेशी वृष वाहिनी॥
व्याघ्रत्वगम्बरा चीर चेलिनी सिंह वाहिनी,वामदेवी महादेवी गौरी सर्वज्ञ भाविनी॥
बालिका तरुणी वृद्धा वृद्धमाता जरातुरा,सुभ्रुर्विलासिनी ब्रह्म वादिनी ब्राह्माणी मही॥
स्वप्नावती चित्रलेखा लोपा मुद्रा सुरेश्वरी,अमोघाऽरुन्धती तीक्ष्णा भोगवत्यनुवादिनी॥
मन्दाकिनी मन्दहासा ज्वाला मुख्यसुरान्तका,मानदा मानिनी मान्या माननीय मदोद्धता॥
मदिरा मदिरोन्मादा मेध्या नव्या प्रसादिनी,सुमध्यानन्त गुणिनी सर्वलोकोत्तमोत्तमा॥
जयदा जित्वरा जेत्री जयश्रीर्जय शालिनी,सुखदा शुभदा सत्या सभा संक्षोभ कारिणी॥
शिवदूती भूतिमती विभूतिर्भीषणानना,कौमारी कुलजा कुन्ती कुलस्त्री कुलपालिका॥
कीर्तिर्यशस्विनी भूषां भूष्या भूत पति प्रिया,सगुणा निर्गुणा धृष्ठा निष्ठा काष्ठा प्रतिष्ठिता॥
धनिष्ठा धनदा धन्या वसुधा स्वप्रकाशिनी,उर्वी गुर्वी गुरुश्रेष्ठा सगुणा त्रिगुनात्मिका॥
महाकुलीना निष्कामा सकामा कामजीवना,कादेवकला रामाभिरामा शिवनर्तकी॥
चिन्तामणि: कल्पलता जाग्रती दीन वत्सला,कार्त्तिका कृत्तिका कृत्या अयोध्या विषमा समा॥
सुमंत्रा मंत्रिणी घूर्ना ह्लादिनी क्लेश नाशिनी,त्रैलोक्य जननी ह्रष्टा निर्मांसा मनोरूपिणी॥
तडाग निम्न जठरा शुष्क मांसास्थि मालिनी,अवन्ती मथुरा माया त्रैलोक्य पावनीश्वरी॥
व्यक्ताव्यक्तानेक मूर्ति: शर्वरी भीम नादिनी,क्षेमकंरी शंकरी च सर्व सम्मोहन कारिणी॥
ऊर्ध्व तेजस्विनी क्लिन्ना महातेजस्विनी तथा,अद्वैत भोगिनी पूज्या युवती सर्वमंगला॥
सर्व प्रियंकरी भोग्या धरणी पिशिताशना,भयंकारी पापहरा निष्कलंका वशंकरी॥
आशा तृष्णा चन्द्रकला निद्रिका वायु वेगिनी,सहस्त्र सूर्य संकाशा चन्द्रकोटिसमप्रभा॥
वह्रि मण्डल मध्यस्था सर्व तत्व प्रतिष्ठिता,सर्वाचारवती सर्वदेवकन्याधिदेवता॥
दक्षकन्या दक्षयज्ञनाशिनी दुर्गतारिणी,इज्या पूज्या विभीर्भूति: सत्कीर्तिर्ब्रह्म रूपिणी॥
रम्भीरुश्चतुरा राका जयन्ती करुणा कुहु:,मनस्विनी देवमाता यशस्या ब्रह्मचारिनी॥
ऋद्धिदा वृद्धिदा वृद्धि: सर्वाद्या सर्वदायिनी,आधाररूपेणी ध्येया मूलाधारनिवासिनी॥
आज्ञा प्रज्ञा पूर्ण मनाश्चन्द्र मुख्यानुकूलिनी,वावदूका निम्ननाभि: सत्या सन्ध्या द्रढव्रता॥
आन्वीक्षिकी दंडनीतिस्त्रयी त्रिदिव सुन्दरी,ज्वलिनी ज्वालिनी शैल तनया विन्ध्यवासिनी॥
अमेया खेचरी धैर्या तुरीया विमलातुरा,प्रगल्भा वारुणीच्छाया शशिनी विस्फ़ुलिंगिनी॥
भुक्ति मुक्ति सदा प्राप्ति: प्राकाम्या महिमाणिमा,इच्छा सिद्धिर्विसिद्धा च वशित्वीर्ध्व निवासिनी॥
लघिमा चैव गायत्री सावित्री भुवनेश्वरी,मनोहरा चिता दिव्या देव्युदारा मनोरमा॥
पिंगला कपिला जिव्हा रसज्ञा रसिका रसा,सुषुम्नेडा भोगवती गान्धारी नरकान्तका॥
पांचाली रुक्मिणी राधाराध्या भीमाधिराधिका,अमृता तुलसी वृन्दा कैटभी कपटेश्वरी॥
उग्रचण्डेश्वरी वीरजननी वीर सुन्दरी,उग्रतारा यशोदाख्या देवकी देवमानिता॥
निरंजना चित्रदेवी क्रोधिनी कुलदीपिका,कुल वागीश्वरी वाणी मातृका द्राविणी द्रवा॥
योगेश्वरी महामारी भ्रमरी विन्दु रूपिणी,दूती प्राणेश्वरी गुप्ता बहुला चामरीप्रभा॥
कुब्जिका ज्ञानिनी ज्येष्ठा भुशुंडी प्रकटा तिथि:,द्रविणी गोपिनी माया कामबीजेश्वरी क्रिया॥
शांभवी केकरा मेना मूषलास्त्रा तिलोत्तमा,अमेय विक्रमा क्रूरा सम्पतशाला त्रिलोचना॥
सुस्थी हव्यवहा प्रीतिरुष्मा धूम्रर्चिरंगदा,तपिनी तापिनी विश्वा भोगदा धारिणी धरा॥
त्रिखंडा बोधिनी वश्या सकला शब्दरूपेणी,बीज रूपा महा मुद्रा योगिनी योनि रूपिणी॥
वज्रेश्वरी च जयिनि सर्वद्वन्द्व क्षयंकरी,षडंगयुवती योग युक्ता ज्वालांशु मालिनी॥
दुराशया दुराधारा दुर्जया दुर्गरूपिणी,दुरन्ता दुष्कृतिहरा दुर्ध्येया दुरतिक्रमा॥
हंसेश्वरी त्रिकोणास्था शाकम्भर्यनुकम्पिनी,त्रिकोण निलया नित्या परमामृत रंजिता॥
महा विद्येश्वरी श्वेता भेरुण्डा कुल सुन्दरी,त्वरिता भक्त संसक्ता भक्ति वश्या सनातनी॥
भक्तानन्द मयी भक्तिभाविका भक्तशंकरी,सर्वसौन्दर्य निलया सर्वसौभाग्यशालिनी॥
सर्व सौभाग्य भवना सर्व सौख्य निरूपिणी,कुमारी पूजनरता कुमारी व्रत चारिणी॥
कुमारी भक्ति सुखिनी कुमारी रूपधारिणी,कुमारी पूजक प्रीता कुमारी प्रीतिदा प्रिया॥
कुमारीसेवकासंगा कुमारी सेवकालया,आनन्द भैरवी बाला भैरवी वटुक भैरवी॥
शमशान भैरवी काल भैरवी पुर भैरवी,महाभैरव पत्नी च परमानन्द भैरवी॥
सुधानन्द भैरवी च उन्मानानन्द भैरवी,मुक्तानन्द भैरवी च तथा तरुण भैरवी॥
ज्ञानानन्द भैरवी च अमृतानन्द भैरवी,महाभयंकरी तीव्रा तीव्रवेगा तपस्विनी॥
त्रिपुरा परमेशानी सुन्दरी पुर सुन्दरी,त्रिपुरेशी पंचदशी पंचमी पुर वासिनी॥
महासप्तदशी चैव षोडशी त्रिपुरेश्वरी,महांकुश स्वरूपा च महा चक्रेश्वरी तथा॥
नवचक्रेश्वरी चक्रेश्वरी त्रिपुरमालिनी,राजराजेश्वरी धीरा महात्रिपुरसुन्दरी॥
सिन्दूरपूररुचिरा श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी,सर्वांग्सुन्दरी रक्ता रक्तवस्त्रोत्तरीयणी॥
जवायावक सिन्दूर रक्त चन्दन धारिणी,जवायावक सिन्दूररक्तचन्दनरूपधृक॥
चामरी बालकुटिल निर्मल श्याम केशिनी,वज्र मौक्तिक रत्नाढ्यकिरीट मुकुटोज्वला॥
रत्नकुंडल संसक्त स्फ़ुरद गण्ड मनोरमा,कुंजरेशवर कुम्भोत्थमुक्ता रंजितनासिका॥
मुक्ताविद्रुम माणिक्य हाराढ्य स्तन मण्डला,सूर्य कान्तेन्दु कान्ताढ्य स्पर्शाश्म कण्ठ भूषणा॥
वीजपुर स्फ़ुरद बीद दन्त पंक्तिरनुत्तमा,काम कोदण्डकाभुग्न भ्रू कटाक्ष प्रवर्षिणी॥
मातंग कुम्भ वक्षोजा लसत्कोक नदेक्षणा,मनोज्ञ शष्कुली कर्णा हंसी गति विडम्बिनी॥
पद्म रागांगद ज्योतिर्दोश्चतुष्क प्रकाशिनी,नाना मणि परिस्फ़ूर्जच्छ्रद्ध कांचन कंकणा॥
नागेन्द्र दन्त निर्माण वलयांचित पाणिनी,अंगुरीयक चित्रांगी विचित्र क्षुद्र घंटिका॥
पट्टाम्बर परीधाना कल मंजीर शिंजिनी,कर्पूरागरू कस्तूरी कुंकुम द्रव लेपिता॥
विचित्र रत्न पृथ्वी कप शाखि तल स्थिता,रत्न द्वीप स्फ़ुरद रक्त सिंहासन विलासिनी॥
षटचक्र भेदन करी परमानन्द रूपिणी,सहस्त्र दल पद्मान्तश्चन्द्र मण्डल वर्त्तिनी॥
ब्रह्मरूप शिव क्रोड नाना सुख विलासिनी,हर विष्णु विरिंचीन्द्र ग्रह नायक सेविता॥
शिवा शैव च रुद्राणी तथैव शिव वादिनी,मातंगिनी श्रीमती च तथैवानन्द मेखला॥
डाकिनी योगिनी चैव तथोपयोगिनी मता,माहेश्वरी वेष्णवी च भ्रामरी शिवरूपिणी॥
अलम्बुषा वेगवती क्रोधरूपा सु मेखला,गान्धारी हस्तिजिव्हा च इडा चैव शुभंकरी॥
पिंगला ब्रह्मसूत्री च सुषुम्णा चैव गन्धिनी,आत्मयोनिर्ब्रह्मयोनिर्जगदयोनिरयोनिजा॥
भगरूपा भगस्थात्रो भगनि भगरूपिणी,भगत्मिका भगाधार रूपिणी भगमालिनी॥
लिंगाख्या चैव लिंगेशी त्रिपुरा भैरवी तथा,लिंगगीति: सुगीतिश्च लिंगस्था लिंगरूपधृक॥
लिंगमाना लिंगभवा लिंगलिंगा च पार्वती,भगवती कौशिकी च प्रेमा चैव प्रियंवदा॥
गृध्ररूपा शिवारूपा चक्रिणी चक्ररूपधृक,लिंगाभिधायिनी लिंगप्रिया लिंगनिवासिनी॥
लिंगस्था लिंगनी लिंगरूपिणी लिंगसुन्दरी,लिंगगीतिर्महा प्रीता भगगीतिर्महासुखा॥
लिंगनाम सदानन्दा भगनाम सदा रति:,लिंगमाला कंठभूषा भगमाला विभूषणा॥
भगलिंगामृत प्रीता भगलिंगामृतात्मिका,भगलिंगार्चन प्रीता भगलिंग स्वरूपिणी॥
भगलिंग स्वरूपा च भगलिंगसुखावहा,स्वयम्भू कुसुम प्रीता स्वयम्भू कुसुमार्चिता॥
स्वयम्भू कुसुम प्राणा स्वयम्भू कुसुमोत्थिता,स्वयम्भू कुसुमस्नाता स्वयम्भूपुष्पतर्पिता॥
स्वयम्भू पुष्पघटिता स्वयम्भू पुष्प धारिणी,स्वयम्भू पुष्प तिलका स्वयम्भू पुष्प चर्चिता॥
स्वयम्भू पुष्प निरता स्वयम्भू कुसुमग्रहा,स्वयम्भू पुष्पयज्ञांगा स्वयम्भूकुसुमात्मिका॥
स्वयम्भू पुष्प निचिता स्वम्भू कुसुम प्रिया,स्वयम्भू कुसुमादान लालसोन्मत मानसा॥
स्वयम्भू कुसुमानन्द लहरी स्निग्ध देहिनी,स्वयम्भू कुसुमाधारा स्वयम्भू कुसुमाकला॥
स्वयम्भू पुष्पनिलया स्वयम्भू पुष्प वासिनी,स्वयम्भू कुसुम स्निग्धा स्वयम्भू कुसुमात्मिका॥
स्वयम्भू पुष्पकारिणी स्वयम्भू पुष्प पाणिका,स्वयम्भू कुसुमाध्याना स्वयम्भू कुसुम प्रभा॥
स्वयम्भू कुसुम ज्ञाना स्वयम्भू पुष्प भोगिनी,स्वयम्भू कुसुमोल्लास स्वयम्भू पुष्प वर्षिणी॥
स्वयम्भू कुसुमोत्साहा स्वयम्भू पुष्प रूपिणी,स्वयम्भू कुसुमोन्मादा स्वयम्भू पुष्पसुन्दरी॥
स्वयम्भू कुसुमाराध्या स्वयम्भू कुसुमोद्भवा,स्वयम्भू कुसुम व्यग्रा स्वयम्भू पुष्प पूर्णिता॥
स्वयम्भू पूजक प्रज्ञा स्वयम्भू होतृ मातृका,स्वयम्भू दातृ रक्षिणी स्वयम्भू रक्त तारिका॥
स्वयम्भू पूजक ग्रस्ता स्वयम्भू पूजक प्रिया,स्वयम्भू वन्दकाधारा स्वयम्भू निन्दकान्तका॥
स्वयम्भू प्रद सर्वस्वा स्वयम्भू प्रद पुत्रिणी,स्वयम्भू प्रद सस्मेरा स्वयम्भू प्रद शरीरिणी॥
सर्वकालोद्भव प्रीता सर्व कालोद्भवात्मिका,सर्वकालोद्भवोद्भावा सर्वकालोद्भवोद्भवा॥
कुण्डपुष्प सदा प्रीतिर्गोल पुष्प सदा रति:,कुण्डगोलोद्भव प्राणा कुण्डगोलोद्भवात्मिका॥
स्वयम्भुवा शिवा धात्री पावनी लोक पावनी,कीर्तिर्यशस्विनी मेघा विमेघा शुक्र सुन्दरी॥
अश्विनी क्रुत्तिका पुष्या तैजस्का चन्द्रमण्डला,सूक्ष्माऽसूक्ष्मा वलाका च वरदा भय नाशिनी॥
वरदाऽभयदा चैव मुक्ति बन्द विनाशिनी,कामुका कामदा कान्ता कामाख्या कुल सुन्दरी॥
दुखदा सुखदा मोक्षा मोक्षदार्थ प्रकाशिनी,दुष्टादुष्ट मतिश्चैव सर्व कार्य विनाशिनी॥
शुक्राधारा शुक्ररूपा शुक्र सिन्धु निवासिनी,शुक्रालया शुक्रभोगा शुक्र पूजा सदा रति:॥
शुक्र पूज्या शुक्र होम संतुष्टा शुक्र वत्सला,शुक्र मूर्ति: शुक्र देहा शुक्र पूजक पुत्रिणी॥
शुक्रस्था शुक्रिणी शुक्र संस्पृहा शुक्र सुन्दरी,शुक्र स्नाता शुक्र करी शुक्र सेव्यति शुक्रिणी॥
महाशुक्रा शुक्रभवा शुक्र वृष्टि विधायिनी,शुक्राभिधेया शुक्रार्हा शुक्र वन्दक वन्दिता॥
शुक्रानन्द करी शुक्र सदानन्दाभिदायिका,शुक्रोत्सवा सदा शुक्र पूर्णा शुक्र मनोरमा॥
शुक्र पूजक सर्वस्वा शुक्र निन्दक नाशिनी,शुक्रात्मिका शुक्र सम्पत शुक्राकर्षण कारिणी॥
शारदा साधक प्राणा साधकासक्त मानसा,साधकोत्तम सर्वस्वा साधकाभक्त रक्तपा॥
साधकानन्द संतोषा सधकानन्द कारिणी,आत्मविद्या ब्रह्मविद्या परब्रह्म स्वरूपिणी॥
त्रिकूटस्था पंचकूटा सर्व कूट शरीरिणी,सर्व वर्ण मयी वर्ण जप माला विधायनी॥ ॥152॥
॥इति श्री देवी॥
उपरोक्त पाठ को रोजाना करने से दैहिक दैविक भौतिक दुखों का निवारण जल्दी होता है.

कन्या का सूर्य

बरसात का मौसम और क्वार का महिना,खेती किसानी के काम में जूझते लोग उन्हे चिन्ता होती है कि रबी की फ़सल के लिये खेतों की जुताई गुडाई अच्छी तरह से हो जानी चाहिये,जितनी धूप खेत खा जायेंगे उतनी अच्छी रबी की फ़सल पैदा हो जायेगी। इधर खरीफ़ की कटाई उधर रबी की तैयारी भारी काम पडता है किसान के ऊपर कितनी ही मशीने खेती के काम के लिये बना ली जायें लेकिन इस महिने में तो मेहनत करनी है। गुडाई मशीन से सही हो ही नही सकती है,कारण मशीन को पता नही होता है कि खेत की नमी कहां तक है और खेत के किस भाग तक कहां तक नमी फ़ैली हुयी है,जैसे जैसे किसान का हल खेत की छाती को चीरता है वैसे वसे उसे पता लगता जाता है कि खेत के इतने भाग में नमी है अधिक है इतने भाग में नमी कम है,जहां नमी कम होती है उस भाग को जोत कर पाटे से एक सा करने के बाद उसे ढक दिया जाता है जिससे नीचे से नमी ऊपर की तरफ़ आजाये और जैसे ही खेत में बीज डाला जाये वह कार्तिक के सूर्य की गर्मी को पाकर समान्तर रूप से उग जाये और अपने अनुसार नमी को खेत से प्राप्त करने के बाद फ़सल को अधिक से अधिक पैदा करने में सक्षम हो जाये। सूर्य जो आसमान का राजा है उसका असर इन दिनो कुछ कम हो जाता है,रोजाना के कामो के अन्दर सूर्य अपनी पूरी रोशनी देने से सक्षम नही हो पाता है,जैसे ही वह अपनी धूप को बिखेरना चाहता है कहीं से बादल की टुकडी आकर धूप को रोक लेती है,किसान को हल चलाते हुये कुछ समय के लिये तो आराम मिलता है लेकिन थोडी सी देर में ही वही चिलचिलाती धूप फ़िर से किसान को पसीने से तर करने लगती है,इधर जल्दी होती है कि खेत को अगर समय पर खोल कर जोता नही गया तो आने वाली नमी अपना रास्ता नही पकड पायेगी और बोया गया बीज जैसा का तैसा ही जमीन में रखा रह जायेगा,उसकी मेहनत और बीज दोनो बेकार हो जायेंगे। कन्या का सूर्य बहुत मेहनत करवाता है,चाहे वह खेत की किसानी काम हो या सरकार के द्वारा मजदूरी देने वाले काम हो। कन्या राशि को कर्जा दुश्मनी बीमारी का घर कहा जाता है,इस राशि से सेवा वाले कार्यों को भी देखा जाता है,जो भी सेवा करना जानता है उसके अन्दर कन्या राशि के कोई न कोई गुण अवश्य होते है,चाहे उसका लगनेश या राशि पति या नवांश का कारकत्व कन्या राशि का क्यों न हो। कन्या राशि के गुण जातक के अन्दर नही होते तो वह अपने रोजाना के कामो को पूरा कभी कर ही नही सकता था। वह आलसी होता और अपने कामो को करने के लिये किसी न किसी की सहायता को चाहने वाला होता,कई जगह देखने को मिला भी है कि बच्चा कुर्सी पर बैठा है और अपने माता पिता से कह रहा है पानी पिला दो,माता पिता भाग भाग कर बच्चे का काम कर रहे है और बच्चा आलसी बना बैठा है। कन्या राशि में सूर्य की सिफ़्त भी कुछ अच्छी नही कही गयी है,कारण सूर्य जो पिता का कारक होता है सूर्य जो शरीर में हड्डियों की और शरीर के ढांचे की निर्माण क्रिया में अपनी योग्यता को देता है उसके अन्दर कोई न कोई कमी रह ही जाती है,और वह कमी पूरी जिन्दगी के लिये दिक्कत देने वाली हो जाती है। अगर कोई कमी न भी रह पायी तो पिता या पुत्र के लिये या सरकार के लिये पूरी जिन्दगी की लडाई भी हो सकती है,इस लडाई का महत्व भी बहुत अधिक तब बढ जाता है जब पुत्र को पिता की औकात नही मिल पाती है और पिता अपने पुत्र के सुख से वंचित रह जाता है। रामनरायन के चारों पुत्र अगर क्वार के महिने में पैदा हुए और चारों ही पिता से अलग जाकर रहने लगे तो उसके अन्दर रामनरायन का कोई दोष नही है,दोष तो कन्या के सूर्य का ही माना जायेगा,और दूसरा अगर रामनरायन का दोष माना जाये तो उनका दोष इतना ही है कि उन्होने अपने खेत को कुरितु में जोता खोदा और बीज को बोया। दिसम्बर जनवरी की ठंड में रामनरायन को अपनी पत्नी से अधिक लगाव होता था और परिणाम में सितम्बर से अक्टूबर के मध्य में उनके पास पुत्रों का आना होता था। और जब संतान का पैदा होना हो उसी समय महिना ज्वर का हो तो और अधिक दिक्कत हो जाती है,जिस महिने में संतान का पैदा होना और उसी महिने में रामनरायन की पत्नी को ज्वर वाली बीमारी जापे की कमजोरी और सर्दी गर्मी के मिलन से होने वाली कफ़ वाली बीमारियां तो वे अपने बच्चों को दूध पिलायेंगी वह भी बु्खार और कफ़ से मिक्स ही होगा,परिणाम में शुरु से ही शरीर में गर्मी का प्रकोप और बुखार की अधिकता ने सभी के दिमागों के अन्दर केवल पिता और पिता की जायदाद को ही अपना अधिकार माना पिता से ही अपने लिये हर हक को पाने का अधिकार रखा पिता पूरी जिन्दगी अपने बच्चों के लिये नौकर बनकर काम करता रहा और बच्चे केवल यही मानते रहे कि पिता का कार्य केवल अपने बच्चों की तीमारदारी ही करना है। वैसे इसका असर और अधिक तब और दिखाई देता है जब सूर्य का चलन कन्या से तुला की तरफ़ बढना हो,उस समय के बच्चे जो पैदा होते है वे भी अपने पिता से दूरिया किसी न किसी बात पर बना ही लेते है उसके अन्दर बडे पुत्र का दूर रहना बहुत ही जरूरी हो जाता है,वह पिता से किसी भी बात में सहमत नही होता है,उसे अपने पिता के कार्यों से चरित्र से और पिता की भावनाओं से काफ़ी नफ़रत होती है,वह नफ़रत चाहे घर के मामलों में हो या बाहर के कार्यों से जुडी हो। तुला और कन्या की संधि वाली राशि के पिता का नाम कन्या और तुला की संधि से ही मिलता है जैसे राम प्रकाश,या केवल प्रकाश ही मान लिया जाये,यह तुला और कन्या की संधि के हिसाब से सही पाया जाता है दो पुत्र और एक पुत्री का अधिकतर योग मिलता है और कार्यों के अन्दर वही माने जाते है जो जनता से सम्बन्धित हो या किसी न किसी प्रकार से तकनीकी या रक्षा सेवा से जुडे हों। बडा पुत्र अपनी मर्जी का मालिक तभी से बन जाता है जैसे ही अपनी शादी को करने के बाद पत्नी के सानिध्य में आजाता है और छोटा पुत्र साथ रहने की कोशिश करता है,और अपने लिये पिता से ही सभी साधन जुटाने के लिये कोशिश में रहता है,खुद के करने के लिये काफ़ी काम होते है लेकिन पिता के धन को प्रयोग करना और ऐस करना ही मुख्य कारण को मानता है। छोटे पुत्र को हर काम में जल्दी होती है वह शादी भी जल्दी करता है कमाई भी जल्दी करने की कोशिश करता है और पत्नी से संतान को भी जल्दी पैदा करने की कोशिश करता है,कहीं सौ में से एक की सिफ़्त बदल जाये वह बात अलग है लेकिन निन्न्यानवे में यह जरूरी मिलता है। छोटे पुत्र की पत्नी को घर की जिम्मेदारी सम्भालने की जरूरत होती है वह काम भी करती है लेकिन अपने मायके का पूरा ख्याल करती है,जब उसे मायके वालों से फ़ुर्सत मिलती है तो वह अपने घर के लिये यानी ससुराल के लिये काम करने की कोशिश करती है। उसे चिन्ता यही रहती है कि उसके लिये अधिक से अधिक मिल जाये पता नही उसके सास ससुर कब बडे के लिये अपनी योजना को बना दे और जो भी उन्होने जोडा है उसे अपने बडे पुत्र को दे दें,उसकी ननद के लिये भी काफ़ी द्वेष भाव मन में रहता है उसका भी कारण होता है कि बडा भाई ननद के सानिध्य में ही रहना पसंद करता है,उसकी पत्नी को उसके साथ वनवास मिल जाता है,वह अपने बच्चों के पालन पोषण के लिये अपनी मूल्यवान जिन्दगी को दाव पर लगा देती है,बचपन से कोई न कोई कुटैव लगा रहने से वह अपने लिये तम्बाकू गुटका या कोई खाने पीने वाली चीज की आदत पाल लेती है नही तो दवाइयां उसकी आदत में आजाती है। कन्या का सूर्य सरकारी तंत्र में भी काफ़ी हद तक जिम्मेदार माना जाता है वह किसान को खेती वाले कामो मे लगा देता है तो सरकार को कर्मचारियों की हदबंदी और कार्य क्षमता के लिये लडाई शुरु करवा देता है वह लडाई चाहे सेवा करने वाले लोगों के प्रति हो या किसी प्रकार की तकनीकी और धन वाली समस्या से जुडी हो। अखबारों में समाचार आने लगते है कि आज अमुक स्थान पर डाक्टरों ने हडताल कर दी है तो कल वकीलों ने हडताल कर दी है,कहीं बैंक कर्मचारियों ने हडताल शुरु कर दी है,यह सब बातेम होती देख जनता के अन्दर एक विक्षोभ पैदा हो जाता है कि क्या कन्या के सूर्य के समय ही यह सब होना जरूरी है।

मूल नक्षत्र का असर

मेरे भतीजे का जन्म उसकी ननिहाल में हुआ था। जन्म के समय ननिहाल में होने के कारण मेरे माता पिता ने उसके बारे में पंडितों से अधिक जानकारी नही की उसका कारण था कि उसकी ननिहाल वाले स्वयं किसी पंडित से जानकारी लेकर अगर कोई मूल आदि का दोष होगा तो शांति का उपाय करेंगे। बाकी के जो भी कार्यक्रम दादा दादी के होते है वे उन्होने अपने अनुसार कर लिये। मेरा भाई जोधपुर के पास एक फ़ैक्टरी में कार्य करता है फ़ैक्टरी की ही तरह से उसे रहने का मकान आदि साधन मिले हुये है इसलिये वह गांव कभी कभी किसी वक्त जरूरत पर ही आता है। उसके पैदा होने के बाद उसकी ननिहाल खान्दान की हालत धीरे धीरे बिगडने लगी। पहले जब भी कोई खुशी का काम होता तो उसके बाद अचानक गमी का काम हो जाता,उस घर से बीमारियों ने अपना स्थाई निवास बना लिया,कभी कोई बीमार हो जाता और कभी कोई बीमार हो जाता,उसके नाना कमर तोड मेहनत करते लेकिन कोई भी धन की बरक्कत नही होती,भतीजे के पैदा होने के बाद उसके नाना के बडे भाई ने बंटवारा भी कर दिया और जो सम्मिलित परिवार की आय थी वह भी अलग अलग होने के कारण धन की कमी आने लगी। उसके पैदा होने के बाद अपने पिता के पास जोधपुर के पास ही रहने लगा,उसके बाद छोटा भाई पैदा हुआ और जैसे ही भतीजा सात साल का हुआ उसकी माता को ह्रदय रोग की बीमारियों ने घेर लिया उसके पिता की पूरी कमाई पत्नी की बीमारी में लगने लगी,जो भी तन्ख्हा घर आती वह दवाइयों की भेंट चढ जाती,लगभग उसके मरने की स्थिति बन गयी। जयपुर में उसका ह्रदय का आपरेशन करवाया गया दो वाल्व ह्रदय के डाले गये और उसके बाद वह कुछ सही हुयी लेकिन दवाइयां उसकी लगातार चालू रहीं। इधर बच्चे बडे होने लगे उधर दवाइयां एक निश्चित रकम खाने लगीं,वह तो फ़ैक्टरी का सहारा था वरना फ़ाके की नौबत भी आजाती। उधर नाना परिवार में भी मुशीबतों का अन्त नही हो रहा था,भतीजे का मामा अच्छी तरह से अपनी बहिन के पास पढ रहा था,बहुत अच्छी शिक्षा का साधन था लेकिन अचानक पता नही उसके दिमाग में क्या पैदा हुआ कि वह घर से भाग कर मुंबई चला गया और वहां आवारा लडकों की संगति में रहने लगा,गलत करतूतों के कारण उसे जेल में डाल दिया गया। उसे जेल से लेकर घर आया गया तो उसकी पढाई तो पहले ही चली गयी थी,उसने गांव मे ही शहर वाली बातें चालू कर दीं,और उसे गांव वालों ने रंजिस के चलते फ़िर जेल में डलवा दिया गया।